शारीरिक लक्षण विज्ञान के रोचक तथ्य
शारीरिक लक्षण विज्ञान के रोचक तथ्य

शारीरिक लक्षण विज्ञान के रोचक तथ्य  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 18908 | आगस्त 2014

शरीर के विभिन्न अंगों की आकृति व विशेषताओं के ज्ञान को भारत में सामुद्रिक शास्त्र के नाम से जाना जाता है। इसका प्रयोग वैदिक ज्योतिष में होता है क्योंकि इसे ज्योतिष व हस्तरेखा विज्ञान (हस्त सामुद्रिक), फ्रैनोलाॅजी (कपाल-सामुद्रिक) और फेस रीडिंग (फीजियोग्नोमी, मुख-सामुद्रिक) से जोड़ा जाता है। औरा रीडिंग और पूरे शरीर का विश्लेषण भी इसी के अंतर्गत आ जाता है।

शारीरिक लक्षण विज्ञान अर्थात् सामुद्रिक शास्त्र का प्रादुर्भाव वास्तव में भारत में हुआ और कालांतर में इसका प्रचार प्रसार ईरान, रोम व फ्रांस में भी हो गया। सामुद्रिक शास्त्र का उल्लेख भविष्य पुराण, गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, अग्नि पुराण, वृहन्नारदीय पुराण, ज्योतिर्निबंध, गर्ग संहिता, सामुद्रतिलक, बृहत संहिता, महाभारत, भावकौतूहलम आदि अनेक ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है।

इस प्रकार से पुराणों में तो ‘लक्षणों’ का इतना अधिक उल्लेख है कि यदि उन सब का संग्रह किया जाय तो एक वृहद पुस्तक का निर्माण हो सकता है। ऋषि समुद्र, ऋषि पाराशर, ऋषि बाल्मीकि, वराह मिहिर आदि अनेक विद्वानों ने लक्षण शास्त्र के महत्व व उपयोगिता पर विस्तृत जानकारी दी है। भावकौतूहलम नामक पुस्तक विभिन्न शारीरिक लक्षणों के आधार पर प्रभावशाली व सटीक भविष्य कथन करने की अनूठी पुस्तक है।

वृहद्पाराशर होराशास्त्र में स्त्रीलक्षणाध्याय व तिलादिचिह्नाध्याय में शारीरिक लक्षणों की विस्तृत चर्चा की गई है। सामुद्रिक शास्त्र में महान लोगों के शरीर पर पाए जाने वाले चिह्नों का भी उल्लेख किया गया है और भगवान राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध व महावीर स्वामी के शरीर पर इस प्रकार के चिह्नां के पाए जाने के बारे में विशेष चर्चा की गई है।

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार सटीक भविष्यकथन हेतु शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करने के बाद शरीर पर पाए जाने वाले चिह्नों व हस्तरेखाओं का अध्ययन भी आवश्यक है क्योंकि हस्तरेखाएं सामुद्रिक शास्त्र का अभिन्न अंग हैं। ज्योतिष और लक्षण शास्त्र का घनिष्ठ संबंध है। ज्योतिषी जिन बातों को जन्मकुंडली के ग्रह तथा राशि से बताते हैं उन्हीं बातों को लाक्षण् िाक स्त्री किंवा पुरुष के शरीर को देखकर बता सकते हैं। कारण यह है कि 12 राशियां या भावों या विभागों का, शरीर के 12 अंगों से संबंध है।

इसका विशेष विवरण देखने के लिए वृहज्जातक, फलदीपिका, सारावली आदि ज्योतिष के ग्रंथ देखने चाहिए। जिस व्यक्ति के जन्म के समय जो राशि या भाव निर्बल, पाप ग्रह से युत या वीक्षित होता है तो उस मनुष्य के शरीर का वह भाग दुष्ट लक्षणों से दूषित पाया जायेगा। वराह मिहिराचार्य का मत है कि जिस द्रेष्काॅण में पाप ग्रह हो वहां व्रण होता है या व्रण चिह्न होता है। इस प्रकार से यह कहना चाहिए कि जन्मकुंडली मनुष्य के शरीर का एक नक्शा है।

लाल किताब को भविष्य कथन के क्षेत्र में एक चमत्कार से कम नहीं माना जाता क्योंकि यही वह किताब है जिसने सर्वप्रथम यह स्पष्ट किया कि शारीरिक लक्षणों जैसे शरीर पर पाए जाने वाले चिह्नों व हाथ की ेखाआंे का कुंडली में विद्यमान ग्रहों से संबंध होता है।

या यूं कहें कि कुंडली के विभिन्न भावों में स्थित ग्रह यह स्पष्ट करते हैं कि हाथ में किस प्रकार की रेखाएं होंगी। इसीलिए इसे एस्ट्रोपामिस्ट्री की पुस्तक अर्थात् हस्तरेखा विज्ञान व ज्योतिष का मिश्रण माना जाता है। सामुद्रिक शास्त्र पर लिखी गई विभिन्न पुस्तकों में अंग शास्त्र एक ऐसी पुस्तक है जो महिलाओं के शरीर विश्लेषण का सूक्ष्म ज्ञान देती है और इसके आधार पर महिलाओं के चरित्र, स्वभाव, कार्यशैली व सौभाग्य के बारे में सूक्ष्म जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

तमिल विद्वानों ने शारीरिक लक्षण के आधार पर महिलाओं को सात श्रेणियों में वर्गीकृत किया। रति रहस्य नामक पुस्तक ने शारीरिक व मानसिक लक्षणों के आधार पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया। महान दार्शनिक अरस्तु ने यह माना कि व्यक्ति का बाह्य व्यक्तित्व उसकी आत्मा का प्रतिबिंब होता है अर्थात् व्यक्ति के शारीरिक लक्षण व हाव भाव से उसके व्यक्तित्व व चरित्र की गहराई का अनुमान लगाया जा सकता है।

अरस्तु ने शारीरिक लक्षण द्वारा मानव के चरित्र का बारीकी से अध्ययन करने हेतु फीजियोग्नोमोनिका नामक पुस्तक भी लिखी। प्राचीन यूनानी गणितज्ञ, खगोल शास्त्री और वैज्ञानिक पाइथागोरस को बहुत से लोग शारीरिक लक्षण विज्ञान का जनक मानते हैं। पाइथागोरस ने अपने एक अनुयायी का इसलिए परित्याग कर दिया था क्योंकि उसके हाव-भाव से उन्हें वह दुष्ट चरित्र का व्यक्ति लगा। एक समय ऐसा था जब शारीरिक लक्षण विज्ञान को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता था तथा इंग्लैंड के हेनरी टप्प्प् तक इंग्लिश विश्वविद्यालयों में इसे पढ़ाया भी जाता था।

आधुनिक युग में स्विटजरलैंड के जोहान केस्पर लेवेटर (1741-1801) को शारीरिक लक्षण विज्ञान का सबसे बड़ा प्रचारक माना जाता है। 1772 में इनके इस विज्ञान पर लिखे गए निबंध जर्मन भाषा में प्रकाशित हुए और इतने प्रभावशाली व लोकप्रिय रहे कि उन्हें कालांतर में फ्रेंच व इंग्लिश में भी अनुवादित किया गया। शारीरिक लक्षण विज्ञान 18वीं और 19वीं शताब्दी में विशेष लोकप्रिय हुआ और इस पर शिक्षक लोग खूब चर्चा किया करते थे।

बहुत से यूरोपीय उपन्यासकार अपने पात्रों का चरित्र चित्रण करते हुए शारीरिक लक्षण विज्ञान की जानकारियों का प्रयोग किया करते थे। 19वीं सदी में अंग्रेज साइकोमैट्रिशियन सर फ्रांसिस गाल्टन ने स्वास्थ्य, रोग, सौंदर्य व अपराध के शारीरिक लक्षणों व विशेषताओं को कंपोजिट फोटोग्राफी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया। आधुनिक समय में भी बहुत से ऐसे विद्वान हैं जो आपके शारीरिक लक्षण से ही यह समझ जाते हैं कि आप किस रोग से ग्रस्त हैं जबकि मेडिकल साइंस में बहुत सारे टेस्टस से गुजरने के बाद डायग्नोसिस हो पाता है।

सर थामस ब्राउन ने यह माना कि व्यक्ति के चेहरे पर उसकी मनोदशा और स्वभाव का प्रभाव पड़ता है। इसीलिए व्यक्ति के चेहरे की आकृति से उसके स्वभाव व चरित्र का अनुमान लगाना सरल होता है। यदि मस्तक चैड़ा हो और मस्तक पर आर-पार जाने वाली रेखाएं हों तो ऐसा व्यक्ति विशेष बुद्धिमान व श्रेष्ठतम बौद्धिक क्षमताओं से युक्त होता है। अल्बर्ट आइन्स्टाईन के मस्तक पर इस प्रकार की रेखाएं मौजूद थीं। कुछ बच्चे जन्म से ही दांतों के साथ पैदा होते हैं। इस प्रकार के दांतों को नेटल टीथ कहते हैं। प्राचीन शारीरिक लक्षण विज्ञान ने इसे अत्यंत बुरा माना है और दुष्टता, बुराई, हानि व विपत्ति से जोड़ा है।

नेपोलियन बोनापार्ट व जूलियस सीजर भी नेटल टीथ के साथ पैदा हुए थे। वर्ष 2008 तक बहुत सी ऐसी पुस्तकें प्रकाशित हुईं जो हाथ और उंगलियों के आकार प्रकार के बारे में वर्णन करती हैं। वैज्ञानिक जाॅन मैनिंग ने यह निष्कर्ष निकाला कि किस प्रकार हमारी उंगलियों से पुरूष और महिलाओं में पाई जाने वाली विविधताओं के बारे में विस्तृत जानकारी मिल जाती है तथा यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि जातक किस प्रकार के रोगों का शिकार होगा व कैसा व्यवहार करेगा और इस सबकी प्रोग्रामिंग जन्म से पूर्व ही हो जाती है।

जाॅन मैंिनंग की प्रसिद्ध पुस्तक फिंगर बुक यह वर्णन करती है कि हमारी तर्जनी व अनामिका उंगली की लंबाई हमारे व्यक्तित्व, स्वास्थ्य व योग्यताओं को विशेष रूप से प्रभावित करती है। इस पुस्तक व सामुद्रिक शास्त्र की भाषा व दृष्टिकोण में गजब की समानता है। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि मानव, प्रकृति व ज्ञान के जिन खंडों को विज्ञान धीरे-धीरे समझने लगा है उन सबकी जानकारी हमारे मनीषियों को सहस्त्रों वर्ष पूर्व से है। यदि तर्जनी उंगली विशेष लंबी हो और मध्यमा से भी लंबी हो जाए तो ऐसा जातक राजा बनता है।

अब्राहम लिंकन व नेपोलियन बोनापार्ट इन दोनों की तर्जनी विशेष लंबी थी। यदि कनिष्ठा उंगली अधिक लंबी हो और अनामिका उंगली के ऊपरी पोर तक पहुंच जाए तो ऐसा जातक जीनियस तथा प्रबंधन कार्य में कुशल होता है व जीवन में कोई बड़ा कार्य कर पाने में निश्चित रूप से सफल होता है। ऐसा देखा गया है कि आम तौर पर जिन लोगों की यह उंगली इतनी लंबी नहीं होती वे जीवन में कोई विशेष प्रशंसनीय कार्य कर पाने में सफल नहीं हो पाते।

यदि किसी व्यक्ति की भुजाएं लंबी हों और उसके हाथ घुटनों को स्पर्श करें तो वह व्यक्ति बहुत बड़ा शासक बनता है। ऐसे व्यक्ति को अजानुपा कहते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अजानुपा थे। आरनाॅल्ड सचवार्जनैगर बहुमुखी प्रतिभासंपन्न, प्रख्यात बाॅडी बिल्डर, एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, व्यापारी, निवेशक, राजनीतिज्ञ और लेखक हैं।

इनका जन्म 30 जुलाई 1947 को हुआ था और 20 वर्ष की अवस्था में इन्होंने मिस्टर यूनिवर्स का खिताब जीता था। आरनाॅल्ड सचवार्जनैगर के व्यक्तित्व में ऐसी अनेक सकारात्मक विशेषताएं हैं जो उन्हें विभिन्न कार्यों में सफलतम बनाने में सहायक सिद्ध होती है जैसे- उनका चैड़ा मस्तक यह बताता है कि वह विशेष बुद्धिमान हैं और मस्तक पर आर पार जाने वाली रेखाएं उनकी मजबूत मानसिक योग्याताओं की परिचायक हैं। उनके गालों की उठी हुई हड्डियां इस बात की परिचायक हैं कि उनका फस्र्ट इम्प्रेशन विशेष अच्छा पड़ता है।

उनकी सीधी भौहें बताती हैं कि वे एक तर्कशील चिन्तक हैं और वे तर्क और तथ्य पर किसी भी अन्य बात की अपेक्षा अधिक विश्वास करते हैं। सचवार्जनैगर की सीधी नाक यह स्पष्ट संकेत देती है कि वे लंबी योजनाएं बनाते हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं कि वह बुद्धिमान, तर्कशील चिंतक और लंबी योजनाएं बनाने में समर्थ हैं।

इस प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण ही उन्हें एक कुशल मेयर बनाने के लिए सहायक हुआ। सचवार्जनैगर की साधारण से लंबी चिबुक यह दर्शाती है कि उनमें खतरा उठाने की विशेष क्षमताएं हैं और उनकी शारीरिक सहनशक्ति भी बहुत अधिक है। उनकी भौहों के आंखों के अधिक निकट होने के कारण उनके अंदर तुरंत निर्णय लेने की क्षमताएं हैं और वे ऐसा करने के लिए विलंब नहीं करते अपितु स्पाॅट पर ही निर्णय ले लेते हैं।

हो सकता है कि आरनाॅल्ड दूसरे लोगों को बोलते समय बीच में इंटरप्ट करते हों क्योंकि वे शीघ्रता से निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। आर्नल्ड के छोटे होंठ यह स्पष्ट करते हैं कि वे आपको उन्हें सुनने के लिए बाध्य नहीं करेंगे अपितु आपको बोलने का अवसर भी देंगे। 

इस आलेख के आरंभ में शारीरिक लक्षण विज्ञान के परिचय व इतिहास के साथ ज्योतिष तथा हस्तरेखा शास्त्र से इसके संबंध को भी समझाया गया है। पाश्चात्य जगत को इस विज्ञान ने कितना सम्मोहित किया है उसकी भी चर्चा की गई है तथा कुछ महान विभूतियों के विशेष शारीरिक लक्षणों की संक्षिप्त जानकारी के अतिरिक्त आरनाॅल्ड सचवार्जनैगर के व्यक्तित्व का शरीर लक्षण विज्ञान के सिद्धांतों के आधार पर किया गया विश्लेषण यह स्पष्ट करता है कि जातक के चरित्र चित्रण व भविष्य की संभावनाओं को दर्शाने के लिए यह विज्ञान कितना कारगर है।

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