आइ. ए. एस. तथा आइ. पी. एसबनने के ज्योतिषीय योग प्रश्नः सरकारी नौकरी में आई. ए. एस., आइ. पी. एस. जैसे उच्च पदाधिकारी बनने के ज्योतिषीय योगों की सोदाहरण चर्चा करें। भारत देश को स्वतंत्र हुए छ दशक व्यतीत हो चुके हैं, परंतु हमारे मन मस्तिष्क पर आज भी नौकरशाहों का प्रभुत्व विद्यमान है। आज भी आई. ए. एस. तथा आई. पी. एस. जैसे उच्च सरकारी पदों पर बैठे व्यक्तियों का वर्चस्व बरकरार है। हम उन्हें आज भी राजा की श्रेणी में ही देखते हैं। यह स्वभाविक भी है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों की जन्मकुंडली का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि उनकी जन्मकुंडली में ऐसे अनेक प्रकार के राजयोग तथा उच्च पदाधिकारी योग विद्यमान होते हैं। आज राजतंत्र तो प्रायः संपूर्ण संसार में समाप्त हो चुका है। विशिष्ट वैभव योग, लक्ष्मी योग, शौर्य योग वाले जातक ही इन पदों को सुशोभित करते हैं। किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा में सफलता के लिये व उच्च पदाधिकारी जैसे आई. ए. एस, तथा आई. पी. एस आदि पदों पर प्रतिष्ठित होने के लिये ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न, दशम, षष्ठ स्थानों का कुंडली में प्रबल होना एवं इन भावों के भावेशों का शक्तिशाली होना अत्यंत आवश्यक है। सफलता के लिये पूर्ण रूपेण समर्पित होना तथा पराक्रम व साहस का होना भी अनिवार्य है। यह तृतीय भाव, भावेश व उसका कुंडली में उत्तम स्थान पर प्रतिष्ठित होना भी महत्वपूर्ण है।
सबसे महत्वपूर्ण स्थान लग्न है, उसका बलवान व सशक्त होने के साथ-साथ लग्नेश का उत्तम स्थान पर होना परम आवश्यक है। कुंडली में लग्न के बाद दशम स्थान का महत्व है। यह कर्म का भाव है। इस भाव और भावेश की प्रबलता यह दर्शाने के लिये आवश्यक है कि व्यक्ति जीवन में किस व्यवसाय को अपने जीविकोपार्जन के लिए अपनाएगा तथा वह कितना सफल होगा। यूं तो दशम् स्थान लग्न के बाद सबसे महत्वपूर्ण होता है। प्रायः जिन भावों के स्वामी दशम् में होते हैं, उनको भी पर्याप्त बल मिल जाता है। यदि दशम में शुभ ग्रह हों और दशम का स्वामी बलवान होकर अपनी राशि में या मित्र राशि में स्थित होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठे या लग्न का स्वामी बलवान होकर दशम में बैठे तो जातक का राजा के समान भाग्य होता है। और वह दीर्घायु भी होता हे। उसके यश का बहुत विस्तार होता है और उसकी प्रवृत्ति भी धर्म, कर्म में होती है। -(फलदीपिका) नभसि शुभखगे वा तत्पतौ केंद्रकोणे, बलिनि निजगृहोच्चे कर्मगे लग्नपे वा। महित पृथुयशाः स्याद्धर्म कर्म प्रवृत्तिः नृपति सदृशभाग्यं दीर्घामायुश्च तस्य॥
(फलदीपिका अ. 16- पद 27) सबले कर्मभावेशे स्वोच्चे स्वांशे स्वराशिशे जातस्तातसुखोनादयो यशस्वी शुभकर्मकृत॥ (बृ. हो. शा. अध्याय 23-श्लोक नं. 2) दशमेश सबल हो, अपनी राशि, उच्च राशि अथवा अपने ही नवांश में होने पर जातक पिता का सुख पाने वाला तथा यशस्वी एवं शुभ कर्म करने वाला होता है। स्वस्वाभिना वीक्षितः संयुतो वा बुधेन वाचस्पतिना प्रदिष्टः। स एव राशि बलवान् किल स्वाच्छेषैर्यदा दृष्ट युता न चात्र॥ (फलित मार्तण्ड. प्र. अध्याय श्लो-23) जो राशि अपने स्वामी से दृष्ट या युक्त हो अथवा बुध व गुरु से दृष्ट हो, वह लग्न राशि निश्चय करके बलवान होती है। अर्थात स्वस्वामी बुध, गुरु के अतिरिक्त अन्य ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त हो तो निर्बल होती है। बलवान लग्नेश तथा सशक्त दशमेश यदि लग्न व दशम् में हों तो निश्चय ही व्यक्ति उच्च पदों पर नियुक्ति पाता है। यहां पर अच्छे अन्य योग कुंडली में होने पर व्यक्ति के जीवन में यश, कीर्ति व शक्ति और लक्ष्मी की प्राप्ति होना निश्चित है। साथ ही साथ इन स्थानों पर सूर्य का प्रभुत्व होने पर राजपत्रित अधिकारी व राजनेता एवं मंगल का प्रभुत्व होने पर पुलिस अथवा सेना में उच्च पद प्राप्ति के निश्चित संकेत मिलते हैं।
बुध का भी इसमें महत्वपूर्ण योग है। प्रायः आई. ए. एसआदि पदों पर कार्य करने वाले जातकों की कुंडली में बुध-आदित्य योग अवश्य ही होता है। बृहस्पति का भी उच्च सम्मानित पद, यश एवं कीर्ति तथा शुभ कर्म करने वाले लोगों पर अच्छा प्रभाव देखा जाता है। दशम् भाव की 6, 7, 9, 12 वें भाव पर अर्गला होती हैं जिनके द्वारा दुश्मन, नौकर, वैभव तथा निद्रा प्रभावित होती है। उदाहरणतया चाणक्य ने कहा है कि, जिस राजा के कर्मचारी वफादार होते हैं; उसे कभी परास्त नहीं किया जा सकता है।'' यदि छठा भाव तथा भावेश दशम् भाव पर अच्छा प्रभाव डाल रहे हैं। तो शत्रु परास्त होंगे तथा सेवक स्वामीभक्त होंगे। उच्च पदाधिकारी की सफलता छठे भाव के अनुकूल होने पर भी बहुत कुछ निर्भर है। इस भाव पर भी या तो गुरु की दृष्टि अथवा उपस्थिति प्रायः ऐसे अधिकारियों को सफल बनाती है। अतः इन सभी व्यवसायों की कुंडली का अध्ययन करते समय छठे भाव का अवश्य ही अध्ययन किया जाना चाहिये। एकादश, प्रथम, द्वितीय और अष्टम की दशम भाव पर अर्गला होती है। अतः यह भाव भी महत्वपूर्ण है।
पंचम भाव दशम से आठवां होने के कारण कार्य का प्रारंभ तथा उसकी अवधि को प्रभावित करता है। पंचम भाव शक्ति, राज्य करने की योग्यता, सम्मान जो कोई व्यक्ति अपनी योग्यता के कारण पाता है; को दर्शाता है। यह पूर्व पुण्य, उच्च शिक्षा का भी भाव है। अतः नई नौकरी की शुरूआत भी पंचम् भाव से ही देखी जाती है। आर्थिक त्रिकोण 2, 6, 10 वें भाव पर निर्भर करता है। अतः इनका प्रभाव अवश्य ही महत्वपूर्ण होता है। यूं तो दशम भाव में कोई भी ग्रह उत्तम फल देने में स्वतंत्र होता है, लेकिन नवांश, दशमांश कुंडली का भी लग्न कुंडली की भांति भली प्रकार, सभी तरह के योगों का अध्ययन करने पर ही पूर्णतया फल-कथन किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम यहां एक आई. एस. एस जातक की कुंडली दी जा रही है। प्रथम प्रयास में ही सन् 1985 में आई. ए. एस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर आज अनेक सरकारी पदों पर देश-विदेश में सेवारत है।
है।
1. लग्न व लग्नेश बलवान व अपनी अथवा उच्च राशि में है। स्थिर लग्न है व लग्न का स्वामी शुक्र अपनी ही राशि में विद्यमान है। मात्र इस योग से ही कोई जातक उच्च पदाधिकारी बन सकता है। अपनी ही राशि वृष में होने के कारण यहां मालव्य योग का भी सृजन हो रहा है। इस योग में पैदा होने वाला जातक बुद्धिमान, धनवान, प्रसिद्ध, उत्तम वाहन युक्त, उच्च शिक्षा प्राप्त, सुसंस्कृत, दीर्घायु तथा खयातिवान होता है। जातक को हर प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
2. तृतीयेश चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष में लग्न में होने पर लग्न को और भी बलवान बना रहा है।
3. द्वितीयेश, पंचमेश बुध भी लग्न में ही विद्यमान है जिसके परिणामस्वरूप जातक बचपन से ही पढ़ने-लिखने में तेज था तथा उसकी स्मरण शक्ति भी बहुत प्रभावशाली थी।
4. चतुर्थ योग जो इस कुंडली में विद्यमान है, वह है उभय-चारिक योग। कुंडली में यदि सूर्य से दोनों भावों में (दूसरे तथा बारहवें) चंद्रमा के अतिरिक्त मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि इनमें से कोई ग्रह स्थित हों तो उभय-चारिक योग होता है। इस कुंडली में उच्च के सर्यू के साथ उसके बारहवें भाव में मंगल तथा द्वितीय भाव में शुक्र व बुध विद्यमान हैं जो जातक को न्यायप्रिय व कार्य कुशल बना रहे हैं।
5. लक्ष्मी योग : इस कुंडली में शुक्र तथा नवमेश दोनों अपनी स्वराशि में है तथा केंद्र व नवम स्थान अर्थात् त्रिकोण में होने के कारण लक्ष्मी योग निर्मित हो रहा है। इस योग में उत्पन्न जातक तेजस्वी, निरोग, सुपत्नी वाला और लक्ष्मी का कृपा-पात्र होकर अत्यंत धनवान होता है तथा सुखी जीवन व्यतीत करता है।
6. सम-योग : यदि सूर्य से पणकर स्थान (2, 5, 8, 11) में चंद्रमा हो तो सम-योग का सृजन होता है। यहां सूर्य से द्वितीय स्थान में चंद्रमा के द्वारा इस योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक धन, वाहन, सुख, यश, कीर्ति, बुद्धि, विनय, संपत्ति, विद्या, और सुख भोग का फल प्राप्त करता है।
7. नवांश कुंडली में सूर्य पर बृहस्पति की नवम् दृष्टि एवं बुध की सप्तम दृष्टि पंचम भाव स्थित सूर्य को बल दे रही है।
8. दशमांश कुंडली में दशमेश एकादश भाव में और तृतीयेश दशम भाव में है। यह दोनों जातक को राज्य से सम्मानित तथा उच्च पदवी पर कार्य करने वाला, साहसी, धन, पुत्र, सवारी से युक्त बनाते हैं। ऐसे जातक पर लक्ष्मी की कृपा रहती है। 9. नवांश कुंडली में सप्तमेश व दशमेश बृहस्पति त्रिकोण में स्थित है, जबकि लग्न कुंडली में दशम भाव में स्थित गुरु राशि वर्गोत्तम हो रहे हैं। नवांश कुंडली में गुरु की पंचम दृष्टि नवांश लग्न को बल प्रदान कर रही है। जातक की राहु की महादशा 1974 से 1992 तक चल रही थी। राहु में बुध की अंतर्दशा के दौरान पढ़ाई, परीक्षा व परिणाम घोषित हुआ तथा कार्य आरंभ हुआ। स्पष्ट रूप से पंचमेश बुध लग्न में विद्यमान थे। अतः पंचम भाव से कार्य का आरंभ भी इस कुंडली में विद्यमान है। षष्ठेश शुक्र भी अपनी ही राशि लग्न में बैठे हैं।
जहां इतने उत्तम योग कुंडली में विद्यमान हों, ऐसे जातक को आई. ए. एस. बनने से कौन रोक सकता है। अब दूसरा उदाहरण एक आई ए. एस. (एलाइड) जातक का दिया जा रहा है। भली भांति विश्लेषण करने पर स्पष्ट हो जाता है कि जीवन में व्यक्ति कितना विखयात होगा व क्या कार्य करेगा यह सभी कुछ जन्मकुंडली से जाना जा सकता है। इस कुंडली का सिद्धांतों के आधार पर विश्लेषण करने पर हम पाते हैं, कि लग्न कुंडली में दशम भाव सशक्त होने के साथ-साथ सूर्य अपनी ही राशि में दशम भाव में है। अतः ऐसे जातक को उच्च राजकीय पद मिलने के साथ-साथ एकादशेश बुध भी दशम् भाव में होकर लाभ प्राप्ति का योग दर्शा रहे हैं, वहीं बुध आदित्य योग होने के कारण जातक बहुत बुद्धिमान, चतुर, कार्य कुशल, लोकप्रिय, सुखी एवं विखयात होने वाला है। नवांश कुंडली में सूर्य से द्वितीय भाव में शुक्र शुभ वेसि योग बना रहे हैं। अतः ऐसा जातक सौम्य प्रकृति का होता है। उसकी वाणी प्रभावशाली होती है, जिसके द्वारा वह अपना अच्छा विश्वास सभी पर बना लेता है। वह नेतृत्वकर्ता एवं शत्रु-विजयी होता है। वही षष्ठ भाव में दुरधरा योग भी बन रहा है। ऐसे जातक धनवान, सुखी, त्यागशील, वाहन युक्त तथा अनेक सांसारिक सुख-साधनों का उपभोग करने वाले होते हैं। लग्न कुंडली में वृहस्पति द्वितीयेश होकर लग्न में ही हैं, तथा लग्नेश उच्च का होकर तृतीय स्थान पर है। अतः यह जातक साहसी, बुद्धिमान तथा वैभव युक्त व धनवान बनाता है। चंद्र कुंडली में मंगल अपनी उच्च राशि में दशम् भाव में बैठा है। अतः जातक एक उच्च पदाधिकारी ही होगा। दशमांश कुंडली में चंद्रमा उच्च का होकर पंचम स्थान पर है तथा षष्ठेश बुध नवम् भाव में है। अतः जातक को 1995-99 में इंजीनियर की शिक्षा पूर्ण करते ही आई. ए. एस. (एलाइड) में सफलता मिली। एक वर्ष पुनः परीक्षा देने का मन बनाया लेकिन पुनः 96 में एलाइड का कार्यभार लिया, जहां इस समय उच्च विभाग में कार्यरत हैं।
इन दोनों की ही कुंडली यह स्पष्ट दर्शाती है कि लग्न, लग्नेश, दशमेश व दशम् भाव, पंचम और षष्ठ तथा तृतीय भाव का उच्च सबल होना किसी भी जातक को कीर्ति, यश, वैभव तथा लक्ष्मीवान होने के साथ-साथ उच्च राजकीय पद प्राप्ति में बहुत महत्वपूर्ण योगदान देता है। आश्चर्य नहीं कि ऋषियों और दैवज्ञों की बुद्धिमता से बनाये गये ज्योतिष के सिद्धांत आज भी सत्यता की कसौटी पर सही उतरते हैं। यहां अब एक एैसे जातक की कुंडली दी जा रही है, जिनका जन्म अमेरिका के कोलोरेडो स्प्रिन्गस् शहर में हुआ। जातक का लग्न द्विस्वभाव राशि है तथा त्रिकोण में मंगल है। यह योग ही जातक को उच्च अधिकारी बना देता है।
मंगल के (साथ सूर्य अपनी उच्च राशि में होने से) जातक पुलिस सेवा का अधिकारी बना। नवम् भाव में गुरु की पंचम दृष्टि लग्न पर सप्तम् तृतीय पर एवं नवम दृष्टि पंचम पर पड़ रही है। सूर्य भी द्वितीय भाव में बैठे चंद्रमा पर दृष्टि दे रहा है। अतः यह सभी योग साथ ही षष्ठेश का लग्न में होना यह निश्चित कर रहा है कि इस जातक के उच्च अधिकारी होने में कोई बाधा नहीं। लग्न कुंडली में सूर्य के दोनों ओर बुध, शुक्र व मंगल गुरु की स्थिति से यहां उभयचारी योग भी बन रहा है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक सहनशील, न्याय प्रिय एवं कार्य कुशल होते हैं। शरीर पुष्ट तथा मन स्थिर होता है। आश्चर्य नहीं कि जातक में उच्च पुलिस अधिकारी होने के साथ-साथ यह सभी गुण भी विद्यमान है। चंद्रमा से बारहवें भाव में शनि के द्वारा यहां अनफा योग बन रहा है। इस योग में उत्पन्न जातक सुंदर व स्वस्थ होते हैं। यदि शनि बारहवें भाव में हो तो जातक गुणवान, विचारशील तथा चरित्रवान होते हैं। नवांश कुंडली में सूर्य पंचम में स्वराशिस्थ है। साथ ही शनि दूसरे भाव में होने पर शुभ वेसि योग बना रहा हे। कुंडली का दशम भाव सबसे बलवान होकर षष्ठ में बैठा है।
शनि का जो दशमेश हैं षष्ठेश से राशि परिवर्तन योग भी बना हुआ है। एक उच्च अधिकारी होने के लिये लग्न, लग्नेश, षष्ठेश व दशमेश की स्थिति इस जातक की उच्च पद पर नियुक्ति को दर्शाती है। चंद्र कुंडली में पाये जाने वाले योगों का भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। जहां जन्मकुंडली में सूर्य के दोनों ओर ग्रह उभयचारी योग बना रहे हैं, वहीं चंद्र कुंडली में चंद्र लग्न को लगातार छठे, सातवें व आठवें स्थान पर पांच ग्रह लग्न को बहुत सबल बना रहे हैं। साथ ही चंद्राधियोग की भी अच्छी स्थिति बन रही है। अतः जातक स्वस्थ, चतुर, शत्रु विजयी, निरोगी, सुखी एवं विखयात होगा ही, इसमें संदेह नहीं। दशमांश-कुंडली में सूर्य लग्नेश होकर द्वितीय में हैं। षष्ठेश शनि सप्तम में है, तथा मंगल की अष्टम दृष्टि लग्नेश सूर्य पर द्वितीय भाव में है। शनि व शुक्र केंद्र में अपनी व उच्च राशि में होने के कारण शश व मालव्य योग का निर्माण हो रहा है। यह पंच महापुरुष योग का शनि व शुक्र से बनने वाला योग है। ऐसा जातक अत्यंत प्रभावशाली, प्रभुता संपन्न, नीति निपुण, किसी वर्ग का मुखिया होता है। ऐसे व्यक्ति सुखी व धनवान होते हैं।
साथ ही एकादश व द्वितीय भाव का स्वामी बुध लाभेश होकर लाभ स्थान म केही बैठा है। साथ ही अमात्यकारक शुक्र दशमेश व तृतीयेश होकर एकादश में विद्यमान है। पंचमेश तथा अष्टमेश गुरु की दृष्टि (पंचम) भी एकादश भाव पर है। अतः जातक एक सफल पुलिस उच्चधिकारी के पद पर कार्यरत है।
सारांश रूप में तीनों कुंडलियों के अध्ययन से निम्न तथ्य स्पष्ट होते हैं-
1. ग्रहों में राजा सूर्य तथा गुरु ये दो ग्रह मुखय रूप से प्रशासनिक प्रतियोगिता में सफलता और उच्च पद प्राप्ति के नियंत्रक हैं। पहली कुंडली में सूर्य अपने उच्च भाव में द्वादश में हैं, दूसरी कुंडली में दशमेश सूर्य अपनी ही राशि सिंह में है एवं नवांश कुंडली में लाभेश व दशमांश कुंडली तृतीयेश हैं। तीसरी कुंडली में उच्च राशि मे सूर्य अष्टम में हैं, नवांश कुंडली में पंचमेश होकर अपनी ही राशि में हैं तथा दशमांश में द्वितीय भाव में हैं। अतः निर्विवाद रूप से सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान पर होना, बली होना अथवा वर्गोत्तम होकर लग्न, दशम को प्रभावित करना आई. ए. एस. अथवा आई. पी. एस. जैसे पदों पर काम करने वालों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। तीनों ही कुंडलियों में बृहस्पति की भूमिका भी महत्वपूर्ण बनी हुई है। बृहस्पति मुखयतः अच्छे गुण, पुत्र, मंत्री, अच्छा आचरण, सबकी उन्नति, सद्गति, स्मृति आदि का ज्ञान, भक्ति, यज्ञ, तपस्या, श्रद्धा, खजाना, विद्वत्ता, सम्मान, दया आदि के कारक माने जाते हैं। कुंडली 1 में बृहस्पति दशम में विद्यमान हैं, जबकि वो अष्टमेश व एकादशेश हैं। अतः केंद्र में ही विद्यमान हैं। कुंडली 2 में बृहस्पति पंचमेश एवं द्वितीयेश होकर लग्न में ही विद्यमान है, जो कि पुनः सबसे महत्वपूर्ण केंद्र स्थान है। शनि की सप्तम दृष्टि भी है। चंद्र कुंडली में अष्टम में तथा नवांश, दशमेश कुंडली में भाव वर्गोत्तम होकर नवम् भाव में हैं। यहां से पराक्रम स्थान तृतीय को दृष्टि बल मिल रहा है तथा दशमांश में तृतीय व नवम स्थान में छ ग्रह एक दूसरे पर सप्तम दृष्टि से बलवान बना रहे हैं। कुंडली 3 में पराक्रमेश मंगल के साथ नवम भाव में चतुर्थेश व सप्तमेश होकर विद्यमान हैं। चंद्र कुंडली में अष्टम में हैं, जबकि नवांश कुंडली में लाभ भाव में तथा दशमांश कुंडली में केंद्र स्थान में हैं। इन तीनों ही कुंडलियों में गुरु नवम भाव में अपना प्रभाव दिखा रहे हैं जबकि लग्न, लग्नेश, दशम् दशमेश भावों का बलवान होना यह स्पष्ट करता है कि उच्च स्थानों पर जाने के लिये कुंडली का अध्ययन मनुष्य के भावी जीवन की रूपरेखा स्पष्ट कर देता है। इन सभी कुंडलियों में जो सबसे महत्वपूर्ण स्थान है वह है शनि का। उच्च पदाधिकारियों का मुखय कार्य जनता की सेवा करना है। शनि प्रायः जनता तथा उसके साथ के संबंधों के कारक होते हैं। इन तीनों ही कुंडलियों में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई देती है। नवम, पंचम अथवा केंद्र में विद्यमान हैं। पुलिस तथा न्याय के कार्य में मंगल भी अपना प्रभुत्व लिये हुए हैं। इन सभी कुंडलियों में अनेक प्रकार के राजयोग, लक्ष्मी योग, पंच महापुरुष योग, उच्च अधिकारी योग प्रचुरता से विद्यमान हैं। अतः यह तीनों ही उदाहरण ज्योतिष के सिद्धांतों की प्रचुरता से पुष्टि कर रहे हैं। इनको किसी भी कुंडली के परीक्षण का आधार माना जा सकता है। कुंडली में मंगल से बनने वाले योग 1. कुंडली में मंगल दशम भाव में बली होकर स्थित हो।
2. मंगल की दशम भाव पर दृष्टि हो।
3. मंगल स्व राशि मेष, वृश्चिक या उच्च राशि मकर में शुभ स्थान में हो।
4. दशमेश का नवांशपति मंगल हो तथा लग्नकुंडली मे मंगल बली हो।
5. कुंडली में मंगल शनि से त्रिकोण में हो या साथ हो या शनि पर उसकी दृष्टि हो।
6. मंगल लग्न में मध्यम हो परंतु दशमांश में बहुत अधिक बली हो तो भी।
7. सूर्य दशम भाव में स्थित हो या दशम को देखता हो।
8. सूर्य आजीविका कारक शनि के साथ हो या उसे देखता हो।
9. सूर्य सेवा के भाव षष्ट को देखता हो या वहां बली होकर बैठा हो।
10. आजीविका कारक शनि यदि सरकार कारक सूर्य की राशि सिंह में बैठा हो।
11. कुंडली में सूर्य यदि बहुतबली होकर किसी भी शुभ भाव में हो अर्थात् स्व राशि में या उच्चस्थ हो।