वास्तु शास्त्र का महत्व एवं उपयोगिता
वास्तु शास्त्र का महत्व एवं उपयोगिता

वास्तु शास्त्र का महत्व एवं उपयोगिता  

जयप्रकाश शर्मा (लाल धागे वाले)
व्यूस : 9453 | फ़रवरी 2011

वास्तु शास्त्र का महत्व एवं उपयोगिता पं. जयप्रकाद्गा शर्मा (लाल धागे वाले) हमारी प्रकृति में अनंत शक्तियां हैं, जिससे सृष्टि, विकास और प्रलय की प्रक्रिया चलती रहती है। वास्तु शास्त्र में पंच महाभूतों के साथ प्रकृति की तीन शक्तियों पर विचार किया जाता है।

गुरुत्व शक्ति : पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है जिसे गुरुत्वाकर्षण बल कहा जाता है। आकाश में स्थित चीजों को अपनी ओर खींचने के पृथ्वी के गुण को गुरुत्वाकर्षण शक्ति कहते हैं। जो वस्तु जितनी भारी होगी, पृथ्वी उसे उतनी ही तेजी से अपनी ओर खींचती है। जो वस्तु हल्की होगी उसे पृथ्वी पर आने में समय लगेगा। पृथ्वी की इसी गुरुत्व शक्ति को ध्यान में रखकर यह निर्धारित किया जाता है कि अमुक भूमि किस प्रकार के निर्माण के लिए उपयुक्त है। जहां मिट्टी ठोस हो वहां भूमि की गुरुत्व शक्ति से भवनों को स्थायित्व मिलता है। जहां मिट्टी नरम हो या रेत का टीला हो वहां के भवन स्थायी नहीं होते।

चुम्बकीय शक्ति : हमारा पूरा ब्रह्माण्ड, उसमें स्थित ग्रह, नक्षत्र एवं तारे एक दूसरे से चुम्बकीय तरंगों से जुड़े हुए हैं। इन्हीं चुम्बकीय तरंगों के कारण ही सभी ग्रह, नक्षत्र व पृथ्वी आदि एक निश्चित दूरी पर रहते हुए ब्रह्मांड में गतिशील हैं। चुम्बक के दो धु्रव होते हैं, उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी धु्रव। चुम्बक के आकर्षण और विकर्षण से ही पूरा ब्रह्माण्ड गतिशील है। हमारा शरीर भी इन चुम्बकीय तरंगों से प्रभावित होता है। हमारा सिर उत्तरी ध्रुव और पैर दक्षिणी धु्रव हैं। इसी वैज्ञानिक आधार के कारण व्यक्ति को सोते समय दक्षिण की ओर सिर करके सोने के लिए कहा जाता है, ताकि चुम्बकीय तरंगों के प्रवाह में रुकावट न आए और व्यक्ति को नींद अच्छी आए।

सौर ऊर्जा : पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा का मुखय स्रोत सूर्य है। सूर्य हमें प्रकाश और ऊर्जा देकर हमारे जीवन को गतिशील बनाता है। सूर्य की किरणें हर समय पृथ्वी के किसी न किसी भाग पर पड़ रही होती हैं। सूर्य की किरणें पृथ्वी के किस भाग पर किस कोण से पड़ रही हैं, उसी के अनुसार उन्हें तीन वर्गों में बांटा जाता है। सुबह के समय पड़ने वाली किरणों को परा बैंगनी किरणें, दोपहर को पड़ने वाली किरणों को वर्णक्रम प्रकार तथा सायंकाल को पड़ने वाली किरणों को रक्ताभ किरणें कहते हैं प्रातःकाल सूर्य की किरणों में गर्मी कम होती है।इस समय सूर्य की किरणों से हमें विटामिन डी प्राप्त होता है।

वातावरण में मौजूद विषाणुओं को नष्ट करने की ताकत भी पराबैंगनी किरणों में होती है। जैसे-जैसे सूर्य की किरणों में लालिमा आती है वे असहनीय हो जाती हैं। इसी वैज्ञानिक आधार के कारण पूर्व को अधिक खुला रखने के लिए कहा जाता है ताकि सूर्य की किरणें सुबह के समय भवन के वातावरण को विषाणुओं से रहित करके जीवन के लिए लाभ दायी ऊर्जा और ऊष्मा दे सकें।

सूर्य की रक्ताभ किरणों से बचने के लिए ही पश्चिम में कम खिड़कियां रखी जाती हैं और बड़े वृक्ष भी पश्चिम में ही लगाए जाते हैं। पंचमहाभूत से निर्मित शरीर को सुखमय और स्वस्थ्य रखने के लिए जिस भवन का निर्माण किया जाता है यदि उस भवन में भी अग्नि, भूमि, जल, वायु और आकाश तत्वों का सही ताल मेल रखा जाए तो वहां रहने वाले प्राणी शारीरिक, मानसिक व भौतिक रूप से संपन्न रहेंगे। जिस प्रकार शरीर में इन तत्वों की अधिकता या कमी होने से व्यक्ति रोगी हो जाता है उसी प्रकार भवन में इन तत्वों की कमी या अधिकता होने से वहां का वातावरण कष्टमय हो जाता है।

पृथ्वी : पृथ्वी के बिना आवास और जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पृथ्वी गुरुत्व शक्ति और चुम्बकीय शक्ति का केंद्र है। इन्हीं शक्तियों के कारण पृथ्वी अपने धरातल पर बनने वाले भवनों को सुदृढ़ आधार देती है। वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण के लिए भूमि की परीक्षा, मिट्टी की गुणवत्ता, भूमि की ढलान, भूखंड का आकार, प्रकार, भूमि से निकलने वाली वस्तुओं का शुभाशुभ विचार, भूमि तक पहुंचने के मार्ग व वेध आदि का विचार किया जाता है।

जल : पृथ्वी के बाद जल का नंबर आता है क्योंकि जल ही हमारे जीवन का आधार है। अधिकतर बस्तियां समुद्र, नदी एवं झील के किनारों पर बसी हैं। शुद्ध जल के कई सात्विक गुण हैं। जल की अधिकता होने से बाढ़ आ जाती है और कमी होने से सूखा पड़ जाता है। वास्त शास्त्र में जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नल, बोरिंग, कुआं, भूमिगत टंकी, भवन के ऊपर की टंकी, सेप्टिक टैंक, सीवेज, नाली, फर्श की ढलान आदि का विचार किया जाता है।

अग्नि : अग्नि का प्रमुख स्रोत सूर्य है, जिसकी गर्मी, तेज और प्रकाश से पूरा विश्व व ब्रह्माण्ड चलायमान है। सूर्य की सापेक्षता से पृथ्वी पर दिन और रात बनते हैं। ऋतुएं परिवर्तित होती हैं। जलवायु में परिवर्तन आते हैं। वास्तुशास्त्र में भवन के अंदर अग्नि तत्व के उचित ताल-मेल के लिए बरामदा, खिड़कियां, दरवाजे, बिजली के मीटर, रसोई में अग्नि जलाने के स्थान आदि का विचार किया जाता है।

वायु : जिस प्रकार हमारे शरीर में वायु शरीर का संचालन करती है उसी प्रकार भवन में वायु स्वस्थ वातावरण का संचालन करती है। मानव के शारीरिक एवं मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए भवन में खुली जगह, बरामदे, छत की ऊंचाई, द्वार, खिड़कियां व पेड़ पौधों का विचार किया जाता है।

आकाश : आकाश अनंत है। इससे शब्द की उत्पत्ति होती है। आकाश में स्थित ऊर्जा की तीव्रता, प्रकाश, लौकिक किरणों, विद्युत चुम्बकीय तरंगें तथा गुरुत्वाकर्षण शक्ति, पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों पर भिन्न-भिन्न पायी जाती है। वास्तु शास्त्र में आकाश तत्व को महत्व देने के लिए ब्रह्म स्थान खुला रखने को कहा जाता है। छत की ऊंचाई, बरामदा, खिड़की और दरवाजों का विचार करके भवन में आकाश तत्व को सुनिश्चित किया जाता है।

भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच तत्वों के उचित तालमेल से भवन के वातावरण को सुखमय बनाया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चाहता है। शरीर को चलाने के लिए अर्थ, बुद्धि को निर्मल रखने के लिए धर्म, मन को खुश रखने के लिए काम तथा आत्मा को मोक्ष चाहिए। पंचतत्वों का सही प्रयोग कर उन्हें अपने लिए सुखमय बनाया जा सकता है।

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