पूर्व/उत्तर-पूर्व में वास्तु दोष
पूर्व/उत्तर-पूर्व में वास्तु दोष

पूर्व/उत्तर-पूर्व में वास्तु दोष  

गोपाल शर्मा
व्यूस : 4576 | जुलाई 2011

हाल ही में पंडित गोपाल शर्मा जी कलकत्ता के एक प्रसिद्ध प्रकाशक के बंगले का वास्तु निरीक्षण करने गए। निरीक्षण करते समय उन्होंने पंडित जी को बताया कि व्यापार में पैसे की कमी नहीं है परन्तु उनके परिवार के सभी सदस्य पिछले काफी समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों, से जूझ रहे हैं और उनकी बाईपास सर्जरी, फेफडों से संबंधित परेशानी अर्थात टी. बी. भी हो गई थी। उनके परिवार में तीन बेटे हैं जो कि मूक एवं बधिर हैं।

मंझले पुत्र का तलाक हो चुका है और सबसे छोटे पुत्र का भी वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा है और शादी के 7 साल बाद भी उसकी कोई संतान नहीं है। मकान के तृतीय तल पर रिहाईश थी व बाकी हिस्सा व्यापार के प्रशासनिक कार्यालय व गोदाम के लिये प्रयुक्त किया जा रहा था।

निरीक्षण करते समय पाए गए वास्तु दोष :

1. घर की सीढियां पूर्व में थी जिसके कारण छाती से संबंधित रोग होते हैं।

2. मंझले पुत्र के पास आग्नेय का कमरा था जिसके कारण पति पत्नी में मतभेद रहने के कारण तलाक तक होने की संभावना रहती है।

3. ईशान में छोटे पुत्र का कमरा था जो कि नवविवाहित दम्पति के लिये वंशवृद्धि में बाधक होता है। इनके कमरे का दरवाजा भी दक्षिण पश्चिम में था जिससे आपस में दूरियां होने की संभावना रहती है।

4. छोटे पुत्र के कमरे के साथ शौचालय भी ईशान में था जो कि एक गंभीर वास्तु दोष होता है जिससे स्वास्थ्य हानि एवं मानसिक तनाव बना रहता है।

5. रसोई घर में आग और पानी एक लाइन में होने के कारण घर के सदस्यों में वैचारिक मतभेद रहता है।

6. घर के मुखिया के शयन कक्ष में शौचालय दक्षिण-पश्चिम में था। यह अनावश्यक अनचाहे खर्चों द्वारा धन के व्यय का कारण होता है।

सुझाव :

1. पूर्व में बनी सीढ़ियों को पश्चिम की तरफ स्थानांतरित करने को कहा गया। छत पर पश्चिम में, पूर्व में बनी लिफ्ट की मम्टी से ऊंचा, अस्थायी कमरा बनाने को कहा गया जिससे पूर्व ऊंचा होने का दोष कम होकर वंशवृद्धि हो सके।

2. छोटे पुत्र का कमरा उत्तर में स्थानांतरित करने को कहा गया।

3. ईशान के शौचालय को इस्तेमाल न करने की तथा शौचालय की सीट को हटाने की सलाह दी गई।

4. दक्षिण-पश्चिम के प्रवेश द्वार पर चैखट लगाने तथा देहली पर पीला पेंन्ट करने को कहा गया।

5. रसोईघर में आग और पानी एक लाइन में होने के दोष को कम करने के लिये दोनों के बीच में लकड़ी या मार्बल आदि का एक पार्टिशन लगाने के लिये कहा गया।

6. व्यापारी को नैऋत्य के शौचालय वाला कमरा प्रयोग न करने तथा दक्षिण-पश्चिम के शौचालय में समुद्री नमक रखने एवं उसे सप्ताह में एक बार बदलने को कहा गया। शौचालय के दरवाजे पर देहली भी बनवाई गई तथा उस पर समय-समय पर पीला रंग करते रहने को कहा गया, क्योंकि ऊर्जा का प्रभाव जमीन से लगकर लगभग 60 प्रतिशत रहता है।

विगत अनेक वर्षों के शास्त्रों के अध्ययन, मनन व व्यवहारिक अनुभव के आधार पर पंडित जी ने व्यापारी, उनकी धर्म पत्नी व उनके पारिवारिक ज्योतिषीय सलाहकार (जिनके माध्यम से पंडित जी को बुलाया गया था) को आश्वासन दिया कि उत्तर दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार, खुला स्थान व चैड़ी सड़क जैसे शुभ आयाम जीवन में अवसर, विशेषतया कारोबारी सफलताएं देते रहेंगे तथा उपरोक्त सुझावों को कार्यान्वित करके वास्तु दोषों को कम करने से उनके जीवन में अवश्य अभूतपूर्व सुधार होगा।

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