वास्तु में कबाड़खाने का महत्व
वास्तु में कबाड़खाने का महत्व

वास्तु में कबाड़खाने का महत्व  

गोपाल शर्मा
व्यूस : 5899 | जनवरी 2005

वास्तु विज्ञान मनुष्य के चिरकालीन अनुभव का परिणाम है। यदि इसके सिद्धांतों का ठीक-ठीक पालन किया जाए तो निश्चित और तत्काल परिणाम मिलते हैं। विभिन्न वास्तु ग्रंथों में जीवन सुखी व समृद्ध बनाने के लिये घर के हर सदस्य को शयनकक्ष, भंडार, पूजा स्थल, भोजन कक्ष, मेहमान कक्ष, रसोई, शौचालय, नौकरों का कमरा, बैठक तथा अध्ययन कक्ष आदि हर कमरे के बारे में दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

जैसा कि कबाड़खाना शब्द से ही विदित है कि कबाड़ केवल अनुपयोगी वस्तुएं ही होती हैं, क्योंकि यदि वे किसी काम की होंगी तो उन्हें कबाड़ नहीं कहा जा सकता। हिंदू शास्त्रों में भी कबाड़ को घर में एकत्र करना अनुचित माना जाता है।

इसलिए कार्तिक मास में अमावस्या (दीपावली) से पहले की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। इसी दिन पूरे वर्ष का कबाड़ निकाल कर घर को साफ करने का विधान है और ऐसा करना शुभ माना जाता है। अक्सर लोग घर में कबाड़ न रखकर उसे घर की छत, छज्जे, मम्टी, टाड आदि पर जमा कर देते हैं।

ऐसा करने से मानसिक तनाव और परिवार के सदस्यों के बीच आपस में अकारण तनाव उत्पन्न हो जाता है। शास्त्रानुसार घर में जगह-जगह अनुपयोगी सामान जैसे खराब घड़ियां, टेलीविजन, मिक्सी, टेपरिकार्डर आदि रखने से उन्नति में बाधा और मानसिक चिंताएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए घर में किसी भी प्रकार का कबाड़ एकत्रित न करें।

जहां साफ सफाई नहीं होती वहां भगवान का वास भी नहीं होता। अब प्रश्न यह उठता है कि घर में कम इस्तेमाल होने वाले सामान को कहां और कैसे रखा जाए? इस प्रकार के सामान के लिए दक्षिण पश्चिम दिशा सबसे उपयुक्त है। पृथ्वी जब सूर्य की परिक्रमा दक्षिणी दिशा में करती है तो वह एक विशेष कोणीय स्थिति में रहती है। ऐसे में इस ओर से अधिक भार रखने से संतुलन आता है।

इस क्षेत्र के कमरों में या भवन के इस भाग में गर्मियों में ठण्डक एवं सर्दियों में गर्मी रहती है। यहां आवश्यकतानुसार छोटे कमरे में इस प्रकार का सारा सामान तरतीब से रखा जाए। ऐसा न प्रतीत हो कि सामान जबरदस्ती ठूंसा गया है। विशेषकर अपने शयन कक्ष में किसी भी प्रकार का भारी व अनुपयोगी सामान न रखें। भण्डार कक्ष दक्षिण या पश्चिम क्षेत्र में भी बनाया जा सकता है। उसमें शेल्फ तथा सामान रखने हेतु अल्मारियां व टाड दक्षिणी व पश्चिमी दीवारों पर बनानी चाहिए।

उत्तर व पूर्व की दीवारों में अल्मारियां (दीवार के अंदर) बनवाई जा सकती हैं लेकिन उनमें अपेक्षाकृत हल्का सामान रखा जाए। अगर प्लाॅट का आकार कम हो, भण्डार कक्ष की जगह नहीं निकल पा रही हो तब दक्षिणी या पश्चिमी दीवार के साथ-साथ छत की ऊंचाई तक आवश्यकतानुसार अल्मारियां बनवाई जा सकती हैं।

इनकी गहराई 2 फुट या 2.5 फुट तक रखी जा सकती है। इस गहराई को विपरीत दिशाओं में भी आवश्यकतानुसार (दोनों ओर) काम में लाया जा सकता है। इसका उपयोग वस्त्र, घरेलू सामान और भारी सामान रखने में किया जा सकता है। उत्तर व पूर्व की दीवारों में अल्मारियां बनवाने से दीवारों का भार हल्का हो जाएगा तथा सामान के वजन का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

1. जहां तक हो सके, मुख्य भवन के चारों ओर खुली जगह के नैर्ऋत्य कोने में कबाड़खाने का स्थान होना चाहिए। अगर यह संभव नहीं है तो मुख्य भवन के अंदर नैर्ऋत्य कोने में यह कमरा बनाना उचित है।

2. वास्तु स्थान के चारों ओर की खुली जगह में कबाड़खाना बनवाते समय नैर्ऋत्य कोने में पश्चिम और दक्षिण के अहाते की दीवारों का सहारा ले सकते हैं।

3. प्लाॅट के नैर्ऋत्य कोने में अनिष्टकारी शक्तियां अत्यधिक सक्रिय रहती हैं, इसलिए इस कोने का बंद होना बहुत ही आवश्यक होता है। इन बातों को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि वास्तु के अनुकूल सैकड़ों स्थानों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला गया।

4. कबाड़खाने का नैर्ऋत्य कोना कभी भी खाली नहीं होना चाहिए।

5. इस कमरे में कभी तहखाना नहीं होना चाहिए। यह भारी धन हानि, भयंकर रोग तथा असमय मृत्यु का भी कारण बन सकता है।

6. प्रतिदिन उपयोग में न आने वाला, खराब, कभी-कभी काम में आने वाला लोहे का भारी सामान, चाकू, छुरियां, दरांती, आरा, और अन्य औजार तथा हथियार कबाड़खाने में रखने चाहिए।

7. यह कमरा जितना भारी किया जाए उतना ही फायदेमंद होता है। हरएक कोने में सामान रखा जा सकता है।

8. कबाड़खाने के कमरे के आग्नेय और ईशान कोणों या दक्षिण दिशा में दरवाजा नहीं होना चाहिए। दरवाजा एक किवाड़ का भी हो सकता है। दरवाजे की ऊंचाई घर के अन्य दरवाजों की तुलना में कम हो तो ज्यादा अच्छा है। इस कमरे में खिड़कियां पश्चिम की तरफ हो सकती हैं।

9. कबाड़खाने के कमरे का रंग भूरा या नीला रखें।

10. कबाड़खाने के कमरे में कभी भी पानी से संबंधित चीजें नहीं होनी चाहिए। उसमें सीलन भी नहीं लगनी चाहिए।

11. कबाड़खाने की दीवारों या फर्श में अगर दरारें पड़ गयी हों तो उन्हें अविलंब ठीक करवा लेना चाहिए।

12. यह कमरा कभी किसी को किराये पर रहने के लिए, सोने के लिए या अन्य किसी काम के लिए नहीं देना चाहिए। इसमें रहने वाले से घर के स्वामी को तकलीफ हो सकती है।

13. इस कमरे में या कमरे के दरवाजे में खड़े होकर गपशप नहीं करनी चाहिए। जोर से हंसना नहीं चाहिए और किसी को जोर से डांटना भी नहीं चाहिए। इससे जीवन की खुशियां कम होती हैं।

14. इस कमरे में भरी दोपहर में, शाम या रात के समय कभी भी नहीं जाना चाहिए। इससे शरीर भारी महसूस होना, सांस फूलना, चक्कर आना, छाती में भारीपन महसूस होना इत्यादि अस्वस्थ कर देने वाली घटनाएं घट सकती हैं।

15. कबाड़खाने में महत्वपूर्ण कागजात, धन या आभूषण कभी भी नहीं रखने चाहिए, क्योंकि इस कमरे से कोई भी चीज जल्दी बाहर नहीं निकाली जाती। इच्छा होने पर भी उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया जाता।

16. इस कमरे में कभी भी भगवान की तस्वीर न लगाई जाए या अगरबत्ती न जलाई जाए।

17. बीमार को अगर कबाड़खाने में रखा जाए तो इलाज काम नहीं करता।

18. इस कमरे में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चहिए।

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