शनि की साढ़ेसाती से लगभग सभी लोग परिचित हैं। ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर 15 नवंबर 2011 को शनि तुला राशि में प्रवेश करेंगे जिसकी वजह से सिंह राशि वालों की साढ़ेसाती समाप्त हो जाएगी तथा कन्या, तुला और वृश्चिक राशि वाले जातकों पर साढ़ेसाती का प्रभाव बना रहेगा। इन तीनों राशियों में तुला राशि के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती शुभ रहेगी। आप और हम सभी जानते हैं कि शनि की साढ़े साती से सभी भयभीत हो जाते हैं। ज्योतिष गणनाओं के आधार पर शनि तुला राशि में 15 नवंबर 2011 को प्रवेश करेगा। इसका आशय यह है कि सिंह राशि वाले महानुभावों को शनि की साढ़े साती से मुक्ति मिल जायेगी। 15 नवंबर 2011 से शनि की साढ़ेसाती वृश्चिक राशि वालों को प्रारंभ होगी तथा कन्या और तुला राशि वालों को शनि की साढ़े साती चालू रहेगी। कन्या राशि वालों को यह अंतिम ढैय्या रहेगी और तुला राशि वालों को दूसरी ढैय्या रहेगी। तुला राशि का स्वामी शुक्र और कन्या राशि का स्वामी बुध यह दोनों ही शनिदेव के मित्र हैं। इस कारण से इन राशि वालों को कष्ट की मात्रा अल्प रहेगी। इसके अतिरिक्त यदि शनिदेव की आराधना करके उनका सम्मान किया जाये तो साढ़ेसाती का असर नगण्य हो सकता है।
हमारे देश भारतवर्ष की वृष लग्न और कर्क राशि है। अतः भारत देश पर श्री शनि की साढ़े साती का असर नहीं है। यहां यह उल्लेखनीय है कि वृष लग्न वालों को शनि योगकारी और भाग्योदयकारी है। हम देख रहे हैं कि जन्म पत्रिका में शनि यदि लाभकारी स्थिति में है तो उन व्यक्तियों को लाभ देगा। शनि की साढ़े साती का विश्लेषण करते समय हमें जन्म पत्रिका के अनुसार किस ग्रह की महादशा, अंतर्दशा चल रही है, यह भी ध्यान में रखना होगा। यह नियम भी याद रखना आवश्यक है कि जब शनि 3, 6, 11 स्थानों पर भ्रमण करता है तो बहुत अच्छा फल देता है। इस नियम के अनुसार तुला का शनि सिंह राशि, वृष राशि एवं धनु राशि वालों को लाभकारी रहने की संभावना है। कन्या राशि वालों को यह धन स्थान में मित्र क्षेत्री रहने से यदि जन्म पत्रिका में लाभकारी है तो बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। यदि सर्विस में है तो प्रमोशन मिलेगा। जहां 15 नवंबर 2011 से शनि की साढ़ेसाती कन्या, तुला, वृश्चिक राशि पर रहेगी, उसी के साथ कर्क, मीन राशि वालों को शनि की ढैय्या रहेगी। इनका समय कष्टकारी रहेगा। शनि लाभकारी रहेगा या कष्टकारी, इसका निर्णय अष्टक वर्ग में उसे प्राप्त बिंदु के आधार पर होगा। वह उसी के अनुसार फल देगा। यदि 28 से कम बिंदु मिले हैं तो परिणाम ठीक नहीं होंगे, यदि 28 से अधिक बिंदु मिले हैं तो शनि कम कष्टकारी रहेगा। शनि के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण रखना होगा।
यह भी विचार करें कि वह जन्म पत्रिका में किस ग्रह के ऊपर से भ्रमण कर रहा है, उसके अनुसार परिणाम होंगे। ज्योतिष का यह नियम भी याद रखें कि शनि जिस स्थान पर रहता है उसमें उस भाव से संबंधित शुभ फल देता है, परंतु जिस घर पर उसकी दृष्टि रहती है उससे संबंधित वस्तुओं को नुकसान पहुंचाता है। शनि की दृष्टि अमंगलकारी रहने का कारण यह भी है कि शनि को उनकी धर्म पत्नी द्वारा श्राप दिया गया था। शनि अपने स्थान से सप्तम स्थान, तृतीय स्थान एवं दशम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है। जिन युवकों एवं कन्याओं की जन्म पत्रिका में शनि की पूर्ण दृष्टि सप्तम यानी विवाह स्थान पर रहती है, ऐसे लड़के, लडकियों के विवाह बहुत कठिनाई से होते हैं। यदि किसी लड़के, लड़की के विवाह में विलंब होता है तो देखें कि शनि की दृष्टि तो विवाह स्थान पर है या नहीं, यदि है तो दृष्टि प्रभाव हेतु समुचित उपायों का उपयोग कर सकते हैं।
माननीया सुश्री मायावती का शनि पंचम में है और विवाह स्थान को तृतीय पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। वह शायद इसी कारण अविवाहित हैं, जैसा कि ऊपर वर्णन कर चुके हैं। वृश्चिक राशि पर 15.11.2011 से साढ़े साती आयेगी। तुला का शनि उच्च का रहेगा तो तुला, मिथुन, धनु, मकर तथा कुंभ राशि वालों के लिए लाभकारी रहेगा। परंतु भारतीय जनता पार्टी की राशि पर साढ़ेसाती के कारण पार्टी में परेशानी पैदा करेगा। नेताओं में मतभेद उभरेंगे। प्रधानमंत्री पद के दावेदार को लेकर भी मतभेद बढ़ने की संभावना रहेगी। श्री शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों में से किसी मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करें तो कष्टों का निवारण होगा। तांत्रिक मंत्र : 1. ऊँ शं शनैश्चराय नमः 2. ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः वैदिक मंत्र : ऊँ शन्नौ देवीरभिष्टयाऽआपो भवंतु पीतये। शन्नौ रभिःश्रवंतु नः॥ श्री शंकर भगवान की उपासना व श्री बजरंगबली की उपासना से भी शनि के कष्ट दूर होते हैं।
अतः आप श्री शंकर भगवान या श्री बजरंगबली की आराधना करें। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनि की वस्तुओं का दान करना भी लाभकारी रहता है। ये वस्तुएं हैं- काले उड़द, काले तिल, तेल, लोहा, बर्तन में सरसों का तेल आदि- श्री बजरंगबली के मंदिर में भेंट करना, बहुत लाभकारी रहता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। वह मंत्र इस प्रकार है- ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृ- त्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ हम सभी जानते हैं कि शनिदेव, सूर्य पुत्र और यम के सहोदर हैं। भगवान भोलेनाथ ने शनि को भ्रष्ट जीवों को दंड देने की जिम्मेदारी दी है। इस प्रकार शनिदेव दंडाधिकारी हैं। शनि जन्म पत्रिका में कर्म स्थान यानी दशम स्थान- भाग्य में स्वगृही या उच्च का होने पर उक्त व्यक्ति को राजनीति में शिखर पर पहुंचा देता है। पत्रिका में वृष, तुला और मकर लग्न वालों को यह योगकारी होता है और वह स्वगृही या उच्च का हो तो उच्चपद दिलाता है जैसे माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी का तुला का शनि लग्न में उच्च का है।
1. श्री के. पी. एस. गिल प्रसिद्ध पुलिस अधिकारी का शनि भाग्य में स्वगृही है और बार-बार उच्चपद मिलता गया। 2. श्री मनमोहन सिंह जी का शनि धनस्थान में स्वगृही होने का लाभ यह हुआ कि उन्हें उच्चपद मिला। 3. श्री मुरली मनोहर जोशी जी का शनि स्वगृही है और विपरीत राजयोग बनाया है तथा शनि की महादशा 18 जुलाई 2013 से लाभकारी रहेगी पार्टी में पूछ परख बढ़ेगी और अचानक लाभ मिलेगा। 4. बी.जे.पी. के श्री विक्रम वर्मा जी, को भी शनि आय स्थान में 15 नवंबर 2011 से लाभकारी रहेगा। 5. श्री शिवराज सिंह चौहान मुखयमंत्री (म.प्र.) की मकर राशि होने से शनि भाग्य में लाभकारी रहेगा। उत्तर प्रदेश की मुखयमंत्री सुश्री मायावती की वृष लग्न है और भाग्य का स्वामी शनि पंचम (बुद्धि स्थान) में होने से पुनः मुखयमंत्री बनी। श्री नारायण दत्त तिवारी और नर्मदा आंदोलन की नेता सुश्री मेघा पाटकर की मकर लग्न में एवं शनि भाग्य में उच्च का है वह राजनीति में उच्चपद पर अवश्य जायेंगी। शनि की दशा में अभी उनका समय अनुकूल चल रहा है। शनि व्यक्ति को कर्मठ बनाता है। यदि किसी की जन्म पत्रिका में शनि बलहीन मेष राशि में बैठा हो तो व्यक्ति बार-बार उन्नति के शिखर तक पहुंचते-पहुंचते रह जाता है। वृष, तुला, मकर राशि-लग्न वाले व्यक्ति नीलम की अंगूठी पहनकर शनि को प्रसन्न कर सकते हैं।