द्वादशांश का विचित्र नियम
द्वादशांश का विचित्र नियम

द्वादशांश का विचित्र नियम  

किशोर घिल्डियाल
व्यूस : 9628 | जनवरी 2015

द्वादशांश ज्ञात करने के लिए प्रत्येक राशि को 12 भागों में बांटा जाता है जिसमें प्रत्येक भाग 2°-30’ का हो जाता है। इसी प्रकार ग्रहों को भी विभाजित कर जहां वे स्थित होते हैं वहाँ से उतने भाव आगे रख दिया जाता है, जैसे यदि कोई ग्रह 8°-02’ का होता हैं तो वह चतुर्थ द्वादशांश में जाएगा अर्थात स्वयं के भाव से वह ग्रह चार आगे के भाव में चला जाएगा।

द्वादशांश बनाने की विधि - प्रथम द्वादशांश 0 से 2°-30’ दूसरा द्वादशांश 2°-30’ से 5°-00’ तीसरा द्वादशांश 5°-00’ से 7°-30’ चतुर्थ द्वादशांश 7°-30’ से 10°-00’ इसी प्रकार पूरे 30°-00’ का 12 बराबर भागों में बंटवारा कर 12 द्वादशांश प्राप्त किए जाते हैं। इस द्वादशांश वर्ग का अध्ययन करते समय हमने पाया की ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में द्वादशांश के विषय में एक सूत्र लिखा हुआ होता है: “ केन्द्राशु शुभदा राजयोगफलप्रदा “ अर्थात स्वयं से केंद्र में गया ग्रह (द्वादशांश में) राजयोग प्रदान करता है।

प्रस्तुत आलेख में इसी सूत्र को आधार बनाकर यह जानने का प्रयास किया गया है कि क्या वास्तव में ऐसा होता है। लगभग 300 कुंडलियों में यह सूत्र लगाया गया और इस सूत्र को बिल्कुल सही पाया। इस सूत्र की सत्यता जानने के लिए हमें इसकी भूमिका को समझना पड़ेगा। हम सभी जानते हैं कि जन्मकुंडली का चतुर्थ व दशम भाव माता-पिता से संबन्धित होते हैं। यदि इन दोनों भावों से घर अथवा सुख देखना हो तो चतुर्थ भाव, लग्न व सप्तम भाव देखना पड ़ेगा और यदि इन्हीं भावों से कार्य अथवा कर्म देखना हो तो दशम भाव के अतिरिक्त सप्तम व लग्न भी देखना पड ़ेगा यानि यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि माता-पिता के घर व कार्य के लिए हमें 4 व 10 के अतिरिक्त 1 व 7 भाव भी देखनी चाहिए। इन्हीं चारों भावों (1, 4, 7, 10) को ही हमारे प्राचीन विद्वानांे ने केन्द्रीय भाव कहा है जिससे यह स्पष्ट होता है कि इन चारों भावों में गया ग्रह अवश्य ही शुभफल प्रदान करेगा अथवा करता होगा।

द्वादशांश के इन चारांे (केन्द्रीय) भावांे को हमारे शास्त्र क्रमशः कुबेर, कीर्ति, मोहन व इ ंद्र कहते हैं जिनका शाब्दिक अर्थ संभवतः धन, प्रसिद्धि, आकर्षण व सिंहासन होता है। द्वादशांश के विभिन्न भावों में गए ग्रह इस प्रकार से अपने फल प्रदान करते हैं: 1, 4, 7, 10 भावों में शुभ; 2, 6, 8, 11 भावों में मध्यम तथा 3, 5, 8, 12 भावों में निर्बल। शोध में पाया गया कि कुंडली में यदि कोई भी ग्रह द्वादशांश में अपने से इन चार केन्द्रीय भावांे में गया था तो उसने अपनी दशा में जातक विशेष को बहुत ही सफलता, सम्मान, कामयाबी व ऊ ंचाई प्रदान की थी जबकि वह ग्रह उस जातक की कुंडली के लिए शुभ नहीं था तथा नैसिर्गिक रूप से अशुभ भी था। यह भी पाया गया कि जैसे ही जातक को उस ग्रह की दशा लगी वह एकाएक सफलता की ऊंचाई छूने लगा। द्वादशांश सूत्र होने के बावजूद उसकी इस सफलता में उसके माता-पिता का योगदान अथवा सहयोग नहीं था अथवा नाम मात्र का ही था।


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आइए अब कुछ कुंडलियाँ देखते हैं तथा इस सूत्र को जाँचते हैं:

1. भारत 15/8/1947 00ः00 दिल्ली वृष लग्न की इस पत्रिका में लग्नेश शुक्र 22°-33’ का है जो दशम द्वादशांश में आता है। शुक्र की दशा भारत वर्ष में 1989 से 2009 तक रही और इस दौरान भारत ने पूरे विश्व में अपनी पहचान संचार माध्यम, फिल्म व खेल जगत तथा सुंदरता के क्षेत्र में बनाई जिससे पूरे विश्व में भारत का डंका बजने लगा। पत्रिका में शुक्र तीसरे भाव में अस्त अवस्था में है।

2. नरेंद्र मोदी 17/9/1950 12ः21 वडनगर, गुजरात वृश्चिक लग्न में जन्मे श्री मोदी जी की पत्रिका में चन्द्र 9°-36’ का है जो चैथे द्वादशांश में पड़ता है। इनकी चन्द्र दशा 2011 से 2021 के मध्य है और हम सभी जानते हैं कि इसी दौरान ये अभी तक अपने राज्य के मुख्यमंत्री से देश के प्रधानमंत्री तथा विश्व के शक्तिशाली राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित हो गए हैं जबकि इनकी अभी लगभग पूरी चन्द्र दशा शेष है। यहाँ ध्यान रखें कि पत्रिका में चन्द्र भाग्येश नीच राशि का होकर मंगल लग्नेश संग लग्न में स्थित है।

3. आरनौल्ड स्वार्ज्नेगर 30/7/1947 4ः10 ग्राज(आस्ट्रिया) मिथुन लग्न में जन्मे आरनौल्ड की पत्रिका में चन्द्र 8°-40’ का है जो चतुर्थ द्वादशांश में आता है। इनकी चन्द्र दशा 1976 से 1986 तक रही। इस दशा में इन्हांेने अपनी पहली फिल्म “कौनन द बारबेरियन” की, 1984 में अपनी “टर्मिनेटर” सीरीज की पहली फिल्म से ये पूर्ण रूप से विश्व सिनेमा पटल पर छा गए। इसी चन्द्र दशा में इन्होंने 1986 में विवाह किया जो कामयाब रहा है। इनकी पत्रिका में चन्द्र दूसरे भाव का स्वामी होकर सप्तम भाव में है।

4. रजनीश 11/12/1931 17ः13 कुचवाड़ा वृष लग्न में जन्मे श्री रजनीश उर्फ ओशो की पत्रिका में राहु 9°-04’ का है जो चतुर्थ द्वादशांश में आता है। इन्हें राहु दशा 1961 से 1978 तक रही जिस दौरान इन्होंने अपने दर्शन के चलते अपने केंद्र की स्थापना की तथा विश्व भर में इनके अनुयायी बनते चलते गए। 1969 में इनके दर्शन ने एक आंदोलन का रूप ले लिया तथा विश्व की जानी मानी हस्तियाँ इनके संपर्क में आने लगीं जिससे ये विख्यात होने लगे। इनकी पत्रिका में राहु एकादश भाव में गुरु की राशि में है।

5. हिटलर 20/4/1889 18ः30, आस्ट्रिया तुला लग्न में जन्मे हिटलर की पत्रिका में राहु 22°-47’ का है जो दशम द्वादशांश में आता है। राहु की दशा इन्हंे 1933 से 1951 के मध्य रही और हम सभी जानते हैं कि यह समय हिटलर का स्वर्णिम काल था। इसी दौरान उसने पूरे विश्व में अपनी क्रूरता का परचम लहराया था। इनकी पत्रिका में राहु नवम भाव मिथुन राशि में है।

6. अब्राहम लिंकन 12/2/1809 7ः32, अमरीका कुम्भ लग्न में जन्मे श्री लिंकन की पत्रिका में गुरु 2°-16’ का है जो प्रथम द्वादशांश में आता है। ये अपनी गुरु दशा में ही अमरीका के राष्ट्रपति बने थे। इनकी पत्रिका में गुरु दूसरे भाव में है।

7. बिल क्लिंटन 19/8/1946 8ः30, हॉप अमरीका कन्या लग्न में जन्मे क्लिंटन की पत्रिका में गुरु 1°-35’ का होकर प्रथम द्वादशांश में है। ये भी अपनी गुरु की दशा में ही अमरीका के राष्ट्रपति बने थे। इनकी पत्रिका में गुरु दूसरे भाव में है।

8. शाहरुख खान 2/11/1965 2ः30, दिल्ली सिंह लग्न की इस पत्रिका में शनि 17°-13’ अंश का है जो सातवें द्वादशांश में आता है। इनकी शनि दशा 2004 से 2023 की है और हम सब जानते हैं कि 2004 से अब तक इनकी सभी फिल्में एक से एक बड़ी हिट होती जा रही हैं तथा इसी दौरान इनकी क्रिकेट टीम “कलकत्ता नाइट राइडर “ने भी खिताब जीता है। ये नित्य नयी बुलंदी छूते जा रहे हैं। इनकी पत्रिका में शनि सप्तम भाव में है।

9. कपिल देव 6/1/1959 4ः50, चंडीगढ़ धनु लग्न की इनकी पत्रिका में बुध 1°-35’ का है जो प्रथम द्वादशांश में आता है। इनकी बुध दशा में ही ये भारत की क्रिकेट टीम के सदस्य बन फिर कप्तान बने तथा इनकी ही कप्तानी में भारत ने क्रिकेट का तीसरा विश्व कप जीता था। इनकी पत्रिका में बुध लग्न भाव में है।


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10. धीरुभाई अंबानी 28/12/1932 6ः37, यमन धनु लग्न में जन्मे धीरुभाई अंबानी की पत्रिका में राहु 16°-54’ का है जो सातवां द्वादशांश पड़ता है। हम सभी जानते हैं कि इन्होंने अपना व्यावसायिक साम्राज्य इसी राहु दशा में ही बनाया था जो बाद में भारत वर्ष के सबसे बड़े व्यावसायिक घरानांे में से एक बना है। इनकी पत्रिका में राहु तीसरे भाव में है।

11. पुतिन 7/10/1952 10ः11, मास्को, रूस वृश्चिक लग्न में जन्मे श्री पुतिन की पत्रिका में शनि 24°-14’ का है जो दशम द्वादशांश में आता है। इनकी शनि दशा 2001 से 2020 तक की है और इसी दौरान ये अपने देश के राष्ट्रपति बने हैं तथा विश्व के राजनीतिक पटल में इनको काफी शक्तिशाली माना जाता है। इनकी पत्रिका में राहु एकादश भाव में है।

12. महेन्द्र सिंह धोनी 7/7/1981 19ः05, रांची धनु लग्न में जन्मे धोनी की पत्रिका में राहु 8°-11’ का है जो चतुर्थ द्वादशांश में आता है। इनकी पत्रिका में राहु की दशा 2001 से 2019 तक की है। इसी राहु दशा में इन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में अपनी जगह बनाई फिर यह भारत की क्रिकेट टीम के कप्तान बने तथा भारत को इन्हांेने 2-2 विश्वकप जिताए और इस समय इनका खेल व विज्ञापन जगत में जबर्दस्त डंका बज रहा है। ये जहां भी हाथ डाल रहे हैं सफलता ही इनके हाथ लग रही है। इनकी पत्रिका में राहु अष्टम भाव में है।

13. आमिर खान 14/3/1965 9ः21, मुंबई मेष लग्न में जन्मे आमिर खान की पत्रिका में शुक्र 22°-39’ का है जो दशम द्वादशांश में आता है। इनकी शुक्र दशा 1991 से 2011 तक रही जिस दौरान ये भारतीय फिल्म जगत में सबसे कामयाब एक्टर, प्रोड्यूसर व डायरेक्टर के रूप में प्रसिद्ध हुये तथा इनके नाम लगातार कामयाब फिल्में देने का रिकॉर्ड बना है। आज इनकी गिनती विश्व के प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में होती है। इनकी पत्रिका में शुक्र एकादश भाव में है।

14. श्री जवाहर लाल नेहरू 14/11/1889 23ः03,इलाहाबाद कर्क लग्न की पत्रिका में मंगल तीसरे भाव में 9°-58’ का होकर चतुर्थ द्वादशांश में है। हम सभी जानते हैं कि इनकी मंगल दशा 1948 से 1955 के बीच रही और इसी दौरान इनका भारतीय राजनीति में बहुत कद बढ़ा और ये देश के प्रधानमंत्री बने। इन सब कुंडलियों के अतिरिक्त अन्य कुंडलियों जैसे गुलजारी लाल नन्दा (4/7/1898 00ः52 सियालकोट) मेष लग्न की पत्रिका में गुरु 9°-52’ चतुर्थ द्वादशांश, इन्दिरा गांधी (19/11/1917 23ः15, इलाहाबाद) कर्क लग्न की पत्रिका में गुरु 15°-01’ सप्तम द्वादशांश तथा मनमोहन सिंह (26/9/1932 14ः00 झेलम) धनु लग्न की पत्रिका में राहु 24°-08’ दशम द्वादशांश का है और ये सभी इन्हीं ग्रहों की दशा में देश के ऊंचे पद अर्थात प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित हुये थे। इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यदि किसी जातक का कोई भी ग्रह द्वादशांश में केन्द्रीय भावों अर्थात 1, 4, 7, 10 में गया हो तो उस ग्रह की दशा में जातक विशेष को बहुत सफलता प्राप्त होती है भले ही वह ग्रह कुंडली में किसी भी अवस्था में क्यों न हो।


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