पंचम भाव से संतति का विचार किया जाता है। पति एवं पत्नी दोनों की कुंडली का विचार एक साथ करना चाहिए क्योंकि कई बार केवल पति की कुंडली से बताया गया फल सार्थक नहीं होता। दोनों की ग्रह स्थिति एवं राशि का विचार आवश्यक है।
बहु संतान योग - पंचम में राहु, सूर्य, बुध हो गुरु शुभ युक्त हो या शुभ दृष्ट हो।
- पंचमेश शुभ राशि में हो, शुभ दृष्टि भी हो, गुरु केंद्र में हो।
- लग्नेश पंचम में हो, पंचमेश लग्न में हो, गुरु केंद्र/त्रिकोण में हो।
- पंचम में राहु हो लेकिन शनि के नवांश में न हो, राहु को शुभ ग्रह देखें।
- पंचमेश उच्च का हो, लग्नेश शुभ युक्त हो। गुरु भी शुभ युक्त/दृष्ट हो, पंचम में पंचमेश या बृहस्पति की शुभ दृष्टि हो या शुभ युक्त हो, गुरु पूर्ण बलवान हो, लग्नेश पंचम में हो, पंचमेश भी बली हो।
- गुरु वर्गोत्तम नवांश में हो, लग्नेश शुभ ग्रह के नवांश में हो, इन पर पंचमेश की दृष्टि का योग हो।
- द्वितीयेश पंचम में हो, बलवान हो
- पंचमेश उच्चगत हो या लग्नेश व पंचमेश एक दूसरे की राशि में या एक दूसरे पर पूर्ण दृष्टि रखें
- पंचमेश का नवांशेश शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो।
- लग्नेश व पंचमेश केंद्र में शुभ युक्त हो, द्वितीयेश बलवान हो।
- लग्नेश सप्तम में, सप्तमेश लग्न में, द्वितीयेश लग्न में हो।
- सप्तमेश ग्रह युक्त हो, 1,2,5 भावेश की स्थिति नवांश में स्वोच्चादि राशि में हो।
विलंब से संतान योग - लग्नेश होकर मंगल उच्च राशिस्थ हो, अष्टम में सूर्य शनि हो इन पर शुभ दृष्टि हो।
- लग्न में शनि, अष्टम में गुरु, द्वादश में मंगल इनमें से कोई भी शुभ दृष्ट या उच्चगत हो।
- पंचम में शनि, बुध, गुरु पंचमेश लग्न में या कहीं भी शुभ भाव या राशि में हो। - पंचम में राहु, सूर्य, शुक्र, गुरु शुभ राशि में शुभ दृष्ट हो तथा पंचमेश भी शुभ ग्रह की राशि में गया हो।
- लग्न में शुभ ग्रह, द्वितीय में पाप ग्रह, तृतीय में पाप ग्रह हो।
सेरोगेसी और संतान - पंचम में मंगल व शनि हो, 3, 6 लग्न हो, लग्न को बुध देखे या योग करे।
- पंचम में 3, 6 राशि हो या 10, 11 राशि हो, पंचम भाव शनि से युत या दृष्ट हो।
- पंचम में 3, 6 राशि हो, बुध की पंचम भाव में युति या दृष्टि हो।
- सप्तमेश एकादश में, पंचमेश शुभ युक्त, पंचम में बुध या शनि हो।
- पंचमेश शनि युक्त हो, मंगल पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, लग्नेश बुध के नवमांश में हो।
- पंचमेश नवम में, नवमेश दशम में हो, पंचम पर शनि की दृष्टि हो।
- 2, 7 लग्न में जन्म हो, शुक्र उच्चगत हो, पंचम में शनि हो, गुरु बलवान हो।
- पंचमेश चंद्रमा हो, 1, 5 में शनि हो, गुरु बली हो।
- पंचमेश सूर्य लग्न में हो, शनि बुध पंचम में हो, पंचमेश बली हो।
- लग्नेश होकर बुध पंचम में हो, मंगल से दृष्ट हो, गुरु एकादश भाव में हो।
- लग्नेश गुरु होकर पंचम में शनि से दृष्ट हो, पंचम में 1, 8 राशि हो। पंचम स्थान में गये नव ग्रह का फल - सूर्य - पुत्रवान होता है।
- चंद्र - उत्तम संतान सुख प्राप्त होता है।
- मंगल - स्वराशि, उच्च या शुभ दृष्टि न हो तो पंचम भाव में बैठा मंगल जातक के उत्पन्न/गर्भस्थ संतान को नष्ट करता रहता है।
- बुध - उम्र की पहली अवस्था में पुत्र नहीं होते कन्याएं होती हैं।
- गुरु - संतानवान होता है, राशि एवं दृष्टि विचार आवश्यक है।
- शुक्र - पुत्र लाभ - शनि - संतान न होने के कारण दुखी। स्वराशि, उच्च राशि, मित्र राशि का विचार आवश्यक।
- राहु - पुत्रोत्पत्ति कारक, पहली संतान देरी से, कुछ बाधा के साथ।
- केतु - एक से दो पुत्र देता है।
- सामान्यतः अच्छी संतान प्राप्त करने के लिए व सब दोषों को दूर करने के लिए हरिवंश पुराण का भक्ति पूर्वक श्रवण करना चाहिए।
- एक नियमानुसार ग्रह योग शांति उतनी ही बार करनी चाहिए जितनी संख्यक राशि में बाधक ग्रह हों। यदि उससे पूर्व सफलता मिल जाये तो कोई हानि नहीं।
- हरिवंश पुराण में वर्णित संतान गोपाल मंत्र का सवा लाख जाप अवश्य करें।
स्त्री चिकित्सा - शतावर का प्रयोग सुबह शाम आधा चम्मच
- कुमार कल्प द्रुम घृत का प्रयोग सुबह शाम दुग्ध के साथ।
पुरूष चिकित्सा - असगंध का प्रयोग करें।
- रसायन का प्रयोग करें।