अस्पताल निर्माण में वास्तु की उपयोगिता
अस्पताल निर्माण में वास्तु की उपयोगिता

अस्पताल निर्माण में वास्तु की उपयोगिता  

प्रमोद कुमार सिन्हा
व्यूस : 7093 | जनवरी 2015

प्रश्न- अस्पताल के निर्माण के लिए किस तरह की भूमि का चयन करना चाहिए ?

उत्तर- अस्पताल एक ऐसा स्थल है जो समाज के लिए स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती है। अतः ऐसे संस्थानों का निर्माण वास्तु के नियमों के अनुसार होना चाहिए जिससे बीमार व्यक्ति यथाशीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सके। इससे डाॅक्टर और मरीज दोनों को लाभ होता है। ऐसे अस्पताल काफी लोकप्रिय हो जाते हैं।

अस्पताल के लिए भूखंड आयताकार एवं वर्गाकार होनी चाहिए। वर्गाकार एवं आयताकार भूखंड में चुंबकीय प्रवाह का निर्माण समुचित रूप से होता है। जिस भूखंड में सकारात्मक ऊर्जा एवं विद्युत चंुबकीय लहरों का निर्माण होता है वह भूखंड शुभफलदायी होता है।

आयताकार भूखंड का आकार 2ः1 अनुपात से अधिक बड़ा नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर भूखंड में विद्युत चंुबकीय ऊर्जा का प्रभाव क्षीण हो जाता है। अस्पताल का मुख्य भवन भूखंड के दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए। अस्पताल की बनावट इस तरह रखनी चाहिए कि उसका चेहरा अर्थात आगे का हिस्सा पूर्व या उत्तर की तरफ रहे। इससे अस्पताल को शीघ्र प्रसिद्धि मिलती है।

प्रश्न- अस्पताल में प्रवेश करने के लिए द्वार किस ओर से रखना अत्यधिक लाभप्रद होता है ?

उत्तर: अस्पताल में मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व, ईशान्य या उत्तर की तरफ से रखना लाभप्रद होता है। अस्पताल में पानी के लिए बोरिंग या ट्यूबवेल की व्यवस्था भूखंड के ईशान्य क्षेत्र में करनी चाहिए।

प्र.-अस्पताल की प्रगति के लिए क्या-क्या करना लाभप्रद होता है ?

उत्तर- अस्पताल के उत्तर या पूर्व में फव्वारा, झरना या तालाब की व्यवस्था रखना अस्पताल की प्रगति एवं प्रसिद्धि में चार चांद लगा देता है। ऐसे अस्पताल राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाते हैं। अस्पताल के भूखंड की ढाल भी उत्तर-पूर्व की तरफ लाभप्रद होता है। अस्पताल में उत्तर-पूर्व की तरफ अधिक से अधिक खुली जगह रखनी चाहिए।

अस्पताल के भवन का निर्माण दक्षिण से लेकर पश्चिम की तरफ करना लाभदायक होता है। अस्पताल का मध्य भाग खुला और साफ-सुथरा रखना चाहिए। मरीजों के लिए स्वागत कक्ष उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में बनाना चाहिए। इसके आंतरिक व्यवस्था को इस तरह व्यवस्थित करना चाहिए की बैठने पर मरीजों का मुंह उत्तर या पूर्व की तरफ रहे।

प्रश्न - अस्पताल का आन्तरिक बनावट किस तरह का रखना लाभप्रद होता है ?

उत्तर - अस्पताल में मुख्य डाॅक्टर के परीक्षण का कक्ष भवन के दक्षिण-पश्चिम में बनाना चाहिए। डाॅक्टर को कमरे के अंदर दक्षिण-पश्चिम की तरफ उत्तर या पूर्व की ओर मुंह कर मरीजों को स्वास्थ्य संबंधी सलाह देनी चाहिए। डाॅक्टर पूर्व की तरफ चेहरा कर बैठते हों तो मरीज को उनकी दायीं तरफ तथा उत्तर की तरफ चेहरा कर बैठते हों तो मरीज को बायीं तरफ बैठाना चाहिए।

मरीज को इस तरह लिटाकर परीक्षण या जाँच करनी चाहिए ताकि मरीज का सिर दक्षिण, पश्चिम या पूर्व की तरफ रहे। अस्पताल में शल्य कक्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण कक्ष होता है। इसे पश्चिम में रखना चाहिए। शल्य कक्ष में आॅपरेशन कराते वक्त मरीज का सिर दक्षिण की तरफ रखना लाभप्रद होता है।

डाॅक्टर को आॅपरेशन करते वक्त चेहरा पूर्व या उत्तर की तरफ रखना चाहिए। दक्षिण की तरफ चेहरा कर आॅपरेशन नहीं करना चाहिए। आॅपरेशन कक्ष में प्रयोग होने वाले उपकरणों एवं संयंत्रों को दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। मरीज का कमरा वायव्य की तरफ रखना विशेष शुभफलदायक होता है।

इमरजेंसी वार्ड को भवन के वायव्य की तरफ रखना चाहिए। इस स्थान पर अत्यधिक बीमार मरीज को रखने से मरीज शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ हो जाता है। नर्स या कर्मचारियों के लिए क्वार्टर अस्पताल के दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम की तरफ बनाना चाहिए। सीटी स्कैन, एक्स-रे, ईसी. जी, अल्ट्रासाउण्ड या अन्य इलेक्ट्रीकल मशीनें भवन के दक्षिण-पूर्व की तरफ कमरे में रखनी चाहिए।

अस्पताल में गहन चिकित्सा कक्ष वायव्य क्षेत्र में बनाया जाना चाहिए। शल्य चिकित्सा विभाग जहां पर आॅपरेशन की आवश्यकता पड़ती है इसके लिए सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र पश्चिम की तरफ है। वैसे छोटे आॅपरेशन के लिए उत्तर एवं उत्तर-पूर्व का क्षेत्र भी ठीक है।

मनोरोग विभाग, आंखांे के विभाग के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान पश्चिम का क्षेत्र है। आंख, नाक, कान के संयुक्त विभाग उत्तर-पूर्व या पूर्व की तरफ रखे जा सकते हैं। बाह्य चिकित्सा विभाग जहां पर मरीज आकर डाॅक्टरों से परामर्श लेते हंै इसके लिए उत्तर और पूर्व की दिशा श्रेष्ठ है। जहां तक कार्डियोलाॅजी विभाग का सवाल है उसके लिए पूर्व की दिशा लाभप्रद होती है तथा क्षय रोग के लिए पूर्व और वायव्य की दिशा अच्छी होती है। औषधि कक्ष के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान पूर्व और उत्तर-पूर्व की दिशा होती है।

मुर्दा घर या पोस्टमाॅर्टम कक्ष मृत्यु के देवता यम की दिशा दक्षिण में बनाया जाना चाहिए। एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड, सीटी स्कैन, रेडियोलाॅजी इत्यादि विद्युतीय उपकरणों को आग्नेय दिशा में रखना सर्वश्रेष्ठ होता है। प्रसूति वार्ड उत्तर या पूर्व दिशा में बनाया जा सकता है। आॅपरेशन के बाद स्वास्थ्य लाभ कक्ष उत्तर या उत्तर-पूर्व क्षेत्र में बनाया जा सकता है।

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