लाल किताब पाठ-3
लाल किताब पाठ-3

लाल किताब पाठ-3  

उमेश शर्मा
व्यूस : 8449 | मार्च 2011

कुंडली की किस्में

लाल-किताब पद्धति में कुंडलीें की कुछ विशेष परिभाषाऐं दी गई हैं, वह फलादेश को समझने के लिए बहुत आवश्यक है तथा इन बुनियादी परिभाषाओं को समझे बगैर ग्रहों के प्रभाव को नही समझा जा सकता। कुंडलियों की परिभाषा इस प्रकार हैः-

(अ.) अंधी कुंडली:

अगर भाव नं0 10 में दो या दो से ज्यादा ऐसे ग्रह हों जो आपस में शत्रुता रखते हों या शत्रु ग्रहों के टकराव से 10वां भाव अशुभ हो रहा हो तो ऐसी कुंडली को “अंधी कुंडली” कहा जाता है।

उदाहरण: उपरोक्त उदाहरण में दशम भाव में सूर्य, बुध व राहु तथा चतुर्थ भाव में सूर्य के शत्रु शनि के होने से दशम भाव पूर्ण रुप से पीड़ित है अतः यह कुंडली अंधे ग्रहों वाली कुंडली मानी जायेगी। इस प्रकार की ग्रह स्थिति से शुभ फलों का अनुभव विलम्ब से व अशुभ ग्रहों के फलों का अनुभव शीघ्रता से आता हैं।

इस तरह की कुंडली होने पर सर्वप्रथम 10 अन्धों को खाना खिलाकर व अन्य उपाय करके अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करके शुभ ग्रहों के प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।

(ब.) अन्धराती कुंडली:

इसमें केवल दो ग्रहों सूर्य व शनि को महत्व दिया गया है यानि चैथे भाव में सूर्य हो और सातवें भाव में शनि हो तो वह कुंडली अन्धराती कुंडली अर्थात आधी अंधी कुंडली कहलाती है।

ऐसे कुंडली वाले व्यक्ति को पारिवारिक, व्यवसायिक व सामाजिक क्षैत्र में योग्यता होते हुए भी अधिकांशतः असफलता का सामना करना पड़ता है क्योंकि सूर्य (जो आत्मबल का कारक है) तथा चतुर्थ भाव जो चन्द्र(जो कि मनोबल का कारक है) का पक्का घर है, दोनो ही शनि की दशम दृष्टि से दूषित हो रहे हैं। अतः ऐसी स्थिति में जातक सही निर्णय नहीं ले पाता जिसके फलस्वरुप उसे हानि उठानी पड़ती है। सूर्य एवं चतुर्थ भाव को शनि के दूषित प्रभाव से बचाने के लिए यहां पर शनि को उपाय द्वारा शुभ करना होगा। अगर जन्मकुंडली में प्रथम भाव में कोई ग्रह हो तो बांस की काली बंसरी में देसी खंाड या चीनी भर कर व अगर प्रथम भाव रिक्त हो तो मिट्टी के कुल्हड़ में शहद भर कर वीरानी जगह में दबाने से अशुभ फलों की अपेक्षा शुभ फलों में वृद्धि होगी।


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(स.) धर्मी कुंडली:

राहु/केतु भाव नं0 4 में हों या किसी भी भाव में चन्द्र के साथ हों, शनि एकादश भाव में या बृहस्पति व शनि कुण्डली के किसी भी भाव में इक्कठे हों तो वह कुंडली धर्मी कहलाती है।

उदाहरण: अगर किसी जातक की कुंडली में उपरोक्त उदाहरण की कुंडली नं0 1 या नं0 2 की तरह ग्रह स्थिति अर्थात भाव नं0 4 में राहु या केतु हों या राहु या केतु चन्द्र के साथ किसी भी भाव में हो या शनि एकादश भाव में हो या शनि+बृह0 कुंडली के किसी भी भाव में हों तो ऐसी स्थिति में नैसर्गिक क्रूर ग्रहों के स्वभाव में बदलाव आ जाता है अर्थात उनकी क्रूरता कम हो जाती है जिसके कारण शुभ फलों की प्रधानता रहती है और कुंडली धर्मी कहलाती है।

(द.) कायम ग्रहों वाली कुंडली:

कायम ग्रह अर्थात ऐसा ग्रह जो पूर्ण रुप से बली हो व उसके दृष्टिफल में किसी भी शत्रु ग्रहों के असर की मिलावट (यानि उसकी राशि में व उसके पक्के घर में शत्रु ग्रहों का प्रभाव) का न होना, न ही वह किसी शत्रु ग्रह का साथी बन रहा हो तो वह कायम यानि सम्पूर्ण स्थापित ग्रह कहलायेगा। कुंडली में ऐसे ग्रह का फलित कथन सम्पूर्ण सकारात्मक प्रभाव रखता है तथा ऐसे ग्रह को किस्मत का ग्रह भी कहते हैं। जिस भी कुंडली में ऐसी ग्रह स्थिति होती है वह कुंडली कायम ग्रह/ग्रहों वाली कुंडली कहलाती है।

उदाहरण: उपरोक्त उदाहरण में मंगल, बुध व शुक्र कायम ग्रह हैं क्योकि न तो दृष्टि द्वारा और न ही किसी शत्रु ग्रह का उनकी राशि या पक्के घर में प्रभाव है तथा न ही किसी शत्रु ग्रह के साथी बन रहे हैं, ऐसी स्थिति में ऐसी कुंडली कायम ग्रहों वाली कुंडली कहलायेगी।


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(य.) साथी ग्रहों वाली कुंडली:

जब किसी कुंडली में ग्रह एक दूसरे की राशि में या एक दूसरे के पक्के घरों में अदल-बदल कर बैठ जायें तो ऐसी कुंडली साथी ग्रहों वाली कुंडली कहलाती है। साथी ग्रहों वाली कुण्डली में जो ग्रह आपस में साथी बनते हैं उन ग्रहों की आपस में नकारात्मक प्रवृत्ति कम हो कर शुभ फल देने की प्रवृत्ति में वृद्धि हो जाती है। बुध अपवाद है।

उदाहरण: उपरोक्त उदाहरण नं0 1 में ग्रह एक दूसरे की राशि में बैठे हैं तथा कुंडली नं0 2 में ग्रह एक दूसरे के पक्के घर में अदल-बदल कर बैठे हैं। अतः ये दोनो कुण्डलीे साथी ग्रहों वाली कुण्डलीे मानी जायेगीं।

(र.) मुकाबले के ग्रहों वाली कुण्डली

कुण्डली में अगर दो मित्रों की या किसी एक की जड़ में उनका शत्रु ग्रह बैठ जाये तो दोनो मित्र ग्रहों की आपसी मित्रता में काफ़ी कमी आ जायेगी तथा उनमें दुश्मनी का भाव पैदा हो जायेगा।

उदाहरण: उपरोक्त उदाहरण में सूर्य जो कि अपने शत्रु ग्रह शुक्र की राशि तुला में सप्तम भाव में स्थित है जिसके कारण बुध (जो शुक्र का मित्र ग्रह है) का शुक्र से शत्रुता का भाव पैदा हो जायेगा, तथा यह स्थिति कुण्डली को मुकाबले के ग्रहों वाली कुण्डली बनाती है। क्रमशः


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