मुहूर्त किसी भी कार्य को शुरू करने के लिए अच्छे समय का चयन करना होता है। मानवमात्र की यह इच्छा होती है कि किसी भी कार्य का शुभारंभ शुभ समय या घड़ी में किया जाए ताकि उस कार्य का परिणाम सुखद हो। किसी महत्वपूर्ण कार्य को आरंभ करने से पूर्व शुभ समय का विचार आवश्यक है। कार्यारंभ के लिए शुभ समय के शोधन को ही मुहूर्त निर्णय कहते हैं। प्राचीन भारतीय ऋषियों एवं महर्षियों ने विभिन्न कार्यों को आरंभ करने के लिए उपयुक्त मुहूर्त के चयन हेतु मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त मार्तंड, धर्मसिंधु इत्यादि ग्रंथों की रचना की। इन शास्त्रों में प्रतिपादित सिद्धांतों का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रयोग कर लाभ उठाया जा सकता है।
संसद एवं विधानसभा सत्र शुरू करने हेतु उत्तम मुहूर्त का चयन भी आवश्यक है ताकि हजारों वर्ष पुरानी इस विद्या से पूरा देश लाभान्वित हो सके। अभी हाल में समाप्त संसद का शीतकालीन सत्र 23 नवंबर को आश्लेषा नक्षत्र में शुरू हुआ। उस दिन बुधवार, सप्तमी तिथि, इंद्र योग, मृत्यु एवं वब करण था। यह सारी स्थिति कार्य की अपूर्णता की ओर संकेत करती है। आश्लेषा नक्षत्र तीक्ष्ण नक्षत्र है और ऐसे महत्वपूर्ण एवं शुभ कार्यों में विशेष रूप से त्याज्य है।
कृष्ण पक्ष की सप्तमी भी गलग्रह तिथि होने की वजह से शुभ कार्य में त्याज्य है। परंतु वैदिक एवं उत्तर वैदिक काल में पंचांग न हो कर द्वयांग तिथि एवं नक्षत्र ही मुहूर्त का आधार हुआ करते थे। इस दृष्टिकोण से उक्त मुहूर्त निम्न स्तर का हुआ। पुनः सत्र की शुरुआत धनु (द्विस्वभाव) लग्न में हुई तथा अष्टमेश चंद्रमा अष्टम भाव में शनि के साथ अवस्थित था। दशमेश बुध द्वादश भाव में शत्रु राशि वृश्चिक में स्थित होने की वजह से राज-काज में बाधा दर्शाता है।
अष्टमेश चंद्रमा के द्वितीयेश शनि के साथ होने एवं राहु की पंचम दृष्टि होने की वजह से इस सत्र को बम की अफवाह का भी सामना करना पड़ा। यदि इस सत्र का शुभारंभ 18 नवंबर, 2005 को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर किया जाता तो ठीक रहता क्योंकि उस दिन पंचांग के पांचों अंग शुभ अवस्था में थे। दिन शुक्रवार, तिथि कृष्ण तृतीया (शक्ति प्रदा), नक्षत्र मृगशिरा (मित्र संज्ञक), सिद्ध योग एवं वणिज करण यह सारी स्थिति शुभ थी। उस दिन मानस योग भी था जो कार्य की पूर्णता की ओर संकेत करता है।
संसद सत्र में गति बनाए रखने के लिए चर लग्न का मुहूर्त अधिक शुभ है। दिल्ली के लिए उस दिन चर लग्न मकर सुबह 11ः04 से दोपहर 12ः47 तक था। उस समय लग्नेश शनि सप्तम में स्थान बली होकर लग्न को देख रहा था। यद्यपि एक अच्छे मुहूर्त में क्रूर ग्रहों को तीसरे, छठे या 11वें भाव में होना चाहिए परंतु यहां शनि लग्नेश होने की वजह से शुभ है तथा मंगल भी रुचक योग निर्मित कर रहा है। जन्म लग्न, नवांश एवं दशमांश तीनों चर लग्न में हैं।
यद्यपि दशमेश द्वादश भाव में है परंतु यहां द्वादश एवं दशम का परिवर्तन योग बन रहा है तथा दशम स्थान का गुरु सत्ता पक्ष के लिए एक रक्षा कवच प्रदान कर रहा है। इस लग्न में अधिक शुभता वाले नवांश एवं दशमांश को लिया गया है। इस मुहूर्त में इतना निश्चित है कि विपक्ष का सदन से बार-बार बहिर्गमन कर सदन की कार्यवाही में गतिरोध पैदा करना बहुत कम या नगण्य होता।