महाकालेश्वर विश्व में अनोखी है महाकाल की आरती चित्रा फुलोरिया महाकाल! पापों का शमन कष्टों का हरण करने वाले आशुतोष जिस पर प्रसन्न हुए उसी के हो गए। जिसे सबने ठुकराया उसे भोलेनाथ ने अपनाया। मानवता की दानवता से रक्षा करने वाले वही विषपायी औघड़दानी शिव महाकाल के रूप में प्राचीन नगरी उज्जैन में विराजमान हैं। महाकाल शिव की भस्म आरती देखते ही बनती है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। प्रस्तुत है उसी पावन स्थल का आंखों देखा हाल...
गवान भोले शंकर की लीला सबसे न्यारी है। भांग, धतूरा, विष, मुंडमाला, सांप सभी त्याज्य चीजों को उन्होंने आत्मीयता से अपनाया हुआ है। यही कारण है कि महाकाल के रूप में पूजे जाने वाले वही एक देव हैं। उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हैं। महाकाल की नगरी उज्जैन लगभग पूरी रात जागती रहती है।
राजा विक्रमादित्य के इस पौराणिक शहर में महाकालेश्वर की वजह से ही लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। प्रातः से पहले तीन बजे से ही पुष्प मालाएं व पूजा की थालियां तैयार कर लोग अपनी ठेलियां सजाने लगते हैं, क्योंकि यह वक्त होता है ब्रह्म मुहूर्त में शुरू होने वाली महाकाल की आरती के लिए लोगों के जाने का। शिवभक्ति के रंग में डूबे यहां आने वाले श्रद्ध ालुओं की संख्या जितनी अधिक होती है उनमें उतनी ही तन्मयता और धैर्य भी होता है।
मंदिर में पूरे दिन शिवभक्तों द्वारा पूजा अर्चना करवाई जाती है। ब्रह्मांड के तीनों लोकों में सर्वपूज्य तीन शिवलिंगों में महाकालेश्वर भी एक है। पूरे ब्रह्मांड में शिव का एकमात्र यही मंदिर दक्षिण् ामुखी है, यहां की गई पूजा अर्चना का फल तुरंत मिलता है।
महाकाल का अवतरण: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के अवतरण के बारे में कहा जाता है कि उज्जैन का राजा चंद्रसेन एक दिन जब शिवार्चन में लीन था तो पांच वर्ष का एक गोप बालक अपनी माता के साथ उधर से निकला। शिव पूजन को देखकर वह कौतूहल से भर उठा और स्वयं भी शिवपूजा करने की मन में ठान कर उसने रास्ते से पत्थर का एक टुकड़ा उठा लिया। घर के पास ही वह उस पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर गंध, अक्षत आदि से परम श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने लगा और ध्यानमग्न हो गया।
इस क्रम में बहुत देर हो गई, माता उस बालक को भोजन के लिए बुलाते-बुलाते थक गई लेकिन उसकी समाधि भंग नहीं हुई। माता ने गुस्से में आकर उस पत्थर के टुकड़े को वहां से उठाकर दूर फेंक दिया और बालक का हाथ खींच जबरदस्ती घर ले जाने लगी। पर जबरदस्ती का कोई लाभ नहीं हुआ। बालक जोर-जोर से दहाडं़े मार कर रोने लगा। माता तो हारकर घर चली गई मगर बालक का रोना बंद नहीं हुआ। रोते-रोते वह मूच्र्छित हो गया। भगवान भोलेनाथ निष्कपट बालक की भक्ति से प्रसन्न हुए। बालक को ज्यों ही होश आया तो उसे रत्न जड़ित मंदिर के भीतर अत्यंत तेज प्रकाशयुक्त ज्योतिर्लिंग देदीप्यमान होता दिखाई दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार दूषण नामक असुर के आतंक से लोगों को बचाने के लिए भगवान शिव ने महाकाल का रूप धर अपनी एक हुंकार से असुर को मार डाला। तब से वे महाकाल के रूप में यहीं विद्यमान हैं। भस्म आरती- महाकालेश्वर आने वाले यात्रियों के लिए मुख्य आकर्षण भगवान महाकाल की हर रोज प्रातः होने वाली भस्म आरती है। प्रातः 4 बजे से 6 बजे तक चलने वाली भस्म आरती के लिए लोग प्रातः 3 बजे से ही मंदिर में पहुंचना प्रारंभ कर देते हैं।
हालांकि शिवलिंग का शृंगार दिन में सुबह, दोपहर, शाम तीन बार किया जाता है लेकिन प्रातः काल की आरती भस्म आरती के रूप में प्रसिद्ध है। भस्म आरती के दौरान पूरा वातावरण भाव मग्न हो जाता है, मंत्रों के साथ भावों के उद्गार प्रकट करते, भोले बाबा की धुन में तल्लीन होते भक्त पूर्ण रूप से शिवमय हो जाते हैं। ऐसा अनुभव होता है कि शिव अपने नाना रूप धारण कर प्रत्येक व्यक्ति से अपना तादात्म्य बनाए हुए हैं। भस्म आरती के प्रांरभ में सर्वप्रथम कोटि तीर्थ के जल से भगवान भोले शंकर का अभिषेक किया जाता है। उसके बाद क्रमशः दूध, दही, शक्कर, घी, शहद और भांग से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।
उसके बाद पुनः एक बार जल से स्नान करा कर शिवलिंग का शृंगार किया जाता है। रोली, चंदन, अक्षत आदि विविध वस्तुओं से आंख, कान, मंुह, नाक बना कर, सिर पर चांदी का मुकुट पहना, हाथ में त्रिशूल दे कर शिवलिंग को जीवंत रूप दिया जाता है। मानो पूरा वातावरण गोधूलि की बेला में परिवर्तित हो जाता है। उसके बाद लिंग के चेहरे वाले हिस्से को कपड़े से ढककर पुजारी भस्म से शिव की आरती करता है। उसके बाद मुंह से कपड़ा हटाकर आम व्यक्ति को महाकालेश्वर के दर्शन कराए जाते हैं। आरती संपन्न होने के बाद शिव के शृंगार को उतार लिया जाता है और प्रसाद स्वरूप सबको वितरित किया जाता है।
यह संपूर्ण प्रक्रिया 2 घंटे (4 से 6 बजे प्रातः) चलती है। कुछ लोगों की मान्यता है कि महाकाल का शृंगार चिता भस्म से किया जाता है। पुराणों में भी शिव के लिए चिता भस्म लेपन की बात वर्णित है लेकिन वर्तमान में यह भस्म गाय के गोबर के उपलों से जलने वाली अखंड धूनी से लाई जाती है। भस्म आरती की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पजू ा अर्चना करन े क े लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं। शिव का शृंगार सप्ताह में हर दिन अलग प्रकार से होता है। शिवरात्रि पर विशेष प्रकार का शृंगार किया जाता है।
अन्य दर्शनीय स्थल प्रथम गणेश - इस मंदिर को बड़े गणेश जी का मंदिर भी कहा जाता है। यहां गणपति की विशालकाय मूर्ति स्थापित है। पंचमुखी हनुमान - बड़े गणेश जी के यह मूर्ति धातु से बनी हुई है। चार धाम मंदिर: यहां पर बदरीनाथ, द्वारिकाधीश, जगन्नाथ एवं रामेश्वरम चारों मंदिर बने हुए हैं।
मां हरसिद्धि मंदिर: यह मंदिर नौ प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता पार्वती की कोहनी गिरी थी। यहां श्रीयंत्र भी प्रतिष्ठित है, वही हरसिद्धि का रूप है। हरसिद्धि देवी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी हैं। मंदिर के प्रांगण में पिरामिड के आकार के दो दीप स्तंभ हैं जिनमें नवरात्रियों में 1000 दीप जलाए जाते हैं। प्रकाश स्तंभ पर एक हजार दीपमालाओं को एक साथ जलते देखना सचमुच अलौकिक अनुभूति है।
भर्तृहरि गुफा: इस स्थान पर भर्तृहरि ने 12 साल तक घोर तप किया था। इंद्र ने इस भय से कि कहीं उनका सिंहासन न छिन जाए बज्र से गुफा पर प्रहार कर दिया। भर्तृहरि ने अपने एक हाथ से गुफा की छत की शिला को रोक दिया, शिला में दरार तो आई मगर भर्तृहरि ने एक हाथ से शिला को थामकर अपना तप पूरा किया। आज भी गुफा की छत की शिला पर भर्तृहरि के हाथ का निशान अंकित है। यहां चार धाम यात्रा का गुप्त द्व ार भी है। कहा जाता है कि भर्तृहरि यहीं से चार धाम की यात्रा करते थे। एक बार किसी अंग्रेज ने यहां प्रवेश करने की चेष्टा की तो उसकी उसी क्षण मृत्यु हो गई।
गढ़ कालिका: यह मंदिर राजा विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों में से एक महाकवि कालिदास की इष्ट देवी का है। काल भैरव मंदिर: महाकालेश्वर एवं हरसिद्धि मंदिर के बाद काल भैरव के दर्शन करने जरूरी होते हैं, अन्यथा दर्शन लाभ का पुण्य नहीं मिलता।
श्री महा मंगलेश्वर मंदिर: इस मंदिर में मंगल ग्रह की शांति कराने दूर-दूर से लोग आते हैं। संादीपनि ऋषि आश्रम: इसी आश्रम में कृष्ण व बलराम ने अपने गुरु सांदीपनि से 64 दिन में 64 विद्याएं और 16 कलाएं सीख ली थीं। कृष्ण 11 साल 7 दिन की उम्र में ही यहां पढ़ने आ गए थे। यहां कृष्ण-बलराम के जीवन से जुड़े अनेकानेक चित्र भी प्रदर्शित किए गए हैं। कैसे जाएं: उज्जैन के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है। पश्चिमी रेलवे से उज्जैन देश के बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
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