महा पर्व दीपावली: पर्व के कारण अनेक
महा पर्व दीपावली: पर्व के कारण अनेक

महा पर्व दीपावली: पर्व के कारण अनेक  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6170 | दिसम्बर 2013

पर्व- एक बहुअर्थी या अनेकार्थी एवं बहु-आयामी शब्द है। हिंदी शब्द कोश में इस पर्व के अनेकार्थ या पर्यायवाची शब्द इस प्रकार दिये गये हैं- पर्व - अवसर, अंश, खंड,पुण्यकाल, संधि स्थान, उत्सव, त्योहार, दिन व क्षणिक काल, दूसरी ओर संस्कृत शब्दकोश में ‘पर्व’ शब्द ‘पर्वन’ लिखा गया है।

इसके अनेकार्थ इस प्रकार हैं। पर्वन = (वि.) (पृ+वनिय) = जोड़, संधि, गांठ (पौधे की), अंक, भाग, खंड (महाभारत आदि का), पाठ, प्रस्ताव, घंटा, पक्ष-संधि, क्षण, प्रतिपदर्श संधि, चंद्र का परिवर्तन, अवसर, उत्सव। हमारा भारत वर्ष पर्वों का देश है। यहां की पावन भूमि पर कोई न कोई दिवस पर्व के रूप में मनाया जाता है।

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हर पर्व को मनाने के पीछे कोई न कोई कथा कहानी जुड़ी रहती है। दीपावली पर्व पर पूरा देश दीपक जला कर प्रकाश उत्सव मनाता है। दीपावली की अमावस्या की घोर निशा को पूर्णिमा बना देना चाहता है। प्रचलित कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम इसी दिन लंका विजय कर चैदह वर्षों के बाद अयोध्या पधारे थे।

उनके आगमन की खुशी में पूरी अयोध्या नगरी को घी के दीपकों से अलंकृत कर दिया था। तब से ही यह पर्व दीपावली (दीपों की पंक्ति) के नाम से प्रकाश-पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी दीपावली के पर्व के दिन सिक्खों के छठे गुरु, श्री हरगोविंद सिंह जी मुगलों की कैद से अपने आध्यात्मिक प्रभाव द्वारा मुक्त हुए थे।

इसी दिन गुरु अर्जु न देव जी ने अमृतसर शहर की स्थापना की। इसी पावन पर्व के दिन आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी का निर्वाण हुआ था। स्वामी रामतीर्थ जी का जन्म व परिनिर्वाण दिवस का भी यही दिन है। जैन धर्म के प्रवर्तक श्री महावीर स्वामी का निर्वाण भी इसी दीपावली पर्व के दिन हुआ था।

महाभारत कालीन युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ भी इसी दिन पूरा हुआ था। पौराणिक परंपरानुसार धन की देवी लक्ष्मी जी इसी पावन-पर्व पर अपने भक्तों को उपकृत करने के लिए पृथ्वी लोक पर विचरण करने निकलती हैं। इसी कारण दीपावली का पर्व वास्तविक रूप में लक्ष्मी-पूजन का पर्व बन गया है।

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मगर इस पर्व को मनाने के पीछे विशेष वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय कारण हैं जो कि हमारे ऋषियों द्वारा प्रदत्त हैं। दीपावली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। वैदिक परंपरा में ज्योति की उपासना का विशेष महत्त्व रहा है।

तभी कहा गया है- ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’’। तुला राशि न्याय व व्यापार की प्रतीक मानी जाती है। इस राशि में जब आत्मकारक सूर्य व मन का कारक चंद्र एक ही अंशों पर होते हैं तब महा अंधकार होता है, जिसे महानिशा या कार्तिक अमावस्या कहते हैं।

यही दीपावली पर्व का दिन है। जब इस विशिष्ट स्थिति में सूर्य-चंद्र इकट्ठे हांे तो स्थिर लग्न में श्रीवृद्धि के लिए लक्ष्मी पूजन करने को कहा गया है। दीपावली के पर्व को कमला जन्मोत्सव भी कहते हैं क्योंकि महालक्ष्मी का नाम ‘कमला’ भी है और समुद्र-मंथन के समय उनका जन्म इसी दिन हुआ था।

राक्षसी शक्तियों पर दैव-शक्तियों की विजय के प्रतीक के रूप में भी इस पर्व को मनाते हैं। यह महान सिद्धिदात्री रात्रि कहलाती है। इन दिनों मन सहज रूप में बहुत शांत हो जाता है।

उपासना या साधना में इसे सहज रूप में लगाया जाता है। यह रात्रि, हर प्रकार की सत्, रज और तामसिक सिद्धि की है। सिद्धियां हमें हर प्रकार से संपन्न बनाती हैं। अतः दीपावली के इस महापर्व का हम सदुपयोग करें...

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