कुछ दिन पहले पं. गोपाल षर्मा जयपुर के एक वरिष्ठ प्रषासनिक अधिकारी श्री अतुल कुमार जी के घर वास्तु निरीक्षण करने गये। उन्होंने बताया कि वे काफी समय से मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। उनके प्रत्येक कार्य में रुकावट तथा स्वास्थ्य में दिन प्रतिदिन गिरावट हो रही है। उनकी पत्नी ने कहा कि जब से उन्होंने अपने नये मकान में स्थानांतरण किया है तब से ही अनिद्रा व बैचेनी के कारण साहब का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया है। सर्वेक्षण करते समय पाए गए वास्तु दोष: - दक्षिण-पष्चिम में प्रवेष द्वार कार्यों में रुकावट, विचार वैमनस्य, स्वास्थ्य में गिरावट व मान हानि का कारण बनता है। - वायव्य कोण का बढ़ना विय हानि, फिजूल खर्ची व उन्नति में भारी अवरोध पैदा करता है। - उत्तर की ओर सिर करके सोने से बुरे स्वप्न आते हैं व व्यक्ति अनिद्रा तथा सिर के दर्द से पीड़ित रहता है। - उत्तर-पष्चिम वाले षयन कक्ष के सम्मुख दर्पण के होने से सोने वाले व्यक्ति के षरीर के जो अंग दर्पण में दिखते हं उनमें दर्द व रोग हो जाते हैं। सुझाव: - उन्हें कहा गया कि यदि प्रवेष की दिषा बदलनी संभव हो तो प्रवेष द्वार दक्षिण-पूर्व या दक्षिण में बनायें। यदि संभव नहीं है तो दहलीज में एक चांदी की पत्ती डालें व फिर दहलीज बनाकर उस पर पीला पेंट कर दें। - उत्तर-पष्चिम भाग के दोष को समाप्त करने के लिये उत्तर-पष्चिम की ओर से व उत्तर-पूर्व तक परगोला बनाने की सलाह दी, जिससे घर का आकार नियमित हो सके। - उन्हें दर्पण की दिषा बदलने की सलाह दी गई ताकि उसमें सोते वक्त अक्ष न दिखे। यदि संभव न हो तो रात को दर्पण ढंक कर सोयें। - सिर को दक्षिण की ओर करके सोने को कहा। उन्हें बताया गया कि सोते समय सिर पष्चिम व पूर्व में भी कर सकते हैं परन्तु उत्तर पूर्णतया त्याज्य है। पंडित जी ने उन्हें आष्वासन दिया कि सभी सुझावों को कार्यान्वित करने के पष्चात उनको सभी परेषानियों से तुरंत राहत मिलेगी।