आयुर्वेद में शहद को जीवन अमृत बताया गया है। यह कैसे बनता है? शायद मधुमक्खी भी नहीं जानती कि उसके द्वारा इकट्ठा किया गया तरह-तरह के फूलों का पराग कैसे जीवन अमृत का रूप धारण कर लेता है यह एक रहस्य है। लेकिन इस रहस्य को आयुर्वेदाचार्यों ने अपने ज्ञान और विवेक से परख कर सार्वजनिक करते हुए इसे मधु, सोम, प्राण, देव-भोजन, पुष्प रस, पुष्प रसोद्रव, पुष्पासक, सारध माध्वीय, माक्षिक, शहद आदि अनेक नामों से संबोधित किया। अंग्रेजी में इसे ‘हनी’ और लैटिन में ‘मेल’ कहते हैं। शहद प्रकृति की एक अमूल्य देन है जो कई प्रकार की मधुमक्खियों द्वारा बनाया जाता है। हिमालय के वनों में शहद उत्पन्न करने वाली मधुमक्खियों का शहद सर्वोत्तम माना जाता है। इसके अतिरिक्त वृक्षों और फूलों से भरपूर ठंडे प्रदेशों का शहद भी अच्छा माना जाता है। छत्ते से निकाला गया ताजा शहद पौष्टिक होता है। आयुर्वेद के ज्ञाताओं तथा आविष्कारकांे ने अपनी खोज और परीक्षण के द्वारा अनेक रोगों का उपचार शहद के द्वारा खोजा और औषधियों के निर्माण में शहद का प्रयोग आवश्यक माना। शहद हर प्रकार के रोग में बहुत अच्छा कार्य करता है। खाना हजम करने तथा कब्ज को दूर करने के लिए भी शहद बहुत लाभदायक है। खाना-खाने के बाद थोड़ी मात्रा में शहद को चाट लेना, खाने को हजम करने में मदद देता है और पाचन शक्ति बढ़ाता है। यह खांसी, दमा और जुकाम की भी एक श्रेष्ठ औषधि है। शहद घावों को साफ करता है और शीघ्र भरकर सूजन को मिटा देता है। बच्चों के लिए तो यह एक उत्तम आहार है। छोटे, बड़े और घातक रोगों में शहद बहुत उपयोगी है। सर्दी लगने पर जिस तरह ब्रांडी का उपयोग किया जाता है ठीक उसी तरह यदि एक चम्मच शहद पी लिया जाए तो सर्दी से राहत मिलती है। शहद स्वास्थ्य को बनाने तथा तुरंत लाभ पहुंचाने में अद्वितीय है। यह फूलों की कुदरती मिठास का रासायनिक मिश्रण है। सुबह नाश्ते के साथ शहद खाने से खाना पचाने और कब्ज के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। शहद रक्त शुद्धि कर नये रक्त निर्माण में भी सहायक है। शहद पेट में जाकर आंतों को सुव्यवस्थित करता है, उनमें संचित मल एवं विष को दूर करता है जिससे पुराना अतिसार पुराना कब्ज दूर हो जाता है। आमाशय और पक्वाशय पर भी इसकी क्रिया संतुलित होती है। शहद गुर्दे का विकार भी दूर करता है। यह मस्तिष्क एवं उसके ज्ञान-तंतुओं पर अपना अचूक प्रभाव डालता है। मनुष्य की चिंतन शक्ति, विचार शक्ति, स्मरण शक्ति और धारणा को तीव्र बना देता है। शहद टाॅनिक और औषधि दोनों तरह से प्रयुक्त होता है। शहद में पाये जाने वाले खनिज कैल्शियम, फाॅस्फोरस एवं लोहा है। विटामीन सी, बी भी शहद में पाया जाता है। शहद की जांच: शुद्ध शहद की जांच ऐसे करें: - यदि शहद में गिरी मक्खी शहद में से निकलकर उड़ जाए तो शहद शुद्ध समझें। - रूई की बत्ती शहद में डुबाकर दीये के समान जलाई जाए और बिना आवाज किए जले तो शहद शुद्ध है। - शुद्ध शहद को पानी में डालने से वह पानी के नीचे बैठ जाता है और चमकता है। जब तक चम्मच न हिलाएं पानी में घुलता नहीं, ऐसा शहद शुद्ध है। विभिन्न रोगों में शहद द्वारा उपचार उदर संबंधित रोग: अदरक की गांठ को साफ कर पीस कर शहद मिलाकर सुबह-शाम दो बार सेवन करें और ताजा पानी पिएं। हल्का भोजन करें। कुछ दिनों में ही अजीर्ण की शिकायत दूर हो जाएगी। आफरा: अदरक का रस, नीबू का रस, और शहद तीनों को मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से अफारे में लाभ होता है। अम्ल पित्त: खटाई और गर्म मसालों के सेवन से पेट में अम्लता बढ़ जाती है जिससे पित्त बिगड़ जाती है और खट्टी-खट्टी डकारें आने लगती हैं। इसके लिए शहद में हरड़ का चूर्ण मिलाकर चाटने से और ऊपर से थोड़ा पानी पीने से या नींबू के रस में शहद मिलाकर पीने से लाभ होता है। कब्ज: आंवला के चूर्ण को पानी में भिगो दें। प्रातः उसे छानकर शहद मिलाकर पिएं। इससे आंतों के समस्त रोगों का अंत होकर कब्ज में भी राहत मिलती है। आंखें संबंधित रोग: 1. आंखों का दुखना: शहद में सलाई डुबोकर दोनों आंखो में सूरमा डालने के समान लगाएं। थोड़ी सी चुभन अवश्य होगी। लेकिन गंदा पानी निकल जाने से ठंडक मिलेगी और आंखों का दुखना ठीक हो जाएगा। 2. आंखों की लाली: आधा चम्मच शहद में 2 रत्ती सुरमा और 2 ग्राम घी अच्छी तरह मिला लें, जब खुश्क हो जाए तो सुबह शाम आंखों में इसकी सलाई लगाएं। आंखों की लाली में आराम मिलेगा। 3. आंखों की सूजन: शहद में बड़ी हरड़ का महीन चूर्ण मिलाकर रात को आंखों पर लेप करें और प्रातःकाल धो दें। आंखों की सूजन दूर हो जाएगी। 4. खांसी: शहद के साथ सुहागे के फुले का चूर्ण मिलाकर चाटने से खांसी दूर हो जाती है और सांस भी ठीक चलती है। 5. काली खांसी: भुट्टे के दाने निकालकर फिर उसे जलाकर भस्म बना लें। शहद में यह भस्म मिलाकर सुबह-शाम और रात सोते समय चाटने से काली खांसी में लाभ होता है। गले का दर्द: शहद में नींबू रस मिलाकर पीने से गले में दर्द में आराम मिलता है। नज़ला-जुकाम: गुनगुने पानी में थोड़ा शहद मिलाकर धीरे-धीरे पीने से जुकाम में लाभ होता है। खूनी बवासीर: नाग-केसर और सफेद सुरमा बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। शहद में मिलाकर इसे सुबह-शाम चाटने से लाभ होता है। कान का घाव: हल्के गुनगुने पानी में शहद मिलाकर कान धोने से कान के घाव और दर्द में लाभ होता है। कान से बहने वाला गंदा मवाद भी साफ हो जाता है। कंठमाला: त्रिफला के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से कंठमाला का रोग दूर हो जाता है। फोड़े और खारिश: चूने के पानी में शहद मिलाकर लेप करने से शीघ्र ही लाभ होता है। मोटापा: गरम पानी में उसका आठवां भाग शहद मिलाकर पीने से शरीर की फालतू चर्बी घटने लगती है। मोटापा कम हो जाता है। रीढ़ का दर्द: शहद व शिलाजीत मिलाकर लेप करने से रीढ़ का दर्द दूर होता है। हृदय रोग: प्रातः काल और रात को सोते समय यदि शहद को ताजे पानी में मिलाकर लिया जाए तो हृदय के रोग जैसे हृदय शूल, हृदय की तेज धड़कन आदि रोग नहीं होते। शारीरिक और मानसिक थकान: गरम पानी (उबलता हुआ) एक कप में बड़ा चम्मच शहद मिलाकर चाय की तरह धीरे-धीरे पी लें। दिन में तीन बार भोजन के आधा घंटा पहले पिएं। इससे शारीरिक व मानसिक थकान दूर हो जाती है और पाचन तंत्र सुचारू रूप से कार्य करने लगता है। जोड़ों का दर्द और गठिया: गर्म पानी में शहद के सेवन से लाभ होता है। पीलिया: ताजे पानी में शहद मिलाकर पीने से पीलिया में लाभ होता है। गर्भावस्था: प्रतिदिन दो चम्मच शहद गर्भिणी स्त्री को खिलाने पर उसके शरीर में प्रसव के बाद भी दुर्बलता नहीं आयेगी। इससे रक्त की कमी दूर हो जाती है। शरीर में नई शक्ति का संचार हो जाता है और शिशु भी सुंदर और स्वस्थ पैदा होता है।