इस अंक में फोबिया विषय पर बताये गये सवालों का जवाब दिया गया है। फोबिया या असामान्य डर शब्द का प्रयोग बहुत सारे लोग एक सामान्य डर या चिंता के लिए भी करते हैं जो कि सही नहीं है। डर हमारे जीवन की एक बहुत ही आवश्यक अनुभूति है। डर का कोई न कोई कथन होता है। डर हमारे जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक है। डर की अनुभूति हमें जन्म से ही होती है। जन्म के बाद बच्चा गिरने से और ऊंची आवाज से डरता है। यह उसको कोई सिखाता नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि यह तो भगवान की ही देन है। डा. कार्लयुंग का मानना है कि डर सामूहिक अवचेतन या सामूहिक बेहोश के माध्यम से बच्चा प्राप्त करता है। लेकिन जब डर सामान्य न हो तो क्या वह उचित है। मनोविज्ञान में मापदण्ड शून्य से प्रारंभ नहीं होता है बल्कि औसत या मध्यम से शुरु किया जाता है। उदाहरण के तौर पर जब यह कहा जाये कि वो व्यक्ति बहुत बुद्धिमान है तो इसका अर्थ हुआ कि वह व्यक्ति औसत बुद्धिमान व्यक्ति से ज्यादा बुद्धिमान है। जैसे हम आप जिंदगी में कहते हैं कि अमुक व्यक्ति लंबा है या छोटा है तो भी हम समझ सकते हैं कि हमारा मापदण्ड एक सामान्य आंकड़े के आधार पर हो रहा है। इसी प्रकार असामान्य डर भी उस डर को कहं जो सामान्य व्यक्तियों को नहीं होना चाहिए। प्रश्न: क्या अधिक डर को फोबिया कहते हैं? उर: अधिक डर को फोबिया नहीं कहते हैं बल्कि फोबिया वह डर है जो कि असामान्य तो है लेकिन तर्क की कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता है। जैसे कोई कहे कि मुझे बचपन में कुŸो न काट लिया था उस वक्त से अब तक मुझे कुŸाों से बेहद ज्यादा डर लगता है। कु से बेहद डर लगना भी असामान्य है लेकिन तर्क की कसौटी पर यह सही उतरता है क्योंकि इस डर की वजह व्यक्ति को मालूम है अतः यह डर कहा जायेगा फोबिया नहीं। इसके विपरीत एक व्यक्ति सांप, कछुए, छिपकिली या अन्य जीव को देखकर अकारण डरता है तथा डर के मारे उसका व्यवहार असामान्य हो जाता है तो इस प्रकार के डर को फोबिया कहते हैं। आपको जीवन में ऐसे भी कई व्यक्ति मिले होंगे या उनके बारे में सुना होगा जो भीड़ में नहीं जा सकते, दरवाजा बंद में नहीं बैठ सकते या सीढ़ियों पर नहीं चढ़ सकते तो वे सभी डर फोबिया कहलायेंगे। प्रश्न: क्या फोबिया का कोई लक्षण भी होता है? उर: फोबिया को पहचानना बहुत आसान है। पहली बात तो इस डर के कारण का व्यक्ति को पता नहीं होता है और फिर उसका व्यवहार बेहद असामान्य हो जाता है जैसे पसीना आने लगता है, चक्कर आने लगते हैं, कभी-कभी बेहोश भी हो जाता है, एक दहशत जैसा व्यवहार हो जाता है, दम घुटने लगता, सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। शरीर कांपने लग सकता है, बेहद चिंता बढ़ जाती है। आवाजें बदल जाती हैं, हाथ, पैर ठंडे पड़ सकते हैं, मांस पेशियां खिच सकती हैं, सर दर्द, पेट दर्द, दस्त, उल्टी इत्यादि लक्षण व्यवहार में प्रकट होने लगते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि सारे लक्षण हर ऐसी स्थिति में दिखाई दें बल्कि इनमें से कुछ लक्षण अवश्य ही दिखाई देंगे। फोबिया वाला व्यक्ति यह भलीभांति समझता है कि यह डर बेतुका है लेकिन यह जानते हुए भी इस पर काबू नहीं रखा जाता है। अक्सर वो कहता है कि मुझे ऐसा लगने लगता है कि मेरे हृदय की गति रुकने वाली है और सांस बंद होने वाली है। प्रश्न: जब डर का कारण नहीं है तो डर लगता क्यों है? उर: बिना कारण नहीं होता। यह तो विज्ञान का एक सिद्धांत है जो कि हजारों वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने कर्म के सिद्धत में समझाया है और भगवान बुद्ध ने भी कहा है कि कष्ट अकारण नहीं होता है। लेकिन उसका कारण व्यक्ति भूल चुका होता है। कुछ लोग कहेंगे कि बहुत छोटी-छोटी हानि रहित चीजों या जीवों से फोबिया होना जैसे काकरोच से डरना, इसके पीछे का इतना बड़ा कारण हो सकता है कि एक असामान्य डर के रूप में बन जाने या कुर्सी को देखकर चक्कर आना जैसे फोबिया इसका व तर्क शक्ति से परे लगते हैं। यह बिल्कुल सही बात है क्योंकि तर्क तो फोबिया पर लागू होता ही नहीं। व्यक्ति जिस भी वस्तु जानवर या परिस्थिति से असामान्य रूप से बिना कारण से जब डरता है तो निश्चित बात है कि वह कारण को भूल चुका है। यह कारण परोक्ष या अपरोक्ष रूप में हो सकता है। परोक्ष कारण जैसे किसी को कभी एक सांप ने काटा और वह इस बात को भूल चुका है। वह अनुभव अवचेतन मन में चला गया है लेकिन फिर सांप देखने से उसका कारण जागृत हो जाता है। लेकिन स्मृति नहीं आती है तथा वह डरावना अनुभव पैदा कर देता है। शरीर में असामान्य अनुभव होने लगते हैं जैसे दिल बैठना इत्यादि। लेकिन यह कारण परोक्ष हैं। अपरोक्ष कारण कई प्रकार से हो सकते हैं जैसे ऊपर वाले उदाहरण में ही यह हो सकता है कि व्यक्ति एक काकरोच को देखता है और तुरंत उसे ही एक नाग काट लेता है। उसका मन इस अनुभव को दूसरे रूप में याद रख सकता है। कि जब मैं काॅकरोच को देखता हूं तो कोई बड़ी दुर्घटना होती है चाहे वह काकरोच को देखना और सांप से काटा जाना दोनों बातें भूल चुका हो अर्थात् अवचेतन मन में चली गई हो। लेकिन काकरोच देखने पर अवचेतन मन में दर्ज दुर्घटना का प्रभाव व्यवहार में दिखाई देने लगता है जबकि काॅकरोच ने उसे कभी काटा भी न था। कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि पूर्व जन्म के दुखद अनुभव भी इस जीवन में किसी विशेष परिस्थिति में व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं जिनमें से फोबिया एक प्रमुख लक्षण है। प्रश्न: क्या फोबिया किसी विशेष प्रकार के व्यक्ति को ही होता है? उर: हर व्यक्ति विशेष को होता है। फोबिया किसी को भी हो सकता है। यह किसी विशेष लिंग, आयु, धर्म, क्षेत्र या अन्य इस प्रकार के कारणों से नहीं जुड़ा है। इसका संबंध तो किसी विशेष घटना से होता है या उससे जुड़े हुए कारणों से होता है जो कि प्रभाव को पुनः जागृत कर देते हैं। जैसे हम जब वर्षों बाद किसी स्थान पर जाते हैं तो उस स्थान से जुड़ी हुई कुछ पुरानी कुछ बातों का प्रभाव याद आ जाता है। इसी प्रकार फोबिया भी किसी पुरानी जुड़ी हुई घटना का प्रभाव है जो कि हम अब भूल चुके हैं। प्रश्न: क्या फोबिया जीवन के दूसरे पहलुओं पर भी प्रभाव डालता है? उर: हां फोबिया की वजह से हमारे जीवन के कई अन्य पहलू भी अवश्य प्रभावित होते हैं। इस संदर्भ में एक उदाहरण प्रस्तुत है। एक व्यक्ति जिसकी आयु लगभग 55 वर्ष थी वह किसी सरकारी विभाग में अधिकारी था। उसे ऊँचाई पर चढ़ने से या ऊंचाई पर जाने से डर लगने लगता था। वह एक सोसाइटी में रहता था जहां बहुमंजिली इमारतें थीं। वह पहली मंजिल से ऊपर कभी नहीं जा सकता था। इस व्यक्ति की बेटी विदेश में रहती थी। वह चाहती थी कि मेरे पिता जी कभी-कभी मेरे पास आयें और कुछ दिन रहें। लेकिन वह तो हवाई जहाज में बैठ ही नहीं सकते थे। यह बात लगभग 5 वर्ष पहले की है। उसने अपनी समस्याएं बताईं और उसका दिल भी भर गया। यह कितना मार्मिक लगता है। बाप बच्चे से मिलने में ऐसे कारण से मजबूर है जो कि तर्क संगत भी नहीं है। खैर उस व्यक्ति ने उपचार कराया और उनका फोबिया भी ठीक हो गया। इसी प्रकार फोबिया की वजह से हम बहुत सारे जरूरी कार्य नहीं कर पाते हैं। प्रश्न: फोबिया का उपचार किस प्रकार संभव है। उर: सम्मोहन के प्रयोग से फोबिया का उपचार करना संभव है। फोबिया का संबंध हमारे अवचेतन मन की स्मृतियों से है। यह व्यवहार एक सामान्य प्रक्रिया नहीं है। सम्मोहन पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार में उसकी क्षमता बढ़ाकर तथा कष्ट के प्रभाव को कम करके फोबिया का उपचार करता है। मन की क्षमता इस प्रकार बढ़ाई जाती है ताकि वह व्यक्ति फोबिया पैदा करने वाली वस्तु या परिस्थिति को भी सामान्य रूप से कर सके। कई व्यक्ति यह सोचकर उपचार के लिए आते हैं कि सम्मोहन तो एक जादू की तरह हमारे व्यवहार में परिवर्तन ला सकता है। चाहे वह व्यक्ति पिछले 20-30 वर्ष से उस फोबिया से पीड़ित हो, लेकिन सम्मोहन से एक दिन में ठीक होने की मनसा लेकर आता है। इस प्रकार की धारणा एक भ्रामक मिथ्या है जिनको मद्दे नजर रखकर उपचार किया जाता है। फोबिया जैसे बीमारी कम से कम 4 या 5 बार सेशन कराने से ठीक होती है कभी-कभी इनसे अधिक सेशन भी लग सकते हैं। रोगी को घर पर करने के लिए कुछ अभ्यास भी दिये जाते हैं। प्रश्न: क्या फोबिया फोटोग्राफ के माध्यम से ठीक किया जा सकता है? उर: सम्मोहन फोटोग्राफ या किसी वस्तु पर नहीं किया जा सकता। यह एक व्यक्तिगत अनुभव है। उपचार के लिए कुछ सुझाव दिये जाते हैं और प्रक्रियाएं करायी जाती हैं जो कि एक फोटोग्राफी से संभव नहीं है। प्रश्न: क्या फोबिया का उपचार करना सीखा जा सकता है? उर: फोबिया के उपचार सीखने के लिए आपको सम्मोहन आना चाहिए। फोबिया सम्मोहन द्वारा उपचार करने वाली प्रमुख बीमारियों में से एक है तथा यह हमारे कार्यक्रम का एक हिस्सा है। हर विद्यार्थी को जो कि सम्मोहन उपचार यानी हिप्ननोथेरेपी कोर्स करता है उसे यह विधि सिखाई जाती है। यह आसान है और इसे सामान्य व्यक्ति सीख सकता है और कर सकता है। नोट: अगले अंक में नपुंसकता उपचार से संबंधित प्रश्नों के बारे में जानकारी दी जायेगी।