कैसे करें रत्नों की पहचान
कैसे करें रत्नों की पहचान

कैसे करें रत्नों की पहचान  

पुरु अग्रवाल
व्यूस : 11095 | जनवरी 2006

रत्नों का रहस्यमय संसार आदिकाल से ही मानव के आकर्षण का विषय रहा है। विश्व के सभी देशों में रत्न अपने विशिष्ट सुंदर रंगों, आंतरिक प्रभाव, तथा दुर्लभता के कारण प्राचीनकाल से ही अनमोल समझे जाते हैं। इनका वर्णन वेदों एवं पुराणों में भी मिलता है। आज रत्नों की कई नई किस्में उपलब्ध हैं। प्राकृतिक रत्नों की लगभग 200-250 किस्में हैं जिनमें से कई किस्में एक जैसी दिखती हैं। बदलते हुए फैशन के साथ विभिन्न रत्नों की उपयोगिता भी बदल गई है। रत्न भूगर्भ से प्राप्त होते हैं। कुदरत की देन है। प्राकृतिक रत्नों के दो विभाजन किए गए हैं। नवरत्न अर्थात 9 रत्न इस प्रकार हैं: हीरा, पन्ना, पुखराज, नीलम, माणिक, गोमेद, लहसुनिया, मोती और मूंगा।

उपरत्न: नवरत्नों को छोड़ अन्य रत्नों को उपरत्न कहते हैं। जैसे- नरम माणिक, फिरोजा, नीली, बैरूज, तामरा, टोराब, केरवा, स्फटिक तथा कई अन्य। प्राकृतिक रत्न ही सही रत्न होते हैं तथा हमें केवल प्राकृतिक रत्न ही पहनने चाहिए। प्राकृतिक रत्न ही सही प्रभाव डाल सकते हैं। प्राकृतिक (असली) रत्नों के अतिरिक्त नकली या चिपके हुए तथा मारका रत्न भी उपलब्ध हैं। Û नकली रत्न: ये वे रत्न होते हैं जो मानव द्वारा प्रयोगशाला में बनाए जाते हैं। ये रत्न दिखने में प्राकृतिक रत्नों के समान होते हैं जिनकी रत्न प्रयोगशाला में सही रूप से जांच की जा सकती है। उदाहरण: नकली पुखराज, नकली नीलम, नकली पन्ना तथा कई अन्य रत्न। ये रत्न हमें नहीं पहनने चाहिए क्योंकि इनका उलटा प्रभाव भी पड़ सकता है। रंजित या संसाधित: इसमें रत्न पर या उसके अंदर रंग भर दिया जाता है जिससे वह सफेद से हरा, नीला या किसी और रंग का बन सकता है।

अर्थात इस प्रक्रिया में एक रत्न किसी और रत्न का रंगरूप ग्रहण कर लेता है। इन रत्नों को भी हमें नहीं पहनना चाहिए। चिपके हुए: इस प्रक्रिया में असली रत्न की परत काटकर नकली रत्न के ऊपर चिपका दिया जाता है तथा अंगूठी में जड़ दिया जाता है जो दिखने में असली लगता है। इन रत्नों का भी सही प्रभाव नहीं पड़ता। ये किसी रत्न विशेषज्ञ द्वारा रत्न प्रयोगशाला में ही पहचाने जा सकते हैं। पुनर्निर्मित: जिन रत्नों के छोटे व महीन टुकड़ों को पिघलाकर उन्हें फिर से जोड़ा जाए वे पुनर्निर्मित रत्न कहलाते हैं। यह कार्य ज्यादातर जैविक रत्नों के साथ किया जाता है। इन रत्नों का भी कोई प्रभाव नहीं होता है। मारका: कोई भी रत्न नकली, असली या किसी अन्य वस्तु जैसे प्लास्टिक, कांच जैसी दिखे उसे मारका कहते हैं। कैरेट और रत्ती क्या है: किसी भी रत्न का वजन कैरेट या रत्ती में किया जाता है। 1 ग्राम = 5 कैरेट या 5.5 रत्ती 1 कैरेट = 1.1 रत्ती = 200 मिग्रा. 1 रत्ती = 181 मिलीग्राम यदि हम कैरेट में उसका 10 प्रतिशत जोड़ दें तो हमें उतनी रत्ती प्राप्त हो जाएंगी। एक विचार: 200 से अधिक प्राकृतिक रत्नों की नकली एवं मारका रत्नों की उपलब्धता का यह मतलब है कि कुल मिला कर 350 से अधिक रत्नों की किस्में उपलब्ध हैं जो दिखने में एक समान लगते हैं।

ऐसे में यदि आप से कोई यह कहे कि वह इन सब को आंखों से देखकर पहचान तथा फर्क कर सकता है तो क्या आप को यह कुछ अटपटा नहीं लगेगा? कई रत्न व्यापारियों ने यह माना है कि अनुभव तथा आंखें उन्हें हर बार सहायता नहीं देतीं इसलिए कई बार उन्हें रत्न प्रयोगशाला की मदद लेनी पड़ती है। रत्न प्रयोगशाला में भी रत्न विशेषज्ञ किसी रत्न की कम से कम 10 भिन्न तरीकों से जांच किए बिना किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते। रत्नों का ज्ञान हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य है, न केवल रत्न उद्योगपति या ज्योतिष के लिए बल्कि उस आम इन्सान के लिए भी जिसे किसी रत्न की खरीदारी करनी हो। जरा सोचिए कि आपको कैसा महसूस होगा जब आपको यह पता चला कि जो रत्न आपने अपनी मेहनत की कमाई से खरीदा है वह नकली है? रत्न विज्ञान का ज्ञान होने से किसी भी रत्न को आसानी से पहचाना जा सकता है।

किसी भी उम्र, जाति, लिंग या वर्ग के लोग सरलता से इसे सीखकर अपना व्यवसाय कर सकते हैं और किसी रत्न विशेष या फिर शिक्षक या रत्न मूल्यांकनकर्ता के रूप में काम कर सकते हंै। रत्न विज्ञान क्या है? रत्नों के भौतिक, रासायनिक तथा प्रकाशकीय गुणों के ज्ञान को हम रत्न विज्ञान कहते हैं। हर रत्न के कुछ भौतिक, रासायनिक तथा प्रकाशकीय स्वाभाविक तथा निश्चित गुण होते हैं। किसी रत्न के इन गुणों को जान कर ही हम किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं और यह ज्ञात कर सकते हैं कि यह रत्न कौन सा है। इसे सीखना अत्यंत आसान एवं आवश्यक है। रत्न विज्ञान अगर सही जगह सही रूप से सीखा जाए तो अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

किसी रत्न के भौतिक, रासायनिक तथा आकाशीय गुणों को जानने के लिए रत्न विशेषज्ञ रत्न प्रयोगशाला में विभिन्न यंत्रों पर उसकी जांच करते हैं रत्न प्रयोगशाला में प्रयुक्त होने वाले कुछ यंत्र इस प्रकार हैं। Microscope, Dichroscope, Immersionscope, S G, Hardness plate, Pencils, Periscope, Spectroscope, Refractometer, UV Lamp तथा कई अन्य। Microscope : Microscope में रत्न में महीन से महीन चीजों को बड़ा कर आसानी से देख सकते हैं जिन्हें हम नंगी आंखों से नहीं देख पाते। Microscope से किसी रत्न को देख कर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि वह संसाधित तो नहीं है।

कुछ रत्नों को देख कर रत्न विशेषज्ञ यह अंदाजा भी लगा सकते हैं कि वे असली हैं या नकली (Synthetic)। Immersionscope : Immersionscope भी एक तरह का Miscroscope ही है। इससे हम कुछ खास चीजों को देखते हैं जिन्हें Miscroscope से अच्छी तरह नहीं देख पाते। SG : SG अर्थात Spacious Gravity (घनत्व)। हर वस्तु की एक निर्धारित SG होती है। SG कोई यंत्र नहीं बल्कि एक भौतिक गुण है। किसी रत्न की SG जान कर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि वह कौन सा रत्न है। Hardness Pencils/ Plate : Hardness (कठोरता) एक भौतिक गुण है। Hardness को हम 1-10 तक के मापक पर मापते हैं। हर रत्न की अपनी एक Hardness संख्य होती है जैसे हीरे की 10।

कम Hardness का रत्न ज्यादा Hardness वाले रत्न को नहीं खरोंच पाता। इसी गुण को ध्यान में रखते हुए हम अंदाजा लगा सकते हैं कि यह रत्न कौन सा है। जैसे कि हीरे को हीरा ही खरांेच सकता है। यदि हम इसे किसी अन्य रत्न से खरोंचें तो इस पर खरोंच नहीं आ पाती। यदि खरोंच आ जाती है तो इसका मतलब है कि यह हीरा नहीं है। Polariscope : Palariscipe से हम यह पता लगाते हैं कि कोई रत्न Singly Refractive (SR) है या Doubly Refractive (DR)। Dichroscope : Dichroscope में दिखने वाले रंगों की संख्या जान कर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि कौन सा रत्न ैत् है तथा कौन सा क्त् ।

Spectroscope : कोई रंग हमें तब दिखता है जब कोई वस्तु उस पर पड़ने वाले प्रकाश में से उस रंग को छोड़ कर बाकी सभी रंगों को बाहर परावर्तित कर देती है। Spectroscope इसी सिद्धांत पर काम करता है रत्न जिन रंगों को अवशोषित करता है। Spectroscope उन्हें Wavelength Scale पर दर्शा देता है। Refractometer : Refractometer किसी भी रत्न के प्रकाश से उसकी परावर्तित करने की निर्धारित मापक क्षमता को अपने पैमाने पर दर्शाता है। कोई रत्न विशेषज्ञ किसी रत्न की पहचान न केवल एक बल्कि कई यंत्रों के परिणामों को ध्यान में रखकर ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है। उपरोक्त मंत्रों को प्रयोग में लाते हुए विभिन्न रत्नों की कैसे पहचान हो सकती हैं- पढ़िए अगले लेख में। -क्रमशः



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