सटीक जन्म समय का निर्धारण
सटीक जन्म समय का निर्धारण

सटीक जन्म समय का निर्धारण  

बी. पी. विश्वकर्मा
व्यूस : 33352 | जुलाई 2011

भारतीय ज्योतिष में जन्मकुंडली निर्माण में सही समय का होना परम आवश्यक है। परंतु यह विषय हमेशा से ही विवादित रहा है। शिशु जन्म के विभिन्न चरणों में से योनि द्वार का मुख खुलने से लेकर शिशु की नाल काटे जाने तक कौन से चरण को जन्म समय का सही समय माना जाना चाहिए। आइए जानें इस लेख में.. भारतीय ज्योतिष में जन्म कुंडली के निर्माण का मुख्य दायित्व शिशु के सही जन्म का समय है। शिशु का जन्म समय किस क्षण को लेना चाहिए यह हमेशा से विवादित रहा है। सामान्यतः जन्म समय नोट करने के निम्न क्षण का उल्लेख शास्त्रों में उपलब्ध है, किंतु इनमें से कौन सा जन्म समय सटीक है प्रयोगात्मक दृष्टि से स्पष्ट करना इस लेख का उद्देश्य है।

प्रचलन में जन्म समय नोट करने के निम्नलिखित नियम शास्त्रों में उपलब्ध हैः नियम

1: माता के योनिद्वार पर शिशु का सिर (या पैर) दिखना प्रारंभ होने का समय नियम

2: योनिद्वार से शिशु का पूर्णतः बाहर हो जाने का समय नियम

3: शिशु का जमीन पर गिरने का समय नियम

4: प्रथम बार सांस लेने या रोने का समय नियम

5: शिशु के नाल काटने का समय उपरोक्त में से सही जन्म समय चुनने के लिए उत्तरकालामृत ग्रंथ में सटीक जन्म समय के निर्धारण की तीन विधियां उल्लेखित है:

सटीक जन्म समय निर्धारण की तीन विधियों में से प्रथम विधि द्वारा उपरोक्त में से सही जन्म समय निर्धारण की पुष्टीकरण निम्नानुसार है-

प्रथम विधि उत्तर कालामृत के प्रथम कांड ‘जन्मकाल लक्षण खंड’ की कंडिका

1(क)- ‘नक्षत्र शुद्धि’, प्रकरण के अनुसार ‘इष्टकाल की घटियों तथा पलों को अर्थात् जन्म समय और स्थानीय सूर्योदय के समय के अंतर के घंटा, मिनट, सेकंड को विघटी (1 घंटा में 2.5 घटी एवं 1 घटी में 60 विघटी अर्थात् 1 घंटा में 150 विघटी) में परिवर्तित कर 4 से गुणा कर 9 से भाग दे, तो जो शेष फल बचेगा उस संख्या के नक्षत्र समूह में जन्म होता है।


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नक्षत्र समूह इस प्रकार है। संख्या नक्षत्र समूह

01 अश्विनी मघा मूल

02 भरणी पू.फा. पू.षा.

03 कृत्तिका उ.फा. उ.षा

04 रोहिणी हस्त श्रवण

05 गृगशिरा चित्रा धनिष्ठा

06 आद्र्रा स्वाती शतभिषा

07 पुनर्वसु विशाखा पू.भा.

08 पुष्य अनुराधा उ.भा.

09 आश्लेषा ज्येष्ठा रेवती इस विधि को एक उदाहरण से समझा जा सकता है।

कोरबा, छ.ग. में दिनांक 23 जुलाई 2010 को सूर्योदय प्रातः 5.30.09 बजे होता है। इस दिन डाॅ. बंछोर के प्रसूति गृह में एक बालक का जनम प्रातः 10.20 बजे प्रारंभ होता है। प्रतः 10.25 बजे बालक माता के शरीर से पूर्णतः अलग हो जाता है। 10.26 बजे बालक सांस लेकर रोता है। 10.30 बजे उसकी नाल काटी जाती है।

इस दिन चंद्रमा मूल नक्षत्र से संचरित हो रहे थे। समयांतर

(1) जन्म प्रारंभ होने के समय एवं स्थानीय सूर्योदय के समय का अंतर 10-20-0 घंटा 05-28-09 घंटा ---------- 04-51-51 घंटा सन्निकट मान - 4 घंटा 52 मिनट समयांतर (2) जन्म के अंत का समय और स्थानीय सूर्योदय के समय का अंतर = 4 घंटा 57 मिनट समयांतर (4) सांस लेने या रोने के समय और स्थानीय सूर्योदय के समय का अंतर = 4 घंटा 58 मिनट समयांतर (5) नाल काटने के समय और स्थानीय सूर्योदय के समय का अंतर = 5 घंटा 2 मिनट जन्म समय के नियम (3) को आधुनिक युग में अप्रसांगिक होने के कारण त्याग दिया गया है। समयांतर (1) को घटी में बदलने पर समयांतर = 4 ग (52/60 घंटा) 2.5 घटी विघटी में बदलने पर समयांतर = (292/60 घंटा) ग 25 ग .60 विघटी = (292/60 घंटा) ग 150 विघटी 4 से गुणा करने पर समयांतर = 292/60ग 150ग 4 = 292/60ग 600 = 2920 9 से भाग देने पर = भागफल 324 एवं शेषफल 4 बचता है।


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शेषफल 4 का नक्षत्र समूह रोहणी, हस्त, श्रवण है, जो कि जन्म नक्षत्र ‘मूल’ से मेल नहीं खाता। समयांतर (2) को विघटी में बदलकर 4 से गुणा करने और 9 से भाग देने पर = (4 घंटा 57 मिनट ग 150ग 4) ध् 9 = (4 ग57 ध् 60 घंटा) ग 600 घटी = 2970/9 भागफल 330 शेषफल 0 अर्थात् 9 शेषफल 9 का नक्षत्र समूह आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती है। जो कि जन्म नक्षत्र मूल को इंगित नहीं करता है। इसी प्रकार समयांतर (4) को विघटी में बदलकर 4 से गुणा करने और 9 से भाग देने पर भागफल 331 एवं शेषफल 01 बचता है। शेषफल 1 का नक्षत्र समूह अश्वनी, मघा, मूल है, जो कि जन्म नक्षत्र मूल के समूह का है।

इसीप्रकार समयांतर (5) को विघटी में बदलकर 4 से गुणा करने और 9 से भाग देने पर भागफल 335 एवं शेषफल 5 हैं। शेषफल 5 का नक्षत्र समूह मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा है। जो कि जन्म नक्षत्र ‘मूल’ के समूंह का नहीं है। अतः जन्म समय नोट करने के चारों नियमों में शिशु के सांस लेने या रोने का समय ही सटीक जन्म समय है। इस नियम की व्यापक पैमाने पर पुष्टि के लिए बृहद समयांतर के लिए गणना कर वास्तविक स्थिति प्राप्त की गई। कोरबा के विभिन्न अस्पतालों, प्रसूति गृहों में जन्म लेने वाले 100 शिशुओं के उपरोक्त चार प्रकार से जन्म समय को नर्स/दाई/डाॅक्टर के सहयोग से नोट कराया गया। इन सांख्यिकीय आंकड़ों से निष्कर्ष प्राप्त हुए। नियम (1) जन्म प्रारंभ होने के समय के सही होने की पुष्टि = 11ः होती है। जन्म प्रारंभ होने के समय के सही होने के निकट का समय (दो नक्षत्र समूह तक निकट माना गया है) = 38ः प्राप्त हुआ कुल = 49ः नियम (2) जन्म के अंत के समय के सही होने की पुष्टि = 13ः होती है। निकट का समय = 38ः प्राप्त हुआ। कुल = 56ः नियम (4) प्रथम बार सांस लेने या रोने के समय के सही होने की पुष्टि = 15ः होती है। निकट का समय = 45ः प्राप्त हुआ। कुल = 60ः नियम (5) नाल काटने के समय के सही होने की पुष्टि = 3ः निकट का समय = 33ः । कुल समय = 36ः जन्म समय के नियम 3 को आधुनिक युग में अप्रसांगिक होने के कारण त्याग दिया गया है। इस प्रकार सर्वाधिक आंकड़ें प्रथम बार सांस लेने या रोने के समय का ही प्राप्त होता है।

अतः यही समय सही जन्म का समय है। नोट: 100 शिशुओं के संपूर्ण चारों जनम समय के दौरान नक्षत्र/नक्षत्र समूह परिवर्तित नहीं हुआ है। जिन जातकों का जन्म पहले हो चुका है और उनका जन्म समय संदिग्ध है तो वे अपने जन्म समय को इस विधि द्वारा निम्नानुसार संशोधित कर ज्ञात कर सकते हैं। मान लो किसी जातक का जनम 9 अगस्त 1955 को बिलासपुर (छ.ग.) (अक्षांश 22.03 उ. और देशांश 82.12 पू) में प्रातः 4 बजकर 54 मिनट में रेवती नक्षत्र में होता है। अतः पिछली तिथि 8 अगस्त 1955 के सूर्योदय 5.37.05 बजे से 9 अगस्त के जनम समय प्रातः 4.54 बजे को घटाने पर समयांतर 23 घंटा 16 मिनट 55 सेकंड प्राप्त होता है। इसे विघटी में बदलने पर जन्म समय एवं स्थानीय सूर्योदय के समय का समयांतर = ((55/60$16)/60$23)ग 2.5ग 60 विघटी = (83815/24) ग 4 = 13969 इसे 9 से भाग देने पर भागफल 1552 एवं शेषफल 1 बचता है जो कि नक्षत्र समूह अश्विनी, मघा, मूूल है। यह जातक का नक्षत्र समूह नहीं है। जातक के नक्षत्र समूह आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती प्राप्त करने के लिए शेषफल 0 या 9 होना चाहिए। इसके लिए संख्या 13969 के स्थान पर 13968 लें। उलटे तरीके से गणना करने पर जन्म समय स्थानीय सूर्योदय का समयांतर 23 घंटे 16 मिनट 48 सेकंड होगा। इसलिए जन्म समय प्रातः 4.54.47 बजे होगा।


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इस नियम से जन्म समय को सेकंड तक संशोधित कर लेने की गंुजाइस है। द्वितीय विधि सटीक जन्म समय निर्धारण की दूसरी विधि प्रस्तुत है। उत्तर कालामृत के प्रथम कांड ‘जन्म काल लग्न खंड’ की कंडिका 1 (ख)-‘स्त्री-पुरुष जन्म शुद्धि’ प्रकरण के अनुसार -जन्म समय और स्थानीय सूर्योदय के समय के अंतर के घंटा, मिनट, सेकंड को विघटी (1 घंटे में 2.5 विघटी एवं 1 घटी में 60 विघटी अर्थात् 1 घंटे में 150 विघटी) में परिवर्तित कर 225 से भाग देने पर यदि शेष 0 से 15 के बीच, 45 और 90 के बीच, 150 और 225 के बीच बचे तो लड़का एवं 15 और 45 के बीच एवं 90 और 150 के बीच लड़की पैदा होती है। मान लो 21 जुलाई 2010 को कोरबा छ.ग. के सूर्योदय का समय 5 बजकर 27 मिनट 19 सेकंड है। इस दिन एक शिशु डाॅ. बंछोर प्रसुति गृह में प्रातः 7.15.19 बजे पैदा होता है। उपरोक्त ज्योतिषीय सिद्धांत से यह पता करना है कि यह लड़का है या लड़की। इसके लिए जन्म समय और स्थानीय सूर्योदय के समय का अंतर लेने पर - समयांतर जन्म समय = 7-07-19 बजे सूर्योदय = 7-07-19 बजे ------------ इसे घटी में बदलने पर - समयांतर = 1 घंटा 40 मिनट ग 2.5 घटी = 1 घंटा 40 मिनट ग 2.5 ग 60 विघटी = 1 (40/60) घंटा ग 150 विघटी = 1 (2/3) घंटा ग 150 विघटी = 5/3 घंटा ग 150 विघटी = 250 विघटी इसे 225 से भाग देने पर भागफल 1 एवं शेषफल 25 बचता है। यह शेषफल 15 और 45 के बीच है।

अतः जन्म लेने वाला शिशु सैद्धांतिक तौर पर कन्या होगी। अस्पतालल से मिली रिपोर्ट के आधार पर यह वास्तव में कन्या ही थी। उपरोक्त विधि के अनुसार जन्म समय और स्थानीय सूर्योदय का समयांतर 0 से 6 मिनट, 1 घंटा 30 मिनट से 1 घंटा 36 मिनट, 3 घंटा से 3 घंटे 6 मिनट आदि हो तो शेषफल 0 से 15 के बीच रहता है। जो पुरूष शिशु वर्ग को इंगित करता है। इस प्रकार यदि जन्म समय और स्थानीय सूर्योदय के समय के अंतर को घंटा, मिनट में समस्त मानों के लिए गणना करें तो निम्न चार्ट प्राप्त होगा। तालिका -1 इस चार्ट का उपयोग करने के लिए मान लो शिशु के जन्म समय और स्थानीय सूर्योदय के समय का अंतर 9 घंटा 40 मिनट है तो, चार्ट 1 के कालम 5 और पंक्ति 7 के अनुसार शिशु कन्या होनी चाहिए। इस सिद्धांत को कोरबा के विभिन्न प्रसूति गृह में उत्पन्न 100 शिशुओं के वास्तविक जन्म समय को लेकर गणना की गई जो तालिका 2 में उल्लेखित है। इस सिद्धांत और अस्पताल से प्राप्त वास्तविक जन्म समय के विश्लेषण से यह ज्ञात किया जा सकता है कि शिशु का जन्म समय किस क्षण को लिया जाए ताकि उसका सटीक जन्म कुंडली निर्माण किया जा सकें और जन्म कुंडली के विश्लेषण में उत्पन्न त्रुटियों को परिष्कृत किया जा सके। 100 शिशुओं के वास्तविक जन्म समय को चार्ट 1 एवं 2 के अनुसार लिया गया, जिसमें अस्पताल की घंड़ी की अशुद्धि सम्मिलित है। जन्म प्रारंभ होने का समय 51 प्रतिशत चार्ट के अनुसार कन्या या बालक को इंगित कर सही जन्म समय होना प्रदर्शित करता है। 58 प्रतिशत जन्म के अंत के समय को सही होना बताता है। 56 प्रतिशत नाल काटने के समय को सही होना एवं 58 प्रतिशत शिशु के रोने या सांस लेने के समय को सही होना प्रदर्शित करता है।


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कुछ शिशुओं के जन्म समय जो उपरोक्त चार्ट के समय के समीप है। वे इस प्रकार है। तालिका -3 चार्ट 1 के अनुसार नियम -1 जन्म प्रारंभ होने के समय के सही होने के आस-पास की जन्म संख्या = 21ः नियम -2 जन्म के अंत के समय के सही होने के आसपास की जन्म संख्या = 13ः नियम -4 सांस लेने/रोने के समय के सही होने के आसपास की जन्म संख्या = 24ः नियम -5 नाल काटने के समय के सही होने के आसपास की जन्म संख्या = 17ः इस प्रकार वास्तविक सही समय और आसपास के समय का योग इस प्रकार है- नियम 1 जन्म प्रारंभ का समय = 51$21=72ः सही है। नियम 2 जन्म अंत का समय = 58$13=71ः सही है। नियम 4 सांस लेने या रोने का समय = 58$24=82ः सही है। नियम 5 नाल काटने का समय= 56$17=73ः सही है। इस प्रकार सांस लेने या रोने का समय चार्ट 1 में दिए गए समयांतराल के सर्वाधिक निकट है। अतः शिशु के सांस लेने या रोने के समय को ही यथार्थ जन्म समय होना पाया जाता है। चार्ट 1 में शेष 0-15 के लिए समय के बीच का अंतर 6 मिनट है अतः इस समयांतर के लिए 2 मिनट की त्रुटि को विधि के समीप माना गया है। इसी प्रकार शेष 15-45 के लिए समय के बीच का अंतर 12 मिनट है इसमें 4 मिनट को समीप माना गया है। शेष 45-90 के लिए समय के बीच का अंतर 18 मिनट है इसमें 6 मिनट को समीप माना गया है। शेष 90-150 के लिए समय के बीच का अंतर 24 मिनट है इसमें 8 मिनट को समीप माना गया है। शेष 150-225 के लिए समय के बीच का अंतर 30 मिनट है इसमें 15 मिनट को समीप माना गया है। तृतीय विधि जन्म समय निर्धारण की तीसरी विधि का श्लिेषण इस प्रकार है-

उत्तर कालामृत के प्रथम कालखंड ‘जन्मकाल लक्षण खंड’ की कंडिका 1(ग)- ‘लग्न शुद्धि’ प्रकरण के अनुसार - मांदि तथा चंद्र की अधिष्ठित राशि को तथा इनकी नवांश राशियों को निकालो। मनुष्य का जन्म मांदि अधिष्ठित तथा चांद्राधिष्ठित राशि में होगा। अथवा इन दो राशियों से सप्तम पंचम तथा नवम राशि वाले लग्न में होगा। यदि दन दो राशियों की अपक्षा मांदि की नवांश राशि अथवा चंद्र की नवांश राशि अधिक बलवान हो तो बली नवांश राशि में अथवा उससे सप्तम, पंचम अथवा नवम में जन्म लग्न होगा। इस सिद्धांत से यदि चारो नियमों में उल्लेखित जन्म समय की सटीकता ज्ञात की जाये तो प्रायोगिक तौर पर अव्यवहारिक है। क्योंकि मांदि या चंद्र अधिष्ठित राशि या उसके नवांश राशि या इनसे 5,7,9 राशि में लगभग सभी बारह राशियां आ जाती है, जो लग्न की राशि में समानता रखती ही है। इसलिए इस विधि से जन्म समय किस नियम से सही है, ज्ञात करना संभव नहीं है। उदाहरण के तौर पर 29 जुलाई 2010 प्रतः 11.27 बजे कोरबा में जन्में शिशु का लग्न तुला है। चंद्र कुंभ राशि में 160 48‘ 25ष् पर है। मांदि सिंह राशि में 100 38‘ 37ष् पर है। कुंभ राशि से 5,7,9 भाव क्रमशः मिथुन, सिंह व तुला राशि है। चंद्र के नवांश राशि मीन से 5,7,9 भाव की राशि कर्क, कन्या व वृश्चिक है। मांदि की राशि से 5,7,9 भाव की राशि धनु, कुंभ तथा मेष है। इसकी नवांश राशि कर्क से उपरोक्त भावों की राशियां क्रमशः वृश्चिक, मकर तथा मीन राशि है।


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इस प्रकार मेष से मीन तक सभी बारह राशियां जन्म समय में प्राप्त हो जाती है। जिसके भीतर लग्न की राशि होनी ही है। अतः इस विधि से जन्म समय की सटीकता ज्ञात करना अव्यवहारिक है। 100 शिशुओं के विभिन्न प्रकार के जन्म समय में यह नियम लागू करने पर लगभग यही स्थिति है। इस लेख को समस्त ज्योतिषियों, दैवज्ञों, डाॅक्टरों, नर्सों, दाइयों को समर्पित कर उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट कराना चाहूंगा कि वे नवजात शिशु का जन्म समय नोट करते समय शिशु के सांस लेने, रोने के समय को ही जन्म समय के रूप में नोट करें। इससे आने वाली पीढ़ी के शुद्ध जन्म कुंडली का निर्माण कर उसके सटीक भविष्यवाणी की रुपरेखा तैयार की जा सकती है और ज्योतिष विद्या का भरपूर लाभ उठाया जा सकता है।



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