भारतीय ज्योतिष विद्या में किसी घटना के समय निर्धारण की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि गणनाकर्ता उलझ कर रह जाता है। पाराशरी, जैमिनी, कृष्णमूर्ति और सामुद्रिक पद्धतियों में काल निर्धारण की भिन्न-भिन्न तकनीकें प्रचलन में हैं। विवाह तिथि संबंधी गणना में इतने सैद्धांतिक विचलन देखे गए हैं कि किसी ज्योतिषी को जातक की विवाह तिथि बताने में नियमों के जाल में उलझना पड़ जाता है। यहां 25 व्यक्तियों की जन्म कुंडलियों में उनकी विवाह तिथियों, जो पहले से ज्ञात हैं, में ज्योतिषीय नियमों को लागू कर देखा जा रहा है कि विवाह तिथि निर्धारण का कौन सा ज्योतिषीय नियम सर्वाधिक अचूक फलदायी है। विवाह तिथि निर्धारण के निम्नलिखित नियम प्रमुख रूप से प्रचलन में हैं।
1.(अ) जातक की जन्म कुंडली के लग्न या लग्नेश और सप्तम भाव या सप्तमेश पर गोचर शनि दृष्टि डाले।
(ब) गोचरस्थ गुरु पंचम भाव या पंचमेश और नवम भाव या नवमेश या शुक्र पर दृष्टि डाले।
(स) विवाह तिथि को गोचरस्थ गुरु का ग्रह स्पष्ट अंशों में जन्म कुंडली के सप्तमेश के ग्रह स्पष्ट के अंश के तुल्य या 6 अंश के अंतर्गत होना चाहिए।
2(अ) गोचरस्थ गुरु वर/वधू की जन्म कुंडली के शुक्र, सप्तम भाव या सप्तमेश से संबंध बनाए।
(ब) वर/वधू की जन्म कुंडली के सप्तम भाव मध्य की नवांश राशि से गोचरस्थ गुरु प्रथम, पंचम, सप्तम या नवम भाव से गुजरे अर्थात इनमें से किसी के साथ गोचर गुरु का दृष्टि या युति संबंध हो।
3 (अ) लग्नेश और सप्तमेश अथवा चंद्र लग्नेश और अष्टमेश अथवा चंद्र और सप्तमेश अथवा लग्नेश और सप्तमेश तथा शुक्र के राशि व अंश को जोड़ें (राशि संख्या 12 से अधिक होने पर 12 घटाएं)। इस योग वाले ग्रह स्पष्ट के तुल्य राशि अंशों से गोचरस्थ गुरु युति करे या उन पर दृष्टि डाले तब विवाह होता है।
4 (अ) नवांश कुंडली का सप्तमेश गोचर में इसी कुंडली के सप्तम भाव से संबंध स्थापित करे, तो विवाह होता है।
(ब) नवांश कुंडली में शुक्र या सप्तमेश जिस राशि में हो उससे पहले या 7वें भाव से गुरु गोचरस्थ हो।
(स) नवांश कुंडली का लग्नेश जन्म कुंडली की जिस राशि में हो उस राशि से गोचर गुरु या गोचर राहु या गोचर चंद्र गुजरे या उस पर दृष्टि डाले तो विवाह होता है।
(द)जातक की जन्म कुंडली के सप्तमेश के द्वारा अधिष्ठित नवांश राशि के स्वामी की दशा में विवाह होता है।
(इ) जन्म कुंडली का सप्तमेश जन्म कुंडली की जिस राशि में हो या नवांश कुंडली की जिस राशि में हो उन दोनों के स्वामी ग्रहों में जो बली ग्रह हो उसकी दशा/अंतर्दशा में उस बली ग्रह से संबंध बनाने वाले जन्म कुंडली के ग्रह की दशा/अंतर्दशा में जब गोचर गुरु सप्तमेश स्थित राशि में से भ्रमण करता हो तब विवाह होता है।
5. जन्म कुंडली का सप्तमेश गोचर में जन्म कुंडली के एकादश भाव से गुजरे या उस पर दृष्टि डाले, तो विवाह होता है। यदि सप्तमेश सूर्य अथवा चंद्र हो, तो यह नियम लागू नहीं होता।
6 (अ) जन्म कुंडली के सप्तमेश की दशा में लाभेश की अंतर्दशा होने पर विवाह होता है।
(2) जन्म कुंडली के लाभेश की दशा में सप्तमेश की अंतर्दशा होने पर विवाह होता है।
(ब) सप्तम भाव से या सप्तमेश से संबंध बनाने वाले ग्रह की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।
(स) सप्तमेश या शुक्र के नक्षत्र में स्थित ग्रह की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।
(द) जन्म कुंडली के लग्नेश या सप्तमेश या शुक्र गोचर में सप्तम भाव या सप्तमेश से पहले, तीसरे, पांचवें, नौवें या 11वें भाव से गुजरे तो विवाह होता है।
7(अ) विवाह के दिन जन्म कुंडली के सप्तमेश की प्रत्यंतर्दशा होती है।
(ब) विवाह के दिन सप्तमेश की उच्च या नीच राशि के स्वामी की प्रत्यंतर्दशा होती है। यदि विवाह समय की दशा स्वामी राहु या केतु हो, तो राहु को शनि के समान एवं केतु को मंगल के समान मानें। राहु को कन्या राशि का स्वामी और केतु को मीन राशि का स्वामी मानें। राहु की उच्च राशि मिथुन एवं केतु की धनु है।
8(अ) विवाह के समय जन्म कुंडली के पंचमेश, सप्तमेश, नवमेश या लग्नेश गोचर में परस्पर संबंध स्थापित करता है। (ब)गोचर में विचरण करने वाले अधिकांश ग्रह सप्तम भाव या सप्तमेश या लग्न या लग्नेश के आस-पास होते हैं।
9. विवाह की तिथि के 40 दिन के भीतर जन्म कुंडली के सप्तमेश का गोचर में दृष्टि या युति संबंध लग्नेश, नवमेश और एकादशेश में से किसी एक के साथ अवश्य होगा।
10.जन्म कुंडली के शुक्र और चंद्र में से षडबल में जो बली हो उसकी दशा में या उससे संबंध बनाने वाले ग्रह की दशा में जब गोचर गुरु उससे (बली शुक्र या चंद्र से) संबंध बनाए तब विवाह होता है।
11.जन्म कुंडली का सप्तमेश शुक्र से युत हो, तो सप्तमेश की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।
(2)जन्म कुंडली का द्वितीयेश जिस राशि में हो उसके स्वामी ग्र्रह की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।
(3)सप्तम भाव या सप्तमेश से संबंध बनाने वाले ग्रह की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।
12.जन्म कुंडली का सप्तमेश जिस राशि व अंश में हो, गोचर का गुरु उसके त्रिकोण (1, 5, 9) या सप्तम भाव से उसी अंश से गुजरे, तो विवाह होता है।
13. संपूर्ण भचक्र 3600 में विभाजित है। इसमें 27 नक्षत्र स्थित हैं। प्रत्येक नक्षत्र 360/27=13°20श् के भीतर स्थित है। इस प्रकार अश्विनी नक्षत्र 00 से 13°20श् तक, भरणी नक्षत्र 13°20श् से 26°40श् तक विस्तारित है, इसी प्रकार आगे समझें। अंतिम नक्षत्र 346°40श् से 360°0श् तक सीमित है।
विवाह तिथि निर्धारण के लिए जातक के लग्न की राशि और अंश को अंशों में परिवर्तित कर लें। यह अंश किस नक्षत्र के अंतर्गत स्थित है यह देखें। 9 से अधिक की स्थिति में 9 या 18 घटा दें। जो संख्या बचे वह 9 से कम हो। उसे छक्थ् मानें। लग्न अंश को 3°20श् के अधिकतम गुणज से घटाएं। 3020‘ का गुणज ठत्टड है।
घटाने से बचा अंश गोचर वर्ष मान ;ळटडद्ध है। गोचर वर्ष मान को दिन में बदलें। 1° =108 दिन, 1 कला =1.8 दिन, 1 विकला=0.03 दिन तथा स्टड त्र ठत्टड ़ ळटड (लग्न अंश) विवाह तिथि निम्न सूत्र से तय करें: क्ण्व्ण्डण् त्र क्ण्व्ण्ठ ़2ग्त्टड ़ स्टड ग् छक्थ् ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् ;1द्ध या ;0ध्18ध्27 वर्षद्ध क्ण्व्ण्डण् त्र क्ण्व्ण्ठ ़2ग्त्टड ़ ळटड ग् छक्थ़्ठत्टडण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् ;2द्ध या क्ण्व्ण्डण् त्र क्ण्व्ण्ठ ़2ग्त्टड ़ ळटड ग् छक्थ्ण्ण्ण्ण्........ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् ;3द्ध 14.(अ) महिला के लिए सूत्र = गुरु का शोध्यपिंड ग गुरु के भिन्नाष्टक में गुरु से 7वें भाव के अष्टकवर्ग का अंक 12 (1) जो शेष बचे उस संख्या की राशि में जब गोचर का गुरु होगा, तो विवाह होगा।
(2) 12 के स्थान पर 27 का भाग दिया जाए, तो जो शेष बचे उस नक्षत्र से या उससे पहले, पांचवें, नौवें नक्षत्र से गुरु गोचर करे, तो विवाह होता है।
(ब)पुरुष के लिए: उपर्युक्त सूत्र में गुरु के स्थान पर वर की कुंडली के शुक्र ग्रह को प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। शेष गणना ऊपर वर्णित नियमों के अनुसार ही हो। विवाह तिथि निर्धारण की उपर्युक्त सभी विधियों का प्रयोग तभी करना चाहिए जब जन्म कुंडली में अविवाह योग न हो।
कुछ प्रसिद्ध अविवाह योग इस प्रकार हैं:
(1)सप्तमेश अष्टम भाव में व अष्टमेश सप्तम भाव में स्थित हो।
(2)सप्तमेश वक्री होकर अष्टमस्थ हो।
(3)जन्म कुंडली में शनि वक्री हो, नवांश कुंडली में मंगल लग्नगत हो और दशमांश कुंडली में शुक्र षष्ठस्थ हो, तो विवाह नहीं होता।
(4)सप्तम भाव पर गुरु व शनि का प्रभाव एक साथ हो।
(5)सप्तमेश या सप्तम भाव पर पृथककारी ग्रह सूर्य और राहु का प्रभाव एक साथ हो।
(6)सप्तम भाव/सप्तमेश कालसर्प योग से पीड़ित हो या 5 अंश से कम अथवा 25 अंश से अधिक ग्रह स्पष्ट वाले राहु/केतु से संबंध बनाता हो। जातक की जन्म कुंडली में अविवाह योग न हो, तो विवाह तिथि के निर्धारण के लिए उपर्युक्त नियम लागू किए जा सकते हैं।
ऊपर वर्णित नियम के अनुसार 25 जन्म कुंडलियों में सारे विवाह तिथि निर्धारण नियमों को लागू किया गया, तो उनमें कौन-कौन से नियम कितने प्रतिशत कारगर साबित हुए यह निम्न सारणी से स्पष्ट है। विवाह तिथि 25 जन्मांको में से प्रतिशत निर्धारण का कितने जन्मांको में नियम क्रमांक नियम लागू हुआ
1(अ) (1) 13 में नियम लागू हुआ 52
(2) 13 में नियम लागू हुआ 52
(3) 10 में नियम लागू हुआ 40
(4) 12 में नियम लागू हुआ 48
(ब) (1) 6 में नियम लागू हुआ 24
(2) 12 में नियम लागू हुआ 48
(3) 5 में नियम लागू हुआ 20
(4) 13 में नियम लागू हुआ 52
(5) 11 में नियम लागू हुआ 44 (स) 16 में नियम लागू हुआ 64
2(अ) (1) 7 में नियम लागू हुआ 28
(2) 10 में नियम लागू हुआ 40
(3) 12 में नियम लागू हुआ 48
(ब) 6 में नियम लागू हुआ 24
3(अ) 5 में नियम लागू हुआ 20
(ब) 8 में नियम लागू हुआ 32
(स) 4 में नियम लागू हुआ 16
(द) 5 में नियम लागू हुआ 20
4 (अ) 8 में नियम लागू हुआ 32
(ब) (1) 3 में नियम लागू हुआ 12
(2) 1 में नियम लागू हुआ 4
(स) (1) 1 में नियम लागू हुआ 4
(2) 5 में नियम लागू हुआ 20
(3) 1 में नियम लागू हुआ 4
(द) 4 में नियम लागू हुआ 20
(इ) (1) 7 में नियम लागू हुआ 28
(2) 5 में नियम लागू हुआ 20 5
(1) 1 में नियम लागू हुआ
4 (2) 3 में नियम लागू हुआ 12
6 (अ) (1) 0 में नियम लागू हुआ 0
(2) 3 में नियम लागू हुआ 12
(ब) (1) 14 में नियम लागू हुआ 56
(2) 18 में नियम लागू हुआ 72
(स) (1) 4 में नियम लागू हुआ 16
(2) 7 में नियम लागू हुआ 28
(द) (1) 14 में नियम लागू हुआ 56
(2) 15 में नियम लागू हुआ 60
(3) 3 में नियम लागू हुआ 12
7 (अ) 2 में नियम लागू हुआ
8 (ब) 4 में नियम लागू हुआ 16
8 (अ) 7 में नियम लागू हुआ 28
(ब) (1) 13 में नियम लागू हुआ 52
(2) 13 में नियम लागू हुआ 52 9 (1,2,3) 22 में नियम लागू हुआ 88 10 (1) 3 में नियम लागू हुआ 12
(2) 1 में नियम लागू हुआ 4 11
(1) 5 में नियम लागू हुआ 20
(2) 4 में नियम लागू हुआ 16
(3) 5 में नियम लागू हुआ 20 12 14 में नियम लागू हुआ 56 13 0 में नियम लागू हुआ 0 14
(1) 17 में नियम लागू हुआ 68
(2) 20 में नियम लागू हुआ 80 उपर्युक्त तालिका में प्रदर्शित आंकड़ों का अवलोकन किया जाए कि किस नियम के लागू होने का प्रतिशत सर्वाधिक है। यह गणना निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट है।
विवाह तिथि निर्धारण में नियमों के: क्रम की तालिका क्र. प्रतिशत नियम का क्रमांक सटीक नियमों का क्रम 1 100 2 96 3 92 4 88 9 1 5 84 6 80 14(2) 2 7 76 8 72 6ब(2) 3 9 68 14(1) 4 10 64 1 स 5 11 60 6 द (2) 6 12 56 6ब (1), 6 द, 12 7 13 52 1 अ(1), 1अ(2), 8 1ब(4), 8ब(1), 8ब(2) 14 48 1अ(4), 1ब(2), 2अ(3) 9 15 44 1ब(5) 10 16 40 1अ(3), 2अ(2) 11 17 36 18 32 3ब, 4अ 12 19 28 2अ(1), 4इ(1), 6स(2), 8अ 13 20 24 1ब(1), 2ब 14 21 20 1ब(3), 3अ, 3द, 4स(2), 4इ(2) 15 11(1), 11(3), 4द 22 16 3स, 4द, 6स(1), 7ब, 11(2) 16 23 12 4ब(1), 5(2), 6अ(2), 6द(3) 10(1) 17 24 8 7अ 18 25 4 4ब(2), 4स(1), 4स(3) 5(1), 10(2) 19 26 0 6अ(1), 13 1. नियम 1 के अनुसार (अ) गोचर शनि ने (1) लग्न/लग्नेश को प्रभावित किया 18 जन्मांग में त्र72ः (2) सप्तम/सप्तमेश ष् ष् 15 जन्मांग में त्र60ः (3) लग्न/लग्नेश/सप्तम/सप्तमेशष् ष् 22 जन्मांग में त्र88ः (ब) गोचर गुरु (1) पंचम भाव/पंचमेश ष् ष् 16 जन्मांग में त्र64ः (2) नवम भाव/नवमेश ष् ष् 15 जन्मांग में त्र60ः (3) शुक्र ष् ष् 11 जन्मांग में त्र44ः (4) पंचम भाव/पंचमेश/ नवम भाव/नवमेश/शुक्र ष् ष् 19 जन्मांग में त्र76ः (स) गोचर शनि का लग्न/लग्नेश/सप्तम भाव/सप्तमेश पर एवं गोचर गुरु का पंचम भाव /पंचमेश/नवम भाव/नवमेश और शुक्र का कम से कम एक पर प्रभाव 25 में से 24 जन्म कुंडलियों पर है अर्थात 96ः है। शनि और गुरु के गोचर का प्रभाव देखें। (1) गोचर शनि का जन्म कुंडली के लग्न या लग्नेश पर प्रभाव 72ः तथा सप्तम या सप्तमेश पर 60ः है किंतु लग्न/लग्नेश/सप्तम भाव/सप्तमेश चारों में से किसी एक या अधिक पर प्रभाव 88ः है।
इससे स्पष्ट है कि गोचर शनि का संबंध जन्म कुंडली के इन चारों तथ्यों में से किसी एक या अधिक पर प्रभाव होना चाहिए न कि लग्न/लग्नेश और सप्तम भाव/सप्तमेश पर अलग से प्रभाव हो। इसी प्रकार गोचर गुरु का जन्म कुंडली के पंचम भाव या पंचमेश/नवम भाव या नवमेश या शुक्र में से किसी एक या अधिक पर प्रभाव होने से 76ः विवाह हो जाते हैं। लेकिन गोचर शनि एवं गुरु के संयुक्त प्रभाव को लें तो 25 में से 24 विवाह अर्थात 96ः विवाह होते हैं। अतः विवाह निर्धारण में गोचर शनि का जन्म कुंडली के लग्न/लग्नेश/सप्तम भाव/सप्तमेश तथा गोचर गुरु का पंचम भाव/पंचमेश/नवम भाव/नवमेश / शुक्र इन 9 में से किसी एक या अधिक पर गोचर शनि या गुरु का प्रभाव पड़ने से विवाह होगा।
गोचर शनि एवं गुरु के तत्संबंधी भाव/भावेशों पर पृथक-पृथक प्रभाव पड़ना आवश्यक नहीं है। केवल गोचर शनि का लग्न/लग्नेश तथा सप्तम भाव/सप्तमेश दोनों पर प्रभाव 48ः है तथा केवल गोचर गुरु का पंचम भाव/पंचमेश, नवम भाव/नवमेश तथा शुक्र तीनों पर प्रभाव 56ः है और शनि तथा गुरु का पृथक-पृथक संयुक्त प्रभाव 68ः है। अतः दोनों ग्रहों का पृथक-पृथक प्रभाव विचारणीय है।
2. नियम 6 (ब) की दोनों उपकंडिकाओं को सम्मिलित किया जाए तो सप्तम भाव या सप्तमेश में से एक या दोनों से संबंध बनाने वाले ग्रह की दशा/अंतर्दशा में विवाह होने के आंकड़े 84ः है। अतः सप्तम भाव या सप्तमेश में से किसी एक से भी संबंध बनाने वाले ग्रह की दशा विवाह कराने में सक्षम है।
3. नियम 6 (द) के अनुसार जन्म कुंडली के लग्नेश या सप्तमेश या शुक्र में से कोई एक या अधिक ग्रह गोचर में सप्तम भाव या सप्तमेश में से एक या दोनों में से भाव 1, 3, 5, 9 या 11 में से एक या अधिक भावों से गुजरे, तो विवाह होने की संभावना 88ः होती है।
4. नियम 8(ब) के अनुसार सप्तम भाव या सप्तमेश या लग्न या लग्नेश में से किसी एक या अधिक के आसपास गोचर में विचरण करने वाले अधिकतम ग्रह हों, तो विवाह की संभावना 100ः होती है। अतः लग्न/लग्नेश और सप्तम/सप्तमेश पृथक-पृथक न लें। चारों में से किसी एक तथ्य के आसपास गोचर के अधिकतम ग्रह होने चाहिए।
5. अधिकतम विवाह गोचर के वक्री शनि की स्थिति में हुए हैं।
6. नियम 12 के अनुसार अधिकतम मामलों में गोचर गुरु का 60 के भीतर होने वाला नियम लागू नहीं हो पा रहा है, जबकि अन्य शर्तें सप्तम/सप्तमेश से गोचर गुरु का भाव 1, 5 या 9 से विचरण करने की शर्त पूरी हो रही है।
7. नियम 14 (2) में प्रयुक्त सूत्र के अनुसार शेष बची संख्या में निर्दिष्ट नक्षत्र (अभीष्ट नक्षत्र) से नक्षत्र 1, 5, 9 में गोचर गुरु के आने से विवाह होने का उल्लेख है। व्यवहार में वक्री गुरु की गोचर स्थिति में पिछली राशि के प्रारंभिक नक्षत्र में गुरु के संचरण से विवाह हो रहे हैं। 25 में से कुछ जन्म कुंडलियों में सूत्र के अभीष्ट नक्षत्र संख्या के नक्षत्र से 7वें नक्षत्र के गुरु के गोचरस्थ होने से विवाह हो रहे हैं जबकि नियम नक्षत्र 1, 5, 9 से गुरु के गोचरस्थ होने का है।
कुछ जन्म कुंडलियों में गोचरस्थ गुरु अभीष्ट नक्षत्र से एक या दो नक्षत्र पहले स्थित होकर विवाह करा रहा है किंतु ऐसे सभी मामलों में विवाह के दिन से कुछ दिन पहले ही वक्री गुरु मार्गी हुआ है। कुछ जन्म कुंडलियों में अभीष्ट नक्षत्र के पीछे के नक्षत्र 1, 5, 9 से गुरु के गोचरस्थ होने से विवाह हो रहे हैं जबकि नियम में अभीष्ट नक्षत्र से आगे के या पीछे के नक्षत्रों को लिए जाने का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
अतः अभीष्ट नक्षत्र संख्या से आगे या पीछे के क्रम 1, 5, 9वें के नक्षत्र में गुरु के गोचरस्थ होने से विवाह होने की पुष्टि होती है। उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि किसी जातक की जन्म कुंडली से विवाह तिथि का निर्धारण निम्नलिखित क्रम से करना चाहिए। जन्म कुंडली में अविवाह योग न होने की स्थिति में:
1. सर्वप्रथम नियम(1) लगाकर विवाह की संभावना तलाशंे।
2. दूसरे क्रम में नियम 14 के अनुसार विवाह की तिथि और समय का पता करें। नियम 14(2) अधिक उपयुक्त है। शेष बचे अंक के तुल्य नक्षत्र के क्रम 1, 5, 9 व 7 के आगे और पीछे के नक्षत्रों को देखें।
3. तीसरे क्रम में नियम 6 ब (2) के अनुसार जन्म कुंडली का सप्तमेश नोट करें। सप्तमेश से संबंध बनाने वाले अन्य ग्रहों को तलाशें और उन्हें षड्बल के क्रम में रखें। शेष ग्रहों की दशा/अंतर्दशा का समयांतराल ज्ञात करें। यही समयांतराल विवाह निर्धारण की तिथि को इंगित करेगा।
इसी क्रम में नियम 6 ब (1) के अनुसार जन्म कुंडली के सप्तम भाव से संबंध बनाने वाले सभी ग्रहों को संसूचित करें। इन ग्रहों की दशा/अंतर्दशा के समयांतराल का विश्लेषण करें, इससे विवाह की तिथि और समय का निर्धारण होगा। नियम 6 द (1) व (2) के अनुसार लग्नेश या सप्तमेश का गोचर भ्रमण जन्म कुंडली के सप्तम भाव/सप्तमेश से भाव 1, 3, 5, 9, 11 से हो ऐसे समय का चयन करें। यह समय उपर्युक्त नियमों के परिपालन में सहायक होगा।
4. चैथे क्रम में नियम 8 एवं 9 का विश्लेषण कर घटना की पुष्टि करें।
5. पांचवें क्रम में नियम 2 अ (3) एवं नियम 12 के आधार पर विवाह की तिथि तय करें। इस प्रकार अधिकतम प्रतिशत प्राप्त करने वाले प्रथम 10 नियम से विवाह तिथि सटीक होने की संभावना बढ़ जाती है। शेष नियमों को उतरते प्रतिशत के क्रम में परिकलित विवाह तिथि के पुष्टीकरण हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है। ु