ज्योतिष ग्रंथों में कर्मक्षेत्र के चयन हेतु असंख्य सिद्धांत एवं नियम प्रतिपादित हैं। इन नियमों को किसी जातक की जन्मकुंडली में लागू कर उसके वास्तविक व्यवसाय का निर्धारण कर पाना अत्यंत कठिन एवं दुरूह है। सारे सिद्धांतों को लागू कर लेने के बाद भी उसके कार्य क्षेत्र के प्रति संदिग्धता बनी रहती है। यहां कैरियर निर्माण के कुछ अनुभूत एवं प्रायोगिक ज्योतिषीय तथ्य पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत हैं।
- सर्व प्रथम जातक के बाल्यकाल से ही उसकी जन्मकुंडली द्वारा इंगित विषय की पढ़ाई कैरियर चयन में सहायक होती है।
- जातक की जन्म कुंडली से तय करना चाहिए कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय।
- जातक की 20 से 40 वर्ष की उम्र के बीच की ग्रह दशा का सूक्ष्म अध्ययन कर यह देखना चाहिए कि दशानाथ किस प्रकार के कार्य क्षेत्र का संकेत कर रहा है।
- आगामी दशा या गोचर कार्यक्षेत्र में तरक्की के संकेत दे रहा है या नहीं इसका परीक्षण कर लेना चाहिए। जातक को बचपन से किस विषय की पढ़ाई करवानी चाहिए इसे हम मूलतः चार पाठ्यक्रम के तहत ले सकते हैं।
गणित, जीवविज्ञान, कला, वाणिज्य। गणित: गणित के कारक ग्रह बुध का संबंध यदि जातक के लग्न, लग्नेश या लग्न नक्षत्र से होता है तो वह गणित में सफल होता है। यदि लग्न, लग्नेश या बुध बली एवं शुभ दृष्ट हो, तो उसके गणित में पारंगत होने की संभावना बढ़ जाती है। शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से संबंध बनाएं तो जातक मशीनरी कार्य में दक्ष होता है। इसके अतिरिक्त मंगल और राहु की युति, दशमस्थ बुध एवं सूर्य पर बली मंगल की दृष्टि, बली शनि एवं राहु का संबंध, चंद्र व बुध का संबंध, दशमस्थ राहु एवं षष्ठस्थ युरेनस आदि योग तकनीकी शिक्षा के कारक होते हैं।
जीवविज्ञान: सूर्य का जल राशिस्थ होना, छठे एवं दशम भाव/भावेश के बीच संबंध, सूर्य एवं मंगल का संबंध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई के कारक होते हंै। लग्न/लग्नेश व दशम/दशमेश का संबंध अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती है। कला: पंचम/पंचमेश एवं कारक गुरु का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढ़ाई का कारक होता है।
इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढ़ाई पूरी करवाने में सक्षम होती है। पापी ग्रहों की दृष्टि-युति संबंध कला के क्षेत्र में पढ़ाई में अवरोध उत्पन्न करता है। लग्न व दशम का शनि व राहु से संबंध होने पर राजनीतिक क्षेत्र में सफलता दिलवाता है। 10वें भाव का संबंध सूर्य, मंगल, गुरु या शुक्र से हो तो जातक जज बनता है। वाणिज्य: लग्न/लग्नेश का संबंध बुध के साथ-साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढ़ाई सफलतापूर्वक करता है। पापी ग्रह या त्रिकेश ग्रहों की दशा-अंतर्दशा एवं गोचर के शनि, गुरु व राहु का शुभ/अशुभ प्रभाव संपूर्ण अध्यापन काल में पड़ने पर तदनुसार शुभ अथवा अशुभ फल की प्राप्ति होती है। जन्म कुंडली से यह तय करना चाहिए कि जातक को नौकरी में सफलता मिलेगी या व्यवसाय में। नौकरी के योग:
- यदि षष्ठ भाव सप्तम से बली हो तो नौकरी की संभावना होती है।
- लग्न, सप्तम भाव, चंद्र लग्न एवं धन के कारक गुरु का शुभ ग्रह बुध व शुक्र से संबंध नौकरी का कारक होता है।
- लग्न, लग्नेश, नवम भाव, नवमेश, दशम भाव, दशमेश, एकादश भाव या एकादशेश किसी भी पापी ग्रह से अधिकाधिक प्रभावित हो तो नौकरी की संभावना।
- केंद्र या त्रिकोण में कोई भी शुभ ग्रह न हो।
- यदि जातक की 20 से 40 वर्ष की आयु के दौरान निर्बल योगकारक (पाराशरीय) ग्रह, तृतीयेश, षष्ठेश या एकादशेश की दशा से प्रभावित हो तो नौकरी की संभावना प्रबल होती है।
- यदि जातक का जन्म सूर्यास्त से मध्यरात्रि के बीच हो तथा चंद्र लग्न या दशम भाव व दशमेश का किसी पाराशरीय अयोगकारी, नीच, अस्त या त्रिकस्थ ग्रह अथवा अकारक शनि से संबंध हो तो वह नौकरी करता है।
- जन्म कुंडली में अधिसंख्य ग्रह पृथ्वी तत्व व जल तत्व राशियों में हांे तो नौकरी की संभावना प्रबल होती है। यदि सप्तम भाव षष्ठ से बली हो तो व्यापार करने की संभावना बनती है। व्यवसाय के योग: - कुंडली में एक भी राजयोग हो और जातक की 20 से 40 वर्ष की आयु के बीच उस पर उस योग से संबंधित किसी ग्रह की दशा प्रभावी हो तो वह उच्च स्तरीय व्यापार करता है।
- नवम और दशम तथा द्वितीय और एकादश भावों के बीच संबंध हो तो जातक व्यापार में सफल होता है।
- द्वितीय, पंचम, सप्तम, दशम या एकादश भाव को उसका स्वामी ग्रह देखे या दो केंद्रेशों और दो त्रिकोणेशों का संबंध केंद्र या त्रिकोण में हो अथवा कम से कम दो या तीन ग्रह कहीं भी उच्च या स्वराशि के हों अथवा सूर्य या गुरु केंद्र या त्रिकोण में हो तो जातक व्यापार में सफल होता है।
- यदि जातक का जन्म दिन में हो तथा चंद्र लग्न या दशम भाव पर पाराशरीय योगकारी ग्रह या उच्चस्थ या स्वराशिस्थ या मूल त्रिकोणस्थ या योगकारी शनि की दृष्टि हो या उससे संबंध हो तो जातक व्यापारी होता है।
- जन्म कुंडली में अधिसंख्य ग्रह अग्नि तत्व व वायुतत्व राशियों में विद्यमान हों तो व्यापार की संभावना प्रबल होती है।
जन्म कुंडली से नौकरी करने या व्यापार करने की संभावना को तलाशने के बाद किस वस्तु से संबंधित या किस कार्य क्षेत्र में नौकरी या व्यापार करें जिससे जीवन में सफलता एवं संतुष्टि प्राप्त हो इसे निम्न ज्योतिषीय गणना से तय करना चाहिए। पाराशरीय विधि: सर्वप्रथम जातक की जन्म कुंडली के लग्न एवं नवमांश की सत्यता की जांच कर लेनी चाहिए अन्यथा गलत लग्न व नवमांश से परिकलित कार्य क्षेत्र उपयुक्त नहीं होगा और जातक सही कार्य की तलाश में जीवन भर भटकता रहेगा।
लग्न तय करने के लिए जातक के अंगूठे के निशान, लग्नानुसार जातक की शारीरकि बनावट, लंबाई, भाई-बहनों की संख्या, विवाह तिथि आदि का सहारा लेकर लग्न व नवांश की पुष्टि कर लेनी चाहिए। कृष्णमूर्ति पद्धति के एक प्रसिद्ध नियम का सहारा अवश्य लेना चाहिए जिसमें कहा गया है:
- लग्न भाव के उपस्वामी का जन्म कुंडली के जन्म नक्षत्र से संबंध हो तो लग्न सही है।
- चंद्र का नक्षत्र स्वामी और उपस्वामी दोनों जन्मांग के चंद्र को देखते हों तो लग्न व नवांश सही होते हंै।
लग्न के ग्रह स्पष्ट का सही आकलन ही नवांश आदि वर्ग कुंडली के निर्माण में सही साबित होगा अन्यथा वर्ग कुंडली सही परिणाम देने में समर्थ नहीं होगी। कार्य क्षेत्र तय करने के लिए आजीविका से संबंधित महर्षि पराशर का अचूक एवं अनुभूत ”कर्माजीव प्रकरण“ उत्तम परिणाम देता है।
इस विख्यात पद्धति से कार्य क्षेत्र निम्नानुसार तय करना चाहिए। सर्वप्रथम लग्न, चंद्र लग्न एवं सूर्य लग्न में से कौन बली है यह तय करें। इसके लिए लग्न और चंद्र तथा सूर्य जिस भाव में स्थित हों उन भावों के बल को देखें। तीनों लग्न भावों से जो भाव बली हो उस लग्न भाव से दशम भाव के स्वामी को नोट करें। यह देखें कि दशम भाव का स्वामी नवांश कुंडली में किस राशि के भाव में बैठा है।
राशि स्वामी को नोट करें। इसी ग्रह के अनुसार आजीविका तय होती है। उपरोक्त प्रक्रिया से प्राप्त ग्रह के अनुसार कार्य क्षेत्र निम्नानुसार होगा।
सूर्य: दवाई, केमिस्ट, पैतृक व्यापार, डाॅक्टर, वैद्य, प्रशासन; ऊन, लकड़ी, फर्नीचर, अनाज, फल, मेवा, नारियल आदि से संबंधित कार्य में व्यापार या नौकरी। एरोनाटिक्स, बैंक आदि से संबंधित व्यवसाय। खगोल विज्ञान से संबंधित कार्य, दलाली, शेयर, स्टाक मार्केट संबंधी कार्य, मेटालर्जी का कार्य, दूतावास की नौकरी आदि।
चंद्र: आयात-निर्यात, जल से उत्पन्न वस्तुओं, दूध, दही, घी, पेय पदार्थों से संबंधित व्यापार या नौकरी। कपड़े, धागे से संबंधित कार्य। पानी के जहाज संबंधी कार्य। ड्राइ क्लीनिंग, रत्न संबंधी कार्य। केटरिंग, फूल, सजावट संबंधी कार्य। मशरूम, सुगंधित जलीय पदार्थ, नमक संबंधी कार्य आदि।
मंगल: आइ.ए.एस., पुलिस, फौज, जासूसी आदि से संबंधित साहसिक एवं जोखिम भरे कार्य। ढाबा, होटल, रेस्टोरेंट, फायर ब्रिगेड, ईंट भट्ठा, बिजली, इलेक्ट्राॅनिक, शस्त्र आदि से संबंधित कार्य। शल्य क्रिया संबंधी उपकरण के कार्य, गैराज, मोटर पाटर््स के कार्य, लाल रंग के वस्त्र का व्यापार, चाय-काॅफी से संबंधित कार्य आदि।
बुध: लेखन, प्रकाशन, मुद्रण ज्योतिष आदि से संबंधित व्यापार या नौकरी। अध्यापक, एकाउन्टेट, बैंक कर्मी, आढ़तिया, सेक्रेटरी, पोस्टमैन, टायपिस्ट, चित्रकार, शिल्पकार, संवाददाता आदि की नौकरी या जिल्दसाजी, एस.टी.डी., पी.सी.ओ. आदि का व्यवसाय। सेल्स टैक्स, इन्कम टैक्स, जीवन बीमा, स्टेशनरी या गिफ्ट शाॅप संबंधी कार्य। बरतन, अगरबत्ती, मोमबत्ती, साबुन या पान मसाला संबंधी कार्य। हरे रंग की वस्तु का व्यवसाय। छपाई, रंगाई, कशीदाकारी आदि का कार्य।
गुरु: मंदिर, मठ, देवालय या महल के सलाहकार या मुखिया का कार्य। वेद, पुराण, धर्मग्रंथ या ज्योतिष से संबंधित व्यापार या नौकरी। बैंक, वित्तीय संस्थान, पोस्ट आॅफिस में सेविंग एजेंट का कार्य। कैबिनेट मंत्री, सचिव, आइ.पी.एस. अधिकारी आदि उच्च स्तरीय पद की नौकरी। हाइ कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के वकील या जज की नौकरी। स्टाक, शेयर एक्सचेंज, भवन निर्माण, टेंट हाउस, ट्रैवेल एजेंट, होल सेल संबंधी कार्य राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय स्तर के प्रकाशन का व्यवसाय।
शुक्र: शुक्र यदि नवांशेश हो तो वह द्वारा धन प्राप्ति कराता है। ऐसे जातक को फिल्म या टेलिविजन अभिनेत्री या किसी प्रसिद्ध महिला या महिला राजनीतिज्ञ की कृपा दृष्टि अवश्य प्राप्त करनी चाहिए। इस स्थिति का शुक्र फिल्म, टी.वी., संगीत, सुगंधित वस्तुओं, आभूषणों, रेशमी फैशनेबुल वस्त्रों से संबंधित व्यवसाय या नौकरी करने को प्रेरित करता है।
इन्टीरियर डेकोरेशन, ड्रेस डिजाइनिंग, ब्यूटीपार्लर, फैंसी स्टोर्स, कम्प्यूटर, ट्रेवलिंग ऐजेंसी आदि से संबंधित कार्य। फोटोग्राफी, विडियो पार्लर, माडलिंग, मैरिज ब्यूरो, विदेशी शराब की दुकान, आधुनिक खिलौनों आदि का व्यवसाय। रेलवे, एयर लाइन्स संबंधी व्यापार या नौकरी। वर्निश पेंट, अभ्रक, ग्लास, खूबसूरत भवन सामग्री आदि से संबंधित कार्य।
शनि: लोहा, कोयला, सीमेंट, सीसा, चमड़ा, पेट्रोलियम पदार्थ, खनिज आदि से संबंधित व्यापार या नौकरी। कूकिंग गैस, स्याही, काले रंग की वस्तु, रबर या कबाड़ का कार्य। मजदूरी, ठेकेदारी, चैकीदारी, खेती आदि का कार्य। आर्किटेक्ट, मिस्त्री, घड़ीसाज, रिक्शा चालक, आटोचालक, कुली, चपरासी, माली, हमाल आदि का कार्य।
शनि को कलियुग में पूर्ण स्वामित्व का वरदान मिलने के कारण जिन जातकों की जन्म कुंडली में शनि उच्च, स्वराशि, मूल त्रिकोण आदि प्रबल व शुभ स्थानों में विराजमान व प्रसन्न हो वे बड़े उद्य़ोगपति, राष्ट्राध्यक्ष एवं उच्च स्तरीय व्यक्ति होते हैं, किंतु यही शनि यदि अस्त, त्रिकस्थ, शत्रु क्षेत्री या पाप पीड़ित व कुपित हो तो जातक को निम्न से निम्न स्तरीय जीवन-यापन करने को विवश कर देता है।
भिखारियों को इसी श्रेणी के अंतर्गत लिया जा सकता है। लग्न कुंडली के दशमस्थ ग्रह या दशमेश तथा दशमांश कुंडली (डी-10) के दशमस्थ ग्रह या दशमेश में से जो भी ग्रह बली हो उसके गुण धर्म के अनुसार कार्य का चयन करें।
2. जैमिनि विधि: जन्म कुंडली से सर्वाधिक अंश व कला के बाद दूसरे क्रम के ग्रह, जो अमात्यकारक ग्रह कहलाता है, को नवांश कुंडली में देखें कि वह किस राशि के नवांश में बैठा है। इस नवांश राशि को लग्न मानें। इस कुंडली में लग्नेश या दशमेश जो भी बली हो उसके अनुसार जातक कार्य करता है। बली ग्रह के गुण धर्म संबंधी विचार उपरोक्त पराशरीय विधि से करें।
3. कृष्णमूर्ति पद्धति: कृष्णमूर्ति पद्धति में उन्हीं जातकों के कार्य क्षेत्र की सटीक गणना की जा सकती है, जिनका जन्म समय मिनट व सेकंड तक में सही हो और जन्म समय नोट करने की सही पद्धति को अपनाया गया हो। सटीक जन्म समय के अभाव में कृष्णमूर्ति प्रश्न कुंडली पद्धति के आधार पर किया गया फलादेश आश्चर्यजनक परिणाम देता है।
इसके प्रश्न कत्र्ता से 0 से 249 के बीच कोई एक अंक बोलने को कहें। इस अंक, प्रश्न करने के समय तथा प्रश्न स्थल के अक्षांश और देशांश के आधार पर एक प्रश्न कुंडली का निर्माण करें। ध्यान रखें गणना में केवल के.पी. अयनांश ही प्रयुक्त हो। चित्रपक्षीय अयनांश का प्रयोग गलत परिणाम देगा।
जातक अपने लिए प्रश्न करे तो लग्न को और यदि पति या पत्नी के लिए करे तो सप्तम भाव को लग्न माने। प्रथम संतान के लिए पंचम भाव को, द्वितीय संतान के लिए सप्तम भाव को और तृतीय संतान के लिए नवम भाव को लग्न मानें। इसी प्रकार अन्य संबंधियों के लिए लग्न तय कर लें। निर्धारित लग्न के सापेक्ष दूसरे, छठे, दसवें एवं ग्यारहवें भावों के सभी कारकों को लिखें।
जिस ग्रह की आवृत्ति सर्वाधिक हो अर्थात जो ग्रह इन भावों के लिए कारकरूप में सबसे अधिक बार उपस्थित हो उसके अनुरूप कार्य क्षेत्र चुनें और उस ग्रह के दशा काल के समय कार्य क्षेत्र में प्रवेश करें। कार्य क्षेत्र जन्म स्थान से किस दिशा में होगा इसे तय करने के लिए निम्न विधि अपनाएं।
1. इस विधि के अनुसार चतुर्थ भाव के भाव मध्य अंश को उत्तर दिशा, सप्तम भाव को पश्चिम, दशम भाव को दक्षिण एवं लग्न को पूर्व मानें। अ. लग्न कुंडली में सर्वाधिक ग्रह जिस दिशा में हों उस दिशा को कार्य क्षेत्र चुनें। ब. कुंडली का सर्वाधिक प्रबल ग्रह जिस दिशा में हो उस दिशा का चयन कार्य क्षेत्र हेतु करें। यदि इन दोनों विधियों में अलग-अलग दिशा आती हो तो दोनों दिशाओं के स्वामी ग्रहों में जो बली हो उसकी दिशा का चयन करें।
2. इस विधि में दूसरे, तीसरे और चैथे भावों को उत्तर दिशा, पांचवें, छठे और सातवें भावों को पश्चिम, आठवें, नौवें तथा 10वें भावों को दक्षिण दिशा और 11वें, 12वें, तथा पहले भावों को पूर्व दिशा मानें और देखें कि शुक्र से सप्तम भाव का स्वामी किस भाव में स्थित है। उस भाव की दिशा में कार्य क्षेत्र का चयन उचित होगा।
3. अष्टक वर्ग विधि: अ. मेष, वृष और मिथुन राशियों को पूर्व दिशा, कर्क, सिंह और कन्या को दक्षिण, तुला, वृश्चिक और धनु को पश्चिम तथा मकर, कुंभ और मीन को उत्तर दिशा के अंतर्गत रखा गया है। इन राशियों के अष्टक वर्ग बिंदुओं का योग करने के बाद जिस दिशा में अधिक बिन्दु हों वह दिशा कार्य क्षेत्र के लिए चुनें। ब. दूसरे, तीसरे तथा चैथे भावों को उत्तर दिशा, पांचवें, छठे तथा सातवें भावों को पश्चिम, आठवें, नौवे और 10वें भावों को दक्षिण और 11वें, 12वें तथा पहले भावों को पूर्व दिशा माना गया है। इन भावों के अष्टक वर्ग बिंदुओं का योग करने से जिस दिशा में अधिक बिंदु प्राप्त हों उसी दिशा में कार्य क्षेत्र चुनना चाहिए।
4. कुंडली के दशमेश एवं दशमेश जिस नवांश में हों उसके स्वामियों में जो बली हो उस ग्रह की दिशा में कार्य क्षेत्र का चयन उचित होगा। उपरोक्त चार विधियों में यदि ग्रह अलग-अलग दिशा निर्देशित कर रहे हों तो सर्वाधिक बली ग्रह की दिशा को चुनें, उत्तम परिणाम प्राप्त होंगे।
सामान्यतः भाग्येश अचर राशि में हो तो जन्म स्थान पर एवं चर राशि में हो तो जन्म स्थान से दूर कार्य क्षेत्र बनता है। द्विस्वभाव राशियां दोनों स्थानों को इंगित करती हैं। कार्य क्षेत्र एवं दिशा के चयन के बाद यह देखना चाहिए कि व्यापार या नौकरी कब से प्रारंभ होगी। इस संदर्भ में यहां कुछ नियम प्रस्तुत हैं:-
1. जब गोचर का गुरु जातक की जन्म कुंडली के दशम भाव, दशमेश, सप्तम या सप्तमेश को उतने ही अंश में गोचर से देखता है जितने अंश में वह जन्म कुंडली में स्थित है तो जातक को कार्य क्षेत्र से अवश्य जोड़ता है बशर्ते शनि एवं राहु में से एक अथवा दोनों अशुभ गोचरस्थ न हों।
2. लग्न व दशम भाव से संबंधित ग्रह की दशा हो और संबंधित ग्रह गोचर में समान अंशादि से इन्हीं भावों को प्रभावित कर रहा हो तो कार्य क्षेत्र में प्रगति होती है।
4. उस राशि की चर दशा हो जिसे अमात्यकारक ग्रह देख रहा हो (ध्यान रहे ग्रहों की जैमिनि दृष्टि पाराशरीय ग्रहों की दृष्टि से भिन्न है) तो उस राशि की चर दशा के दौरान कार्य क्षेत्र में प्रवेश अवश्य होता है।
5. लग्नेश व दशमेश अथवा इनसे संबंध रखने वाले प्रबल ग्रह की विंशोत्तरी दशा कार्य क्षेत्र में प्रवेश में सहायक होती है।
6. जन्म कुंडली के चंद्र लग्न से गोचर शनि की तृतीय, षष्ठ या एकादश में स्थिति कार्य क्षेत्र में लाभ देती है। इस प्रकार पाठ्यक्रम चयन से युवावस्था में धन अर्जन के क्षेत्र तक की संपूर्ण चयन प्रक्रिया को ज्योतिषीय आईने में उतारा जा सकता है और सफल कैरियर का चयन बिना तनाव के सुगमतापूर्वक किया जा सकता है। उपर्युक्त तथ्यों की पुष्टि के लिए यहां कुछ जन्मकुंडलियों का विश्लेषण प्रस्तुत है:
1. डा. मनमोहन सिंह (प्रधान मंत्री भारत सरकार) अध्यापन: स्वराशिस्थ पंचमेश शनि पर अनेक ग्रहों की दृष्टियां विभिन्न विषयों पर डाक्टरेट स्तर की डिग्रियां दिलवाने तथा उच्च स्तरीय शैक्षणिक ज्ञान प्रदान करने में सफल रहीं। कार्य क्षेत्र:
1. चलित कुंडली में लग्नेश शुक्र का संबंध बुध से होने पर अर्थ व्यवस्था के क्षेत्र में कुशाग्र बुद्धि प्रदान करता है।
2. लग्न, लग्नेश, दशम एवं दशमेश पर शनि एवं राहु की दृष्टि प्रबल राजनीतिक योग बनाती है। इसके अतिरिक्त नीचभंग, गोपकुलोत्पन्न, गजकेसरी आदि उच्च स्तरीय राजयोगों के कारण उन्हें प्रधानमंत्री का पद प्राप्त हुआ।
कार्य क्षेत्र में प्रवेश: 22 मई, 2005 को संध्या 4ः35 बजे शपथ ग्रहण के समय गोचर बली गुरु कन्या राशि में स्थित होकर पिछले भाव से कुंडली के सप्तम भाव (दशम से दशम भाव) को 150 (जन्म कुंडली में गुरु 17 अंश पर है) से देख रहा है।
महादशानाथ व प्रत्यंतर्दशानाथ राहु कुंडली के षष्ठ भाव से 280 पर (कुंडली में राहु 240 पर है) गोचरस्थ होकर शुभ संकेत दे रहा है।
2. ऐश्वर्य राय (अभिनेत्री): पंचम भाव पर शुक्र युक्त राहु की दृष्टि सौन्दर्य प्रतियोगिता में सफलता एवं फिल्मी कैरियर में लाभ पहुंचाती है। गुरु और सूर्य का नीचभंग राजयोग तथा पंचमेश मंगल का स्वराशिस्थ होना दोनों विश्वस्तरीय प्रसिद्धि दिलवाने में सहायक हुए। कार्य क्षेत्र की दिशा:
1. अष्टक वर्ग के इस विषय की कंडिका (3) का प्रयोग करने पर पूर्व दिशा को 84 अंक, दक्षिण को 81 अंक पश्चिम को 88 अंक एवं उत्तर दिशा को 84 अंक प्राप्त होते हंै। पश्चिम दिशा के सर्वाधिक अंक जन्म स्थान से मुंबई की ओर कार्य क्षेत्र में सफलता का संकेत देते हैं।
श्री भंडारे (एडिशनल सेशन जज):
अध्यापन: पंचमेश मंगल राहु से एवं कारक ग्रह गुरु केतु से पीड़ित है। यह स्थिति कला संकाय में अध्ययन का कारक होती है। मंगल के पंचम भाव पर मंगल की ही दृष्टि ने अवरोधहीन शिक्षा प्रदान की। कार्य क्षेत्र: दूसरे भाव का स्वमी सूर्य, छठे भाव का स्वामी गुरु एवं 10वें भाव का स्वामी मंगल है। मंगल-गुरु एक दूसरे से दृष्ट हैं।
गुरु शनि के नक्षत्र में है और शनि की दृष्टि शुक्र पर है। चलित कुंडली में शनि की दृष्टि सूर्य व बुध पर है। इस प्रकार दूसरे, छठे और 10वें भाव का सूर्य, मंगल, गुरु या शुक्र से संबंध न्यायाधीश होने का संकेत देता है।
4. आर. एस. विश्वकर्मा (आइ. ए. एस. अधिकारी): अध्यापन: पंचमेश शुक्र की पंचम भाव पर दृष्टि और लग्न में बुध का बुधादित्य योग दोनों तेजी एवं संपूर्ण शिक्षा की ओर इंगित करते हैं। मई, 1976 से मई, 1993 तक तुला राशि के लग्नेश शनि की महादशा दशम स्थान (कार्य क्षेत्र) को प्रबल बना रहा है। यह दशा जातक के स्वर्णिम आयु काल 20 से 40 वर्ष के बीच प्राप्त होना ईश्वरीय वरदान है।
कार्य क्षेत्र: केंद्र का सूर्य या गुरु प्रशासनिक क्षमता प्रदान करता है। दशमस्थ तुला राशि का शनि उच्च स्तरीय कार्य का संकेत देता है। लग्न एवं सूर्य लग्न का भाव बल क्रम छठा एवं चंद्र लग्न का भाव बल क्रम 10वां है, अतः प्रबल लग्न व सूर्य लग्न से दशमेश शुक्र नवांश कुंडली में वृश्चिक राशि में स्थित है।
मंगल सेना, फौज या प्रशासनिक कार्य की ओर इंगित करता है। इसी प्रकार अमात्यकारक बुध नवांश कुंडली में मिथुन राशि में स्थित है। मिथुन राशि को कारकांश कुंडली का लग्न मानने पर दशम भाव मीन राशि का होता है, जिसका स्वामी गुरु ईमानदार आइ.ए.एस. अधिकारी बनने का संकेत देता है। गुरु, शुक्र एवं मंगल जल तत्व राशि में तथा सूर्य व बुध पृथ्वी तत्व राशि में स्थित हैं। इस प्रकार इन राशियों में 5 ग्रह एवं अग्नि व वायु तत्व में केवल 4 ग्रह होने के कारण नौकरी करने का योग बनता है।
कार्य क्षेत्र की दिशा: जन्म कुंडली की दक्षिण पूर्व दिशा का बोध कराने वाले भावों में अधिसंख्य ग्रह स्थित हैं, अतः जन्म स्थान गाडरवारा (म.प्र.) से दक्षिण पूर्व दिशा रायपुर (छ.ग.) के इर्दगिर्द का क्षेत्र इनका कार्य क्षेत्र हुआ। भाग्येश बुध चर राशि मकर में स्थित है, अतः स्थानांतरण की संभावना बनी रहती है।
5. सी.पी.वैद्य (महाप्रबंधक बालको) अध्यापन: पंचमेश गुरु की दृष्टि पंचम भाव पर है। गुरु योगकारी मंगल के नक्षत्र में है। गुरु पर कोई भी पाप प्रभाव नहीं है। अतः इन्हें शिक्षा प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। शनि की मंगल के नक्षत्र में स्थिति ने तकनीकी क्षेत्र में निपुणता और बी.ई. की डिग्री दिलवाई। कार्य क्षेत्र: राहु की लग्नेश सूर्य पर दृष्टि एवं षष्ठ भाव में स्थिति ने अनेक प्रतियोगिताओं में सफलता दिलाई। उन्होंने अनेक सार्वजनिक संस्थानों में प्रबंधक के पद पर कार्य किया।
पदोन्नति: 22 नवंबर, 2004 को कन्या राशि में गोचर का गुरु दशम भाव को प्रभावित कर रहा है। साथ ही राहु की महादशा में गोचर का राहु 80 पर (जन्मांग में राहु 8 अंश पर है) मेष राशि से दशमेश शुक्र एवं लग्न को देख रहा है। अंतर्दशानाथ सूर्य चतुर्थ भाव से 60 से गोचर कर दशम भाव को प्रभावित कर रहा है। इसी प्रकार अधिसंख्य ग्रह कुंडली के ग्रह स्पष्ट के तुल्य अंश से गोचरस्थ हो रहे हैं। 22 नवंबर, 2004 को चंद्र 150 पर, मंगल 130 पर, बुध 280 पर, शुक्र 60 पर, शनि 30 पर तथा राहु व केतु 80 पर (जन्म कुंडली के तुल्य अंश) गोचर कर रहे हैं। अतः 22 नवंबर, 2004 को इनकी पदोन्नति हुई।
6. राहुल बजाज (उद्योगपति): लग्न एवं सूर्य लग्न की तुलना में चंद्र लग्न अधिक बली है। चंद्र लग्न से दशम भाव का स्वामी चंद्र नवांश कुंडली में मेष राशि में स्थित है। मेष राशि का स्वामी मंगल अग्नि प्रधान वस्तुओं के व्यवसाय का संकेत देता है। श्री राहुल बजाज इलेक्ट्रानिक्स एवं विद्युत उपकरणों के उत्पादन में विश्वविख्यात हैं।
7. लखन लाल देवांगन (महापौर कोरबा, छ.ग.) लखन लाल देवांगन का जन्म 23.01.1963 को संध्या 18ः00 बजे कोरबा, छत्तीसगढ़ में हुआ।
1. अध्यापन: पंचमेश मंगल एवं पंचम भाव 60 के राहु,जो इस कुंडली के अति पापी ग्रह शनि के नक्षत्र में स्थित है, से दृष्ट हैं। इसलिए 1980 में शुक्र की महादशा एवं बुध की अंतर्दशा में उन्हें 11वीं कक्षा के बाद पढ़ाई बंद करनी पड़ी। पंचमस्थ शुक्र मंगल युक्त राहु से दृष्ट है एवं कुंडली का अकारक ग्रह है। बुध अस्त है, शनि व राहु से पीड़ित है तथा पंचमेश मंगल को प्रभावित कर रहा है।
2. कार्य क्षेत्र: अ. लग्न व दशम भाव पर राहु एवं शनि का प्रभाव है जिसके कारण उन्होंने राजनीति का क्षेत्र अपनाया। ब. मंगल का नीच भंग राजयोग है, शनि स्वराशिस्थ और षष्ठेश गुरु अष्टमस्थ है। यह सारी स्थिति शुभ है।
4. कार्य क्षेत्र में प्रवेश का समय: कर्क लग्न के अति योगकारी ग्रह मंगल की महादशा एवं चंद्र की अंतर्दशा ने दिसंबर, 2004 को नगर निगम का महापौर बनाया।