संहिता ज्योतिष में भूकम्प-मीमांसा
संहिता ज्योतिष में भूकम्प-मीमांसा

संहिता ज्योतिष में भूकम्प-मीमांसा  

राजीव रंजन
व्यूस : 7461 | जनवरी 2014

‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।’’ वैदिक संस्कृति सर्वदा से ही लोक कल्याण तथा आत्मकल्याण दोनों को ही समान रूप से महत्व देती रही है। वैदिक ऋचाओं में जहां ऋषिगण आत्मकल्याण के लिए देवताओं की स्तुति करते हैं, वहीं समाज, राष्ट्र तथा विश्वकल्याण की भावना से ओत-प्रोत सूक्तों की उपस्थिति उनके सार्वभौमिक कल्याण की उदात्त भावना का सहज ही दिग्दर्शन करा देती है। आज सम्पूर्ण विश्व अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है, जिसके कारण मानव सभ्यता को जन-धन की हानि तो हो ही रही है, साथ ही साथ उसे अपने अस्तित्व पर भी संकट मंडराता हुआ दिख रहा है।


Consult our expert astrologers to learn more about Navratri Poojas and ceremonies


इनमें से अधिकांश समस्याएं तो मनुष्य द्वारा स्वयं ही निर्मित की गई हैं और कुछ समस्याएं प्राकृतिक हैं। दोनों ही प्रकार की समस्याओं के समाधान तथा इनसे मुक्ति हेतु जब भी कोई सार्थक प्रयास किया जाता है, विद्वत् समाज की आशापूर्ण दृष्टि स्वतः ही वैदिक साहित्य की ओर उठ जाती है। वैदिक ऋषियों ने मानवमात्र के कल्याण को अपना परम उद्देश्य मानकर ही ज्योतिष वेदांग की रचना की। ज्योतिष वेदांग कालविधान शास्त्र है और अपने इस वैशिष्ट्य को वह समष्टि तथा व्यष्टि दोनों ही धरातल पर समान रूप से उपयोगी बनाए रखने में समर्थ रहा है। त्रिस्कन्ध ज्योतिषशास्त्र के संहिता स्कन्ध में राष्ट्रविषयक फलादेश को सर्वाधिक महत्व देने की परम्परा रही है। प्राकृतिक आपदाओं ने अत्यन्त प्राचीनकाल से ही मानव सभ्यता को क्षति पहुंचाई है। इन आपदाओं को संहिता ज्योतिष में उत्पात की संज्ञा से अभिहित किया गया है। भूकम्प को भौमुत्पात की श्रेणी में रखा गया है।

भूपूर्वानुमान के सन्दर्भ में इन संहिता ग्रन्थों के सन्दर्भ में अत्यन्त विस्तार से चर्चा की गई है। भूकम्प के कारणों पर विस्तृत चर्चा के बाद इन ग्रन्थों में ऐसी ग्रह स्थितियों को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया गया है, जिसमें भूकम्प आने की सर्वाधिक संभावना रहती है। वैज्ञानिक विकास के इस युग में आज भी भूकम्प का पूर्वानुमान संभव नहीं हो सका है। हजारों वर्ष पूर्व की इन रचनाओं के सहयोग से यदि भूकम्प पूर्वानुमान की दिशा में कुछ भी सहायता मिलती है तो वह मानव मात्र के कल्याण की दिशा में अद्वितीय कदम होगा। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में भूकम्प के कारणों के पौराणिक तथा आधुनिक कारणों के उल्लेख के उपरान्त भूकम्प पूर्वानुमान की आधुनिक विधियों को संकेतित करने के साथ ही संहिता ज्योतिष के ग्रन्थों में उपलब्ध भूकम्पोत्पत्ति से संबंधित ग्रहयोगों का प्रस्तुतिकरण तथा विश्लेषण किया गया है।

प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़, भूकम्प, तूफान, भू-स्खलन, बादलों का फटना, सुनामी, उल्कापात, ज्वालामुखी विस्फोट आदि प्रमुख हैं। इन आपदाओं के कारण प्रतिवर्ष लाखों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं तथा संबंधित राष्ट्र को भीषण आर्थिक क्षति भी झेलनी पड़ती है। आज विज्ञान काफी तरक्की कर चुका है और मुख्यधारा के वैज्ञानिक इन तथ्य को स्वीकार भी करते हैं। उपग्रहों आदि के माध्यम से वे सहज ही मौसम का पूर्वानुमान कर लेते हैं और भीषण बारिश, आंधी-तूफान, चक्रवात आदि से होने वाले व्यापक जान-माल की हानि को काफी सीमा तक कम भी कर लेते हैं। इस सन्दर्भ में भारत में आया विनाशकारी तूफान ‘फैलीन’ तथा अमेरिका का ‘कैटरीना’ चक्रवात ध्यातव्य है। ये दोनों ही आपदाएं काफी विनाशकारी थीं, परन्तु इस सम्बन्ध में पूर्वानुमान होने के कारण स्थानीय प्रशासन तथा वहां की जनता ने इस विभीषिका से होने वाली मौतों की संख्या को काफी कम कर दिया। भूकम्प भी एक इसी प्रकार की आपदा है।

दुनिया भर में हर साल लगभग पांच लाख भूकम्प आते हैं। परन्तु हमें केवल कुछ सौ भूकम्पों की ही सूचना मिल पाती हैं और इनमें से भी कुछ एक भूकम्प ही अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं और व्यापक जान-माल की क्षति करने में समर्थ होते हैं। भूकम्प के कारण (भारतीय मत)- भूकम्पोत्पत्ति से संबंधित अनेक सिद्धान्त पुराणों तथा ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में उपलब्ध हंै, परन्तु इनमें से अधिकांशतः लाक्षणिक हैं। इसी प्रकार आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी भूकम्पोत्पत्ति से सम्बन्धित कई सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इन्हें प्राचीन भारतीय मत तथा आधुनिक मत में वर्गीकृत किया जा सकता है।

Û जल में रहने वाले विशाल शरीरधारी जीवों के भूमि पर आघात के कारण।

Û अष्टदिग्गजों की थकावट तथा शैथिल्य के कारण।

Û वायु के परस्पर टकराहट के कारण उसका प्रभाव भूमि पर भी पड़ता है।

Û आकाश में उड़ने वाले पर्वतों के कारण।

Û भूमि के भार से थक कर जब भगवान शेषनाग निःश्वास करते हैं तो भूकम्प होता है।

Û मनुष्यों में पापों के आधिक्य और अविन्य से ही ये उपद्रव या उत्पात होते हैं। मनुष्यों के इन पापकर्म तथा अविनय से देवगण अप्रसन्न होते हैं तथा इन उत्पातों को उत्पन्न करते हैं। आधुनिक मतः- नवीन वैज्ञानिक शोधों के आधार पर सिद्ध हो गया है कि भूकम्प के कारण कुछ अन्य ही हैं।

इनके अनुसार भूकम्प निम्नलिखित कारणों से होता है- (1) ज्वालामुखी क्रिया ;टवसबंदपब ।बजपअपजलद्ध (2) विवत्र्तनिक कारण ;ज्मबजवदपब त्मंेवदेद्ध (3) समस्थितिक समायोजन ;प्ेवेजंजपब ।करनेजउमदजद्ध (4) स्थानीय कारण ;स्वबंस ब्ंनेमेद्ध (5) भूपटल सिकुड़न ;ब्तनेजंस ैीतपदापदहद्ध (6) प्लेट विवर्तनिकी ;च्संजम.ज्मबजवदपबेद्ध (7) मानवजनित कारक ;।दजीतवचवहमदपब थ्ंबजवतेद्ध ये भूकम्प अपनी तीव्रता के अनुसार ही विनाशकारी प्रभाव उत्पन्न करते हैं। भूकम्पों की तीव्रता रिक्टर स्केल पर मापी जाती है, जिसका आविष्कार 1935 ई. में चाल्र्स रिक्टर महोदय ने किया था। आधुनिक वैज्ञानिक भूकम्प पूर्वानुमान के लिए भूगर्भीय सर्वेक्षण का आश्रय लेते हैं। परन्तु यह विधि संतोषजनक फल देने में सक्षम नहीं है। भूकम्प पूर्वानुमान के क्षेत्र में ज्योतिषशास्त्रीय संभावनाएं- जहां तक ज्योतिष के ग्रन्थों का प्रश्न है इन ग्रन्थों में भूकम्प के कारणों की अपेक्षा भूकम्प के पूर्वानुमान के सम्बन्ध में अधिक चर्चा की गई है। संहिता ज्यातिष के आधार पर भूकम्प का दीर्घकालिक,मध्य कालिक तथा अल्पकालिक पूर्वानुमान संभव है


Expert Vedic astrologers at Future Point could guide you on how to perform Navratri Poojas based on a detailed horoscope analysis


 ग्रहचार अध्यायों में यथा भौमचार, शनिचार, राहुचार, ग्रहणाध्याय आदि में विभिन्न ग्रह स्थितियों की अत्यन्त विस्तृत चर्चा की गई है जो संभावित भूकम्प के द्योतक माने गए हैं। शकुन शास्त्र के विभिन्न ग्रन्थों यथा वसन्तराज शाकुन में भी इस सन्दर्भ में चर्चा की गई है। भूकम्प से पूर्व पशु-पक्षियों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तनों को भी भूकम्प पूर्वानुमान की सहायक सामग्री के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में भूकम्प की गणना उत्पातों में की गई है। ये उत्पात हैं- दिव्य उत्पात, अन्तरिक्ष उत्पात एवं भूमि उत्पात। भूकम्प भौमुत्पात है- उत्पद्यते क्षितौ यच्च स्थावर वाथ जंगमम्। तदेकदेशिकं भौममुत्पातं परिकीर्तितम्।। भूकम्प स्थान को कम्पित कर अपने स्थान से हटा देता है। भूमि कम्पित हो तो भूकम्प कहा जाता है

तथा इसके कारण देश भंग अर्थात् राज्य परिवर्तन अथवा युद्धादि के कारण देश का नाश आदि दुर्योग बनते हैं। इसका कारण-अधर्म, असत्य, नास्तिकता, अभिलोभ मनुष्यों के अनाचार को माना गया है। भूकम्प की गणना दोषों में की गई है। मण्डल नक्षत्र वायव्य मण्डल अश्विनी, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति अग्नि मण्डल पुष्य, विशाखा, भरणी, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, कृतिका, पूर्वा भाद्रपद इन्द्र मण्डल अभिजित, रोहिणी, उत्तराषाढ़ा, ज्येष्ठा, धनिष्ठा, श्रवण, अनुराधा वरूण मण्डल मूल, उत्तरा भाद्रपद, शतभिषा, रेवती, आद्र्रा, अश्लेषा, पूर्वाषाढ़ा भूकम्प पूर्वानुमान की दृष्टि से नक्षत्र चक्र का विभाजन- भूकम्प विज्ञान के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण नक्षत्र चक्र को चार विभागों वायव्य मण्डल, अग्नि मण्डल, इन्द्र मण्डल और वरूण मण्डल में विभाजित किया गया है।

अधोलिखित तालिका इस सम्बन्ध में द्रष्टव्य है- भूकम्प के ज्योतिषशास्त्रीय योग- भूकम्प पूर्वानुमान के सन्दर्भ में संहिता ग्रन्थों में अत्यन्त विस्तार से चर्चा की गई है। इन ग्रन्थों में ऐसी ग्रह स्थितियों को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया गया है, जिसमें भूकम्प आने की सर्वाधिक संभावना रहती है-

Û राहु से मंगल सातवें हो, मंगल से बुध पांचवे हो, चन्द्रमा बुध से चैथे हो अथवा केन्द्र में कहीं भी हो तो भूकम्प योग बनता है।

Û यदि मंगल पूर्वा-फाल्गुनी नक्षत्र में उदय करता है अथवा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में वक्री होता है तथा रोहिणी नक्षत्र में अस्त होता है तो सम्पूर्ण पृथ्वी मण्डल का भ्रमण अथवा भूकम्प होता है।

Û यदि मंगल मघा एवं रोहिणी नक्षत्र के योगतारा का भेदन करता है तो भूकम्प होता है।

Û विजय संवत्सर में भूकम्प के योग बनते हैं।

Û धनु राशि में बृहस्पति के जाने पर भूकम्प आता है।

Û सभी ग्रहों की युति एक ही राशियों में हो।

Û शनि, मंगल तथा राहु केन्द्र, 2/12 या 6/8 में हो।

Û शनि जब मीन राशि में हो तो भी भूकम्प होते हैं।

Û वृष तथा वृश्चिक राशि का भूकम्प से विशेष सम्बन्ध दृष्टिगत होता है। गुरु, शनि, हर्षल तथा नेपच्यून स्थिर राशि में हो, विशेषकर वृष तथा वृश्चिक राशियों में।

Û ग्रहणकालीन राशि से चतुर्थ राशि यदि स्थिर राशि हो और उसमें कोई क्रूर ग्रह अवस्थित हो।

Û गुरु, वृष या वृश्चिक राशि में हों, तथा बुध के साथ युति कर रहा हो अथवा समसप्तम में हो।

Û राहु मंगल से सप्तम में, बुध मंगल से पंचम में, तथा चन्द्रमा बुध से केन्द्र में हो।

Û मन्दगति ग्रह यदि एक दूसरे से केन्द्र, षडाष्टक, अथवा त्रिकोण भावों में हो, अथवा युति सम्बन्ध बना रहा हो।

Û चन्द्रमा तथा बुध की युति हो एवं दूसरे की राशि या क्षेत्र में हो अथवा एक ही ग्रह के नक्षत्र में हों।

Û सूर्य के सतह पर आने वाले ज्वार-भाटीय आवेगों का आधिक्य भी भूकम्प की संभावना उत्पन्न करता है। सूर्य की सतह पर दिखने वाले धब्बों में होने वाले विशिष्ट परिवर्तन भी भूकम्प का संकेत देते हैं।

Û कोई मन्दगति ग्रह वक्री से मार्गी हो रहा हो अथवा मार्गी से वक्री, यह कालावधि भूकम्प की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील मानी गई है।

Û भूकम्प प्रायः ग्रहण के आस-पास, सूर्योदय अथवा सूर्यास्त, अर्द्ध दिवस या अर्द्धरात्रि, पूर्णिमा अथवा अमावस्या के समीपस्थ तिथियों को आता है। शकुनशास्त्र द्वारा भूकम्प का पूर्वानुमान- ज्योतिषशास्त्र की शकुन शाखा के द्वारा भी भूकम्प का पूर्वानुमान किया जा सकता है। प्रायः देखा गया है कि भूकम्प से ठीक पूर्व पक्षियों के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ जाता है। अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील पक्षी यथा-काक, कबूतर, चील आदि का व्यवहार बदल जाता है।

ये समूह में शोर करते हुए उड़ने लगते हैं। कुत्ते तथा गाय आदि भी उच्च स्वर में बोलने लगते हैं। श्वानों का रुदन तथा गौवंश के व्यवहार पर सूक्ष्म दृष्टिपात द्वारा उत्पातों का पूर्वानुमान कर सकते हैं। आधुनिक मुख्य धारा के वैज्ञानिकों ने भी स्वीकर किया है कि जापान के समुद्री तट पर आए सुनामी से ठीक पहले वहां पाए जाने वाले डाल्फिन तथा शार्क मछलियों के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया था। भूकम्प के प्रभाव का विस्तार- प्राचीन मतानुसार शुभाशुभ फल के निमित्त ही वायु, अग्नि, इन्द्र तथा वरुण दिन तथा रात के क्रम से प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ भाग में भूमि को कम्पित करते हैं।

वायव्य मण्डल का भूकम्प दो सौ योजन, अग्निमण्डल का भूकम्प दश योजन, वारुण मण्डल का भूकम्प एक सौ अस्सी योजन तथा ऐन्द्र मण्डल का भूकम्प आठ योजन से अधिक भूमि को कम्पायमान करता है। इन चारों मण्डलों में से किसी भी नक्षत्र में भूकम्प आने की संभावना हो तो सात दिन पूर्व ही कई लक्षण उत्पन्न होते हैं, जिन्हें देखकर भूकम्प का पूर्वानुमान किया जा सकता है। अधोलिखित तालिका इस सम्बन्ध में द्रष्टव्य है- नक्षत्र मण्डल प्रभावित राष्ट्र भूकम्प पूर्व लक्षण वायव्य मण्डल सौराष्ट्र, कुरु, मगध, दशार्ण, मत्स्य देश आकाश में चारों ओर धूम व्याप्त होता है, पृथ्वी से धूलि उड़ती है, वृक्षों को तोड़ती हुई हवा चलती है और सूर्य की किरणें मन्द हो जाती हैं। अग्नि मण्डल अंग, बाह्लीक, तंगण, कलिंग, बंग, द्रविड़, शबर दिग्दाह के साथ तारा तथा उल्का के गिरने से आकाश अग्नियुक्त हो जाता है

तथा वायु की सहायता से अग्नि विचरण करती है। वारूण मण्डल गोनर्द, चेदी, कुकुर, किरात, विदेह समुद्र और नदी के तट पर रहने वालों का नाश, अतिवृष्टि का भय। ऐन्द्र मण्डल काशी, युगन्धर, पौरव, किरात, कीर, अभिसार, हल, मद्र, अर्बुद, सौराष्ट्र, मालव पर्वत के समान शरीर वाले, गम्भीर शब्द युक्त, विद्युत युक्त, महिषशृंग, भ्रमरकुल तथा सर्पों के समान कान्तिवाले मेघ वर्षा करते हैं इन भूकम्पों का पूर्वानुमान आधुनिक वैज्ञानिक विधियों द्वारा सम्भव नहीं है। अतः आवश्यक है कि प्राचीन भारतीय भूकम्प विज्ञान का आश्रय लेकर इसके पूर्वानुमान की दिशा में प्रवृत्त होना चाहिए।


Get the Most Detailed Kundli Report Ever with Brihat Horoscope Predictions




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.