शनि आठवें घर पर शनि का पूरा प्रभाव होता है। तांत्रिक परम्परा में शनि को आध्यात्मिक प्राप्ति का बहुत बड़ा कारक माना गया है। शनि को अंधेरे का कारक माना जाता है। कहा जाता है कि दमयन्ती के आठवें घर में शनि था। उसका पति राजा नल, राजा से रंक बन गया, उसे एक अदना सा इंसान बनकर किसी दूसरे राजा के पास रथ चलाने की नौकरी करनी पड़ी। अंत में जब उसका अहंकार टूट गया तो शनि देव की कृपा हुई तब राजा नल को अपनी पत्नी, बच्चे व राजपाट मिल गया। सो आठवें घर का शनि शादी शुदा जिंदगी में परेशानी लाता है। शनि एक चतुर ग्रह है। कहा जाता है कि रावण ने अपने पुत्र इंद्रजीत के जन्म के समय सभी ग्रहों को बलपूर्वक समय की कुण्डली के एकादश भाव में बिठा दिया। वह चाहता था कि होने वाला बालक जिंदगी से लाभ ही ले। सभी ग्रह सहमे हुए वक्त के ग्याहरवें भाव में बैठे रहे परन्तु शनि ने सबकी नजर बचाकर अपनी एक टांग बारहवें घर में लटका दी यानि हानि अथवा व्यय का घर। इस मिथिहासिक कथा के अनुसार इंद्रजीत ने ग्यारहवें घर में शनि का आधा और सभी ग्रहां का पूरा प्रभाव दोनों के कारण कई जीतें प्राप्त की और अहंकार से भर गया। अंत में अहंकार ही उसकी हार का कारण बना। आठवें घर का शनि इंसान को शराब का आदी भी बनाता है। उपाय - शराब से परहेज करें। - आठ सौ ग्राम साबुत उड़द चलते पानी में बहाएँ। - चांदी का चैकोर टुकड़ा अपने पास रखें। राहु राहु एक शरारती ग्रह है। यह इंसान के मन में जन्म जन्मांतरों की एकत्रित की गई समझ का कारक है। यह बहुत गंभीर चिंतन या गहराई का प्रतीक है। यह दिमाग में अचानक कोई ख्याल पैदा करता है। इसलिए राहु की इष्ट देवी सरस्वती को माना गया है। आठवें घर के राहु के बारे में मुखालिफ बातें कही जाती हैं मसलन ऐसा राहु इंसान को कई तरह के धोखे, भुलावे में डाल सकता है साथ ही यह भी कहा जाता है कि जिसके आठवें घर में राहु हो समय का राजा और विद्वन उसका आदर करते हैं। राहु का जालिम व्यवहार ऐसा है कि इंसान अपना घर बार छोड़कर कहीं चला जाता है और उसका कोई अता-पता नहीं मिलता, न ही घर छोड़ने का कोई कारण मिलता है। आठवें घर का राहु यदि गोचर फल या वर्ष फल के मुताबिक आठवें घर में ही आ जाए तो झगड़ा, अदालत और अचानक दुर्घटना का कारण बन जाता है। उपाय - आठ दिन या इकतालीस दिन लगातार 8 साबुत बादाम किसी ध्र्म स्थान पर चढ़ाकर उनमें से चार बादाम वापिस लाकर घर में रखना बहुत अच्छा उपाय है। इसमें राहु को ध्र्मस्थान में ले जाकर शरारत न करने की कसम दिलाई गई है। - आठ सौ ग्राम सिक्के के आठ टुकड़े काटकर पानी में बहा देने से भी राहु के दुष्प्रभाव को दूर किया जा सकता है। केतु अष्टम भाव में केतु यमराज के पैरों की आहट को पहचान लेने वाला माना जाता है। ऐसे समय में घर का पालतू कुत्ता वफादारी का प्रतीक हो जाता है। बच्चे की पैदाइश के लिए या बच्चे की उम्र के लिए उसका रखवाला बन जाता है? केतु जबा बुरा फल देता है तो घुटने पर या घुटनें के उपर के भाग पर चोट लगती है। ऐसा बार-बार होता है। कुत्ता काटने का डर भी बना रहता है। शरीर में केतु कानों का कारक है। कुण्डली में केतु खराब होने की हालत में कानों में सुराख करके उसके बुरे फल को दूर करना होता है। लाल किताब के मुताबिक कानों में सुराख कर उसे 96 घण्टे तक कायम रखना होता है इसलिए उसमें तीला या धागा डाल दिया जाता है। परन्तु कुछ विद्वानों ने इस उपाय को हमेशा के लिए कायम करके कानों में सोने के कुण्डल पहनना बताया है। उपाय - बृहस्पति की कारक धातु सोना कानों में पहनें। - धर्म स्थल पर काला सफेद कंबल या चादर देना (यदि दूसरे घर में मंगल शनि या सूर्य चन्द्र न हो)।