शौचालय
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शौचालय  

व्यूस : 6145 | जनवरी 2014
प्रश्न- उत्तर-पूर्व एवं उत्तर में शौचालय क्या प्रभाव देता है? उत्तर- ईशान क्षेत्र में बना शौचालय आर्थिक परेशानियां एवं मानसिक रूप से रुग्ण बनाए रखता है। यह पूरी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर डालता है। प्रगति अवरूद्ध हा जाती ह तथा भवन म निवास करने वाले लोग बीमारियों के षिकार हो जाते हैं। ब्राह्मणां एवं बुजुर्गों के सम्मान में कमी, धर्म में कमी, सात्विकता में कमी, तथा धन एवं कोष की कमी बनी रहती है। साथ ही खांसी, अम्लता, बदहजमी, मदंग्नि, लीवर, मधमु हे , तिल्ली एव आतं आदि के रोग होते हैं। प्रश्न- ईशान क्षेत्र में शौचालय होने पर क्या उपाय करना चाहिए ? उत्तर - ईशान क्षेत्र में शौचालय होने पर शौचालय की उत्तरी दीवार पर छत के एकदम नीचे शीशे की 1 फुट चैड़ी पटट् लगाना लाभदायक रहेगा। शौचालय के अंदर समुद्री नमक शीशे के बत्र्तन में शौचालय के अंदर उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व कोने में रखें। यह नकारात्मक ऊर्जा को रोके रखता है। शौचालय और स्नानागार संयुक्त हों और रसोई के साथ हां अर्थात् शौचालय या स्नान-घर में जाने के लिए रसोई घर से गुजरना पड़ता हो तो इस दोष को दूर करने के लिए शौचालय की चैखट के फर्श पर दहलीज की तरफ 4 इंच चैड़ा पीला पेंट कर लें और शौचालय की तरफ वाली दीवार, जो रसोई के साथ है, उस पर नकारात्मक उर्जा को रोकने हेतु तीन हरे पिरामिड लगाएं। ईशान क्षेत्र के शौचालय के दोष को दूर करने के लिए शौचालय के बाहरी दीवार की ओर चित्रानुसार पिरामिड लगाना चाहिए। इससे इसके ऋणात्मक प्रभाव में कमी आएगी। प्रश्न- शौचालय भवन में किस स्थान पर बनाना लाभप्रद होता है? उत्तर-शौचालय भवन के उत्तरी वायव्य एवं पश्चिमी वायव्य की तरफ बनाना चाहिए। दूसरी प्राथमिकता र्नैत्य एवं दक्षिण के मध्य का क्षेत्र है। इस स्थान पर भी शौचालय बनाया जा सकता है। प्रश्न- भवन में शौचालय का सीट एवं कमोड किस तरफ रखना चाहिए? उत्तर-भवन में शौचालय की सीट पश्चिमी वायव्य या दक्षिण में रखें। यथासंभव सीट को उत्तर-दक्षिण अक्ष पर रखें। शौचालय का इस्तेमाल करते समय चेहरा उत्तर या दक्षिण की तरफ होना चाहिए। इसका इस्तेमाल पश्चिम की तरफ मुंह करके भी किया जा सकता है। शौचालय में कमोड का र्नै त्य एवं दक्षिण में होना उत्तम है। कमोड पर बैठते समय चेहरा उत्तर या पूर्व की तरफ रखा जा सकता है। इस तरफ चेहरा कर षौचालय का इस्तेमाल करने से कब्ज, गैस और मस्से की बीमारी नहीं होती। टायलेट सीट भूमि तल से एक या दो फुट ऊंची होनी चाहिए क्योंकि शौचालय का भूमितल शेष भूमि की तल से नीचा रहने पर भवन में निवास करने वाले लोगों की आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक स्थिति अच्छी नहीं रहती है। प्रश्न- भवन में प्रवेश करते शौचालय होने पर क्या फल देता है? उत्तर-घर में प्रवेश करते ही सामने शौचालय होने से शारीरिक एवं मानसिक दृष्टिकोण से अच्छा फल नहीं मिलता। सेहत खराब रहती है। घर में हमेशा कलह की स्थिति बनी रहती है। आपसी सामंजस्य में कमी बनी रहती है। साथ ही घर में वास करने वालों को विशेषतया पेट से संबंधित बीमारियां होती हैं तथा हृदय, फेफड़े एवं छाती में अकस्मात किसी भी तरह का विकार उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। ऐसी स्थिति रहने पर शौचालय के मुख्य द्वार पर 4ग4 का शीशा लगाने से इस दोष में कमी आती है। साथ ही शौचालय की बाहरी दीवार पर दिशाओं के अनुसार पिरामिड लगाना लाभप्रद होता है। पूर्व से भवन में प्रवेश करते शौचालय रहने पर तीन पिरामिड, उत्तर-पूर्व की ओर से रहने पर आठ पिरामिड, उत्तर की ओर से रहने पर एक, उत्तर-पश्चिम से रहने पर छः, पश्चिम से रहने पर सात, दक्षिण-पश्चिम से रहने पर दो, दक्षिण से रहने पर नौ एवं दक्षिण-पूर्व से रहने पर चार पिरामिड शौचालय के बाहरी दीवार पर लगाना चाहिए। इससे बहुत हद तक दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।



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