पंचपक्षी तमिल संतों एवं महर्षियों की ऐसी अलौकिक देन है जिसे दिनानुदिन जीवन के हर क्षेत्र में अपनाकर एक सफल एवं सुखी जीवन का आधार बनाया जा सकता है। इसे मानसिक, भौतिक एवं आध्यात्मिक अर्थात हर क्षेत्र में अपनाकर सफलता की गगनचुंबी ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है। इस पद्धति को इजाद करने वाले महर्षियों का मानना है कि हममें से प्रत्येक का अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार एक पक्षी निर्धारित है और उस पक्षी का हर कृत्य हमारे जीवन में सुखःदुख, सौभाग्य-दुर्भाग्य को नियत करता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पंचपक्षी के अंतर्गत पांच पक्षी आते हैं जिनका विभाजन हमारे जन्म के पक्ष एवं नक्षत्र के आधार पर किया गया है। पंचपक्षी की क्रियाविधि हमारी आत्मा, शरीर जिसमें यह निवास करती है, सोच, अनुभव आदि विभिन्न अनुपात में पांचों तत्वों के स्पन्दन, के परिणाम हैं। यदि इन पांचों तत्वों में आपसी सामंजस्य से यह स्पन्दन होता है तो हमें सुख की अनुभूति होती है तथा हम अच्छा महसूस करते हैं। यदि इन तत्वों में सामंजस्य एवं तारतम्यता की कमी होती है तो हमें दुख एवं तकलीफ का एहसास होता है। पहली स्थिति में सदैव सफलता एवं आनंद का अनुभव होगा तो इसके विपरीत दूसरी स्थिति में हमेशा असफलता एवं कष्ट हमारे हिस्से में आएगा। पंचपक्षी भी इन पांच तात्विक स्पंदन के आधार पर पांच तरीके से शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष में चंद्र के बढ़ते एवं घटते कलाओं के प्रभाव के अनुरूप कार्य करते हैं। इन पांचों तत्वों का स्पन्दन 5 स्तरों में एक निश्चित समयावधि के लिए क्रियाशील रहता है। इस समयावधि को ‘यम’ कहा जाता है तथा 1 यम का मान 6 घटी अर्थात् 2 घंटे 24 मिनट के बराबर होता है। 1 दिन अर्थात् 24 घंटे में कुल 10 यम होेते हैं, 5 दिन में तथा पांच रात्रि में। पक्षियों की क्रियाविधि एवं क्रियाशीलता में पक्ष, तिथि एवं दिवस के आधार पर परिवर्तन आता रहता है। यदि इनमें से कोई एक अपनी उच्च अवस्था में होता है तो दूसरे चार अन्य भिन्न अवस्थाओं में घटते हुए क्रम में होते हैं। अतः इनकी सबसे निम्न अवस्था सुषुप्तावस्था अथवा मृत अवस्था होती है। इन पांचों तात्विक स्पन्दनों को ही पक्षी के रूप में निरूपित किया गया है। इनके पांच स्तरों की क्रियाशीलता को इनके पांच भिन्न कार्यों की संज्ञा दी गई है। इन पांचों पक्षियों का नामकरण इस प्रकार किया गया है- 1. गिद्ध 2. उल्लू 3. कौआ 4. मुर्गा 5. मोर पक्षियों की पांच गतिविधियां इस प्रकार हैं- 1. खाना 2. घूमना 3. शासन करना 4. सोना 5. सुषुप्तावस्था में होना अथवा मरना। प्रत्येक पक्षी इन पांचों गतिविधियों में हर दिन, हर रात, शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष में 5 यम दिन में 5 यम रात्रि में एक निश्चित क्रम से संलग्न रहते हैं। पक्षी का निर्धारण कृष्ण पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष में जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी के आधार पर पक्षी का निर्धारण किया जाता है। नक्षत्रों का समूह पहले पांच का फिर छः का एक के बाद एक बनाते हैं। पक्षियों का जो क्रम दिया गया है, पहले समूह में शुक्ल पक्ष में जन्म होने पर सबसे ऊपर वाला पक्षी यानि गिद्ध आपका जन्म पक्षी होगा किंतु यदि कृष्ण पक्ष में जन्म है तो क्रम में सबसे निचला पक्षी अर्थात् मोर आपका जन्म पक्षी होगा। इसी तरह से क्रम बढ़ता जाएगा। पाठकों की सुविधा के लिए हम यहां जन्म नक्षत्र एवं पंच पक्षी को सारणीबद्ध कर रहे हैं जिससे आप आसानी से अपने जन्मपक्षी का निर्धारण कर सकें। समूह 1 जन्म नक्षत्र शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष अश्विनी गिद्ध मोर भरणी गिद्ध मोर कृत्तिका गिद्ध मोर रोहिणी गिद्ध मोर मृगशिरा गिद्ध मोर समूह 2 जन्म नक्षत्र शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष आद्र्रा उल्लू मुर्गा पुनर्वसु उल्लू मुर्गा पुष्य उल्लू मुर्गा अश्लेषा उल्लू मुर्गा मघा उल्लू मुर्गा पू. फा. उल्लू मुर्गा समूह 3 जन्म नक्षत्र शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष उ.फा. कौआ कौआ हस्त कौआ कौआ चित्रा कौआ कौआ स्वाति कौआ कौआ विशाखा कौआ कौआ समूह 4 जन्म नक्षत्र शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष अनुराधा मुर्गा उल्लू ज्येष्ठा मुर्गा उल्लू मूला मुर्गा उल्लू पू. षा. मुर्गा उल्लू उ. षा. मुर्गा उल्लू श्रवण मुर्गा उल्लू समूह 5 जन्म नक्षत्र शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष धनिष्ठा मोर गिद्ध शतभिषा मोर गिद्ध पू. भा. मोर गिद्ध उ. भा. मोर गिद्ध रेवती मोर गिद्ध सारणी में देखकर आप आसानी से अपने जन्मपक्षी का निर्धारण कर सकते हैं। आगे के लेखों में क्रमवार हम इसकी उपयोगिता एवं तर्कसंगतता पर चर्चा करते रहेंगे। पंच पक्षी के आधार पर अनुकूल समय का चयन कर हर कार्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। इतना ही नहीं वैवाहिक मिलान के लिए भी पंच पक्षी पद्धति अनुकरणीय है। इस पद्धति से भी यदि भावी वर एवं कन्या के बीच सामंजस्य का विचार किया जाता है तो यह काफी प्रभावी साबित हुआ है। सुखी गार्हस्थ्य जीवन में प्रेम का पौधा पुष्पित पल्लवित होता रहे इसके लिए विवाह पूर्व वर एवं कन्या के बीच सामंजस्य की जांच करना आवश्यक है। कुंडली मिलान की अनेक पद्धतियां हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में विद्यमान हैं। दक्षिण भारत में पक्षी वर्ग कूट मिलान भी एक महत्वपूर्ण पद्धति है। आगे के लेख में हम विस्तार से इस विषय पर चर्चा करेंगे।