चर्म रोग के ज्योतिषीय कारण
चर्म रोग के ज्योतिषीय कारण

चर्म रोग के ज्योतिषीय कारण  

व्यूस : 30060 | जनवरी 2014
- शरीर की चमड़ी का कारक बुध होता है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। - कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि से दृष्टि में या युति के साथ होगा तो चर्म रोग होने के पूरे आसार बनेंगे। - रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है. एक ग्रह दूसरे ग्रह को कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं। - रोग सामान्य भी हो सकता है और गंभीर भी। - ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है - यह भी रोग की भीषणता बताता है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है। दूसरा रोग लंबा समय लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है। - मंगल रक्त का कारक है, यदि मंगल किसी भी तरह से पाप ग्रहों से ग्रस्त हो, शत्रु राशिस्थ हो, नीच हो, वक्री हो तो वह रक्त संबंधी रोग पैदा करेगा. मुख्य बात यह है कि यदि मंगल बुध का योग होगा तो किसी भी प्रकार की समस्या अवश्य खड़ी होगी। - इसी प्रकार मंगल शनि का योग खुजली पैदा करता है, खून खराब करता है। लग्नेश से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध होने पर वह अवश्य ही चर्म-रोग का कारण बनता है। यदि यह योग कुंडली में हो किन्तु दशा अच्छी चल रही हो तो हो सकता है कि वह रोग ना हो जब तक उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा पुनः ना आये। - यदि शनि पूर्ण बली हो और मंगल के साथ तृतीय स्थान पर हो तो जातक को खुजली का रोग होता है। - यदि मंगल और केतु छठे या बारहवें स्थान में हो तो चर्म रोग होता है। - यदि मंगल और शनि छठे या बारहवें भाव में हों तो व्रण (फोड़ा) होता है। - यदि मंगल षष्ठेश के साथ हो तो चर्म रोग होता है। - यदि बुध और राहु षष्ठेश और लग्नेश के साथ हो तो चर्म-रोग होता है (एक्जीमा जैसा)। - यदि षष्ठेश पाप ग्रह होकर लग्न, अष्टम या दशम स्थान में बैठा हो तो चर्म-रोग होता है। - यदि षष्ठेश शत्रुगृही, नीच, वक्री अथवा अस्त हो तो चर्म -रोग होता है। - षष्टम भाव में कोई भी ग्रह नीच, शत्रुक्षेत्री, वेक्री अथवा अस्त हो तो भी चर्म रोग होता है। - यदि षष्ठेश पाप ग्रह के साथ हो तथा उस पर लग्नस्थ, अष्टमस्थ दशमस्थ पाप ग्रह की दृष्टि हो तो चर्म रोग होता है। - यदि शनि अष्टमस्थ और मंगल सप्त्मस्थ हो तो जातक को पंद्रह से तीस वर्ष की आयु में चेहरे पर फुंसी होती है। - यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र से सिर में व्रण होते हैं। - यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो और उसके साथ पाप ग्रह हो अथवा पाप ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र के द्वारा सिर में व्रण होता है। - यदि लग्नेश शनि के साथ लग्न में बैठा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो अथवा लग्न में और कोई भी पाप ग्रह हो तो जातक के सिर में चोट से या अग्नि से व्रण होते हैं। - यदि षष्ठेश, राहु अथवा केतु के साथ लग्न में बैठा हो तो जातक के शरीर में व्रण होता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.