कालसर्प योग की सार्थकता
कालसर्प योग की सार्थकता

कालसर्प योग की सार्थकता  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 7885 | मार्च 2013

कालसर्प योग राहु और केतु की धुरी के एक ओर सभी ग्रहों के आ जाने से बनता है। यदि राहु के मुख में सभी ग्रह आ रहे हैं तो उसे उदित योग की संज्ञा दी गई है और यदि दूसरी ओर हों तो अनुदित योग कहा जाता है। कुछ ज्योतिर्विदों का मानना है कि इस योग का उल्लेख किसी प्राचीन ग्रंथ में नहीं मिलता है, अतः यह योग केवल काल्पनिक है, लेकिन ऐसा नहीं है। सभी ग्रहों के एक ओर आने से सौरमंडल में गुरुत्वाकर्षण बल का संतुलन बिगड़ जाता है और इस कारण -

  • समुद्र में ज्वार भाटा अधिक तेजी से आते हैं।
  • पृथ्वी पर भूकंप का वेग बढ़ जाता है।
  • मनुष्यों में मानसिक तनाव बढ़ जाते हैं जिससे लड़ाई-झगड़े या मनुष्य जनित वारदातें बढ़ जाती हैं।
  • अधिक बच्चे मानसिक रोगी पैदा होते हैं।

जब चंद्रमा चतुर्थ या दशम भाव में आता है तो समुद्र में ज्वार आते हैं। चंद्रमा के लग्न व सप्तम में होने पर भाटा होता है, जब चंद्र और सूर्य एक साथ हो जाते हैं अर्थात अमावस्या के दिन ज्वार भाटा का प्रकोप बढ़ जाता है। इसी प्रकार से जब सभी ग्रह चंद्रमा के साथ या चंद्रमा की ओर आ जाते हैं तो इसका प्रकोप और अधिक बढ़ जाता है। इसी प्रकार भूकंप भी पृथ्वी की परत के हिलने से होता है और इनके हिलने के मुख्य कारण अन्य ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण ही है।

अतः जब भी सभी ग्रहों का खिंचाव एक ओर हो जाता है तो परत के ऊपर अधिक ख्ंिाचांव पड़ता है और पृथ्वी हिलने लगती है जिससे भूकंप आते हैं। जब पृथ्वी पर इतना असर पड़ता है तो मनुष्य भी इस आवेग से कैसे बच सकता है? कालसर्प योग की स्थिति में भी गुरुत्वाकर्षण बल में असंतुलन आ जाने के कारण भौतिक, दैहिक, मानसिक एवं सामाजिक जीवन निश्चित रूप से प्रभावित होता है। यही कारण है कि कालसर्प योग को एक दोष के रूप में देखा जाता है और इस दोष की शांति का प्रयास किया जाता है। लेकिन कालसर्प योग युक्त जातक कुछ न कुछ विशेषता लिए ही पाए जाते हैं।

कितने प्रतिशत कुंडलियों में कालसर्प योग होता है, यह जानने के लिए पहले गणना करते हैं कि कुल कितनी कुंडलियां होती हैं:

किसी भी कुंडली में 12 लग्न होते हैं। सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु, शनि व राहू 12 भावों में स्वतंत्र रूप से कहीं भी हो सकते हैं। बुध सूर्य के साथ या एक घर आगे-पीछे ही हो सकता है। शुक्र सूर्य के साथ या दो घर आगे-पीछे व केतु, राहू से सदैव सप्तम ही हो सकता है। इस प्रकार बुध स्वतंत्र रूप से तीन भावों में, शुक्र पांच भावों में व केतु केवल एक ही

भाव में हो सकता है। अतः कुल कुंडलियों की संख्या = 12 (लग्न) × 12 (सूर्य) × 12 (चंद्र) × 12 (मंगल) ग् 3(बुध) × 12 (गुरु) × 5 (शुक्र) × 12 (शनि) × 12 (राहु) × 1 (केतु) = 53,74,77,120 अर्थात केवल 53 करोड़ 74 लाख, 77 हजार, 120 कुंडलियां। यदि 700 करोड़ की आबादी है तो हर कुंडली के लगभग 14 व्यक्ति होंगे।


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ज्योतिष में केवल कुंडली ही आधार नहीं होती। यदि हम नक्षत्रों को भी आधार मान लें तो हर राशि में 3 नक्षत्र अर्थात 36 संयोग होते हैं। यदि नक्षत्र चरण की भी गणना कर लें तो प्रत्येक राशि में 9 चरण या नवांश होते हैं। इस प्रकार की गणना के अनुसार-लग्न के 108 नवांश होते हैं। सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु, शनि व राहु भी स्वतंत्र रूप से 108 नवांशों में स्थित हो सकते हैं। बुध सूर्य के साथ या नौ नवांश आगे-पीछे हो सकता है अर्थात स्वतंत्र रूप से यह 19 नवांश में हो सकता है। इसी प्रकार शुक्र सूर्य के साथ या 17 नवांश आगे-पीछे हो सकता है अर्थात् 35 नवांशों में हो सकता है। केतु-राहु के सम्मुख एक ही नवांश में हो सकता है।

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इस प्रकार कुल कुंडलियां 108 (लग्न) × 108 (सूर्य) × 108 (चंद्र) × 108 (मंगल) × 19 (बुध) ग् 108 (गुरु) × (35) शुक्र × 108 (शनि) 108 (राहु) × 1 (केतु) = 11.3969313873 × 1016 = 1139 करोड़ करोड़ कुंडलियां।

यदि मान लें कि पृथ्वी पर जनसंख्या लगभग 700 करोड़ है तो लगभग 1 करोड़ पत्रियां प्रति व्यक्ति। चूँकि औसत आयु लगभग 70 वर्ष है अतः 10 करोड़ बच्चे प्रति वर्ष जन्म लेते हैं। इस गणनानुसार लगभग 100 करोड़ वर्षों तक किसी की पत्री की पुनरावृŸिा नहीं होगी। यदि और अधिक सूक्ष्मता में जाकर षष्ट्यांश कुंडली या अन्य गणनाओं पर ध्यान दें तो यह कह सकते हैं कि पृथ्वी पर कभी भी दो जातकों की कुंडलियां एक समान नहीं हो सकती। जुड़वां बच्चों में भी सूक्ष्मता में कुंडलियों में कुछ न कुछ अंतर अवश्य होता है।

यदि राशि को ही मुख्य आधार मानकर गणना करें तो कालसर्प योग की निम्नलिखित कुंडलियां बनती हैं:

12 राशियों में से कोई भी लग्न हो सकता है। राहू भी 12 भावों में से स्वतंत्र रूप से कहीं भी हो सकता है। पूर्ण कालसर्प योग के लिए सूर्य, चंद्र, गुरु, शनि व राहु से केतु के मध्य ही स्थित हो सकते हैं अर्थात् किन्ही भी सात भावों में हो सकते हैं। यदि सूर्य राहु के साथ हो तो बुध राहु के साथ या एक घर पीछे अर्थात् दो घरों में हो सकता है। यदि बुध एक घर आगे होता है तो पूर्ण कालसर्प योग भंग हो जायेगा। यदि सूर्य राहु से एक घर पीछे होता है तो बुध सूर्य के साथ एक घर पीछे या आगे भी हो सकता है। इसी प्रकार सूर्य पांच भावों में स्थित होने पर, बुध तीन-तीन स्थानों पर अर्थात् 15 स्थानों पर मुक्त रूप से हो सकता है।

सूर्य, राहु या केतु के साथ होने पर बुध केवल दो स्थानों पर हो सकता है। अतः कुल मिलाकर कालसर्प की कुंडलियों में बुध सात राशियों में कुल 19 मुक्त भावों में हो सकता है। इसी प्रकार सूर्य राहु के साथ हो तो शुक्र तीन मुक्त स्थानों में हो सकता है। यदि सूर्य राहु से एक घर पीछे हो तो शुक्र चार स्थानों में हो सकता है। यदि सूर्य राहु से दो, तीन या चार घर पीछे हो तो शुक्र पांच-पांच स्थानों में हो सकता है। इस प्रकार कुल मिलाकर सात राशियों में शुक्र 29 मुक्त स्थानों में होगा तो कालसर्प योग घटित होगा। अतः कुल पूर्ण कालसर्प योग कुंडलियां बनती हैं-

12 (लग्न) × 12 (राहु) × 7 (सूर्य) × 7 (चंद्र) × 7 (मंगल) × 19/7 (बुध) × (7) गुरु × 29/7 (शुक्र) × 7 (शनि) = 2,72,14,992 अर्थात 2 करोड़ 72 लाख, 14 हजार 992 कुंडलियां। केवल कुल 53 करोड़ कुंडलियों में से 2 करोड़ व्यक्तियों में पूर्ण कालसर्प दोष होता है अर्थात 19.75 कुंडलियो में से 1 कुंडली में कालसर्प दोष होता है। ठीक इतनी ही कुंडलियों में अनुदित काल सर्प दोष होता है। इस प्रकार से प्रति 9.87 कुंडली अर्थात लगभग 10 में से 1 कुंडली में उदित या अनुदित पूर्ण कालसर्प दोष होता है।

उपर्युक्त गणना में ग्रह के अंशों का विचार नहीं लिया गया है क्योंकि अधिकांशतः राशि अनुसार ही कालसर्प योग विद्यमान है या नहीं, का निर्णय लिया जाता है।

यदि सभी ग्रह राहु केतु की ओर हो और चंद्रमा दूसरी ओर हो तो यह आंशिक कालसर्प योग कहलाता है। इसमें चंद्रमा केवल पांच ही राशियों में हो सकता है। अतः उदित आंशिक कालसर्प योग की कुंडलियां = 12 (लग्न) ग् 12 (राहु) ग् 7 (सूर्य) × 5 (चंद्र) × 7 (मंगल) × 19/7 (बुध) × (7) गुरु × 29/7 (शुक्र) × 7 (शनि) = 1,94,39,280 कुंडलियां। अर्थात 27.65 कुंडलियों में से 1 में आंशिक उदित और इतने में ही आंशिक अनुदित अर्थात 27.65/2 =13.82 कुंडलियों में से एक में आंशिक कालसर्प दोष होता है। कुल मिलाकर उदित, अनुदित, पूर्ण या आंशिक कालसर्प दोष

= 1/1/13.82+1/9.87

= 9.87*13.82/9.87+13.82

=5.75

प्रत्येक 5.75 पत्रियों में से 1 में कालसर्प दोष होता है।

यदि मंगलीक कुंडलियों की गणना करें तो 12 कुंडलियों में से 5 कुंडलियों में मंगल दोष होता है। अर्थात् 2.4 कुंडलियों में एक में मंगल दोष होता है। इस प्रकार देखें तो कालसर्प दोष, मंगल दोष से 50ः कुंडलियों से भी कम कुंडलियों में पाया जाता है।


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