भारत भूमि संतो, महात्माओं तथा ईश्वर के अंशावतारों के अवतरण की भूमि रहा है। समय-समय पर सभी को उनसे मार्गदर्शन मिला है। ऐसे ही दिव्यपुरूषों में गिनती हुई है शिरडी के सांई और उनके पुनरावतार के रूप में अवतरित श्री सत्य सांई बाबा की जो अपने जन्म से ही अपनी लीलाओं और चमत्कारों से सभी को आश्चर्य चकित और कृतार्थ करते रहे।
परधाम गमन की पृष्ठभमि में प्रस्तुत है यहां उनकी जीवन यात्रा का संक्षिप्त ज्योतिषीय विश्लेषण। आम हो या खास, नेता हो या अभिनेता, खिलाडी हो या जांबाज, संत हो या महात्मा, सभी पर समान दृष्टिपात रखने वाले आंध्र प्रदेश के जिले अंनतपुर के छोटे से गांव पुट्टापर्थी में दिनांक 23 नवंबर 1926 की प्रातः 05.53 पर कोडम्मा राजू रत्नाकर- ईश्वरम्मा के यहां आठवी संतान के रूप में एक विलक्षण, प्रतिभाशाली बालक जिसके बचपन का नाम सत्यनारायण राजू था ने जन्म लिया।
जन्म से ही अपनी लीलाओं एवं चमत्कार से अपने परिवार के लोगों को आश्चर्यचकित करते रहे। 08 मार्च 1940 को एक बिच्छू ने डंक क्या मारा कि सत्यनारायण राजू का जीवन ही बदल गया। बचपन से संगीत की पढाई में विशेष रूचि रखने वाला बालक अचानक संस्कृत भाषा का प्रयोग ऐसे करने लगा मानो उसे इसमें महारथ हासिल हो।
23 मई 1940 को उसने अपने हाथो के स्पर्श से एवं हाथों से विभूति निकालने तथा इमली के पेड़ से मिठाई व अपने हाथों से सोने की चेन एवं घडी निकालने और असाध्य रोग से पीडित व्यक्ति के सिर पर हाथ रखकर असाध्य बीमारी को हमेशा के लिए समाप्त कर देने जैसे चमत्कार कर आम और खास दोनो को विस्मय कर डाला।
उन्होंने 26 अक्तूबर 1940 को जनता की भलाई करने, दुःखो को दूर करने, जीवन जीने की नई राह दिखाने के साथ ही आध्यात्मिक ऊंचांई प्राप्त करने के लिए संन्यासी जीवन धारण कर लिया। अब ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति के जीवन में घटित घटनाओं को एवं उनके देहावसान के समय के गोचर ग्रहों को इंटरनेट से प्राप्त उनकी जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर ज्योतिषीय दृष्टि से देखते हैं।
सत्यसांई बाबा का जन्म 23 नवंबर 1926 की सुबह आद्र्रा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में 28 अंश पर तुला लग्न में हुआ। लग्न तथा अष्टम भाव के स्वामी शुक्र के साथ द्वितीय भाव में चतुग्र्रही योग बना है। कुंडली में महापुरूष रूचक योग, लक्ष्मीनारायण, बुधादित्य योग है।
नीच का गुरु तथा स्वग्रही मंगल केंद्र में है तथा राहु एवं केतु दोनो उच्च के होकर तृतीय एवं नवम भाव में है। जन्म के समय राहू में चंद्र में बध में गुरु की दशान्तर चल रही थी। बुध एवं मंगल दोनो वक्री है। इन ग्रहों से बने महायोग के कारण सत्य सांई बाबा ने भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपनी अलग ही पहचान व ख्याति प्राप्त की जिससे 166 देशों में सत्य सांई के केन्द्र हंै।
लक्ष्मीनारायण योग से अपार धनसम्पदा, बुधादित्य योग से ज्ञान एवं बुद्धि से जनमानस के साथ ही विदेशियों पर अपनी प्रखर बुद्धि के बल पर सब को अचरच में डाल देने की योग्यता रही तथा रूचक योग से विश्वस्तर की ख्याति प्राप्त की है। जब 8 मार्च 1940 को बिच्छू ने डंक मारा, उस समय बाबा को लग्न व अष्टम भाव के स्वामी शुक्र की महादशा में तृतीय भाव स्थित केतु की अन्तर्दशा गोचर में थी।
इस कारण बाबा को मृत्युतुल्य कष्ट आया लेकिन शनि ग्रह जो मृत्युकारक ग्रह है उसकी दशान्तर दशा थी व शनि षष्टम, अष्टम एवं द्वादश में भी गोचर नहीं कर रहा था जिससे बाबा मृत्युरूपी काल के ग्रास में नहीं जा पाये। 26 अक्तूबर 1940 को गृहस्थ जीवन त्याग कर उन्होंने मानव सेवा हेतु एवं स्वयं के आधात्मिक स्तर को उच्च बनाने के लिए संन्यास ग्रहण किया।
संन्यास के लिए लग्न, चतुर्थ, पंचम एवं नवम् भाव में गोचर ग्रहों एवं जन्म कुंडली के ग्रहों का भी आकलन करना आवश्यक होता है। 26 अक्तूबर को सूर्य अपनी नीचराशि तुला में तथा शनि भी नीच राशि का होकर मेष राशि में सप्तम भाव में गोचर कर रहा था। शनि की नवम्, चतुर्थ तथा लग्न पर पूर्ण दृष्टि थी।
इसी प्रकार सप्तम भाव पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि थी। वाणी एवं बुद्धि का कारक ग्रह बुध द्वितीय भाव में गोचरस्थ था जिसके कारण बाबा का मन गृहस्थ जीवन से उचट गया और सन्यास मार्ग को अपनाया। अब बाबा के देहावसान के समय की गोचर ग्रहों की स्थिति का आंकलन करते है। 28 मार्च 2011 को बाबा का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया ।
26 मार्च 2011 से बाबा को लग्न व अष्टम भाव के स्वामी शुक्र, नवम् एवं द्वादश भाव के स्वामी बुध तथा सूर्य व मंगल रोगभाव षष्ठम में गोचर कर रहे थे इस कारण वे फीवर, लीवर व किडनी जैसे रोग से पीड़ित हुए। बाबा की लग्न कुंडली के द्वितीय भाव जो कि मारक भाव है, सूर्य, बुध, शुक्र तथा शनि ग्रह स्थित हैं।
24 अप्रैल 2011 रविवार को देहावसान के समय सूर्य-बुध-बुध-शुक्र-शनि की ही अंतर्दशा चल रही थी। वहीं शनि कन्या राशि में होकर द्वादश भाव में थे। द्वितीय मारकभाव में स्थित सूर्य ग्रह जो उच्चराशि मेष का होकर मारक भाव सप्तम में गोचर कर रहा था तथा लग्न व अष्टम भाव की राशि का स्वामी शुक्र भी षष्ठम में गोचर कर रहा था जिसके कारण बाबा ने अंतिम सांस सुबह 7.40 पर ली। बाबा अपने भक्तों तथा दुनियाभर में सर्वसामान्य में मानवता व नैतिकता की अलख जगाकर अपनी 96 वर्ष तक जीने की भविष्यवाणी को पूरा न करते हुए हमें बीच में ही छोड कर चले गए है।
अब दुनियाभर में फैले भक्त वर्षों तक बाबा के नाम को जिन्दा रखेगे और आने वाले समय में पुनः अवतार लेने वाले प्रेमा सांई का इंतजार रहेगा! विशेष बात यह भी है कि सचिन तेंदुलकर बाबा के परम भक्त हैं क्योंकि सचिन व बाबा दोनो की लग्न कुंडली तुला लग्न की ही है, साथ ही गुरु व मंगल दोनो केन्द्र में ही है। और खास बात यह है कि नीच का गुरु बाबा की कुंडली में चतुर्थ भाव में है और सचिन की कुंडली में भी नीच का गुरु चतुर्थ भाव में ही है।