फलदीपिका ग्रंथ के अनुसार:- दुःस्थानभष्टमरिपु व्ययभावभाहुः सुस्थानमन्य भवन शुभदं प्रदिष्टम्। (अ. 1.17) अर्थात् ‘‘जन्मकुण्डली के 6,8,12 भावों को दुष्टस्थान और अन्य भावों को सुस्थान कहते हैं।’’ अन्य भावों में केन्द्र (1,4,7,10) तथा त... more
ज्योतिषज्योतिषीय योगभविष्यवाणी तकनीक