श्वित्र: (सफेद दाग) ल्यूकोडर्मा
श्वित्र: (सफेद दाग) ल्यूकोडर्मा

श्वित्र: (सफेद दाग) ल्यूकोडर्मा  

अविनाश सिंह
व्यूस : 7677 | फ़रवरी 2016

श्वित्र कोई भयंकर या जानलेवा रोग नहीं है, एक आम समस्या है फिर भी पीड़ित के मन में हीन भावनाएं उत्पन्न होती हैं जिससे पीड़ित सार्वजनिक रूप से सामने आने से कतराते हैं। आयुर्वेद में त्वचा पर आने वाले सफेद दाग-धब्बों को श्वित्र कहते हैं। आम भाषा में इसे फुलेरी भी कहते हैं। लेकिन आधुनिक विज्ञान में इसे ‘ल्यूकोडर्मा’ कहते हैं। हमारी त्वचा की दो परतें होती हैं बाह्य और भीतरी। भीतरी परत के नीचे के भाग में मेलानोफोल कोशिका में एक तत्व होता है जिसे मेलेनिन कहते हैं। इस तत्व का मुख्य कार्य त्वचा को प्राकृतिक वर्ण प्रदान करना होता है।

जब यह तत्व विकृत हो जाता है तब श्वित्र रोग होता है। मेलेनिन तत्व के कण त्वचा के भीतर, नीचे की सतह में उत्पन्न होते हैं और वे ही ऊपर आकर त्वचा को प्राकृतिक वर्ण प्रदान करते हैं। त्वचा के जितने भागों में इन कणों का अभाव होता है, वहां सफेद दाग दिखाई देते हैं और अगर पूरे शरीर की त्वचा में ही मेलेनिन का अभाव हो, तो उस व्यक्ति का पूरा शरीर सफेद दिखाई देता है।


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यहां तक कि आंखों का काला भाग भी सफेद लगता है और सारे बाल भी सफेद हो जाते हैं। रोग के कारण: आयुर्वेद में पाप कर्मों को रोग का कारण कहा गया है। साथ ही दूध-दही, दूध-मछली जैसे विभिन्न गुण युक्त चीजों को आपस में मिलाकर खाने से भी यह रोग हो सकता है। पेट में कृमि, आंव, टाइफाइड, पीलिया, तपेदिक आदि रोगों के बाद भी इस रोग की उत्पत्ति हो सकती है। श्वित्र की उत्पत्ति आनुवंशिक भी होती है। अगर माता-पिता में से एक या दोनों श्वित्र से पीड़ित हों, तो उनकी संतानों मंे भी रोग उत्पन्न होने की आशंका रहती है।

आयुर्वेद के अनुसार श्वित्र रोग में कफ की प्रधानता होती है। त्वचा की छोटी-छोटी शिराओं में अवरोध के कारण मेलेनिन त्वचा उत्पन्न नहीं हो पाता है जिससे श्वित्र रोग उत्पन्न हो जाता है। घरेलू उपचार: -वाकुची नामक औषधि इस रोग के उपचार के लिए प्रमुख मानी गई है, जिसे खाने और बाहरी लेप दोनों तरह से किया जा सकता है जो लाभकारी है। बाकुची तेल का लेप कर के सुबह या शाम को सूर्य की किरणों को त्वचा पर 10 मिनट तक पड़ने दें। इसके फलस्वरूप त्वचा पर फोड़े हो जाते हैं।

उन फोड़ांे को कांटे से भेद कर सफेद त्वचा निकाल देनी चाहिए। घाव पर नीम का तेल लगाने से त्वचा का प्राकृतिक वर्ण उभर आता है।

इस उपचार को चिकित्सक की देख रेख में करें।

- अंजीर के पत्तों का रस या दूध लगाने से भी शरीर के सफेद दाग दूर हो जाते हैं।

- नीम के पत्ते, हरा या सूखा आंवला, प्रातः सूर्य उदय के पूर्व, जल में पीसकर पीने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।

- करंज के बीज, हल्दी, हरड़, राई को बराबर मात्रा में पीसकर लेप करें सफेद दाग दूर होंगे।

- मिलावा त्वचा रोगों की एक बहु उपयोगी औषधि है, जिसके सेवन से श्वित्र रोग और कफ-वात से उत्पन्न सभी रोगों में आराम मिलता है।इस औषधि का उपयोग अच्छे चिकित्सक की देख रेख में करना उचित होगा।

-तम्बाकू के बीजों का तेल लगाने से सफेद दाग दूर होते हैं।

- कनेर, अडूसे की पत्ती, करंज, नीम, क्षतिवन की छाल बराबर मात्रा में तथा कत्था दस ग्राम लेकर पांच किलो पानी में उबालें। इस पानी को छानकर दिन में एक गिलास पीने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।

- खैर सार और आंवले के साथ वाकुची के बीजों का चूर्ण मिलाकर करने से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।

-गूलर से बना -उदंबर अवलेह’ एक चम्मच की मात्रा में प्रातः एक बार रोगी को खिलाना चाहिए। इससे भी श्वित्र रोग में सुधार होता है और सफेद दाग धीरे-धीरे मिल जाते हैं।

- उपरोक्त सभी उपचारों में परहेज की आवश्यकता है। भोजन में तेज मसाले और तामसिक आहार का सेवन न करें और हरी सब्जियों का प्रयोग करें। तली तथा जली चीजों का प्रयोग खाने में न करें। उबला और सादा भोजन लाभकारी रहता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिषीय दृष्टि से त्वचा का कारक चंद्र और बुध ग्रह है। शुक्र ग्रह त्वचा को निखारता है, सुंदर बनाता है। मंगल ग्रह शरीर में उन तत्वों की उत्पत्ति करता है जो त्वचा को प्राकृतिक वर्ण बनाए रखने में सहायक होता है। यदि जन्मकुंडली में लग्नेश, लग्न और संबंधित ग्रह दुष्प्रभावों में हों तो ऐसे रोग की संभावनाएं बढ़ जाती हंै।

विभिन्न लग्नों में श्वित्र रोग:

मेष लग्न: लग्नेश मंगल, राहु-केतु से युक्त षष्ठ या अष्टम भाव में हो और बुध लग्न में शनि से युक्त या दृष्ट हो। शुक्र अस्त हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है।

वृष लग्न: लग्नेश शुक्र अस्त होकर अष्टम भाव में वक्री मंगल लग्न में और सप्तम भाव में बुध हो, राहु तृतीय या पंचम भाव में हो तो जातक को त्वचा संबंधित रोग होता है।

मिथुन लग्न: लग्न और लग्नेश दोनों वक्री मंगल से दृष्ट या युक्त हो, चंद्र राहु-केतु से युक्त चतुर्थ या पंचम भाव में हो, शुक्र अस्त हो या नीच का हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है।

कर्क लग्न: बुध-शनि लग्न में, चंद्र सप्तम भाव में, सूर्य द्वितीय भाव में, शुक्र राहु से युक्त तृतीय भाव में हो तो जातक को सफेद दाग हो सकते हैं।

सिंह लग्न: लग्नेश सूर्य राहु या केतु से युक्त षष्ठ या सप्तम भाव में हो, शुक्र अष्टम भाव में, बुध अस्त हो, चंद्र शनि से युक्त या दृष्ट चतुर्थ या एकादश भाव में हो तो जातक को त्वचा संबंधित रोग होता है।

कन्या लग्न: मंगल लग्न में या लग्न पर दृष्टि, राहु से युक्त होकर दे, बुध अस्त हो, चंद्र पर राहु या केतु की दृष्टि हो, गुरु केंद्र में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है।

तुला लग्न: गुरु लग्न में राहु से युक्त हो, शुक्र षष्ठ, सप्तम या अष्टम भाव में अस्त हो, चंद्र मंगल से युक्त होकर केंद्र में हो तो जातक को त्वचा संबंधित रोग हो सकता है।

वृश्चिक लग्न: राहु से युक्त, बुध लग्न में हो या लग्न पर दृष्टि दे, शुक्र-चंद्र, शनि से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को त्वचा रोग, श्वित्र जैसा रोग हो सकता है।


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धनु लग्न: शुक्र बुध लग्न में राहु केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु चंद्र से युक्त अष्टम भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है।

मकर लग्न: गुरु षष्ठ भाव में, चंद्र से युक्त राहु से दृष्ट हो, शनि चतुर्थ भाव में सूर्य से अस्त हो, बुध, शुक्र, तृतीय या पंचम भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग का सामना करना पड़ता है।

कुंभ लग्न:श्गुरु चंद्र लग्न में हो, मंगल षष्ठ भाव में राहु से युक्त हो, बुध शुक्र चतुर्थ भाव में अस्त हो, शनि द्वितीय भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है।

मीन लग्न: शुक्र लग्न में शनि राहु-केतु से युक्त चतुर्थ, सप्तम या एकादश भाव में हो, चंद्र षष्ठ भाव में हो और बुध अस्त होकर द्वादश भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है। उपरोक्त सभी योगों (संबंधित ग्रहों की) में दशा-अंतर्दशा एवं गोचर के प्रतिकूल रहने से रोग होते हैं। उसके उपरांत जातक को रोग से राहत मिल जाती है।



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