शास्त्रों के अनुसार ग्रहों का मानव शरीर पर किसी न किसी रूप में प्रभाव पड़ते हैं। ये प्रभाव प्रतिकूल या अनुकूल हो सकते हैं। मानव की सभी क्रियाएं, कमोबेश, इन ग्रहों के द्वारा संचालित होती हैं। नौ ग्रहों में किस ग्रह की महादशा और अंतर्दशा में नौकरी मिलेगी इसका विस्तृत विवरण यहां प्रस्तुत है।
1. लग्न के स्वामी की दशा और अंतर्दशा में
2. नवमेश की दशा या अंतर्दशा में 3. षष्ठेश की दशा या, अंतर्दशा में
3. प्रथम, षष्ठम, नवम और दशम भावों में स्थित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा में
4. राहु और केतु की दशा, या अंतर्दशा में
5. दशमेश की दशा या अंतर्दशा में
6. द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में पहले नियम में लग्नेश की दशा या अंतर्दशा का विचार किया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि लग्न शरीर माना जाता है।
नवम भाव भाग्य का भाव माना जाता है। भाग्य का बलवान होना अति आवश्यक है। अतः नवमेश की दशो या अंतर्दशा में भी नौकरी मिल सकती है। छठा भाव प्रतियोगिता का भाव माना जाता है। दशम भाव से नवम अर्थात भाग्य और नवम भाव से दशम अर्थात व्यवसाय का निर्देश करता है, अतः षष्ठेश की दशा या अंतर्दशा में भी नौकरी मिल सकती है। जो ग्रह प्रथम, षष्ठम, नवम और दशम में स्थित हों वे भी अपनी दशा, या अंतर्दशा में नौकरी दे सकते हंै। जीवन की कोई भी शुभ या अशुभ घटना राहु और केतु की दशा या अंतर्दशा में घटित हो सकती है। यह घटना राहु या केतु का संबंध किसी भाव से कैसा (शुभ या अशुभ) है इस पर निर्भर करती है। दशम भाव व्यवसाय का भाव माना जाता है। अतः दशमेश की दशा या अंतर्दशा में नौकरी मिल सकती है। एकादश भाव धन लाभ का और दूसरा धन का माना जाता है।
अतः द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में भी नौकरी मिल सकती है। ग्रहों का गोचर भी महत्वपूर्ण घटना में अपना योगदान देता है। गोचर: गुरु गोचर में दशम या दशमेश से नौकरी मिलने के समय केंद्र या त्रिकोण में होता है। -अगर जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष, या तुला हो, तो जब भी शनि और गुरु एक-दूसरे से केंद्र, या त्रिकोण में हों, तो नौकरी मिल सकती है, अर्थात नौकरी मिलने के समय शनि और गुरु का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना अति आवश्यक है। -नौकरी मिलने के समय शनि या गुरु का या दोनों का दशम भाव और दशमेश दोनों से या किसी एक से संबंध होता है। - नौकरी मिलने के समय शनि और राहु एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होते हैं। -नौकरी मिलने के समय जिस ग्रह की दशा और अंतर्दशा चल रही है उसका संबंध किसी तरह दशम भाव या दशमेश से या दोनों से होता है।
उदाहरण के लिए यहां कुछ कुंडलियां प्रस्तुत हैं। उदाहरण 1: जातक का जन्म 7.5.1976 को हुआ। भोग्य दशा बुध की 5 वर्ष 8 महीना 3 दिन है। 10.1.1989 से शुक्र की महादशा चल रही है। 10.5.1993 से 10.1.1995 तक शुक्र की दशा में चंद्रमा की अंतर्दशा रही। जातक को नौकरी जून, 1994 में मिली। दशमेश शुक्र नवम भाव में बैठा है। यह नियम 4 तथा 6 को सत्य साबित कर रहा है। अंतर्दशा स्वामी चंद्रमा द्वादश भाव का स्वामी होकर द्वादश में बैठा है। अंतर्दशा स्वामी बताए गये किसी नियम को सत्य साबित नहीं कर रहा है। नौकरी मिलने के समय गुरु (वक्री) तृतीय भाव में तथा शनि सप्तम भाव में बैठा था। राहु भी तृतीय भाव में बैठा था। गोचर के प्रथम नियम के अनुसार नौकरी मिलने के समय गुरु दशम भाव या दशमेश से केंद्र या त्रिकोण में होना चाहिए। उस समय गुरु तृतीय भाव में था जो दशमेश शुक्र से केंद्र में है। गुरु वक्री होने के कारण दशम से त्रिकोण में है। जातक का जन्म सिंह लग्न में हुआ। नौकरी के समय गुरु तृतीय भाव में तथा शनि सप्तम भाव में है जो एक-दूसरे से त्रिकोण मेें हैं।
इस प्रकार गोचर का दूसरा नियम सत्य साबित हुआ। गोचर में शनि सप्तम भाव में दशमेश शुक्र पर दृष्टि डाल रहा है और तृतीय भाव से गुरु शुक्र को देख रहा है। यह गोचर नियम तीन को सत्य साबित कर रहा है। राहु तृतीय भाव में तथा शनि सप्तम भाव में गोचर मंे हैं जो एक-दूसरे से त्रिकोण में हैं। यह गोचर नियम चार को सत्य साबित कर रहा है।
उदाहरण 2: जातक का जन्म 16.4.1969 को हुआ। जन्म के समय केतु की भोग्य विंशोत्तरी दशा 6 वर्ष 9 महीना 5 दिन है। जातक को नौकरी फरवरी 2000 में मिली। सूर्य की महादशा 21.1.1996 से आरंभ हुई। नौकरी के समय सूर्य की दशा और बुध की अंतर्दशा थी। दशमेश सूर्य षष्ठ भाव में बैठा हुआ है। एकादशेश बुध षष्ठ भाव में बैठा हुआ है। नियम 6 और 7 तथा 4 सत्य साबित हुआ। नौकरी मिलने के समय शनि और गुरु गोचर से छठे भाव में दशमेश के साथ बैठे हंै। यह गोचर नियम प्रथम को सत्य साबित कर रहा है। जातक का लग्न वृश्चिक है और गोचर में शनि और गुरु एक साथ अर्थात एक-दूसरे से केंद्र में हैं। गोचर नियम 2 सत्य साबित हुआ। गोचर से नौकरी मिलने के समय राहु नवम भाव में है, जो गोचर शनि से केंद्र में हुआ। गोचर नियम 4 सत्य साबित हुआ। दशमेश सूर्य बुध के साथ छठे भाव में है। इस प्रकार दशानाथ सूर्य और अंतर्दशानाथ बुध का पारस्परिक संबंध हुआ। गोचर नियम पांच सत्य साबित हुआ।
उदाहरण 3: तीसरी कुंडली के अनुसार जातक का जन्म 26.5.1963 को हुआ। गुरु की विंशोत्तरी दशा 13 वर्ष 2 महीना 26 दिन है। जातक को नौकरी 1994 में शनि महादशा और गुरु की अंतर्दशा में मिली। ऊपर बताये गये नियम कर्क लग्न वाली कुंडली पर लागू नहीं होंगे। गोचर के नियम भी इस पर लागू नहीं होंगे। ये नियम सिर्फ उसी कुंडली पर पूर्णतः लागू हांेगे जिसका लग्न मेष, वृष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक या तुला है। कुंडली 3 में लग्न कर्क है।
शनि सप्तम और अष्टम का स्वामी होकर सप्तम भाव में बैठा है। गुरु षष्ठ और नवम का स्वामी होकर भाग्य स्थान में बैठा है। षष्ठेश और नवमेश की दशा या अंतर्दशा में नौकरी मिलती है जैसा कि द्वितीय और तृतीय नियमों में उल्लेख किया गया है। परंतु इस कुंडली के साथ अपवाद है। गोचर के दृष्टिकोण से देखें। नौकरी मिलने के समय शनि अष्टम भाव में और गुरु पंचम भाव में बैठा है। राहु भी पंचम भाव में बैठा है। गोचर के प्रथम तथा द्वितीय नियम सत्य साबित हो रहे हंै।
उदाहरण 4: जातक का जन्म 13.9.1947 में सिंह लग्न में हुआ। केतु की भोग्य विंशोत्तरी दशा 6 वर्ष 29 दिन है।
जातक को नौकरी शुक्र की दशा और मंगल की अंतर्दशा में मिली। शुक्र दशमेश होकर लग्न में बैठा है और मंगल नवमेश है। दशानाथ और अंतर्दशानाथ द्वितीय और षष्ठ नियम को सत्य साबित कर रहे हंै। गोचर के दृष्टिकोण से नौकरी मिलने के समय शनि और गुरु दोनों पंचम भाव में बैठेे हैं। राहु भी गोचर से लग्न में बैठा है। दशम भाव का स्वामी शुक्र लग्न में बैठा है और पंचम में बैठा गुरु उसे देख रहा है। राहु और शनि एक-दूसरे से त्रिकोण में हं। अंतर्दशा स्वामी मंगल एकादश भाव में है जिस पर पंचम में बैठे शनि और गुरु की दृष्टि है। दशमेश शुक्र और गोचर का गुरु एक-दूसरे से त्रिकोण में विराजमान हैं। इस प्रकार गोचर के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ नियम सत्य साबित हो रहे हंै।
उदाहरण 5: जातक का जन्म 18.3.1967 को तुला लग्न में हुआ। जन्म के समय मंगल की विंशोत्तरी दशा 5 वर्ष 11 महीना 15 दिन है। जातक को नौकरी नवंबर, 1999 में मिली। उस समय गुरु की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा चल रही थी। तृतीय तथा छठे भाव का स्वामी गुरु वक्री होकर दशम भाव में बैठा है। अष्टम और लग्न का स्वामी होकर शुक्र सप्तम भाव में बैठा है। इससे प्रथम तथा तृतीय नियम सत्य साबित हो रहे हैं। अब गोचर पर ध्यान दें। नवंबर, 1999 में गुरु और शनि दोनों वक्री होकर सप्तम भाव में बैठे हंै। गोचर का राहु दशम भाव में बैठा है। शनि के वक्री होने के कारण गोचर का राहु और शनि एक-दूसरे से त्रिकोण में हैं। वक्री गुरु गोचर से दशम से दशम अर्थात सप्तम भाव में बैठा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि गोचर के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ नियम सत्य साबित हो रहे हं। इन कुंडलियों के अतिरिक्त और भी अनेक कुंडलियों पर उपर्युक्त नियमों को लागू करके देखा गया जो 90 प्रतिशत तक सत्य साबित हुए हैं।