टाइगर आइ (बाघमणि)
टाइगर आइ (बाघमणि)

टाइगर आइ (बाघमणि)  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 20077 | फ़रवरी 2006

चर समाचार के इस अंक के साथ उपरत्न टाइगर आइ दिया जा रहा है। यह उपरत्न अत्यधिक लोकप्रिय है। इसे बाघमणि, व्याघ्राक्ष, चित्ती, चीता, टाइगर, टाइगर-आइ, दरियाई-लहसुनिया आदि अनेक नामों से जाना जाता है। यथा नाम तथा गुण, बाघ जैसे दिखाई देने वाले गहरे भूरे और सुनहरे अथवा काले और पीले रंग की धारियों वाले इस पत्थर पर सफेद चमकदार डोरा पड़ता है। पत्थर को घुमाने पर यह डोरा सरकता सा प्रतीत होता है। इसी डोरे के कारण यह चीते की आंख की तरह चमकता है,

अतः इसे चिती, चीता, टाइगर एवं टाइगर आइ नाम मिले। लहसुनिया और बाघमणि में रंग का अंतर होने पर भी दोनों में काफी समानता है। दोनों को घुमाने पर डोरे पड़ते हैं। एक बिल्ली की आंख की तरह तो दूसरा चीते की आंख की तरह नज़र आता है। दोनों ही वैदूर्य जाति के रत्न हैं।

यही कारण है कि बाघमणि को दरियाई लहसुनिया भी कहा जाता है। इस की संरचना पर दृष्टि डालें तो बाघमणि एक रेशेदार स्फटिक है। यह अपारदर्शक है। सिलिकॅान डाइ आॅक्साइड के बने इस पत्थर की कठोरता 7.0 तथा आपेक्षिक घनत्व 2. 64 से 2.71 के मध्य है। इस उपरत्न के उत्पादक देश मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, म्यांमार, भारत और अमेरिका हैं।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


ज्योतिषीय गुण: रंग में पीलेपन और सुनहरी झलक के कारण इस बृहस्पति का उपरत्न माना गया है। चितकबरा होने और लहसुनिया की तरह सूत पड़ने के कारण केतु का उपरत्न भी माना गया है। भूत-प्रेत, बाधा और ऊपरी हवा को काटने के लिए इसका विशेष उपयोग किया जाता है।

- केतु या कालसर्प दोष के प्रभाव को ठीक करने के लिए पंचधातु की अंगूठी में अनामिका में मंगलवार को धारण करें।

- यदि भूत-प्रेत, तांत्रिक क्रिया या ऊपरी हवा का डर हो तो इस रत्न को चांदी में अंगूठी या लाॅकेट में जड़वाकर, मां भगवती के चरणों में लाकर मंगलवार के दिन बीच की उंगली में धारण करें।

- जिन लोगों को भूख कम लगती हो तथा भोजन न पचता हो, ऐसी स्थिति में बाघमणि को मंगलवार के दिन सुबह के समय लाल धागे में धारण करें, लाॅकेट बनवाकर या फिर अंगूठी धारण करें। हड्डी रोग जैसे सरवाइकल, पीठ दर्द या जोड़ दर्द में भी विशेष उपयोगी है।

- कार्य बार बार बनते-बनते बिगड़ जाते हों जिससे मानसिक परेशानी रहत हो, ऐसी स्थिति में बाघमणि को पंचधातु में जड़वाकर बृहस्पतिवार को रात्रि के समय बाएं हाथ की बीच वाली अंगुली में धारण करें।

- जिन बच्चों को जल्दी नज़र लगती हो अथवा भय लगता हो, उन्हें बाघमणि गले में धारण करने से लाभ होता है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


- व्यक्ति डरपोक अथवा दब्बू स्वभाव का होकर किसी से आंख मिलाकर बात नहीं कर पाता हो तो उसके लिए बाघमणि कारगर सिद्ध हो सकती है। धारक का आत्मबल बढ़ता है। दब्बूपन की प्रवृत्ति क्षीण होने लगती है। बाघ की तरह नज़रें मिलाना सीख जाता है। साल भर में स्वभाव का परिवर्तन साफ दिखाई देता है।

- व्यक्ति को ठंड अधिक लगती हो या जुकाम बना रहता हो, गर्मी में भी अधिक कपड़े पहनने-ओढ़ने पड़ते हों तो बाघमणि धारण करने से गर्मी का एहसास होने लगता है। स्वास्थ्य में बड़ी राहत महसूस होती है।

- बाघमणि धारण करने वाला आलस्य को त्याग कर चीते की तरह फुर्तीला होने लगता है।

धारण विधि: सामान्य तौर पर रत्न को मंगलवार एवं गुरुवार को गंगाजल एवं कच्चे दूध में डुबोकर सुबह सूर्योदय के बाद धारण करें। धारण के समय शक्तिस्वरूपा दुर्गा के मंत्र का जाप करें।

मंत्र: ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं त्रिशक्तिदेव्यै नमः।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.