रत्नों का शुद्धिकरण एवं प्राण-प्रतिष्ठा
रत्नों का शुद्धिकरण एवं प्राण-प्रतिष्ठा

रत्नों का शुद्धिकरण एवं प्राण-प्रतिष्ठा  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 21609 | फ़रवरी 2006

स्त्रीय विधि के अनुसार ग्रहों की शांति के लिए जो रत्न या लाॅकेट धारण किए जाते हैं, उनका धारण करने से पूर्व शुद्धिकरण एवं प्राण-प्रतिष्ठा करना आवश्यक माना गया है। इससे धारणकर्ता को शीघ्र मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यहां रत्न या लाॅकेट को शुद्ध करने एवं उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की सरल विधि दी जा रही है। शुद्धिकरण विधि: जो व्यक्ति रत्न अथवा लाॅकेट धारण करना चाहे वह किसी शुभ मुहूर्त में स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर मस्तक पर तिलक लगाकर, शुद्ध जल का आचमन करके गुरु एवं गणेश का स्मरण कर जिस रत्न, अंगूठी या लाॅकेट को धारण करना हो उसे किसी ताम्र पात्र या रजत पात्र अथवा किसी शुद्ध पात्र में पुष्प एवं अक्षत डाल कर स्थापित करे। उसके पश्चात सर्वप्रथम शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा क्रम से दूध, दही, घी, मधु, शक्कर से स्नान कराकर शुद्ध जल से साफ करे और शुद्ध श्वेत या रक्त वस्त्र से पोंछकर किसी शुद्ध पात्र में पुष्पों के ऊपर स्थापित करे। प्राण प्रतिष्ठा विधि: सर्वप्रथम निम्नलिखित मंत्र से विनियोग करें।

¬ अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः ऋग्यजुर्सामानि छंदांसि प्राणशक्तिर्देवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकं अस्मिन् रत्ने/लाॅकेटरत्ने प्राण प्रतिष्ठापन विनियोगः। इस मंत्र को बोलकर आचमन में जल भरकर किसी शुद्ध पात्र में छोड़ दें। दूर्बा अथवा कुशा हाथ में लेकर रत्न, अंगूठी या लाॅकेट का इन मंत्रों को बोलकर स्पर्श करते रहें। इन मंत्रों को बोलते हुए मन में भी ऐसा ध्यान करते रहें कि रत्न के देवता और ग्रह इसमें निवास कर रहे हैं। ¬ ऐं ह्री आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ¬ हंसः सोऽहं सोऽहं हंसः शिवः अस्य रत्नस्य। लाॅकेटरत्नस्य प्राणा इह प्राणाः।

¬ एंे ह्रीं श्रीं आं ह्रीं क्रों अस्य रत्नस्य लाॅकेटरत्नस्य जीव इह स्थितः। सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मनस्त्वक्चक्षुः श्रोत्र जिह्नाघ्राणप्राणा इहैवागत्य सुखं चिर तिष्ठन्तु स्वाहा। ¬ ऐं ह्रीं श्रीं ¬ असुनीते पुनरस्मासु चक्षुः पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम्। ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृडया न स्वस्ति। एष वै प्रतिष्ठा नाम यज्ञो यत्र तेन यज्ञेन यजन्ते। सर्व मेव प्रतिष्ठितं भवित। अस्मिन् रत्ने/लाॅकेटरत्ने रत्न देवता सुप्रतिष्ठिता वरदा भवंतु। तदनंतर रत्न, अंगूठी या लाॅकेट का गंध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य से पंचोपचार पूजन करें। अंत में जिस ग्रह का रत्न/लाॅकेट हो उस ग्रह के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करके धारण करना चाहिए। यदि स्वयं शुद्धिकरण न कर पाएं तो किसी सुयोग्य ब्राह्मण को बुलाकर प्राण-प्रतिष्ठा करवानी चाहिए।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.