लाजवर्त मणि (Lajward Stone) एक नाम अनेक काम
लाजवर्त मणि (Lajward Stone) एक नाम अनेक काम

लाजवर्त मणि (Lajward Stone) एक नाम अनेक काम  

मनोहर वर्मा
व्यूस : 46817 | फ़रवरी 2006

प्रचीन ग्रंथों में जिस नीलम का वर्णन मिलता है, वह वास्तव में नीलम न हो कर आज की लाजवर्त मणि ही है। भले ही आज की नीलम ने लाजवर्त से वह उच्च आसन छीन कर उसे उपरत्न की श्रेणी में ला रखा हो, पर अब भी इसकी उपयोगिता कम नहीं हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार असुर राज बली की केश राशि से लाजवर्त की उत्पत्ति हुई।

केश राशि के साथ धारण किए मुकुट का स्वर्ण भी इसमें समाहित हो गया। चैरासी रत्नों में लाजवर्त भी एक है। पौराणिक कथा जो भी हो, वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी संरचना सल्फर युक्त सोडियम और अल्युमिनियम सिलिकेट से हुई है। यह प्राकृतिक रूप से अन्य कई मणियों का संयुक्त रूप है।

 

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लाजवर्त अपारदर्शक मणि है। इसमें गहरे नीले रंग के अलावा कुछ कालापन भी होता है। इसकी कठोरता 5 से 5. 30 और अपेक्षित घनत्व 2.50 से 2.90 के मध्य है। यह वजन में भारी होता है। चिली, साइबेरिया, अफगानिस्तान, अर्जेंटीना और तिब्बत में लाजवर्त का उत्पादन होता है। यह रूस की वैकाल झील के आसपास भी मिलता है।

अफगानिस्तान और अर्जेंटीना का लाजवर्त महंगा होता है। फ्रांस में रसायनों के संयोग से लाजवर्त वैज्ञानिक तरीके से बनाया जाता है। औषधीय प्रयोग: लाजवर्त में अनेक औषधीय गुण होते हैं। इसके उपयोग से पथरी रोग, गुर्दे का रोग, मस्से की तकलीफ, बवासीर तथा पित्त का प्रकोप आदि शांत हो जाते हैं।

यह सूखे रोग में लाभदायक होता है और नव रक्त का संचार कर कांति बढ़ाता है। इसके उपयोग से पीलिया, प्रमेह तथा क्षय रोग का नाश होता है और हृदय पुष्ट होता है। यह मिर्गी, मूच्र्छा एवं नाना प्रकार के चर्म रोगों में लाभप्रद है। आंखों में सुरमा लगाने से पानी गिरने का रोग मिटता है।

ज्योतिषीय प्रयोग: लाजवर्त में अनेक ज्योतिषीय गुण भी हैं। उपरत्न के रूप में धारण करने से शनि शांत होकर बुरे फलों के प्रभाव को क्षीण कर देता है। गले में धारण करने से बच्चों का डरना और चैंकना दूर हो जाता है। धारक को फोड़ा-फुंसी और मुहांसों से राहत मिलती है। एक कन्या के मुंह पर मुहांसों का अत्यधिक प्रकोप था। कोई दवा कारगर नहीं हो रही थी। शादी में बाधा आ रही थी। उसे लाजवर्त और मून स्टोन संयुक्त रूप से धारण कराए गए। कन्या में भगवान के प्रति आस्था जगी। तीन महीने में 75 प्रशित मुहांसे ठीक हो गए और पांचवें महीने मंे शादी तय हो गई।

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किसी व्यक्ति को किसी चीज से एलर्जी हो तो उसे अच्छा लाजवर्त पहनना चाहिए। एलर्जी का रोग धीरे-धीरे चला जाएगा। ध्यान रहे, उपरत्न का चुनाव करते समय सावधानी बरतें। लाजवर्त का अंगूठी के नगों के अलावा लाॅकेट और माला के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। चमत्कारी रत्न संग-सितारा ग-सितारा गेरुए रंग का अपारदर्शक रत्न होता है।

इसकी सतह पर सुनहरे रंग के छींटे पड़े होते हैं, जिनके कारण यह चारों ओर से चमकता रहता है। इसकी सुनहरी आभा लोगों का मन मोह लेती है। अग्नि जैसी आभा के कारण यह दहकते अंगारे की तरह दिखाई पड़ता है। इस कारण इसे अंगार-मणि कहा जाता है। यह सूर्य रत्न चंद्रमणि की तरह फेल्स्पार वर्ग का है।

इसके अंदर से लोहे के आक्साइड के कण प्रकाश के परावर्तन से लाल-पीली झांईं मारते हैं। यह रत्न कोमल, चिकना और मनमोहक होता है। यह कम कीमत का होने से हर किसी की पहुंच में आता है। रत्न को लेंस से दस गुना बड़ा करके देखने पर तांबे जैसे कण दिखाई पड़ते हैं। इसके नग अंगूठी, लाॅकेट और कर्णफूल बनाने और माला पिरोने में काम आते हैं। संग-सितारा सूर्य और मंगल का उपरत्न है।

इसका रंग सूर्य और मंगल के अनुरूप है। यदि श्रद्धापूर्वक इस रत्न को धारण किया जाए तो यह दोनों ही ग्रहों के शुभत्व को बढ़ाता है। अन्य ग्रहों के लिए भी किसी प्रकार का अनिष्टकारी प्रभाव उत्पन्न नहीं करता।

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