उत्तरायण और मकर संक्रांति की भ्रांति
उत्तरायण और मकर संक्रांति की भ्रांति

उत्तरायण और मकर संक्रांति की भ्रांति  

सुशील अग्रवाल
व्यूस : 6855 | जनवरी 2016

भचक्र को 12 बराबर भागों में बांटा गया है और इसका प्रत्येक भाग एक राशि का प्रतिनिधित्व करता है। निरयन पद्धति के अनुसार 22 डंतबी 285 AD को चित्रा नक्षत्र से 180 degree 00’03” (Lahiri's Indian Ephemeris of Planets' Positions for 2015 A D) पर मेष राशि की प्रथम बिंदु माना गया था। सूर्य अपनी दैनिक औसत गति 10 से चलते हुए, प्रत्येक माह मध्य में नयी राशि में प्रवेश, करते हैं। यही सूर्य का राशि प्रवेश सूर्य संक्रांति कहलाता है। अर्थात, साल में बारह संक्रांति होती हैं जैसे मेष संक्रांति, वृषभ संक्रांति इत्यादि और इसी शृंखला में दसवें स्थान पर आती है मकर संक्रांति। हिन्दू कैलेण्डर का आधार चन्द्रमा की स्थिति से है और उसके अनुसार आजकल मकर संक्रांति का पर्व पौष मास में आता है। इस बात की पुष्टि पंचांग से या किसी भी हिन्दू कैलेण्डर से आसानी से की जा सकती है। उत्तरायण की परिभाषा सूर्य के भ्रमण पथ को दो भागों मंे बांटा गया है जिन्हें क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं।

उत्तरायण की शुरुआत सूर्य के अपने भ्रमण पथ पर उत्तर की ओर अग्रसर होने से होती है। इसी उत्तरायण की शुभता का हमारे शास्त्रों में भी व्याख्यान है। जैसे, श्रीमद् भगवद्गीता में उत्तरायण को प्रकाश मार्ग भी कहा गया है। प्रकाश मार्ग को सांसारिक कार्यों के लिये शुभ माना गया है। श्रीमद् भगवद्गीता के अध्याय आठ श्लोक 26 में इसका महत्व भी वर्णित है कि जिस व्यक्ति के प्राण उत्तरायण के शुक्ल पक्ष में जाते हैं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, अर्थात उसकी मृत्युलोक में वापसी नहीं होती। आपको महाभारत का प्रसंग तो पता ही है कि भीष्म पितामह को स्वेच्छा से प्राण त्यागने का वरदान प्राप्त था। युद्ध के दौरान मृत्युतुल्य अवस्था में आने के पश्चात भी उन्होंने सूर्य के उत्तरायण में आने की प्रतीक्षा की थी जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके। आइये, प्रकाश मार्ग या उत्तर की ओर अग्रसर होने की परिभाषा को हम खगोलीय दृष्टिकोण से देखते हैं। यह तथ्य सर्वविदित एवं निर्विवादित है कि बसंत संपात 21/22 दिसम्बर को होता है (स्ंीपतपश्े म्चीमउमतपे) और इस दिन के दिनमान (सूर्योदय से सूर्यास्त की अवधि) की अवधि सबसे छोटी होती है और इसके पश्चात् दिन बढ़ते रहते हैं।

खगोलीय दृष्टिकोण से यह सूर्य की भ्रमण दिशा बदलने से होता है। अर्थात, सूर्य के अपने भ्रमण पथ पर उत्तर की ओर अग्रसर होते ही दिन बडे़ होने शुरू हो जाते हैं। इसीलिये, इस मार्ग का नाम प्रकाश मार्ग हुआ होगा। पृथ्वी का भ्रमण पथ (ज्योतिषीय भाषा में सूर्य पथ) सृष्टि के आरम्भ से यही था और सदैव यही रहेगा। 4. उत्तरायण और मकर संक्रांति के आरंभिक बिंदुओं की तुलना वैदिक हिन्दू ज्योतिष में हम निरयन पद्धति का अनुसरण करते हैं। इसमें, जैसा ऊपर वर्णित है, मेष का प्रथम बिंदु चित्रा नक्षत्र के विपरीत है। इस चित्रा नक्षत्र के सापेक्ष स्थिर प्रारंभिक बिंदु को 22 डंतबीए 285 ।क् को बसंत सम्पात पर माना गया था और जब सूर्य ने 9 राशियों को भोगने के पश्चात मकर में प्रवेश किया तो वह बिंदु मकर का प्रथम बिंदु था और वही बिंदु ॅपदजमत ैवसेजपबम बिंदु भी था। निरयन पद्धति में इस बात की भी पुष्टि हो चुकी है कि यह मेष राशि बिंदु, चित्रा तारे के सापेक्ष तो स्थिर है, परन्तु जब पृथ्वी एक साल की सूर्य परिक्रमा करने के पश्चात पुनः उसी स्थान पर आती है तो वह पूर्व वर्ष की तुलना में 50.29” सेकंड पश्चिम की ओर खिसक जाती है।


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इस पीछे खिसकने को अयन कहते हैं और इसी से अयनांश की गणना होती है। अयनांश, निरयन पद्धति में लग्न एवं ग्रहों के सही भोगांश निकालने के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसके अभाव में तो कुंडली ही गलत बन जायेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि 285 ।क् में जो मेष बिंदु था वह पूर्व वर्ष की तुलना में 50.29” पीछे जाते-जाते 1-श्रंद-2015 तक 240 04’05” पश्चिम की ओर खिसक चुका है, इसकी पुष्टि भी आप किसी भी मचीमउमतपे या पंचांग से कर सकते हैं। इससे यह अर्थ निकला कि समय के साथ-साथ यह अंतर बढ़ता ही रहेगा और लगभग (3600 - 240 )= 3360 = 1209600’’ » 50.29’’ = 24,000 के पश्चात पुनः मकर बिंदु अपनी 285 ।क् वाली स्थिति पर आएगा और लगभग 24000 वर्ष पहले भी इसी मेष बिंदु पर रहा होगा। अगर हमें यह तथ्य मान्य है कि निरयन पद्धति में मेष बिंदु प्रति वर्ष, उपरोक्त वर्णित गति के अनुसार, खिसकता है तो मकर एवं अन्य बिंदु भी तो स्वतः ही खिसक जायेंगे, यह बात स्वयं ही सिद्ध हो जाती है। अर्थात, सूर्य का भ्रमण पथ तो स्थिर है और स्थिर ही रहेगा परन्तु राशि बिंदु प्रतिवर्ष लगातार खिसक रहे हैं।

उत्तरायण और मकर संक्रांति बिंदु एक नहीं हैं उपरोक्त परिभाषा और वर्णन से यह निष्कर्ष निकल रहा है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से मकर संक्रांति निर्धारित होती है और सूर्य के उत्तर की ओर अग्रसर होने से उत्तरायण की शुरुआत निर्धारित होती है। 285 ।क् में ये दोनों बिंदु एक ही थे और इसीलिये तब से आज तक मकर संक्रांति के साथ-साथ उत्तरायण का महत्व भी जुड़ गया है। समय के साथ-साथ, विषुव अयन के कारण, इन दोनों बिन्दुओं में अंतर आता गया। आइये, इस निष्कर्ष की पुष्टि पौराणिक महाभारत से भी करें। महाभारत युद्ध आरंभ का दिन मार्गशीर्ष मास की अमावस्या (महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित, प. रामनारायण दत्त शास्त्री द्वारा अनुवादित, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित महाभारत के तृतीय खंड, अध्याय 142, पृष्ठ 2421, श्लोक 16-17-18) तय किया गया था। मार्गशीर्ष मास को ‘सौम्य’ मास माना जाता था क्योंकि इस मास में पशुओं के लिये घास और लोगों के लिये खाने-पीने के पदार्थ प्रचुर मात्रा में मिल जाते थे। इसके अतिरिक्त, सेना के आवागमन में कोई परेशानी नहीं होती थी क्योंकि रास्ते कीचड़-मुक्त होते थे।

युद्ध मार्गशीर्ष की अमावस्या से शुरू होकर अगर अठारह दिन चला तो पौष की शुरुआत में समाप्त हुआ होगा। भीष्म पितामह युद्ध के दसवें दिन बाण-शय्या पर आ गए थे और उन्होंने अपना देह त्यागने के लिये सूर्य के उत्तरायण होने की काफी प्रतीक्षा की थी (महाभारत खंड 5, अध्याय 47, पृष्ठ 4532, श्लोक 3)। प्राचीन समय से ही भीष्म पितामह के निर्वाण-दिवस को भीष्म अष्टमी या माघ शुक्ल अष्टमी से मनाया जाता है और यह सभी आधुनिक पंचांगों (श्रीविश्वविजय-पंचांग 2015-16, पृष्ठ 125) में प्रकाशित होती है। वर्ष 2015 में यह 27 जनवरी को थी और वर्ष 2016 यह 15 फरवरी को होगी। उपरोक्त तथ्यों को अगर समझने का प्रयास करें तो युद्ध शुरू हुआ मार्गशीर्ष की अमावस्या को, 10 वें दिन भीष्म पितामह बाण-शय्या पर आये यानि मार्गशीर्ष के अंत के पास, युद्ध समाप्त हुआ पौष के शुरू में।

पंचांग के अनुसार मकर संक्रांति होती है पौष माह में और भीष्म ने माघ की शुक्ल अष्टमी को प्राण त्यागे (बाण-शय्या पर आने के लगभग 28 दिन पश्चात)। अगर पौष में ही मकर संक्रांति होती तो भीष्म को माघ शुक्ल अष्टमी तक इन्तजार करने की क्या आवश्यकता थी? इसका एक ही अर्थ है उस समय मकर संक्रांति और उत्तरायण बिंदु अलग-अलग थे। जैसे, क्तपा च्ंदबींदह के अनुसार वर्ष 1600 में मकर संक्रांति 9 जनवरी को थी, आजकल 14/15 जनवरी को होती है और वर्ष 2600 में 23 जनवरी को होगी। अर्थात, मकर संक्रांति बिंदु और उत्तरायण बिंदु अलग-अलग हैं और इनको एक दूसरे से जोड़ना उचित या तर्कसंगत नहीं लगता। निष्कर्ष यह है कि उत्तरायण से सम्बंधित शुभ कार्यों की शुरुआत उत्तरायण के आरम्भ से होनी चाहिये जो कि बसंत संपात बिंदु है और मकर संक्रांति से सम्बंधित कार्यों की शुरुआत सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से।


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