प्रश्न: जातक को अपना घर कब प्राप्त होता है, ज्योतिषीय योग, दशा और गोचर को निम्न कुंडली पर प्रयोग करते हुए अपने नियमों को प्रतिपादित करें। जातक का घर स्वर्जित होगा या पैतृक यह भी स्पष्ट करें। सामान्यतः घर (भवन/ मकान) का विचार चतुर्थ भाव, चतुर्थेश, कारक चंद्र, बुध व भूमि कारक मंगल से किया जाता है। जब उपरोक्त ग्रहों का समय (दशा, गोचर) व योग जैसे- चतुर्थ भाव में पंचमहापुरूष योग आदि व इनके ग्रहों का समय (दशा, गोचर के अनुसार) चले, तब घर प्राप्ति का योग बनता है। घर प्राप्ति में शनि की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। बशर्ते की ये कुंडली में केंद्र, त्रिकोण में बली हों। लग्न-लग्नेश ‘स्वपराक्रम’ व द्वितीय द्वितीयेश ‘‘पैतृक’’ चीजों को दर्शाता है। एकादश भाव लाभ व आय का है। कुछ मुख्य नियमों के साथ विचार गोष्ठी की कुंडली का विवेचन निम्न है:-
- जब चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं नैसर्गिक कारक मंगल तथा चतुर्थ कारक चंद्र व बुध, शुभ ग्रहों से प्रभावित हो तथा केंद्र व त्रिकोण में बली होकर स्थित हो तो जातक को जमीन, जायदाद, मकान आदि सुख देता है।
- चतुर्थेश, चतुर्थ भाव में स्वगृही हो। यहां सूर्य, चंद्र को छोड़कर बाकी पांचों ग्रहों (मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) से पंचमहापुरूष के योग बनते हैं। या चतुर्थ भाव में उच्च ग्रह हो तब उपरोक्त सुख मिलता है।
- योग 1 व 2 की महा-अंतर्दशा में उपरोक्त सुख मिलते हैं।
- चतुर्थ भाव में द्वितीयेश व एकादशेश दोनों ही स्थित हो तो जातक को एक से अधिक भवनों, जमीन-जायदाद व संपत्ति का सुख मिलता है।
- चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह स्थित हों।
- चतुर्थेश व लग्नेश में मित्रता हो।
- चतुर्थेश शुभ वर्गों में गया हो।
- चतुर्थेश का पंचमेश एवं नवमेश से संबंध हो।
अचानक भवन की प्राप्ति के योगः
- यदि लग्नेश व सप्तमेश चतुर्थस्थ होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अचानक मकान की प्राप्ति होती है।
- यदि चतुर्थेश व लग्नेश, चतुर्थ भाव में स्थित हो तो अचानक दूसरों के द्वारा निर्मित भवन की प्राप्ति होती है अथवा किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा वसीयत आदि के द्वारा भवन की प्राप्ति होती है।
- चतुर्थेश व भाग्येश, चतुर्थ भाव में हो।
पैतृक भवन की प्राप्ति के योग:
- यदि पत्री में चतुर्थेश, द्वितीय भाव में हो तो व्यक्ति को पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है। - द्वितीयेश, चतुर्थ भाव में हो।
- द्वितीयेश, चतुर्थेश में भाव परिवर्तन हो।
- चतुर्थेश एकादश भाव में स्थित हो।
-. लग्नेश का द्वितीयेश, चतुर्थेश व एकादशेश से संबंध हो या इनमें भाव परिवर्तन हो।
- मंगल व शुक्र बली हो अथवा ये दोनों 2, 11 भाव में स्थित हो।
- यदि चतुर्थ भाव में कुंभ राशि हो या शनि से दृष्ट राहु हो।
स्वार्जित भवन प्राप्ति योग:
- यदि लग्नेश, चतुर्थ भाव में स्थित हो या चतुर्थेश लग्न में स्थित हो या दोनों में भाव परिवर्तन हो अथवा चतुर्थेश का लग्न, लग्नेश पर प्रभाव (युक्ति, दृष्टि द्वारा) या लग्नेश का चतुर्थ भाव, चतुर्थेश पर प्रभाव हो तो जातक स्वअर्जित भवन, संपत्ति प्राप्त करता है।
- यदि चतुर्थेश व दशमेश, चंद्रमा व शनि से युक्त हो।
- चतुर्थ भाव में शुक्र व चंद्र की युति हो।
- चतुर्थ भाव में कोई ग्रह उच्च का स्थित हो।
- यदि चतुर्थेश शुभ ग्रह से युक्त होकर 1, 4, 5, 7, 9, 10 भाव में स्थित हो।
- यदि लग्नेश चतुर्थ भाव में हो तथा मंगल व गुरु से दृष्ट हो।
- यदि चतुर्थेश गुरु, शुक्र से प्रभावित होकर केंद्र, त्रिकोण में स्थित हो। बिना प्रयास के अथवा स्वल्प प्रयास से भवन योग - लग्नेश व सप्तमेश लग्न में हो और चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो।
- लग्नेश व चतुर्थेश लग्न में हो और चतुर्थ भाव को शुभ ग्रह देखते हों।
- चतुर्थेश बली हो (उच्च, स्वगृही) तथा नवमेश केंद्र में हो।
- ‘लग्नेश व सप्तमेश, 1 या 4 भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो व नवमेश केंद्र में हो तथा चतुर्थेश बली हो।
- चतुर्थेश व दशमेश, केंद्र या त्रिकोण में हो।
- यदि चतुर्थ भाव में बुध की राशि में शनि हो और बुध स्वराशि या उच्च का हो। एक से अधिक भवनों का योग - यदि चतुर्थेश या चतुर्थ भाव, चर राशि (1, 4, 7, 10) में हो तथा इन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक अनेक भवनों का स्वामी होता है पर भवन बदलते रहते हैं।
- यदि चतुर्थेश व दशमेश की युति, मंगल व शनि के साथ हो। - चतुर्थेश बली हो तथा लग्नेश, द्वितीयेश व चतुर्थेश यदि 1, 4, 5, 7, 9, 10 में हो।
अन्य सम्पत्ति के योग:
- यदि चतुर्थेश बली होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तथा द्वितीयेश व एकादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो तो धन-संपदा युक्त भवन की प्राप्ति होती है।
- यदि तृतीयेश व कारक मंगल चतुर्थेश से संबंध बनाये तो भाईयों द्वारा भूमि, भवन का सुख मिलता है।
- यदि शुक्र चतुर्थ भाव में एवं चतुर्थेश सप्तम भाव में हो और दोनों मित्र हो तो स्त्री द्वारा भवन की प्राप्ति होती है या चतुर्थेश, सप्तमेश व कारक शुक्र का संबंध हो तो भी स्त्री द्वारा भवन प्राप्ति होती है।
- यदि स्त्री संज्ञक ग्रह, चतुर्थ भाव में हो और चतुर्थेश, सातवें भाव में हो तो विवाह के पश्चात भूमि, भवन का सुख प्राप्त होता है।
- यदि चतुर्थ व दशम भाव में भाव परिवर्तन हो तथा कारक मंगल बली हो तो जातक बहुत अधिक मकान का स्वामी होता है।
- यदि लग्नेश, बुध की राशि में षष्ठ भाव में स्थित हो तथा यह बली बुध द्वारा दृष्ट हो तथा चतुर्थेश से संबंध बनाये तो नाना-मामा की सहायता से भवन, भूमि प्राप्त करता है।
- यदि कारकांश लग्न में चतुर्थ भाव में उच्च राशि ग्रह स्थित हो तो जातक को स्वतंत्र व वैभवपूर्ण मकान की प्राप्ति होती है। अथवा कारकांश लग्न में चतुर्थ भाव में चंद्र$गुरु हो तो भी भवन की प्राप्ति होती है।
- यदि चतुर्थेश, वैशेषिकांश में परमोच्च हो अथवा चतुर्थेश, जिस नवांश में हो उसका स्वामी केंद्र में स्थित हो तो निजी भवन की प्राप्ति होती है।
- यदि चतुर्थेश, पंचम त्रिकोण भाव में गोचरादि अंशों में हो तो भूमि सुख प्राप्त होता है।
- यदि चतुर्थ भाव में चंद्र हो तो जातक को कृषि भूमि देता है तथा चंद्र के साथ गुरु या चंद्र नक्षत्र गतिशील होने पर फार्म हाउस का सुख देता है।
- यदि चतुर्थ भाव में शुक्र राशि, शुक्र ग्रह या शुक्र नक्षत्र स्थित हो तो जातक को गार्डन/लाॅन/रिसोर्ट का सुख देता है।
- कुंडली में शनि उच्च राशि में स्थित हो तो जातक अनेक भूमि, भवनों व संपत्ति का स्वामी बनता है।
- यदि केतु चतुर्थ भाव में या अपने ही नक्षत्र में स्थित हो तो या अपनी ही मित्र राशि में स्थित हो तो भूमि लाभ, प्राॅपर्टी डीलर बनाता है। वही राहु हो तो सुख से वंचित कराता है।
- यदि षष्ठेश एवं षष्ठ भाव का संबंध चतुर्थेश एवं चतुर्थ भाव से हो तो व्यक्ति ऋण लेकर बना हुआ भवन खरीदता है।
- यदि चतुर्थ भाव एवं चतुर्थेश पर शनि का प्रभाव हो तो जातक पुराना भवन खरीदता है।
- चतुर्थेश नवमेश का संबंध हो।
- चतुर्थेश के द्वादश भाव में होने पर जातक दूसरों के भवन में रहता है। यदि चतुर्थेश अष्टम भाव में निर्बल हो तो भवन, भूमि, संपत्ति का अभाव रहता है।
- लग्नेश व चतुर्थेश बली हो तथा तृतीय भाव शुभ ग्रह युक्त हो।
- तीनों त्रिकोण भाव (1, 5, 9) में बली ग्रह हो।
- तीनांे त्रिक भाव में कोई अश्ुाभ ग्रह न हो। यदि हो तो किराए के मकान में रहना पड़ता है या भवन का अभाव रहता है।
- जब चतुर्थ भाव से मंगल व शुक्र का संबंध हो जाये तब भूमि क्रय करके भवन बनाने का योग होता है।
- उपरोक्त में यदि केवल शुक्र का ही संबंध हो तो बना-बनाया भवन खरीदने का योग होता है।
- चतुर्थ भाव में कुंभ राशि पर शनि की दृष्टि होने पर जातक को बंटवारे में भूमि मिलती है।
- यदि चतुर्थेश 2 या 11 भाव में स्थित हो तो भूमि क्रय के बाद इसकी कीमत काफी बढ़ जाती है।
- यदि 7, 9, 11 भाव के स्वामी लग्न में स्थित हों तो जातक को अचल संपदा, भूमि, भवन आदि का सुख मिलता है। विचार गोष्ठी की कुंडली में जातक का लग्नेश चंद्र च तृतीयेश बुध जो दोनों ही चतुर्थ (भवन) भाव के कारक ग्रह हैं, में भाव परिवर्तन शुभ है। द्वितीयेश सूर्य, जो पैतृक भवन का स्वामी है, लग्न में बुधादित्य योग में शुभ है।
भूमि कारक मंगल दशमेश पांचवें भाव में शुभ स्थित है तथा चतुर्थेश शुक्र जो आय, लाभ भाव में स्वगृही है, दोनों परस्पर दृष्टि प्रभाव में शुभ हैं। साथ ही दशम भाव में स्थित नीच के शनि की चतुर्थ भाव पर दृष्टि शुभ है अतः जातक को पैतृक व स्वअर्जित दोनों ही तरह के, एक से अधिक भवनों का सुख प्राप्त होगा। जातक को पहला भवन सुख राहु में शुक्र की अंतर्दशा (12-9-92-12-9-95) तथा मंगल की अंतर्दशा (6-2-1998-24-2-1999) में प्राप्त हुआ होगा, यह संभावना प्रबल थी।
इसके पश्चात गुरु की महादशा में शुक्र से मंगल की अंतर्दशा (6-9-2009 से 30-9-2012) में भवन (घर) प्राप्ति की संभावना प्रबल रही होगी क्योंकि गुरु भाग्येश होकर तृतीय भाव में बुध की राशि में तथा लग्नेश चंद्र के साथ युति कर गजकेसरी योग बना रहा है। शुक्र चतुर्थेश है, सूर्य पैतृक द्वितीय भाव का स्वामी है। मंगल भूमि का कारक स्वगृही है।
अतः उपरोक्त घर प्राप्ति के योग की संभावना प्रबल, उपरोक्त समय में रही होगी। घर प्राप्ति में शनि की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, चतुर्थ घर भाव पर शनि की उच्च दृष्टि तथा शनि महादशा में शनि की ही अंतर्दशा (24-2-2015 से 27-2-2018 तक) में घर प्राप्ति का योग प्रबल है। अतः इस दौरान एक से अधिक पैतृक व स्वअर्जित घर (मकान) के सुख जातक को प्राप्त हुये होंगे। इसकी प्रबल संभावना है।