जिंदगी है जीने के लिए न कि खुदकुशी के लिए
जिंदगी है जीने के लिए न कि खुदकुशी के लिए

जिंदगी है जीने के लिए न कि खुदकुशी के लिए  

आभा बंसल
व्यूस : 5277 | जनवरी 2016

लोग कहते हैं किसी एक के जाने से हमारी जिंदगी रूक नहीं जाती लेकिन यह भी एक सच है कि लाखों के मिल जाने से भी उस एक की कमी पूरी नहीं होती आजकल के युवावर्ग को आत्महत्या अपनी मानसिक परेशानी, दुःख, अभाव या किसी भी समस्या से मुक्ति का बहुत सरल उपाय लगता है। सुबह जब भी समाचार पत्र उठाओ कोई न कोई खबर आत्महत्या की अवश्य मिल जाती है। पति-पत्नी में आपसी रंजिश, माता-पिता से मानसिक मतभेद, प्रेमी-प्रेमिका के रिश्तांे में बनावटीपन अथवा विवाहेत्तर संबंध, पढ़ाई में कम नंबर आना अथवा अपनी किसी प्रिय वस्तु जैसे मोबाइल का खो जाना आदि कितनी छोटी बातें हैं जिन्हें हल करने की बजाय व्यक्ति खुद को खत्म करने की कोशिश करता है।

जो जीवन हमें ईश्वर ने कितने पुण्यों के पश्चात् दिया है, उसे व्यक्ति खत्म करने में एक सेकेंड नहीं लगाता। यह शायद आज के समय में धैर्य, हौसले, खुद पर विश्वास की कमी है कि व्यक्ति अपने भविष्य के बारे में अन्य विकल्पों के बारे में नहीं सोच पाता और जिंदगी को खत्म करना ही उसे आखिरी और आसान विकल्प लगता है। जीवन को एक चुनौती के रूप में जीना और हर समस्या का हल दृढ़ इच्छाशक्ति और विश्वास से निकालना ही जीने की कला है। यही दिल्ली पुलिस के ए.सी.पीअमित सिंह के साथ हुआ। उन्होंने 16 नवंबर 2015 को नोयडा सेक्टर 100 स्थित लोटस अपार्टमेंट में अपने ही सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली और जब उनकी पत्नी डाॅ. सरिता सिंह ने उन्हें मृत देखा तो उसने भी तुरंत चाकू से अपने को खत्म करने की कोशिश की और जब उन्हें पड़ोसियों ने रोक लिया तो वे तुरंत बालकनी में जाकर चैथी मंजिल से नीचे कूद गईं।

उन्हें तुरंत पास के ही अस्पताल में बहुत ही बुरी हालत में दाखिल कराया गया लेकिन दो दिन बाद वे भी इस दुनिया से चली गईं और पीछे छोड़ गईं केवल 18 महीने की नन्हीं बच्ची जिसने अभी बोलना भी शुरू नहीं किया और न ही वह अपने माता-पिता का सुख कभी भोग पाएगी। ए.सी.पी. अमित सिंह दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के तेज तर्रार अधिकारियों में गिने जाते थे। मूलरूप से छपरा (बिहार) के रहने वाले अमित सिंह का तीन साल पहले ही बांदा की रहने वाली बी. डी. एस डाॅ. सरिता सिंह से विवाह हुआ था। अमित सिंह एक मध्यम परिवार से थे। उनके माता-पिता ने उन्हें काफी उम्मीदों के साथ इतना पढ़ाया था और अमित भी अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते थे।

इतनी बड़ी पोस्ट पर पहुंच कर वे अपने परिवार को वे खुशियां देना चाहते थे जिनको उसके माता-पिता ने उसकी खुशी के लिए कभी चाह ही नहीं की थी। उनका एक सपना था कि जब उन्हें उनका मुकाम हासिल हो जाएगा तो अपने माता-पिता को अपने साथ रखेंगे, बढ़ती उम्र में उनका सहारा बनेंगे। उनकी मां का स्वास्थ्य काफी समय से खराब चल रहा था। वे भी अपनी व्यस्तता की वजह से उनका ठीक से इलाज नहीं करवा पाए थे लेकिन दिल्ली आकर उनका यही प्लान था कि अब अपनी मां को अपने पास बुलाकर उनका इलाज कराएंगे। इनकी बहन भी वैधव्य के दुख में जी रही थी।

वे चाहते थे कि उसे पढ़ाकर उसको स्वावलंबी बना दें। इधर सरिता बांदा के बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार की पुत्री थी। उन्होंने मेरठ के काॅलेज से ही बीडी. एस. की पढ़ाई की थी। शुरू से हाॅस्टल में रही थी और आजाद ख्यालों की नवयुवती थी। विवाह के एक वर्ष में ही काव्या का जन्म हो गया था जिसके कारण विशुद्ध घरेलू जीवन सरिता को कड़ा बंधन लगता था। वह अभी नौकरी करना चाहती थी, अपना करियर बनाना चाहती थी पर अमित चाहते थे कि वह घर और बच्चे की जिम्मेदारी अच्छी तरह से संभाले। उन्हें लगता था कि जब वे इतनी अच्छी प्रतिष्ठित पद पर हैं तो सरिता को नौकरी करने की क्या जरूरत है और फिर काव्या को जो परवरिश मां दे सकती है वह नौकर नहीं दे सकता। बस यहीं से शुरू हो गया आपसी मतभेदों का दौर। अमित चूंकि स्पेशल सेल में थे इसीलिये काफी व्यस्त रहते थे। घर पर जब भी जाते सरिता से उनकी कहा सुनी हो जाती थी। वह अपनी नौकरी की चाह के कारण बहुत व्यथित रहती थी। उधर अभी कुछ समय से वह अपनी मां और बहन को भी घर लाना चाहते थे। मां का इलाज कराना चाहते थे पर सरिता को यह पसंद नहीं था। वह अपने जीवन में उनकी दखलंदाजी नहीं चाहती थीं।

इन्हीं बातों को लेकर उनमें अक्सर झड़प हो जाती थी और अमित अंदर ही अंदर घुलते जा रहे थे। वह अपना दुख किसी से शेयर भी नहीं कर सकते थे और अपने माता-पिता के लिए अपना फर्ज न निभा कर आत्मग्लानि के बोझ तले दबते जा रहे थे। 16 नवंबर की रात भी शायद दोनों के बीच इन्हीं बातों को लेकर झगड़ा हुआ होगा और अमित अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाए और उनकी मानसिक संवेदनाएं इतनी बढ़ गईं कि कुछ ही सेकेंड में उन्होंने अपनी ही सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली और उधर सरिता ने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा था कि आपसी रंजिश इस तरह का मोड़ लेगी और वह अमित की आत्महत्या का सबब बन जाएगी। वह भी शायद खुद को माफ नहीं कर पाई और तुरंत ही अपने को खत्म करने का निर्णय ले लिया। निश्चित रूप से इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया। थोड़ा सा धैर्य, विश्वास और दृढ़ संकल्प निश्चित रूप से दोनों की जान बचा सकता था। लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। आइये देखते हैं अमित की जन्मकुंडली के आइने से अमित की कुंडली के अनुसार इनका सिंह लग्न है तथा सिंह राशि में ही मन के कारक चंद्र और शनि की युति बन रही है।

इस युति ने जहां एक ओर उन्हें कुशल प्रशासक बनाया वहीं इस युति से विष योग भी बन रहा है जिसके कारक अमित अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाए। मारकेश शनि की लग्न में चंद्रमा से युति होने से अमित अत्यधिक मानसिक तनाव से ग्रस्त थे और इसीलिए पत्नी से झड़प होने के बाद स्वयं को समाप्त कर लिया। अमित अत्यंत ही भावुक और संवेदनशील व्यक्ति थे। लग्न में पूर्ण बलवान चंद्रमा उन्हें अति संवेदनशील बना रहा था। वे न तो किसी का दिल दुखा सकते थे और न ही अपने दिल को कठोर बनाकर अपना जीवन बिता सकते थे। छोटी-छोटी बातंे उन्हें अंदर तक कचोट देती थी। सुख कारक चंद्रमा व्ययेश होने के कारण सुख का व्यय कर रहा था तथा दुःख कारक व मारकेश शनि के साथ होने से अधिक मानसिक प्रताड़ना भी दे रहा था। अमित की कुंडली में सप्तमेश शनि मारकेश भी है। कुंडली का दूसरा मारक ग्रह बुध भी सप्तम स्थान अर्थात पत्नी के स्थान में स्थित है तथा अष्टम से अष्टम स्थान का स्वामी शुक्र भी पत्नी स्थान में स्थित है। अमित की कुंडली में सप्तमेश और लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग भी बन रहा है।

इसलिए पत्नी से मतभेद होने के बाद अमित ने आत्महत्या की और सरिता ने भी तुंरत ही अपने को खत्म करने के लिए छलांग लगा दी। अमित की कुंडली में दशमेश शुक्र, लग्नेश सूर्य और लाभेश व धनेश बुध तीनों ग्रह केंद्र में युति बना कर बहुत बलवान हो गये हैं। पंचमेश गुरु और भाग्येश मंगल भी लाभ भाव में युति में हैं तथा गुरु की दशमेश शुक्र पर भी दृष्टि है। इसलिए अमित को पुलिस विभाग में उच्च पद की नौकरी प्राप्त हुई और वे अपने करियर में निरंतर प्रगति पर थे। सप्तमेश लग्नेश की परस्पर दृष्टि योग होने से तथा सप्तम भाव बलवान होने से इनका विवाह अति विशिष्ट संपन्न परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की से हुआ। वर्तमान समय में अमित की राहु की दशा चल रही थी तथा राहु मारक भाव में बैठे हैं और गोचरस्थ राहु भी उसी भाव से गोचर कर रहे हैं। सप्तमेश शनि जो मारकेश भी है वह सुख भाव के ऊपर से गोचर कर रहे थे और दशम दृष्टि से लग्नस्थ चंद्र और शनि को पूर्ण दृष्टि देकर अमित के मानसिक संतुलन को बिगाड़ रहे थे जो दांपत्य जीवन के लिए अशुभ होता है। दूसरी ओर राहु में व्ययेश चंद्र की अंतर्दशा अत्यंत अशुभ होने से मारक बन गई। बृहत् पराशर होरा शास्त्र के अनुसार भी अमित की कुंडली में अल्पायु योग बन रहा है।

बृहत् पराशर होरा शास्त्र के अनुसार यदि चंद्र, लग्न या सप्तम में हो तो चंद्र तथा शनि से ही आयु का विचार करना चाहिए। अमित की कुंडली में शनि और चंद्र, लग्न में स्थिर राशि में हैं जिसके कारण अल्पायु योग बनता है। इस संसार में कई तरह के मनुष्य होते हैं। कुछ वे जो प्रातः स्मरणीय, संवेदनशील, दया, स्नेह, कर्तव्यनिष्ठ व मानवोचित देवतुल्य गुणों से भरपूर तथा कुछ वे जो आत्मकेंद्रित होते हैं और अपने कर्तव्यों की अपेक्षा अधिकारों की ही बात करते हैं लेकिन आत्म केंद्रित व्यक्ति दया की भावना से रहित होने लगता है। उसे दूसरों की भावना की कद्र कम ही होती है तथा उसे अपनी स्वार्थपरता के आगे सबकुछ छोटा लगने लगता है। वह केवल अपने ही बारे में सोचने लगता है। ऐसे आत्मकेंद्रित मनुष्य को यदि किसी संवेदनशील, विनम्र व सरल स्वभाव के मनुष्य के संग रहना हो तो यह बात तय है कि वह उस सरल मनुष्य का पूर्णतया शोषण कर सकता है।

ऐसा ही हुआ एसीपी सिंह के साथ जो एक अत्यंत सरल, विनम्र, क्षमाशील व अतिसंवेदनशील व्यक्ति थे जबकि उनकी पत्नी पूर्णतया आत्मकेंद्रित व केवल अपने ही बारे में सोचने वाली आधुनिक विचारों की महिला थी। एसीपी सिंह संस्कारी थे इसलिए अपनी बीमार मां की सेवा करना चाहते थे परंतु अपनी पत्नी के सामने उनकी एक न चली। एसीपी साहब विचलित हो उठे। उन्होंने सोचा कि जिस मां ने उन्हें 9 महीने अपनी कोख में रखा, जन्म दिया, पाल-पोस कर बड़ा किया, पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाया उस मां के लिए आज वे कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। उनकी आत्मा द्रवित हो उठी। वे अपने आप को पूर्णतया असहाय महसूस करने लगे और क्षणिक आवेश में आकर उन्होंने अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर ली और अपने पीछे अपने बुजुर्ग मां-बाप व अपनी नन्हीं सी बच्ची को रोता-बिलखता छोड़ गए।

समाज में बढ़ती हुई आत्महत्याओं से हम सबको आत्ममंथन करना चाहिए कि यह जीवन जिसे ईश्वर ने जीने के लिए दिया है उसे हम कैसे अपनी बेबसी में खत्म कर सकते हैं। समय कभी भी एक सा नहीं रहता है। आज बुरा है तो कल अच्छा होगा इसलिए घबराएं नहीं। विश्वास रखें कि अच्छा समय अवश्य आएगा और आज यदि ईश्वर मेहरबान है तो कल नजरें फेर भी सकते हैं इसलिए धरातल पर रहना सीखें। छोटी-छोटी बातों पर इतना व्यथित नहीं होना चाहिए बल्कि थोड़ा संयम रख, दूसरे रास्तों को तलाशना चाहिए। अमित यदि थोड़ा संयम रखते, सरिता से शांति से बात करते, या फिर अपना दृढ़ संकल्प लेते तो निश्चित रूप से कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकल आता और काव्या बिना माता-पिता की न रहती। इस घटना को बीते अभी कुछ ही दिन हुए थे कि कुछ दिन पहले ऐसी ही घटना फिर से पढ़ने को मिली जिसमें पति की मृत्यु के पश्चात पत्नी ने भी चैथी मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली और पीछे 6 वर्ष की बच्ची को छोड़ गई ।

ऐसी घटनाएं वास्तव में सभी को बहुत कष्ट देती हैं क्योंकि आत्महत्या करना हिंसा और जघन्य अपराध है। जिस प्रकार दूसरों को कष्ट पहुंचाना गलत है ठीक उसी प्रकार अपने को कष्ट देना या आत्महत्या करना भी धर्म के विरुद्ध है। आवश्यकता है गांधी, बुद्ध, महावीर व सनातन धर्म की रीढ़ अहिंसा के पुनरावलंबन की जिससे नयी पीढ़ी जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए पथभ्रष्ट न हो और उन्हें अपनी इच्छाशक्ति व आत्म विश्वास का सुदृढ़ीकरण करने हेतु उचित मार्गदर्शन प्राप्त हो सके। मन, वचन व कर्म से किसी को कष्ट न पहुंचाएं। मन, वचन व कर्म से किसी को भी कष्ट पहुंचाना हिंसा कहलाता है। यदि एक अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति को मन, वचन या कर्म से अत्यधिक पीड़ा पहुंचाई जाय तो वह उसका प्रतिकार नहीं कर पाता और प्रायः पलायन कर जाता है। इसलिए कभी किसी को इतना कष्ट न पहुंचाएं कि उसे घुटन महसूस होने लगे और वह जीवन से हार मानकर पलायन कर ले।



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