ज्योतिष एक प्राचीन विज्ञान है जो कि वैदिक काल से चला आ रहा है। इसकी अपनी महत्ता है। ज्योतिष हमारे ऋषि मुनियों द्वारा दी हुयी ऐसी विद्या है जो विरासत में हमें मिली है, जिसका उपयोग मानव कल्याण हेतु किया जा रहा है। ज्योतिष के माध्यम से मनुष्य के जीवन में होने वाली घटनाओं के बारे में एवं हो चुकी घटनाओं के बारे में ज्ञात किया जा सकता है।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण में पितामह सिद्धान्त के अनुसार: वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ताः कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञाः। तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्योतिषं वेद से वेद सर्वम्।। वेदों का प्रवर्तन यज्ञों के सम्यक् सम्पादन के लिये हुआ। वे यज्ञ भी काल के सम्यक् ज्ञान होने पर ही यथाविधि सम्पन्न होते हैं। यह ज्योतिषशास्त्र काल का विधायक है, अतः जो ज्योतिष को जानता है, वह सब कुछ जानता है। इस ज्योतिषशास्त्र को वेद का चक्षु (नेत्र) कहा गया है। इसी कारण वेदांगों में इसकी मुख्यता कही गयी है। कर्ण, नासिका आदि दूसरे अंगों से सम्पन्न होने पर भी नेत्र रूपी अंग से हीन होने पर मनुष्य कुछ भी करने में समर्थ नहीं हो पाता है।
व्यक्ति का स्वास्थ्य ही बड़ा धन है। उसके लिये उसका स्वास्थ्य ही उसकी सम्पत्ति है। भगवान द्वारा रचित इस सुन्दर काया को स्वस्थ रखने के लिये मनुष्य द्वारा विभिन्न तरीकों से योगदान दिया जाता है। समय एक सा न रहने के कारण परिस्थितियाँ बदलती जा रही हैं। पहले संयुक्त परिवार होते थे एवं शारीरिक श्रम अधिक होता था, परन्तु आज न तो संयुक्त परिवार है और न ही शारीरिक श्रम। इस आधुनिक युग में मनुष्य की जीवन शैली मंे से शारीरिक श्रम कम होता जा रहा है एवं मानसिक श्रम बढ़ता जा रहा है। विश्व भर में प्रतियोगिताओं का दौर चल रहा है। नौकरी में उतार-चढ़ाव, व्यवसाय में उतार-चढ़ाव अथवा बेरोजगारी के भय से मनुष्य आज हर संभव मानसिक पीड़ा न चाहते हुये भी लेने को तैयार है। अधिकतर समय अपनी आजीविका को बचाने या सही रूप से चलाने मंे निकल जाता है जिसके चलते दैनिक जीवनचर्या पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। आयुर्वेद में लिखा है कि जो भी हम खाते हैं उसे शारीरिक श्रम के माध्यम से जरूर पचायें अन्यथा शरीर में रोग उत्पन्न होना शुरू हो जाते हैं।
इस वर्तमान युग में शारीरिक श्रम धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और मनुष्य का खान-पान भी सही नहीं रहा है। कहावत है जैसा ‘अन्न’ वैसा ‘मन’। ज्योतिष षास्त्र में ऐसे अनेक ग्रह योग एवं ग्रह-स्थितियाँ वर्णित हैं जिससे जातक के रोग का निर्धारण संभव है, किन्तु वह जिस युग में लिखे गए थे, उनमें कुछ बदलाव हो चुके हैं। रोगों के क्षेत्र में नये-नये रोगों का प्रवेष हुआ है जिसके कारण नये रोग जैसे मधुमेह, कैंसर आदि उद्भूत हुए हैं, जिनके ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में गहन अध्ययन की आवष्यकता है। इसीलिये यह आवष्यक हो जाता है कि रोगों को निर्धारित करने वाले ग्रह योग एवं स्थितियों को बदलते युग में दुबारा वर्णित किया जाय। रोग शब्द विस्तृत है जिस पर आद्योपांत शोध करना एक बार में संभव नहीं है। हम यहां मधुमेह रोग अर्जित करने वाले ग्रहयोगों एवं ग्रहस्थितियों में गुरु ग्रह व षुक्र ग्रह की भूमिका पर ही अध्ययन केन्द्रित एवं सीमित रखेंगे । ज्योतिष में मधुमेह रोग को उद्घाटित करने वाली ग्रह स्थितियों व योगों को लेकर अभी तक कोई शोध कार्य नहीं किया गया है जिसके कारण स्पष्टता से यह कहा जाना कठिन है कि अमुक जातक को मधुमेह रोग होगा या नहीं।
इसीलिये यह अत्यंत जरुरी है कि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिये। प्रस्तावित शोध विषय ‘मधुमेह रोग में ग्रहों की भूमिका’ के पूर्ण होने पर ऐसे ग्रह-योग एवं ग्रह स्थितियों का पटाक्षेप हो सकेगा, जिनकी विद्यमानता जन्म कुण्डली में होने पर यह फलकथन किया जा सकेगा कि अमुक जातक को मधुमेह रोग होने की संभावना है। ग्रह संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कुछ मापदण्ड तैयार किए गए हैं जिनको अलग - अलग जन्म कुण्डलियों पर लागू करके देखा जायेगा और निष्कर्षों की प्राप्ति की जायेगी।
जन्मकुण्डली में मधुमेह के लिए निम्नांकित मापदण्ड इस प्रकार हैं:
1. बृहस्पति 6, 8, 12 वें भाव मंे स्थित हों।
2. बृहस्पति जब नीच राशि का हो।
3. पंचमेष (पंचम भाव का स्वामी) 6, 8, 12 में से किसी भाव में स्थित हो या इन भावेषों से युक्त हो।
4. छठे भाव में राहु हो या छठे भाव को एवं बृहस्पति को राहु पीड़ित कर रहा हो।
5. राहु की बृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो या बृहस्पति और शुक्र को राहु पीड़ित कर रहा हो (दृष्टि द्वारा)।
6. बृहस्पति अशुभ व कमजोर हो एवं राहु के नक्षत्र में हो।
7. बृहस्पति अशुभ व कमजोर हो एवं शनि से दृष्ट व उसके नक्षत्र में हो।
8. राहु अष्टमेश के साथ युति बना रहा हो वो भी अष्टम भाव, षष्ठ भाव या द्वादश भाव में।
9. गुरु व षुक्र की युति किसी भी भाव में हो और वो लग्न, पंचम भाव तथा 6, 8 व 12 भाव से सम्बन्ध बनाये।
10. गुरु और षुक्र की पंचम भाव में युति हो।
72 प्रतिषत है। मापदण्ड संख्या - 7 भी 15 कुण्डलियों में 34 प्रतिषत तथा मापदण्ड संख्या - 9 कुल 12 कुण्डलियों में पायी गयी, जिनका प्रतिषत उपरोक्तानुसार चार्ट में दर्षाया गया है। उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर मापदण्ड संख्या 1,3,7 एवं 9 मधुमेह रोग की दृष्टि से असंगत पाए गए। सभी मापदण्डों को 45 मधुमेह रोगियों की जन्मकुण्डली पर एवं 30 गैर मधुमेह रोगियों की जन्मकुण्डली पर लागू कर के देखा है एवं सभी आंकडों का आकलन कर निर्णय निकाला गया कि कौन-कौन से मापदण्ड कुण्डली पर लागू हो रहे हैं। कुल अंाकड़े मधुमेह रोग से ग्रस्त व्यक्तियों व गैर मधुमेह रोगियों के हैंे
जिनका विष्लेषण प्रस्तुत है-ः
45 मधुमेह रोग से ग्रस्त व्यक्तियों की कुण्डली में मापदण्ड संख्या - 1 एवं मापदण्ड संख्या - 3 सबसे अधिक 32 कुण्डलियों में पायी गयी, जो गैर मधुमेह रोगियों की जन्मकुंडलियों का विश्लेषण चित्र में दर्षाये गये आंकड़ों से स्पष्ट है कि मधुमेह रोग से ग्रस्त वाली जन्म कुण्डलियों में पाए जाने वाले मापदण्ड गैर मधुमेह वाले व्यक्तियों की जन्मकुण्डलियों में न्यूनतम पाये गये हंै।
मधुमेह रोग से ग्रस्त वाली कुण्डलियों में पाए जाने वाले मापदण्ड संख्या 1, 3, 7, 9 गैर मधुमेह वाले जातकों की कुण्डलियों में उपलब्ध नहीं हैं।
निष्कर्ष:
1. P1, P3 सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं जो मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्तियों की कुण्डलियों में उपलब्ध हांेगे और अन्य व्यक्तियों की कुण्डलियों में उपलब्ध नहीं हांेगे। अगर कुण्डली में P1, P3 घटक मौजूद हैं तो जातक/ जातिका को मधुमेह रोग होने की संभावना होती है।
2. यदि P1ए P3 घटक कुण्डली में उपस्थित हो तो P7, P9 घटक की कुण्डली में उपस्थिति मधुमेह रोग होने की संभावना प्रकट करते हैं। सिर्फ P7, P9 घटक की कुण्डली में उपस्थिति मधुमेह रोग होने की संभावना कम रहती है। 3. P2, P4, P5, P6, P8, P10 को नजर अंदाज किया जा सकता है।