ज्योतिष विषय मंे जन्मकुंडली के माध्यम से रोगों को सरलता से उद्घाटित किया जा सकता है कि ऐसी कौन सी ग्रह स्थितियां एवं ग्रह योग जन्मकुण्डली में विघमान हैं जिनके कारण जातक रोगग्रस्त होता है। आधुनिक युग में ऐसे रोग देखने में आ रहे हैं जिनका वर्णन प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थों में नहीं है जबकि विश्व भर में उसी संख्या में मानव रोग ग्रस्त है। ऐसे रोगों में से ‘मधुमेह’ हर उम्र के व्यक्ति में पाया जाने वाला कष्टकारी रोग है। आइये, इस लेख में हम ‘मधुमेह’ के रोग के ज्योतिषीय कारण पर शोधात्मक चर्चा करंे। मधुमेह क्या है? वर्तमान समय में तेजी से बढ़ते हुये रोगों में से एक डायबिटिज अर्थात मधुमेह नामक रोग है।
यह रोग साइलेंट किलर की भांति धीरे-धीरे प्रत्येक 10 में से 4 व्यक्तियों को अपने शिकंजे में लेता जा रहा है। आजकल के इस भागदौड़ वाले समय में हमारी अनियमित दिनचर्या ने भी इस रोग को तेजी से बढ़ने में मदद की है। दैनिक जीवन में शक्ति प्राप्त करने के लिए मानव शरीर की कोशिकाओं को ग्लूकोज नामक अवयव चाहिए होता है जो हमारे भोजन से प्राप्त होता है। इस ग्लूकोज को विभिन्न कोशिकाओं में पहुंचाने हेतु अग्नाशय पैंक्रियाज द्वारा एक हारमोन इंसुलिन निकाला जाता है जो रक्त कोशिकाओं में ग्लूकोज पहुंचाता है
जिससे शरीर को शक्ति प्राप्त होती है। जब यह इंसुलिन किसी भी कारण से ठीक से निर्मित नहीं हो पाता है तब हमारे शरीर में रक्त शर्करा का चय अपचय मेटाबाॅलिज्म सही ढंग से नहीं हो पाने से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है जिसे उचित मात्रा में गुर्दे अवशोषित नहीं कर पाते हैं और हमारे शरीर में ग्लूकोज की अधिकता के कारण यह मधुमेह नामक रोग जन्म ले लेता है।
सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में खाने के पहले खून में ग्लूकोज का लेवल 70 से 100 उहध्कस रहता है। खाने के बाद यह लेवल 120-140 उहध्कस हो जाता है और फिर धीरे-धीरे कम होता चला जाता है पर मधुमेह हो जाने पर यह लेवल सामान्य नहीं हो पाता और मगजतमउम बंेमे में 500 उहध्कस से भी ऊपर चला जाता है। यह रोग दो प्रकार का होता है- डी वन तथा डी टू डी वन - इस प्रकार का मधुमेह बचपन से होता है व इंसुलिन पर आधारित होता है। इसमें रोगी को प्यास ज्यादा लगती है
तथा पसीना भी ज्यादा आता है। डी टू - इस प्रकार के मधुमेह का जन्म अन्य बाहरी कारणों से होता है जैसे अनुचित खान-पान आदि। यह भी दवाइयों व इनसुलिन द्वारा संतुलित किया जाता है। यह रोग गंभीर किस्म का होता है जिससे व्यक्ति के कई अंगों पर दुष्प्रभाव पड़ने लगते हैं। मधुमेह के लक्षण - अधिक प्यास या भूख लगना।
- अचानक वजन घट जाना।
- घाव भरने में ज्यादा वक्त लगना।
- बार-बार पेशाब होना ।
- चीजांे का धुंधला नजर आना।
- लगातार कमजोरी और थकावट महसूस करना, त्वचा में संक्रमण होना और खुजली होना।
ज्योतिषीय दृष्टि से मधुमेह ज्योतिषीय दृष्टि से इस रोग के होने की संभावना का पता लगाते हैं।
पैंेक्रियाज (अग्नाश्य) अमाशय के नीचे तथा पेट के ऊपरी भाग में होता है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह कुंडली में पंचम भाव द्वारा देखा जाता है जिस भाव का कारक गुरु ग्रह माना जाता है गुरु ग्रह यकृत, लिवर, गुर्दों तथा पैंक्रियाज का कारक भी है। पैंक्रियाज का कुछ हिस्सा शुक्र ग्रह के हिस्से में भी आता है जो शरीर में बनने वाले हार्मोन्स को संतुलित करता है। हमारे शरीर में रक्त का कारक मंगल ग्रह माना गया है जो इस बीमारी में एक अहम भूमिका निभाता है। रक्त की जांच से ही मधुमेह की पुष्टि की जाती है। इस प्रकार मुख्यतः पंचम भाव, पंचमेश, गुरु, मंगल व शुक्र ग्रह का अध्ययन इस रोग की पहचान हेतु किया जाता है। सामान्यतः किसी भी रोग हेतु हमें अन्य भाव जैसे लग्न, द्वितीय भाव (खानपान), षष्ठ भाव (रोग) तथा अष्टम भाव (दीर्घ रोग) भी देखने पड़ते हैं। परंतु इस लेख में हम केवल मधुमेह रोग होने की संभावना की चर्चा कर रहे है अतः यहाँ हम सिर्फ उसी से संबंधित भावों एंव ग्रहों का अध्ययन करेंगे। शुक्र ग्रह पैंक्रियाज के कुछ हिस्से का कारक होने के साथ-साथ मूत्र का कारक भी है। उत्तर कालामृत में ऐसा कहा गया है तथा शरीर में अत्यधिक शर्करा की मात्रा का पता मूत्र के द्वारा ही चलता है।
इसलिए इस रोग में शुक्र का शामिल होना अवश्यंभावी प्रतीत होता है। शुक्र मूत्रेन्द्रिय का कारक भी है और इस रोग से पीड़ित व्यक्ति बहुमूत्र से पीड़ित भी रहता है। अतः निश्चित रूप से शुक्र ग्रह का नीच राशि में होना, दोषयुक्त होना, पाप प्रभाव में होना, 6, 8, 12 भावों में होना इस रोग का एक कारण हो सकता है। गुरु ग्रह की भूमिका यह रोग मिठास या शर्करा से संबंधित है जिसका ज्योतिषीय दृष्टि से कारक ग्रह गुरु है। इसके अलावा गुरु यकृत, गुर्दों एंव पैंक्रियाज का कारक भी है। वहीं यह विस्तार के लिए भी जाना जाता है और यह रोग दिन प्रतिदिन शनैः शनैः बढ़ता रहता है यानि फैलता रहता है। अतः कहा जा सकता है कि गुरु का किसी भी रूप में पीड़ित होना, नीच राशि में होना, वक्री होना, 6, 8, 12 भावों में होना इस रोग को जन्म दे सकता है।
वैसे तो मधुमेह रोग को ज्ञात करने के लिए 10 से 15 योग हैं वे योग जिस भी कुण्डली में हंै उस जातक या जातिका को मधुमेह रोग अवश्य होगा। ग्रह योग: गुरु व शुक्र की युति किसी भी भाव में हो और वो लग्न, पंचम भाव व 6,8,12 भावों से संबंध बनाये। इस योग को अब तक तकरीबन 150 कुण्डलियों पर लागू होते देखा है। इस योग का होना मधुमेह रोग होने की संभावना ही नहीं दर्शाता बल्कि रोग होने की स्थिति को दर्शाता है। और भी कुण्डलियों पर शोध चल रहा है और भी योग है मधुमेह रोग को ज्ञात करने के लिए परन्तु वह योग अभी कुछ-कुछ कुण्डली में फलीभूत होते देखे हैं। जिस योग को आपको बताया जा रहा है वह योग जरूर फलीभूत होगा। अगर यह योग किसी भी जन्मपत्रिका में आप देखें तो निश्चिन्त होकर आप उसको अवगत करा सकते हैं
कि आपको मधुमेह रोग होगा इसीलिये आप थोड़ा सा स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहंे एवं समय-समय पर अपनी मधुमेह रोग की जांच कराते रहें व 10-15 मिनट का योग या व्यायाम अवश्य करें। चिकित्सा ज्योतिष के अनुसार मधुमेह होने के योग जैसा कि ऊपर आप ने पढ़ा ज्योतिषीय दृष्टि से मधुमेह रोग होने की सम्भावना में गुरु, शुक्र, पंचम भाव, षष्ठ भाव व सप्तम भाव की अहम भूमिका रहती है परन्तु इन सभी ग्रहों की भूमिका का विस्तृत विवेचन किया जाना यहाँ संभव नहीं है। इसीलिये गुरु एवं शुक्र ग्रह की मधुमेह रोग होने की संभावना में जो भूमिका है उसका विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत है: लगभग 150 जन्म कुण्डलियों के अध्ययन करने के पश्चात् ही गुरु एवं शुक्र ग्रह की भूमिका निर्धारित करने मंे निम्न ज्योतिषीय योग होता है। ग्रह योग: गुरु व शुक्र की युति किसी भी भाव में हो और वो लग्न, पंचम भाव व 6,8,12 भावों से संबंध बनाये। इस शोध परिकल्पना में मधुमेह रोग होने की संभावना को प्रदर्षित किया गया है। इस योग की सत्यता जांचने के लिये 150 मधुमेह रोगियों की जन्म कुण्डलियों का अध्ययन किया गया है जिसमें से कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं
- कुण्डली संख्या 1 जन्म तिथि 8-8-1955 जन्म समय सायं 04ः30। उदाहरण कुण्डली धनु लग्न की है। गुरु लग्नेश अष्टम भाव में स्थित है एवं शुक्र जो रोग स्थान का स्वामी है वह भी गुरु के साथ अष्टम भाव में स्थित है। इस कुण्डली में उपरोक्त योग स्थित है। इस जातक को मधुमेह रोग जनवरी 2007 में ज्ञात हुआ परन्तु चन्द्र में बृहस्पति की अन्तर्दशा 31-10-2006 से प्रारम्भ हुयी अर्थात् मधुमेह रोग अक्टूबर 2006 के बाद हुआ। कुण्डली संख्या 2 जन्मतिथि 15-11-1969 जन्म समय 02-10 रात्रि। उदाहरण कुण्डली सिंह लग्न की है। पंचमेश गुरु की युति शुक्र से और लग्नेश सूर्य से है।
इस कुण्डली में भी उपरोक्त मधुमेह योग स्थित है। इस जातिका को मधुमेह रोग अक्टूबर 1998 में हुआ था। अभी भी यह जातिका मधुमेह रोग से ग्रसित है। कुण्डली संख्या 3 जन्म तिथि 31-1-1974 जन्म समय प्रातः 05ः00। उदाहरण कुण्डली धनु लग्न की है। कुण्डली में षष्ठ भाव के स्वामी शुक्र की युति लग्नेश गुरु के साथ द्वितीय भाव में है जिसके कारण जातक को मधुमेह रोग है। जातक को मधुमेह रोग जून 2008 में ज्ञात हुआ जिस समय चन्द्रमा में शुक्र की अन्तर्दशा चल रही थी। इस कुण्डली में भी उपरोक्त योग स्थित है।
कुण्डली संख्या 4 जन्म तिथि 19-09-1967 जन्म समय रात्रि 10ः03। उदाहरण कुण्डली वृष लग्न की है जिसके स्वामी शुक्र गुरु के साथ चतुर्थ भाव में स्थित है। जन्म कुण्डली में लग्नेश व षष्ठेश शुक्र की युति अष्टमेश गुरु के साथ है। इस कुण्डली में भी उपरोक्त योग स्थित है जिसके कारण जातक को मधुमेह रोग है। इनको मधुमेह रोग नवम्बर 2009 में ज्ञात हुआ। कुण्डली संख्या 5 जन्म समय 20-01-1973 जन्म समय रात्रि 10ः15 उदाहरण कुण्डली कन्या लग्न की है जिसके स्वामी बुध ग्रह हैं। प्रस्तुत जन्मकुण्डली में गुरु ग्रह वक्री एवं मृत अवस्था के हैं एवं सूर्य के नक्षत्र उत्तराषाढ़ा में स्थित हैं।
सूर्य द्वादश भाव का स्वामी है एवं गुरु का वक्री एवं मृत अवस्था में होकर शुक्र के साथ चतुर्थ भाव में बैठना भी उपरोक्त योग की सत्यता को दर्शाता है। इस जातिका को मधुमेह रोग सन् 2004 में पता चला। जल्दी पता चल जाने के कारण मधुमेह रोग पर नियंत्रण कर लिया गया व सन् 2006 में मेडिकल चेक अप में मधुमेह रोग नहीं आया। परन्तु जुलाई 2014 में फिर से मधुमेह के लक्षण महसूस हुये व चेकअप कराया तो उसमें मधुमेह रोग ज्ञात हुआ एवं वर्तमान मंे भी मधुमेह रोग से ग्रस्त है। निष्कर्ष: उपरोक्त उदाहरण कुण्डलियों से यह प्रतीत होता है।
कि कुण्डली में गुरु व शुक्र की युति किसी भी भाव में हो और वो लग्न, पंचम भाव व 6,8,12 भावों से सम्बन्ध बनाये ंतो मधुमेह रोग होता है। इस योग को अभी और भी जांचने की आवश्यकता है जिससे सूक्ष्मतम निर्णय प्राप्त किया जा सके।