प्र0- गणपति कितने प्रकार के होते हैं। वास्तु दोषो के निवारणार्थ इनका प्रयोग किस तरह किया जाता है ?
उ0-14 प्रकार की महाविद्याओं के आधार पर चैदह प्रकार की गणपति प्रतिमाएं बताई गई हंै जिनका वर्णन यहां प्रस्तुत है।
1. संतान गणपति: सन्तान गणपति की मन्त्रपूरित विषिष्ट प्रतिमा अपने द्वार पर पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा के साथ षुभ मूहूर्त में लगाएं, इससे एक वर्ष के अंदर संतान की प्राप्ति होती है।
2. विघ्नहत्र्ता गणपति: जिस परिवार में निरंतर कलह, विघ्न क्लेष एवं मानसिक संताप रहता है उस परिवार के लोगों को प्रवेष-द्वार पर विघ्नहर्ता गणपति की मूर्ति लगाना चाहिए।
3. विद्या प्रदायक गणपति: जिस घर में बच्चे उद्दंड हों, जिनका पढ़ाई में मन नहीं लगता हो, पढ़ते बहुत हों पर कुछ याद नहीं रहता हो, उस परिवार के स्वामी को प्रवेष-द्वार पर शुभ मुहूर्त में विद्या प्रदायक गणपति की मूर्ति षुभ मुहूर्त मंे स्थापित करनी चाहिए।
4. विवाह विनायक: कई घरों में लड़के-लड़कियां बड़े हो जाते हैं पर उनके विवाह में विलंब होता है। कई बार मांगलिक कुंडलियां भी बाधक होती हैं। इस समस्या के निवारण हेतु गृह-द्वार पर विवाह विनायक गणपति की स्थापना करनी चाहिए।
5. धनदायक गणपति: जिन्हें अपने परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिल पाता हो, धन की बरकत नहीं होती हो, उन्हंे अपने घर मंे धनदायक गणपति की स्थापना करनी चाहिए।
6. चिंता नाषक गणपति: जिन लोगों को निरंतर कोई न कोई चिंता बनी रहती है, जो लगातार मानसिक तनाव से ग्रस्त रहते हों, उन्हें चिंता नाषक गणपति की प्रतिमा लगानी चाहिए।
7. सिद्धिदायक गणपति: कार्यों में सफलता पाने के लिए सिद्धिदायक गणपति की मूर्ति लगानी चाहिए।
8. आनंददायक गणपति: घर मंे आनंद एवं प्रेम की वर्षा के लिए आनंददायक गणपति की प्रतिमा लगानी चाहिए।
9. विजय सिद्धि गणपति: कोर्ट-केस मुकदमे में विजय प्राप्ति और षत्रु को परास्त करने के लिए विजय सिद्धि गणपति की मूर्ति लगानी चाहिए।
10. ऋणमोचन गणपति: कर्ज से मुक्ति के लिए ऋणमोचन गणपति की मूर्ति लगानी चाहिए।
11. रोग नाषक गणपति: विभिन्न प्रकार के रोगों के शमन हेतु रोगनाषक गणपति की प्रतिमा लगानी चाहिए।
12. नेतृत्व षक्ति विकासक गणपति: नेता, अभिनेता, मंत्री, सांसद, विधायक आदि बनने तथा राजनीति में उच्च पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति हेतु नेतृत्व षक्ति विकासक गणपति की प्रतिमा लगानी चाहिए।
13. सोपारी गणपति: सोपारी गणपति के मांत्रिक प्रयोग से भारतीय अध्यात्म में वृद्धि होती है।
14. षत्रुहंता गणपति: गणपति की यह मूर्ति विभिन्न रंगांे से बनी होती है। इसे षयनकक्ष के बाहर दरवाजे पर आनंद एवं अच्छे षयन सुख के लिए लगाते हैं।
प्र0-भवन में श्रीयंत्र लगाने से क्या लाभ होता है ?
उ0- माहापुराणांे में श्री यंत्र को देवी महालक्ष्मी का प्रतीक कहा गया है। श्री यंत्र मंे 2816 देवी-देवताओं की सामूहिक अदृष्य षक्ति विद्यमान रहती है इसलिए इसे यंत्रराज, यंत्रषिरोमणि एवं षोडषी यंत्र कहा जाता है। यह आर्थिक सुख-समृद्धि एवं खुषहाली देता है।
कहा जाता है कि जिस घर में श्री यंत्र के समक्ष श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त एवं ललिता सहस्रनाम का पाठ हो वहां पर लक्ष्मी का निरंतर वास होता है। एकाक्षी नारियल, श्वेतार्क गणपति, कमलगट्टे की माला, चैदह मुखी रुद्राक्ष एवं दक्षिणावर्ती शंख के साथ इस यंत्र को रखने से लक्ष्मी एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मंत्र: ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्म्यै नमः।
प्र0-भवन में कुबेर यंत्र लगाने से क्या लाभ होता है ?
उ0- कुबेर को लक्ष्मी का खजांची कहा जाता है। जिस परिवार को धन की कमी, आर्थिक विपन्नता, गरीबी, कर्ज इत्यादि का सामना करना पड़ता हो तो उस परिवार के लोगों को भवन में श्रीयंत्र के साथ कुबेर यंत्र का पूजन करना चाहिए, इससे सम्पन्नता, आर्थिक समृद्धि एवं सुखों की वृद्धि हो है।
मंत्र: ऊं कुबेराय नमः
प्र0-भवन में सुख समृद्धि यंत्र लगाने से क्या लाभ होता है ?
उ0- जिस परिवार में आपसी संबंध अच्छा न रहता हो, सुख शांति की कमी रहती हो, उस परिवार के लोगों को सुख समृद्धि यंत्र के समक्ष लक्ष्मी एवं गणेश के मंत्रों का जप करना चाहिए। इससे आपसी संबंधों में मधुरता आएगी और परिवार सुख शांति का संचार होगा।
मंत्र: ऊं मंगलमूर्तये नमः।
प्र0-भवन में प्रेमवृद्धि यंत्र लगाने से क्या लाभ होता है ?
उ0- यह यंत्र पति और पत्नी के बीच परस्पर संबंधों में मधुरता और अपनापन बनाए रखने में मदद करता है। जिन घरों में पति और पत्नी के बीच अच्छे संबंध न रहते हों, उन्हंे इस यंत्र के समक्ष निम्न मंत्र के जप करना चाहिए इससे अप्रत्याशित लाभ मिलेगा।
मंत्र: क्लीं कामदेवाय नमः
प्र0-भवन में वास्तु यंत्र लगाने से क्या लाभ होता है ?
उ0- यह यंत्र भवन में वास्तु संबंधी सभी प्रकार के दोषों के निवारण एवं सुख-समृðि के लिए लगाया जाता है। यह एक अत्यंत उपयोगी यंत्र है।
मंत्र: ऊं वास्तुपुरुषाय नमः।
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