राजनीति के रज्जु पथ पर आगे बढ़ते
राजनीति के रज्जु पथ पर आगे बढ़ते

राजनीति के रज्जु पथ पर आगे बढ़ते  

व्यूस : 5932 | मार्च 2012
सुरेश की वैलेन्टाइन आभा बंसल, फ्यूचर पाॅइंट सुरेश जी और उनके बेटे मोहन की जिंदगी की दास्तां कुछ इस तरह आगे बढ़ी है कि कहना पड़ता है कि किसी को मुकम्मिल जहां नहीं मिलता, कहींे ज़मीं, कहीं आसमां नहीं मिलता। मोहन के पिता एक उच्च सरकारी अधिकारी थे। उनका घर सुख सुविधाओं से परिपूर्ण है। मोहन अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र है। माता-पिता ने उसे पढ़ा-लिखकर इंजीनियर बनाया। उसके बाद उसे एक सरकारी विभाग में वैज्ञानिक के पद पर नौकरी मिल गई। घर में सभी खुश थे। इस बीच अब उसके पिता भी सेवानिवृŸा हो चुके थे। मोहन के लिए अच्छे घरों के रिश्ते आने लगे थे। उसकी माताजी उसके विवाह की तैयारी करने लगी थीं। मोहन के लिए नये कमरे का निर्माण शुरु कर दिया गया था और घर में अन्य साज सज्जा का सामान खरीदा जा रहा था ताकि नवदम्पति सुख -सुविधा से रह सकें। लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। एक दिन अचानक उसकी माताजी की तबियत खराब हुई। जब डाॅक्टर के यहां जांच करवाने ले जाया गया तो डाॅक्टर ने पूरी जांच के बाद बताया कि उन्हें स्तन कैंसर है। उसके बाद पूरी तरह इलाज करवाने के बाद भी वे जी नहीं पाईं और उनकी मृत्यु हो गई। माता जी की मृत्यु के कारण मोहन के विवाह को स्थगित कर दिया गया। मोहन तो अपने काम में व्यस्त हो गया, पर उसके पिता सुरेश जी को खाली घर काटने को दौड़ता, उन्हें अपनी जीवन सगिंनी की याद सताती रहती। जीवन-संध्या के इस मोड़ पर जब उन्हें उसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी, वे उन्हें छोड़कर चली गईं। अपने खाली समय को भरने के लिए वे पास की लायब्रेरी में अधिक से अधिक समय बिताने लगे। लायब्रेरी एक स्कूल में थी, जिसकी प्रिंसिपल छाया थीं। वे छाया जी से कहकर उनके स्कूल की मासिक पत्रिका में अपना लेख भी देने लगे जिसे स्कूल में बहुत पसंद किया जाता। धीरे-धीरे समय बीतने लगा और सुरेश जी को छाया के साथ समय बिताना अच्छा लगने लगा और उनकी घनिष्ठता धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी। बातों-बातों में उन्हें पता चला कि छाया अभी तक अविवाहित है तथा कार्य की व्यस्तता के कारण विवाह के बारे में सोचा ही नहीं। इधर घर में उन्हें बहुत सूनापन लगता तो स्कूल में छाया के साथ मानो जीवन में अनेक रंग भर जाते। फरवरी का महीना चल रहा था और 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे पर हर जगह टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाओं में इस पर लेख आ रहे थे तो उनके दिल में भी कुछ नये अरमान अंगड़ाई लेने लगे और उन्होंने अपना वैलेंटाइन चुनने में ज्यादा समय नहीं लगाया। हिम्मत कर उन्होंने अपने प्यार का इजहार छाया से कर दिया। छाया भी उन्हें बहुत पसंद करने लगी थी। उसने तुरंत हां कर दी क्योंकि उसका वैलेंटाइन उसे लंबे इंतजार के बाद मिला था। कहां तो वह एकाकी जीवन बिता रही थी और इस वैलेंटाइन पर उन्हें इतना सुशील और धनवान वैलेंटाइन मिला था। सुरेश जी को समाज से थोड़ा भय तो लगा, पर जब उन्होंने मोहन को इस बारे में बताया तो वह बहुत खुश हुआ। उसने अन्य रिश्तेदारों के साथ मिलकर अपने पिता का विवाह छाया से करवा दिया। घर अब एक संपूर्ण घर लगने लगा। छाया ने आते ही एक सुघड़ गृहिणी की तरह सारा घर संभाल लिया और कुछ समय बाद मोहन का विवाह भी एक अच्छी लड़की देखकर कर दिया। लेकिन जहां सुरेश और छाया बहुत खुश थे, वहीं मोहन और उसकी पत्नी में अक्सर नोंक-झोंक होती रहती और उनके रिश्ते इस कदर तक खराब हुए कि एक वर्ष में उनका तलाक हो गया। सुरेश और छाया दोनों ही इससे बहुत दुःखी थे। कुछ दिन बाद उन्होंने दुबारा कोशिश की और फिर से मोहन का विवाह किया। अब इस विवाह से मोहन के दो बच्चे हैं। जिंदगी ठीक-ठाक चल रही है पर पति-पत्नी में बहुत अच्छे सामंजस्य का अभाव है जबकि सुरेश और छाया मानो दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं और बहुत ही सूझ-बूझ से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। आइये करें, मोहन और सुरेश जी की कुंडलियों का अवलोकन जिनके कारण जहां सुरेश जी के दोनों विवाह अत्यंत सुःखदायक तथा प्रेम से परिपूर्ण रहे, वहीं मोहन के दोनों विवाह में सामंजस्य का अभाव रहा। सुरेश जी की कुंडली में लग्नेश शुक्र, भाग्येश बुध, एकादशेश व लाभेश सूर्य एवं दशमेश चंद्र सभी ग्रह दशम भाव में बली होकर बैठे हैं। दशम भाव बहुत बली होने के कारण सुरेशजी ने सरकार में उच्चपद पर कार्य किया। सप्तमेश मंगल लाभ स्थान में षष्ठेश गुरु के साथ युति बना रहे हैं इसीलिए पहली पत्नी को रोग हुआ लेकिन दूसरा विवाह भी हुआ क्योंकि पंचम भाव को सप्तमेश पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। इसके साथ पंचमेश शनि भी सप्तमेश मंगल को देख रहे हैं। शनि इनकी कुंडली में योग कारक होकर भाग्य स्थान में है इसीलिए पंचमेश व सप्तमेश की शुभ स्थिति के कारण इनका प्रेम विवाह सुचारु रूप से व सुख तथा आनंदपूर्वक चल रहा है। दूसरी ओर मोहन की कुंडली में चतुर्थेश चंद्र पक्षबल हीन (अस्त) होकर नवम भाव में सूर्य के साथ बैठे हैं। सुख भाव में बाधक ग्रह शनि विराजमान हैं और चतुर्थेश चंद्र पर मंगल और केतू की पूर्ण दृष्टि है। नवांश में चंद्रमा नीच राशि में है इसीलिए माता की कैंसर से मृत्यु हुई और मेाहन को माता का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं हुआ। लेकिन इसी युति के कारण इन्हें सरकारी विभाग में वैज्ञानिक पद की प्राप्ति हुई तथा अपने पिता से भी सुयोग के कारण जीवन में सहयोग प्राप्त हो रहा है। वैवाहिक दृष्टिकोण से देखें तो मोहन की कुंडली में सप्तम भाव में राहू विराजमान है तथा सप्तमेश शुक्र अष्टम भाव में पाप ग्रह मंगल की पूर्ण दृष्टि में है। चलित कुंडली में शुक्र अलगाववादी ग्रह राहू के साथ अष्टम में स्थित है, नवांश में भी विवाहकारक ग्रह शुक्र अपनी नीच राशि में सूर्य और शुक्र के साथ बैठे हैं। इसीलिए प्रथम विवाह विच्छेद हुआ और दूसरे विवाह से भी पूर्ण सुखी नहीं हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.