परमात्म स्वरूपा: महाशक्ति मां दुर्गा बासंती नवरात्र्रारम्भ - 23 मार्च 2012 डाॅ. भगवान सहाय श्रीवास्तव देवी-देवताओं को जब स्वरचित सृष्टि की मर्यादा की रक्षार्थ युगों-युगों में अपनी अलौकिक योगमाया का आश्रय लेकर पुरुष या स्त्रीरूप में पैदा होना पड़ता है। जब पुरूष वेश में अवतार लेते हैं तब जगत उनकी ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि नाम से स्तुति करते हैं। और जब स्त्री रूप में अवतीर्ण होते हैं तो उन्हें मां काली, महालक्ष्मी, महासरस्वती कहते हैं। जिस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, महेश-रज, सत्व और तम प्रधान हैं। उसी प्रकार चित्त शक्ति के ये तीनों रूप भी सत्व, रज, तम आदि गुणों की अधिकता के अनुसार वेश धारण करते हुए कार्य करते हैं। चित्त शक्ति के तमः प्रधान रौद्र रूप को महाकाली कहते हैं। सत्वप्रधान वैभव रूप को महालक्ष्मी कहते हैं। रजः प्रधान ब्राह्मी शक्ति को सरस्वती कहते हैं, जो ज्ञान का संचार करती है। दुर्गा परमात्मा की शक्ति का ही पर्याय हैं। माता के नाम से जब हम प्रार्थना करते हैं तो माता के रूप में वही सत्ता ‘दुर्गा’ नाम से हम सबका इष्ट साधन करती है। चैत्र और शारदीय नवरात्र (इस वर्ष 23 मार्च से प्रारंभ) सभी के लिए आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक त्रिविध प्रकार की शक्ति के संचय के लिए महत्वपूर्ण अवसर है। शक्ति पूजन, शक्ति संवर्द्धन एवं शक्ति संचय की शास्त्रसम्मत पद्धति का अवलंबन कर जीवन-यात्रा के मार्ग पर कैसे अग्रसर होना चाहिये, इन नवरात्रों में इसी की झलक मिलती है। नवरात्र में शक्ति स्वरूपा माता के दर्शन मात्र से भी उत्साह, शौर्य और निर्भयता का संचार हो जाता है। उनकी पूजा, आराधना तो सिद्धि दायिनी है ही, मां की झांकी अनुपम है। तमोगुण के प्रतीक महिषासुर के पापमय शरीर को रजोगुण के प्रतीक अपने वाहन सिंह से कुचलती हुई स्वयं उसकी पीठ पर सवार होकर साक्षात् सत्वगुण की सौंदर्यमयी प्रतिमा माता समस्त देवताओं की संघ-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। आजकल की परिस्थितियों में अशांति, हिंसा, अराजकता, संक्रमणशील, अमानवीयताग्रस्त वातावरण में शक्ति उपासना की सार्थकता है। शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही गति है। शक्ति ही आश्रय है। शक्ति ही सर्वस्व है, यही ध्यान करके महाशक्ति का अनन्य रूप से आश्रय ग्रहण करना चाहिये। निर्विशेष शुद्ध तत्व संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। माया में प्रतिबिंबित उपासना जब स्त्री रूप में करते हैं तो उसी को ईश्वरी, दुर्गा अथवा भगवती कहते हैं। इस प्रकार शिव-गौरी, कृष्ण-राधा राम-सीता, और विष्णु लक्ष्मी ये परस्पर अभिन्न हैं। दुष्टों का दमन करने के लिए भगवती दुर्गा अपने विविध स्वरूपों में आती रहती हैं। भक्त अपनी इच्छानुरूप नाम देकर उनका स्तवन करते हैं। काली करालवदना, राज-राजेश्वरी, ललिता, त्रिपुर-सुंदरी, द्विभुजा, चतुर्भुजा, अष्टभुजा और अष्टादश-भुजा दुर्गा, कमलासना, महालक्ष्मी, सिंहासना, गरुडासना, वैष्णवी और मयूरवाहिनी नाम भी उल्लेखनीय हैं। शक्ति के साधक इस नवरात्र में भी शक्तिपीठ और सिद्धपीठ में बैठकर चिंतन करते हैं। परमात्मरूपा यह महाशक्ति स्वयं अपरिणामिनी हैं। परंतु इन्हीं की माया-शक्ति से शुभ परिणाम होते हैं क्योंकि इनकी अपनी शक्ति माया का स्वरूप सदा बदलता रहता है और वह माया शक्ति सदा इन महाशक्ति से अभिन्न रहती है। संसार रूप से व्यक्त होने वाली समस्त क्रीडाएं महाशक्ति की अपनी माया का ही खेल है। मायावी शक्तियां भी उनसे अलग नहीं हैं। इसलिए सारा वैभव, आकर्षण, सौंदर्य, ऐश्वर्य सब कुछ उन्हीं का है। नवरात्र के अवसर पर मां भगवती के पूजन का विशेष विधान भी है। इस अवसर पर घर-घर में भगवती की अर्चना की जाती है। किसी भी वस्तु के समर्पण से पूर्व मंत्र के अभाव में ऊँ भूर्भवः स्वः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै, इस मंत्र का उच्चारण करते हुए नवरात्र के प्रथम दिन 23 मार्च-2012 को प्रातःकाल उठकर नित्य क्रिया कर पूजा-अर्चना का संकल्प लें। मां अष्टभुजी दुर्गा की अर्चना के समय शुद्ध आसन पर बैठकर आचमन, पवित्री धारण, शरीर शुद्धि, आसन शुद्धि, पूजन सामग्री, रक्षादीप प्रज्वलन, स्वस्ति वाचन, पूजा-संकल्प तदंभूत श्री गणेश, नवग्रह एवं भगवती गौरी का स्मरणपूर्वक पूजन मंत्रोच्चारपूर्वक (शास्त्रानुसार) ध्यान, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, पयः स्नान, दधिस्नान, घृत स्नान, शर्करास्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, वस्त्र, उपवस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध-अर्पण, सुगंधित द्रव्य, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र, नाना परिमल द्रव्य चढ़ाएं विविध परिमल द्रव्य धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, तांबूल पुंगीफल, दक्षिणा, आरती आदि के बाद अंत में क्षमा प्रार्थना करके ही समापन का प्रावधान एवं विधान है। दुष्टों का दमन करने के लिए भगवती दुर्गा अपने विविध स्वरूपों में आती रहती हैं। भक्त अपनी इच्छानुरूप नाम देकर उनका स्तवन करते हैं। काली करालवदना, राज-राजेश्वरी, ललिता, त्रिपुर-सुंदरी, द्विभुजा, चतुर्भुजा, अष्टभुजा और अष्टादश-भुजा दुर्गा, कमलासना, महालक्ष्मी, सिंहासना, गरुडासना, वैष्णवी और मयूरवाहिनी नाम भी उल्लेखनीय हैं। दुष्टों का दमन करने के लिए भगवती दुर्गा अपने विविध स्वरूपों में आती रहती हैं। भक्त अपनी इच्छानुरूप नाम देकर उनका स्तवन करते हैं। काली करालवदना, राज-राजेश्वरी, ललिता, त्रिपुर-सुंदरी, द्विभुजा, चतुर्भुजा, अष्टभुजा और अष्टादश-भुजा दुर्गा, कमलासना, महालक्ष्मी, सिंहासना, गरुडासना, वैष्णवी और मयूरवाहिनी नाम भी उल्लेखनीय हैं।