संपदा व्रत
संपदा व्रत

संपदा व्रत  

व्यूस : 9768 | मार्च 2012
सम्पदा व्रत पं. ब्रजकिशोर शर्मा ब्रजवासी ‘‘सम्पदा देवी’’ विष्णु प्रिया महालक्ष्मी जी का ही एक दिव्य स्वरूप है। सम्पदा देवी व्रत होली के बाद प्रथम दिन करने का विधान है। इस व्रत वाले दिन प्रातःकाल दैनिक क्रियाओं से निवृŸा होकर विधिवत् संकल्प लें कि ‘आज मैं निराहार रहकर सांयकाल को सूर्यास्त के बाद सम्पदा देवी का व्रत करते हुए शास्त्रीय विधान से पूजन करुंगा या करुंगी।’ दिनभर उपवास रखते हुए ‘श्री ‘ऊँ ह्रीं क्लीं सम्पदा देव्यै नमः,’ ‘ऊँ सम्पदायै नमः,’ ‘ऊँ महालक्ष्म्यै नमः’ तथा ‘ऊँ विष्णु प्रियायै नमः’ आदि मंत्रों का जाप करें तथा गणेश, नवग्रहादि देवताओं का पूजन कर भगवान् विष्णु के सहित सम्पदा देवी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजनोपरांत लक्ष्मीनारायण स्वरूप ब्राह्मण-ब्राह्मणी तथा 5 छोटी कन्याओं को हलवा-पूरी, खीर, मिष्ठान्नादि, दक्षिणादि, पूजनादि से संतुष्ट कर आदर सहित विदाकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण कर व्रत पूर्ण करें। पूजन में अष्टसिद्धि व अष्टलक्ष्मी का आवाह्न कर विधिवत् पूजन करते हुए सूत का 16 तार का धागा लेकर उसमें 16 गांठ लगाकर हल्दी से रंगकर पूजन कर गले में धारण करें, कथा श्रवण करें तथा वैशाख मास के आने पर शुभ दिन विचारकर अक्षत,् पुष्प आदि से युक्त हो कथा श्रवणकर डोरे को खोलकर ब्राह्मणों को दान-पुण्य, भोजनादि कराकर आनंद की अनुभूति करें। इस व्रत के प्रभाव से नष्ट हुई कीर्ति व धन-सम्पदा पुनः प्राप्त होती है तथा समाज व राष्ट्र में प्राप्त असम्मान; सम्मान व प्रतिष्ठा में परिवर्तित हो जाता है। इसके संबंध में एक दिव्य कथा इस प्रकार है- कथा राजा नल अपनी पत्नी दमयंती के साथ बड़े प्रेम से राज्य करता था। होली के अगले दिन एक ब्राह्मणी रानी के पास आई। उसने गले में पीला डोरा बांधा था। रानी ने उससे डोरे के बारे में पूछा तो वह बोली-‘‘डोरा पहनने से सुख-सम्पŸिा, अन्न-धन घर में आता है।’’ रानी ने भी उससे डोरा मांगा। उसने रानी को विधिवत् डोरा देकर कथा कही। राजा नल ने जब रानी के गले में डोरा देखा तो उसके बारे में पूछा। रानी ने सारी बात बता दी। राजा बोले- ‘‘तुम्हें किस चीज की कमी है? इस डोरे को तोड़कर फेंक दो।’’ रानी बोली- ‘‘राजन्! यह आपने ठीक नहीं किया।’’ रात को राजा से स्वप्न मंे एक स्त्री बोली-‘राजा! मैं यहां से जा रही हूं।’ दूसरी स्त्री बोली-राजा! मैं तेरे घर आ रही हूं।’’ इसी प्रकार 10-12 दिन हो गए। राजा को रोज यही स्वप्न आता। वह उदास रहने लगा। रानी ने उदासी का कारण पूछा तो राजा ने स्वप्न की बात बता दी। रानी ने राजा से उन दोनों स्त्रियों का नाम पूछने को कहा। राजा ने दोनों से उनके नाम पूछे, तो जाने वाली स्त्री ने अपना नाम लक्ष्मी तथा आने वाली ने ‘दरिद्रता’ बताया। लक्ष्मी के जाते ही सब सोना-चांदी मिट्टी हो गया। रानी सहायता के लिए अपनी सखियों के पास गई। पर उनको फटेहाल में देख कोई भी उनसे नहीं बोला! दुःखी मन से राजा-रानी जंगल में कंदमूल खाकर अपने दिन बिताने लगे। राह में पांच बरस के राजकुंवर को भूख लगी तो रानी ने कहा- ‘यहां पास ही एक मालिन रहती है जो मुझे फूलों का हार दे जाती थी। उससे थोड़ा छाछ-दही मांग लाओ।’’ पुत्र के लिए राजा मालिन के घर गया। वह दही बिलो रही थी। राजा के मांगने पर उसने कहा, ‘‘हमारे पास तो छाछ-दही कुछ भी नहीं है।’’ बेचारे राजा खाली हाथ लौट आए। आगे चलने पर एक विषधर ने कुंवर को डस लिया। विलाप करती हुई रानी को राजा ने धैर्य बंधाया। अब वे दोनों आगे चले। राजा दो तीतर मार लाया। भुने हुए तीतर भी उड़ गए। उधर राजा स्नान कर धोती सुखा रहा था कि धोती उड़ गई। रानी ने अपनी धोती फाड़कर राजा को दी। वे भूख-प्यासे ही आगे चल दिए। मार्ग में राजा के मित्र का घर था। वहां जाकर उसने मित्र को अपने आने की सूचना दी। मित्र ने दोनों को एक कमरे में ठहराया। वहां मित्र ने लोहे के औजार आदि रखे हुए थे। दैवयोग से वे सब औजार धरती में समा गये। चोरी का दोष लगने के कारण राजा-रानी दोनों रातों-रात वहां से भाग गये। आगे चलकर राजा की बहन का घर आया। बहन ने एक पुराने महल में उनके रहने की व्यवस्था की। उनके सोने के थाल में भोजन भेजा, पर थाल मिट्टी में बदल गया। राजा बड़ा लज्जित हुआ। थाल को वहीं गाड़ कर दोनों फिर भाग निकले। आगे चलकर एक साहूकार का घर आया। वह साहूकार राजा के राज्य में व्यापार के लिए जाता था। साहूकार ने भी राजा के ठहरने के लिए पुरानी हवेली में सारी व्यवस्था कर दी। पुरानी हवेली में साहूकार की लड़की का हीरों का हार लटका हुआ था। पास ही दीवार में एक मोर अंकित था। वह मोर ही हीरे को निगलने लगा। यह देखकर राजा-रानी वहां से भी भाग खड़े हुए। अब रानी बोली- ‘अब किसी के घर जाने के बजाय हम जंगल से लकड़ी काटकर उसे बेचकर ही अपना पेट भर लेंगे। रानी की बात से राजा सहमत हुआ। अतः वे एक सूखे बगीचे में जाकर रहने लगे। राजा-रानी के बाग में जाते ही बाग हरा-भरा हो गया। बाग का मालिक भी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने देखा वहां एक स्त्री-पुरुष सो रहे थे। उन्हें जगाकर बाग के मालिक ने पूछा- ‘‘तुम कौन हो?’’ राजा बोला- ‘‘मुसाफिर हैं। मजदूरी की खोज में इधर आए हैं। यदि तुम रखो तो यहीं मेहनत-मजदूरी करके पेट पाल लेंगे। दोनों वहीं नौकरी करने लगे। एक दिन बाग की मालकिन बैठी-बैठी कथा सुन रही थी और डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि यह सम्पदा देवी का डोरा है। रानी ने भी कथा सुनी। डोरा लिया। राजा ने फिर पत्नी से पूछा कि यह डोरा कैसा बांधा है? तो रानी बोली- ‘‘यह वही डोरा है जिसे आपने एक बार तोड़कर फेंक दिया था। उसीके कारण सम्पदा देवी हम पर नाराज है’’ रानी फिर बोली- ‘‘यदि सम्पदा मां सच्ची है तो फिर हमारे पहले वाले दिन लौट आयेंगे।’’ उसी रात राजा को पहले की तरह स्वप्न आया। एक स्त्री कह रही है। ‘‘मैं जा रही हूं।’’ दूसरी कह रही है ‘‘राजा! मैं वापस आ रही हूं।’’ राजा ने दोनों के नाम पूछे तो आने वाली ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ बताया और जाने वाली बोली- ‘मैं दरिद्रता हूं।’ राजा ने लक्ष्मी से पूछा- ‘अब जाओगी तो नहीं?’ लक्ष्मी बोली- ’यदि तुम्हारी पत्नी सम्पदा जी का डोरा लेकर कथा सुनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊंगी। यदि तुम डोरा तोड़ दोगे, तो चली जाऊंगी।’ बाग की मालकिन किसी रानी को हार देने जाती थी तो दमयंती हार गूंथ कर देती है। हार देखकर रानी बड़ी प्रसन्न हुई। उसने पूछा कि हार किसने बनाया है तो बाग की मालकिन ने कहा- ‘‘कोई पति-पत्नी बाग में मजदूरी करते हैं उसने ही हार बनाया है। रानी ने बाग की मालकिन को दोनों परदेशियों के नाम पूछने को कहा। उन्होंने अपना नाम नल- दमयंती बता दिया। बाग की मालकिन दोनों से क्षमायाचना करने लगी। राजा ने उससे कहा, ‘‘इसमें तुम्हारा क्या दोष है। हमारे दिन ही खराब थे।’’ अब दोनों अपने राजमहलों की तरफ चले। राह में साहूकार का घर आया। वह साहूकार के पास गया। साहूकार ने नई हवेली में उसके ठहरने का प्रबंध किया तो राजा बोला- ‘‘मैं तो पुरानी हवेली में ही ठहरुंगा।’’ वहां साहूकार ने देखा दीवार पर चित्रित मोर नौ-लखे हार को उगल रहा था। साहूकार ने राजा के पैर पकड़ लिए। राजा ने कहा- ‘‘दोष तुम्हारा नहीं। मेरे दिन ही बुरे थे।’’ आगे चला बहन के घर पहुंचा। बहन ने नए महल में ही रहने की जिद की। पर राजा पुराने महल में ठहरा। तब हीरों से जड़ित थाल वहां से निकल आया। राजा ने बहन को बहुत धन भेंट स्वरूप दिया। आगे चलकर मित्र के घर पहुंचा तो उसने नए मकान में ठहरने की व्यवस्था की; पर राजा पुराने कमरे में ही ठहरा। वहीं मित्र के लोहे के औजार मिल गए। आगे चले तो नदी किनारे जहां राजा की धोती उड़ गई थी वह एक वृक्ष से लटकी मिली। वहां नहा-धोकर धोती पहन राजा आगे चले तो देखा कि कुंवर खेल रहा है। मां-बाप को देखकर उसने उनके पैर छूए। नगर में पहुंचकर राजा की मालिन दूर्बा लेकर आई तो राजा बोला- ‘‘आज दूर्बा लेकर आ रही हो, उस दिन छाछ के लिए मना कर दिया था।’’ रानी ने राजा से कहा- ‘‘वह तो बुरे दिनों का प्रभाव था।’’ महलों में गये। रानी की सखियां धन-धान्य से भरे थाल लिए गीत गाती आईं। नौकर-चाकर सब पहले के समान ही आ गए। यह सब सम्पदा जी का डोरा बांधने का ही फल हुआ। सभी मन से सम्पदा की जय बोलो- जय सम्पदा माँ।



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