रत्नों की उत्पत्ति समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। रत्नों की महत्ता ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के उपचार के लिए विशेष रूप में कही गयी हैं। रत्न कैसे काम करते हैं? क्या कोई उपरत्न या शीशे का रंगीन टुकडा रत्न का काम नहीं कर सकता?
इसको समझने के लिए एक रेडियो को देखें। जिस प्रकार माइक्रो तरंगें पूरे आकाश मंडल में व्याप्त हैं, लेकिन उनको पकड़ कर ध्वनि में परिवर्तित करने के लिए रेडियों को एक आवृत्ति पर समस्वरण करना पड़ता है, उसी प्रकार प्रत्येक ग्रह से आने वाली सभी तरंगें वायु मंडल में स्थित हैं और इनको एकत्रित करने के लिए खास माध्यम की आवश्यकता होती है।
विशेष रत्न विशेष ग्रह की रश्मियों को अनुकूल बनाने की क्षमता रखते हैं। समस्वरण शीघ्र ही बदल जाता है, इसलिए उपरत्न, या उसी रंग का शीशा समस्वरण का काम नहीं कर पाता। रत्न रश्मियों को एकत्रित कर मनुष्य के शरीर में समावेश कराते हैं। इसी लिए मुद्रिका को इस प्रकार बनाया जाता है कि उसमें जड़ा रत्न शरीर को छूता रहे।
हमारे हाथ की अलग-अलग उंगलियों से स्नायु नियंत्रण मस्तिष्क के अलग-अलग भागों में जाता है एवं उनका असर उसके अनुरूप होता हैं। विशेष रत्न को विशेष उंगली में पहनने का आधार भी यही है। किस ग्रह की रश्मियों का असर मस्तिष्क के किस भाग में जाना चाहिए, उसके अनुसार उंगलियों का ग्रहों से संबंध बताया गया है।
किसको कौनसा रत्न पहनना चाहिए, इसके लिए अनकों नियम बताये गये हैं, जैसे: 1. जन्म राशि, या नक्षत्र के अनुसार 2. सूर्य राशि के अनुसार 3. दशा-अंतर्दशा के अनुसार 4. जन्मपत्री के अनुसार शुभ ग्रहों के लिए 5. जन्मपत्री के अनुसार अशुभ ग्रहों के लिए 6. जन्मवार के अनुसार 7. मूलांक, भाग्यांक, या नामांक के अनुसार 8. हस्त रेखा के अनुसार 9. आवश्यकता अनुसार, या रत्न के गुण के अनुसार।
यदि हम सभी पद्धतियों द्वारा बताये गये रत्नों को पहनेंगे, तो हमें सारे ही रत्न पहनने पड़ेंगे और यदि हम इन पद्ध तियों द्वारा बताये गये रत्नों में से एक सामान्य (common) रत्न पहनने कि कोशिश करेंगे, तो शायद कभी भी कोई रत्न धारण नहीं कर पाएंगे। अतः हमें एक सर्वशुद्ध पद्धति ही अपनानी चाहिए और वह है, अपनी आवश्यकता के अनुसार, जन्मपत्री के शुभ ग्रहों के लिए रत्न धारण करना।
शुभ भावों के स्वामी, या उनमें स्थित ग्रह ही शुभ फलदायक होते हैं। ग्रह शुभ है कि नहीं, इसके लिए हम, गणित के आधार पर/एक, सूत्र बना सकते हैं:
भाव |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
अंक |
5 |
2 |
1 |
3 |
4 |
1 |
2 |
-1 |
5 |
3 |
2 |
0 |
ग्रह किस भाव का स्वामी है, उसके अंक एवं जिस भाव में वह बैठा है, उसके अंक को जोड़ दें। यदि ग्रह एक ही भाव का स्वामी है, तो दो से गुणा कर जोडे़ं। इस प्रकार प्राप्तांक यदि 7, या उससे अधिक है, तो ग्रह शुभ है, अन्यथा अशुभ। जैसे सिंह लग्न की कुंडली में यदि सूर्य चतुर्थ भाव में बैठा है, तो सूर्य को चैथे भाव में मिले 3 अंक एवं लग्नेश होने के कारण मिले 5 अंक, कुल अंक मिले 5×2$3 = 13, अर्थात शुभ। इसी प्रकार इसमें यदि शनि चतुर्थ भाव में है, तो शनि को चैथे भाव से मिले 3 अंक, सप्तमेश के मिले 2 अंक एवं षष्ठेश होने के मिले 1 अंक। कुल प्राप्तांक = 3$2$1 = 6 अर्थात् अशुभ।
इस प्रकार कौन सा रत्न किस कुंडली में शुभ रहेगा, या अशुभ, इसका सूत्र हुआ
ग्रह अंक = ग्रह के भाव स्थिति का अंक $ ग्रह के एक भाव का अंक $ ग्रह के दूसरे भाव का अंक रत्न कितने भार का पहनना है, इसके लिए ग्रह का बल एवं जातक का भार, दो मुख्य चर हैं। यदि जातक का भार अधिक है, तो रत्न का भार भी अधिक होना चाहिए। यदि ग्रह का बल कम है, तो, ग्रह को अधिक बल देने के लिए, रत्न का भार अधिक होना चाहिए। इस क्रिया को भी एक छोटे से सूत्र में बांध सकते हैं। प्रत्येक रत्न का औसत भार अलग-अलग रहता है, जैसे -
रत्न |
माणिक |
मोती |
मूंगा |
पन्ना |
पुखराज |
हीरा |
नीलम |
गोमेद |
लहसुनिया |
औसत भार |
4 |
4 |
6 |
4 |
4 |
1 |
4 |
5 |
6 |
रत्न के औसत भार में बदलाव जातक की कुंडली में उस ग्रह के बल एवं जातक के भार के अनुसार करना चाहिए। यदि जातक का औसत भार 60 किलो माना जाए, तो
रत्न का भार = औसत भार × जातक का भार / 60 × ग्रह षट्बल
ग्रह के षट्बल से भाग देने के कारण यदि ग्रह बलवान है, तो रत्न का भार कम हो जाता है और यदि ग्रह बलहीन है, तो भार अधिक हो जाता है।
उपर्युक्त सूत्र से जो वजन आये, उसे सवाये में बदल लेना चाहिए, जैसे यदि गणना के द्वारा 6) रत्ती भार आता है, तो उसे 7( रत्ती भार का रत्न पहनना चाहिए। इस प्रकार रत्न एवं उसके भार की गणना कर के जातक को रत्न के लिए नीचे बतायी गयी उंगली में, रत्न को उपयुक्त धातु में जड़वा कर, पहनना चाहिए।
माणिक |
सूर्य |
सोना |
अनामिका |
रवि |
प्रातः |
मोती |
चंद्र |
चांदी, या सोना(चांदी युक्त) |
कनिष्ठिका |
सोम |
प्रातः |
मूंगा |
मंगल |
चांदी, या सोना(तांबा युक्त) |
अनामिका |
मंगल |
प्रातः |
पन्ना |
बुध |
सोना |
कनिष्ठिका |
शुक्र |
प्रातः |
पुखराज |
गुरु |
सोना |
तर्जनी |
गुरु |
प्रातः |
हीरा |
शुक्र |
प्लैटिनम, या सोना (चांदी युक्त) |
कनिष्ठिका |
शुक्र |
प्रातः |
नीलम |
शनि |
पंच धातु, या सोना (14 कैरेट) |
मध्य |
शनि |
सायं |
गोमेद |
राहु |
अष्ट धातु,या सोना (14 कैरेट) |
मध्य |
शनि/बुध |
सूर्यास्त |
लहसुनिया |
केतु |
सोना |
अनामिका |
गुरु/मंगल |
सूर्यास्त |
यदि ग्रह अपनी राशि में न हो कर मित्र राशि में है, तो रत्न को उसकी उंगली में भी पहनाया जा सकता है, जैसे शुक्र यदि शनि के घर में हो, तो शनि की उंगली में पहनाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
उपर्युक्त गणना से प्राप्त शुभ ग्रह का रत्न उसकी, या उसके मित्र की दशा में पहनना चाहिए। यदि ग्रह अशुभ है, या शुभ है, लेकिन उसके मित्रादि की दशा नहीं है, तो उसका रत्न नहीं पहनना चाहिए। केवल दशानुसार रत्न पहनना हानिकारक हो सकता है। साथ ही आवश्यकतानुसार, जैसे शादी के लिए सप्तमेश का रत्न, पढ़ाई के लिए चतुर्थेश, या पंचमेंश का रत्न, स्वास्थ्य के लिए लग्नेश का रत्न आदि भी ग्रह की शुभता एवं दशा नाथ से शुभ संबंध देख कर ही पहनना चाहिए।