अनेक स्थानों से अनेक पंचांग निकलते हैं। प्रत्येक में तिथिमान श्न्नि-श्न्नि होते हैं। ऐसा क्यांे होता है और एक स्थान का तिथिमान ज्ञात हो, तो दूसरे स्थान का तिथिमान कैसे ज्ञात किया जा सकता है? सर्वप्रथम जान लें कि तिथि की गणना कैसे होती है। सूर्य एवं चंद्र स्पष्ट कर के, चंद्र स्पष्ट में से सूर्य स्पष्ट घटा देते हैं। यदि चंद्र के अंश सूर्य के अंशो से कम हांे, तो चंद्र के अंशांे में 3600 जोड़ कर सूर्य के अंश घटा दें। शेष को बारह से शग दें और एक जोड़ दें।
इस प्रकार तिथियां एक से ले कर तीस तक आ जाएंगी। एक से पंद्रह तक शुक्ल पक्ष की पंद्रह तिथियां एंव सोलह से तीस तक कृष्ण पक्ष की तिथियां हुईं। चंद्रमा को सूर्य से 3600 चलने में 29 ़53 दिन लगते हंै, जो चंद्र माह की अवधि श्ी होती हैं एवं वर्षमान 29 ़53 ×12 = 354 ़36 दिन होते हैं। चंद्रमा सूर्य से जब ठीक 120 आगे आ जाता है, तो तिथि परिवर्तित हो जाती है। जिस समय चंद्र 120 आगे आता है, उसे तिथि का मान या तिथि समाप्ति काल कहते हैं।
क्योंकि ज्योतिष या पंचांग गणना में ग्रहों को स्पष्ट करने के लिए हम पृथ्वी को बिंदु मान कर गणना करते हैं, अतः ग्रह स्पष्ट पूरे विश्व के लिए एक क्षण पर एक ही होते हंै। इस क्षण पर श्न्नि-श्न्नि देशों में समय अलग-अलग हो सकते हैं, जो उस देश के मानक समय पर आधारित होगा। अतः तिथि समाप्ति काल श्ी, श्न्नि देशों में उनके मानक समय के अंतर के बराबर अंतर दिखाएगा, जैसेः 18/4/1999 को यदि हम तिथि समाप्ति काल की गणना करें, तो देखेंगे कि शरत और थाईलैंड के मानक समय के बीच 1ः30 घंटे का अंतर है और इतना ही अंतर तिथि समाप्ति काल में है।
यदि तिथि समाप्ति काल घटी-पल में दिया हो, तो इस गणना में सूर्योदय के समय मंे श्न्निता होने के कारण उनके मान में फर्क हो जाता है। यदि दो देशों का मानक समय एक ही हो, या एक ही देश में अलग-अलग शहरों को ले कर गणना करें, तो श्ी घटी-पल में तिथि समाप्ति काल के मान अलग-अलग होंगे, जैसे दिल्ली, मुंबई, वाराणसी इत्यादि। यही कारण है कि शरत में प्रकाशित श्न्नि-श्न्नि पंचागांे के तिथिमान कश्ी एक जैसे नहीं होते। इसके लिए मोटे तौर पर यह नियम लागू होता है: स्थान से पूर्व हो, तो मान में $ (धन) एवं स्थान से पश्चिम हो तो - (ऋण) किया जाता है।
सही गणना के लिए दोनों स्थानों का सूर्योदय लें और इन दोनांे के अंतर को तिथिमान में जोड़ दंे, जैसे मुंबई का सूर्योदय है 6ः21ः13 और दिल्ली का सूर्योदय है 5ः54ः44। यदि हमारे पास दिल्ली का पंचंाग है और मुंबई का तिथिमान निकालना चाहते हैं, तो दिल्ली के सूर्योदय में से मुंबई का सूर्योदय घटा दें, तो मिला -26ः29 मिनट या (-) 1 घटी 6 पल 12 ़5 विपल। इसे दिल्ली के तिथिमान 42ः34ः50 घटी में जोड़ दें, तो प्राप्त हुआ 41ः28ः37 ़5 घटी। यही मुंबई का अश्ीष्ट तिथिमान है।
देश |
शहर |
अक्षांश |
रेखांश |
मानक समय |
सूर्योदय घंटो में |
तिथि समाप्ति काल घटी पल में |
भारत |
दिल्ली |
28ः39 उ |
77ः13 पू |
05ः30 |
5ः54ः44 |
22ः56ः40 |
भारत |
मुंबई |
18ः58 उ |
72ः50 पू |
05ः30 |
6ः21ः13 |
22ः56ः40 |
थाइदेश |
बैंगकाक |
13ः45 उ |
100ः35 पू |
07ः00 |
6ः08ः33 |
24ः26ः40 |
आस्ट्रेलिया |
सिडनी |
33ः53 द |
151ः10 पू |
10ः00 |
6ः24ः57 |
27ः26ः40 |
ब्रिटेन |
सिडनी |
51ः30 उ |
00ः05 प |
00ः00 |
5ः01ः13 |
17ः26ः40 |
अमरीका |
न्यूयार्क |
40ः42 उ |
74ः00 प |
17ः00 |
5ः14ः53 |
12ः26ः40 |
रूस |
मास्को |
55ः45 उ |
37ः35 पू |
03ः00 |
5ः20ः52 |
20ः26ः40 |
जापान |
तोक्यो |
35ः45 उ |
139ः45 पू |
09ः00 |
5ः11ः00 |
26ः26ः40 सही गणना के लिए दोनों स्थानों का सूर्योदय |
उपर्युक्त सुधार के बाद श्ी दो पंचांगो की गणनाएं आपस में मिलती नहीं हैं इसका कारण उनकी गणनाओं की सटीकता में अंतर है। दूसरे, पंचांग निर्माताआंे के मत श्न्नि-श्न्नि हंै, जिस कारण ग्रह स्पष्ट में अंतर रहता है, जैसे किस अयनांश को माना गया है और गणना का आधार आधुनिक पद्धति है, या पौराणिक सूर्य सिद्धांत, या केतकी का सिद्धांत। इसमें एकरूपता लाने के लिए पंचांग निर्माताओं से एक ही बात कहनी है, कि वे आधुनिक पद्धति को अपनाएं एवं चित्रापक्षीय अयनांश अर्थात लहिरी अयनांश अपनाएं तो गणनाएं सटीक होंगी, एवं सब पंचांगो में एकरूपता रहेगी।
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