आयुर्वेदिक दृष्टिकोण शरीर को नियमित रूप से संचालित करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो विभिन्न खाद्य पदार्थ दूध, घी और फलों से प्राप्त होती है। भोजन पचने के बाद रक्त में परिवर्तित होता है, कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज, प्रोटीन और वसा से शरीर के लिए ऊर्जा तैयार होती है। मधुमेह, यकृत और क्लोम ग्रंथि में ;सपअमत - चंदबतमंेद्ध गडबड़ी के कारण होता है जिससे शरीर को आवश्यक ऊर्जा अर्थात् ग्लूकोज नहीं मिलता। यह ग्रंथि अमाशय के नीचे जठर के बीच में आड़ी पड़ी रहती है इस ग्रंथि के बीटा-सेल से इंसुलिन उत्पन्न होता है।
यह रक्त में उपस्थित ग्लूकोज का आकसीकरण करके ऊर्जा उत्पन्न करता है। इंसुलिन के कारण ही रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक निश्चित स्तर से अधिक नहीं बढ़ने पाती। रक्त शर्करा का स्तर खाली पेट होने पर 80 से 120 मिली ग्राम प्रति 100 सी. सी. के मध्य रहता है तथा भोजन के पश्चात 100-140 मिली ग्राम के आस-पास हो जाता है। जब किन्हीं कारणों से क्लोम ग्रंथि ;सपअमत - चंदबतमंेद्ध से निकलने वाले इंसुलिन की मात्रा कम हो जाती है या इंसुलिन निकलना बंद हो जाता है, तो फिर रक्त ग्लूकोज का आॅक्सीकरण ठीक ढंग से न होने के कारण रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है।
रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाने की स्थिति को ही मधुमेह कहते हैं। यह एक ऐसा रोग है जिसमें शरीर के प्रमुख अंग जैसे - हृदय, मस्तिष्क, गुर्दे, आंखें आदि प्रभावित होते हैं। अतएव बढ़ी हुई रक्त शर्करा पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। शर्करा (ग्लूकोज) की अत्यधिक मात्रा बढ़ने या कम हो जाने पर रोगी गहरी मूर्छा में जा सकता है। बार-बार मूत्र त्यागने और अधिक पसीना निकलने से शरीर में पानी और खनिज लवणों की कमी हो जाती है। मधुमेह रोगी में जब कोई संक्रमण होता है और यदि इसका इलाज नहीं किया जाता है। तो कीटो एसिडोसिस हो सकता है इस स्थिति के लक्षण हैं
- तेज प्यास लगना, बार-बार पेशाब आना, कब्ज, मांसपेशियांे में दर्द और दृष्टि में परिवर्तन होना, इसके कारण रोगी कमजोर ओर सुस्त हो जाता है। उपचार जैसे कि ऊपर बताया गया है कि इंसुलिन की मात्रा में कमी होने से रक्त में ग्लूकोज बढ़ जाता है जिससे मधुमेह रोग होता है। डाॅक्टर की सलाह के अनुसार रोगी को इंसुलिन के इंजेक्शन लगवाने चाहिए या गोलियां खानी चाहिए।
Û प्रातःकाल खाली पेट तांबे के बर्तन में उबला हुआ पानी, जितना पी सकें, पीएं। एक माह तक ऐसा करने से मधुमेह रोगी को लाभ होता है।
Û करेले का रस निकालकर प्रतिदिन पीने से रोगी को आराम रहता है और रोग दूर होता है।
Û टमाटर का सलाद, टमाटर का रस पीने से मधुमेह ठीक होता है।
Û मेंथी दाना लेकर थोड़ा कूट लें और सायं पानी में भिगों दें, प्रातः इसे खूब घोटें और बिना मीठे के पीएं तीन माह तक पीने से लाभ होगा।
Û ताजे बेल के पŸो तथा काली मिर्च को घोटकर पीने से मधुमेह में लाभ होता है।
Û जामुन की गुठली का चूर्ण 10 ग्राम, गुड़मार बूटी 100 ग्राम, सौंठ 50 ग्राम, एलोविरा के रस में पीसकर चने के बराबर गोलियां बनाकर, सुबह शाम, एक-एक गोली खाने से मधुमेह के रोगी को लाभ होता है।
Û जामुन के पŸाों को चबा-चबा कर खाने से चार पांच दिन में ही रोगी को लाभ होने लगता है।
Û चने और जौ का आटा बराबर भाग में मिलाकर रोटी बनाकर हरी सब्जी के साथ खाने से पंद्रह दिन में पेशाब में शर्करा का आना बंद हो जाता है।
Û केवल दही, फल, साग, सब्जियां खाने से एक माह में मूत्र से शर्करा गायब हो जाती है।
ज्योतिषीय कारण मधुमेह क्लोम ग्रंथि ;सपअमत - चंदबतमंेद्ध में आये विकार के कारण होता है। यह ग्रंथि अमाशय के नीचे जठर के बीच में आड़ी-पड़ी होती है, जो पेट के ऊपरी भाग में स्थित है। ज्योतिष के अनुसार कालपुरुष की कुंडली में यह भाग पंचम स्थान पर आता है। पंचम भाव यकृत क्लोम ग्रंथि ;सपअमत - चंदबतमंेद्ध और शुक्राणुओं का कारक स्थान है और इस स्थान का कारक ग्रह गुरु हैं। क्लोम ग्रंथि के कुछ हिस्से का नेतृत्व शुक्र करता है जो शरीर में बनने वाले हार्मोन को संतुलित करता है। इसलिए मधुमेह रोग में गुरु शुक्र और पंचम भाव का विशेष महत्व है।
विभिन्न लग्नों में मधुमेह के ज्योतिषीय योग
मेष: षष्ठ भाव में बुध, गुरु हो, शुक्र पंचम भाव में शनि से दृष्ट हो लग्नेश राहु, केतु से दृष्ट या युक्त होकर त्रिक स्थानों में हो तो मधुमेह रोग होता है।
वृष: लग्नेश शुक्र, चंद्र से युक्त या दृष्ट हो, पंचमेश बुध षष्ठ भाव में हो, गुरु पंचम भाव में हो या पंचम भाव पर दृष्टि देता हो तो मधुमेह रोग होता है।
मिथुन: पंचमेश शुक्र जल राशि अर्थात् कर्क, वृश्चिक या मीन का हो और मंगल से दृष्ट या युक्त हो, गुरु-चंद्र से युक्त या दृष्ट होकर षष्ठ या अष्ट भाव में हो तो मधुमेह रोग को जन्म देता है।
कर्क: गुरु लग्न में बुध से युक्त हो या दृष्ट हो, लग्नेश चंद्र तृतीय, षष्ठ या अष्टम भाव में पंचमेश मंगल से युक्त या दृष्ट हो तो मधुमेह रोग होता है।
सिंह: पंचमेश गुरु सूर्य से अस्त होकर चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में हो, चंद्र पंचम भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो तो मधुमेह रोग पैदा करता है।
कन्या: पंचमेश शनि सूर्य से अस्त होकर तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में हो, चंद्र गुरु से युक्त होकर पंचम भाव में हो तो मधुमेह रोग होता है।
तुला: लग्नेश एवं पंचमेश (शुक्र एवं शनि) षष्ठ हो तो जातक को मधुमेह से पीड़ित करता है।
वृश्चिक: लग्नेश मंगल कर्क राशि या मीन राशि का होकर गुरु से दृष्ट या युक्त हो, शुक्र, बुध से युक्त हो और राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को मधुमेह से पीड़ित करता है।
मकर: पंचमेश शुक्र सप्तम् भाव या एकादश भाव में हो, गुरु लग्न में चंद्र से युक्त हो, शनि सप्तम भाव में या सप्तम पर दृष्टि दे रहा हो तो जातक मधुमेह से पीड़ित होता है।
कुंभ: पंचमेश बुध चंद्र से युक्त होकर षष्ठ भाव या द्वादश भाव में हो, गुरु पंचम भाव में मंगल से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को मधुमेह देता है।
मीन: पंचमेश चंद्र शनि से युक्त या दृष्ट होकर षष्ठ भाव या अष्टम भाव में हो, बुध-शुक्र से युक्त होकर लग्न में या लग्न पर दृष्टि दें, गुरु पंचम भाव या नवम् भाव में राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को मधुमेह रोग होता है।