पुरातन परंपरानुसार वही व्यवसाय करने का समय इतिहास ही बन गया है। पिताजी का ही व्यवसाय करना अब जरूरी नहीं। बल्कि व्यापक क्षेत्र मिलने से अपने हिसाब से चुनाव होता है। पर हम एक चीज कर सकते हैं। किसी की जन्मपत्रिका देखकर उसके नैसर्गिक स्तर, उसके लिए अनुकूल और फलिभूत व्यवसाय या नौकरी समय के अनुसार उसकी षिक्षा के लिए उच्च दिषा का चुनाव कर सकते है। वैसे भी हमारे पास कोई निष्चित उपाय होना जरूरी नहीं। हमारे हाथ में कोषिष करना ही है। अगर पत्रिका के अनुसार कोषिष का अंदाज मिल गया, तो गलत क्या किया।
पृथ्वी पर अनुत्तीर्ण होने वाला हर मानव पंच तत्व से बनता है। जैसे आकाष, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, काल ऐसे ”नौ“ द्रव्य हंै। पृथ्वी, सूरज, चंद्र, तारे, ग्रह और मानव इनका जन्म से ही संबंध प्रस्थापित हैं। सृष्टी का परस्परावलंबी चक्र का मानव एक दुआ (आषिर्वाद) है। यह व्यापक विष्वव्यापी, पाष्र्वभूमि ध्यान में रख कर ज्योतिष शास्त्र के नियम लगा कर देखना हैै। मेष, सिंह, धनु यह राषियां अग्नि तत्व की है। अर्थात उर्जा तत्व की है। उर्जा, तत्व निर्मिती पचन रूप परिवर्तन, तपन, विद्युत, फर्मेंटेषन, घर्षण द्वारा निर्मित बील षिक्षा क्षेत्र धर्म पीठ, पुरोहिती, चैरिटेबल ट्रस्ट, कन्सलटेंसी आदि व्यवसाय या नौकरी का चुनाव कर सकते हैं।
वृषभ, कन्या, मकर यह पृथ्वी तत्व राषि है। इससे स्थिरिता भूमि, खेती, पषुपालन, अनाज का संग्रह, धन संग्रह, साहूकारी व्यापार इत्यादि व्यवसाय या नौकरी चुनी जाती है। शाॅक लुब्रीकेंट या वाहनों के लिए उपयोग में आने वाला आईल इन्हीं सभी निर्मीत का कारक ग्रह पृथ्वी तत्व से संबंधित है। शुक्र ग्रह का प्रभाव होने से होटर्लस, टूर, टैक्लिज्म, रंगभूमि, चित्रपट इसमें नौकरी या निर्मिती का कार्य हो सकता हैैै। वायु तत्व में मिथून, तुला, कुंभ इन राषियों का अन्तर्भाव है। गति देना, लेखन प्रवर्तक, समाज प्रबोधक, ऐसे महत्वपूर्ण कार्य वायु तत्त्व में होते हैं। इसका प्रभाव गति से होता है।
वह राजनीनितिकों की पत्रिकाओं में प्रभाव देता है। जल तत्व में कर्क, वृष्चिक और मीन राषि होती है। भूतल पर सत्तर प्रतिषत जल है वैसे शरीर में भी सत्तर प्रतिषत जल है इनका कारक है चंद्रमा। शुभ, ग्रह, रस, धातु दुध, वनौषधि, बचपन मानसोंपचार समुद्र का चढ़ता उतरता जल, (ज्वार भाटा) वाचक वृंद, श्रोता वृंद यह प्रभावित होते हंै। क्षत्रिय वर्ण में उच्चाधिकारी, वैष्य में व्यापारी क्षूद्र में नौकरी पेषा और विप्र में सलाह देना, योजनाएं बनाना आदि वर्ण के अनुसार होता है।
हवार्ह सुंदरी
Û शनि तुला राषि में लग्न 3, 7, 10 पर दृष्टि।
Û कर्क राषि में गुरु। दषमेष चंद्र में शनि पुष्य नक्षत्र में।
Û जन्म लग्न में वायु तत्व।
Û जन्म लग्न में दषम स्थान पर चर राषि। मैरिन इंजिनियर -
Û चंद्र नक्षत्र स्वामि शनि।
Û द्वितीय स्थान में उच्च स्थान।
Û छटे स्थान का अधिपति पंचमेष योगकारक है।
Û जल तत्व राषि और गुरु से प्रभावित। वकील -
Û ग्रह, शनि, मंगल और रवि
Û गुरु वक्री- स्वयं राषि छठे स्थान पर दृष्टि।
Û शनि वक्र्री - गुरु की राषि में छठे स्थान पर पूर्ण दृष्टि। धन, स्थान पर तीसरी दृष्टि।
Û मंगल - स्वनक्षत्र में शनि की राषि में द्वितीय द्वितीय स्यानी। छठवें स्थान पर चतुर्थ दृष्टि।
Û रवि - उच्च का दषमेष शुक्र के नक्षत्र में दषमेष पर दृष्टि। शष्टेष बुध युति में। शैक्षणिक क्षेत्र - बुद्धि का कारक षिक्षण स्थान। दषम स्थान कृती स्थान। दषम भाव को उपनक्षत्र स्वामी स्थिर राषि में। शासकीय उच्च पदस्थ अधिकारी -
Û न अथवा नवमेष दषमेष प्रभावी और संलग्न।
Û सूरज और चंद्र या उनकी राषि इनका 1, 6, 9, 10 स्थानों से संबंध।
Û छटा स्थान षष्ठेस प्रभावित। दषम, अष्टम प्रभावित।
Û राहु या केतु इनका सूरज चंद्र या उनकी राषि नवमेष दषमेष से संलग्न उन्हीं की महादषा, अन्र्तदषा विषेष उपयुक्त।
Û शुक्र, सूर्य, चंद्र, नवमेष, दषमेष या 6, 8, 9, 10 इसमें स्वराषि का उच्चतम स्वनक्षत्र प्रभावित। डाॅक्टर - कुण्डली में 6, 8, 12 इस स्थान की राषि के अधिपति और स्थान के ग्रह डाॅक्टर बनते हंै।
Û मंगल - खुद के चित्रा नक्षत्र में।
Û षष्टेष शनि, अष्टमेष मंगल, व्ययेष रवि व्यवसाय, डाॅक्टर बनाता है।
Û मारक स्थान में षष्ट में गुढ़ और व्यय में चंद्र, शनि।
Û मारक स्थान की दृष्टि, षष्टम स्थान पर चंद्र शनि की पूर्ण दृष्टि। अष्टम स्थान पर मंगल की आठवीं दृष्टि।
Û बुध राषि का मंगल केतु और नेप्च्यून युति मे रवि और बुध का कारक बुध इनके महादषा में साथ त्रयोएकादषी योग मंगल वैद्यकिय षिक्षण लेता है।
Û कन्या, वृष्चिक और मीन राषि प्रभावी रहती है। इंजिनियर की कुंडली में सूर्य त्रिकोण यानि, 216 और 10 इन्हीं का प्रभाव होता है। मगर वैद्यकिय क्षेत्र में अर्थ त्रिकोण से नहीं बल्कि मारक स्थान से भी संबंधित है।