ज्योतिष एवं तंत्र-मंत्र-यंत्र का आपस में घनिष्ठतम संबंध है। दोनों विद्याएं एक दूसरे की पूरक हैं। ज्योतिष द्वारा भविष्य में आने वाले कष्टों का पता तो लगाया जा सकता है, लेकिन जहां ग्रह शांति की बात हो, समय विपरीत चल रहा हो, मानसिक अशांति हो, बाधाएं आ रही हों, तो तंत्र-मंत्र-यंत्र का आश्रय लेना पड़ता है।
तंत्र: ‘तन’ अर्थात देह का जो ‘त्र’ अर्थात त्राण (रक्षा) करे, उसे तंत्र कहते हैं। विष्णुसंहिता में कहा है:
सर्वेऽर्था येन तन्यन्ते त्रायन्ते च भयाज्जनाः। इति तन्त्रस्य तन्त्रत्वं तन्त्रज्ञाः संप्रचक्षते।।
सभी अर्थों को जो प्रकाशित करे तथा प्राणियों को भयों से मुक्ति दिलाये, ऐसे शास्त्र को मनीषियों ने ‘तंत्र’ के नाम से परिभाषित किया है।
तंत्र साधना में षट्कर्म
विद्वेषण, मारण, सम्मोहन, उच्चाटन, स्तंभन एवं शांति कर्म प्रचलित हैं। तंत्र शक्ति के मुख्य स्रोत मंत्र एवं यंत्र हैं। तंत्र में मंत्रों द्वारा यंत्रों की प्रतिष्ठा की जाती है एवं तंत्र में मंत्र के बिना कोई क्रिया नहीं होती है। एक प्रकार से मंत्रों एवं यंत्रों को मानव के लिए उपयोग में लाने की विधि को ही तंत्र कहते हैं।
तनोति विपुलानर्थास्तत्वमन्त्र समाश्रितान्। त्राणं च कुरुते पुंसां तेन तन्त्रमितिस्मृतम्।।
अर्थात्, मंत्र तत्व पर आश्रित अर्थादि की जो रक्षा करे, उसे तंत्र कहते हैं। तंत्र में सात्विक, तामसिक एवं अघोर पद्धतियां है। साधारण घरेलू टोटके भी तंत्र के ही रूप हैं। तंत्रों ने ही मंत्रों के साथ बीजाक्षरों का प्रयोग बतलाया है।
मंत्र: ‘मन्’ शब्द से मन को एकाग्र करना ‘त्र’ शब्द से त्राण (रक्षा) करना जिसका धर्म है, उसे मंत्र कहते हैं।
मननात् त्रायतेति मन्त्रः।
मनन के द्वारा जो रक्षा करे, उसे मंत्र कहते हैं। मंत्रों की सूक्ष्म तरंगें प्रकृति में हलचल उत्पन्न करती हैं एवं साधक का दिव्य शक्तियों से संबंध स्थापित कराती हैं। गायत्री मंत्र को वेदों की माता बताया गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि -
‘न गायत्री समो मंत्र न गायत्री समो जपः।’
अर्थात्, गायत्री के समान न कोई मंत्र है, न जप है। शक्ति उपासना में श्री दुर्गा जी के नवाण्र् ा मंत्र का बड़ा महत्व है। ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।।
हे महासरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली स्वरूपिणी चामुंडे तुम्हें नमस्कार है। यह नवार्ण मंत्र साधको को आनंद एवं शक्ति देने वाला है। स्वास्थ्य के लिए महामृत्युंजय मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं है।
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
महामृत्युंजय मंत्र के जप से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। मंत्रों के जाप में दुराग्रह नहीं होना चाहिए। यथाशक्ति किया हुआ अनुष्ठान भी प्रभावी होता है। स्वयं की श्रद्धा-भक्ति से की हुई एक माला जाप का भी प्रभाव होता है। तंत्र-मंत्र की शक्ति सभी प्राणियों को, चाहे वह अमीर हो या गरीब, किसी भी जाति का हो, सभी को शक्ति और शांति प्रदान करती है।
यंत्र
जो नियंत्रण करने की क्षमता रखे, उसे यंत्र कहते हैं। यंत्र रहस्यमय शक्तियों का भंडार होता है। यंत्र में देवताओं का आवास माना गया है। अतः यंत्र की पूजा-अर्चना से देवता शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। कहा भी है -
यन्त्र मन्त्रमयप्रोक्तं मन्त्रात्मा देवतैत हि। देहात्मनोर्यथा भेदो मन्त्रदेवतयोस्तथा।।
अर्थात्, यंत्र मंत्ररूप है। मंत्र देवताओं का विग्रह है। जिस प्रकार शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं होता, उसी प्रकार यंत्र और देवता में भी कोई भेद नहीं होता। वैज्ञानिक दृष्टि से यंत्र आकाश में विचरण करने वाली संबंधित सूक्ष्म किरणों को आकर्षित कर स्थापित स्थल पर प्रभाव डालते हैं।
यंत्रों में ‘श्री यंत्र’ सर्वश्रेष्ठ है। यह यंत्रों का राजा है। श्री यंत्र दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से मुक्तिदायक एवं परम सफलतादायक है। श्री यंत्र के दर्शन मात्र से यज्ञ का फल प्राप्त होता है। श्री यंत्र के साथ-साथ शास्त्रों में अन्य यंत्रों - महामृत्युंजय, बगलामुखी, दुर्गा, बीसा, कुबेर, वशीकरण आदि का वर्णन है। सही व्यक्ति के निर्देशन में साधना प्रतिष्ठा कर यंत्र धारण करने, या स्थापित करने से निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है।
अतः ‘तंत्र-मंत्र-यंत्र’ एवं ज्योतिष का आपस में बड़ा घनिष्ठ संबंध है। तंत्र-मंत्र-यंत्र के प्रयोगों से शीघ्र ही कार्यसिद्धि होती है। लोक कल्याण के लिए इस विद्या के उपयोग से स्वार्थ-परमार्थ दोनों ही सिद्ध होते हैं।