आज के भौतिक युग में विद्या एवं ज्ञान की अधिक आवश्यकता है। विद्या एक ऐसा धन है, जिसे न कोई छीन सकता है, न कोई चुरा सकता है। स्मृति एवं पुराणों में बार-बार उल्लेख आया है कि मनुष्य को सर्वप्रथम विद्या प्राप्त करनी चाहिए। विद्या प्राप्त होने के बाद उसके द्वारा विनय, यश, धन आदि स्वतः प्राप्त हो जाते हंै। जिन्हें विद्या और ज्ञान प्राप्त करने में अड़चनें एवं परेशानियां आती हों, उन्हें इसके परिहार का उपाय करना चाहिए। विद्या और ज्ञान प्राप्ति के लिए शिक्षक और छात्र का आपस में तालमेल और संयम की आवश्यकता होती है। पूर्व काल में शिक्षक को गुरु और छात्र को शिष्य की श्रेणी में रखा जाता था। वर्तमान में गुरु-शिष्य का संबंध पहले जैसा नहीं है। सरस्वती यंत्र उपासना जिन्हें विद्या प्राप्ति में बार-बार अड़चने आती हों, या विद्या अध्ययन में मन न लगता हो, तो सरस्वती यंत्र की उपासना करने से लाभ होता है। उपासना विधि: सर्वप्रथम यंत्र को, बुध, गुरु, शुक्रवार को, 5, 7, 9, तिथि शुक्ल पक्ष पुष्य नक्षत्र में पंचगव्य, गंगा जल आदि से धो कर, सफेद वस्त्र पर स्थापित कर के, श्वेत पुष्पों से पंचोपचार, या षोडशोपचार पूजा कर के, नैवेद्य अर्पण करें तथा आरती करें।
पूजन और आरती के पश्चात इस यंत्र को घर के पूर्व हिस्से में शुद्ध स्थान पर स्थापित किया जाता है। तत्पश्चात प्रति दिन, संकल्प, संध्या आदि कर के, स्फटिक की माला पर निम्न मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। 10,000 मंत्र जप पूर्ण होने पर, उपर्युक्त विधिपूर्वक, नित्य पूजन करते रहें। यंत्र खंडित, अशुद्ध, अथवा कार्य पूर्ण होने पर, यंत्र को पवित्र नदी में विसर्जित कर के, श्वेत मिष्ठान्न को प्रसाद स्वरूप वितरण करें, तो वांछित लाभ होता है। विनियोग: ¬ अस्य श्री नीलसरस्वतीमन्त्रस्य ब्रह्माऋषिर्गायत्री छन्दः नीलसरस्वतीदेवताममात्मनोऽभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः। मंत्र: ¬ श्रीं ह्रीं ह्रौं सः हुं फट् नील सरस्वत्यै स्वाहा। विद्या और बुद्धि के दाता स्फटिक श्री गणेश: विद्या और बुद्धि का दाता स्फटिक श्री गणेश व्यक्ति को शीघ्र ही विद्या लाभ दिलाता है। यदि कोई बालक पढ़ने-लिखने में सुस्त हो, पीछे हो, या उसका मन पढ़ाई में न लगे, तो यह उपाय करने से उसे अवश्य लाभ होता है और पढ़ाई में मन लगता है। सर्वप्रथम स्फटिक श्री गणेश को प्राप्त कर के, शुभ दिनों में (मंगल, गुरु, शुक्र) स्नानादि कर के, घर में उत्तरी क्षेत्र के शुद्ध स्थान में लकड़ी के पाटले पर लाल वस्त्र विछा कर, उस पर श्री गणेश को स्थापित कर के, पूजन आरंभ करना चाहिए। पूजा के समय जो पूजन सामग्री उपलब्ध न हो, उसे मन में स्मरण कर के समर्पण करें। सर्वप्रथम हाथ में अक्षत ले कर गणेश का ध्यान करें - ¬ भूर्भुवः स्वः सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री गणेशाय नमः कह कर आवाहन करें और हाथ का अक्षत गणेश पर अर्पण करें। गणेश की दाहिनी ओर माता गौरी का आवाहन कर के लाल पुष्प एवं अक्षत चढ़ाएं। अब श्री गणेश को स्पर्श कर के ¬ भूभुर्वःस्वः सि(ि-बु(ि-सहिताय श्रीगणेशाय नमः स्थापयामि कह कर स्थापना करें। स्थापना करने के बाद आसन के लिए अक्षत और पुष्प अर्पण करें। तत्पश्चात जल छोड़ें। अब दुग्ध, दही, घी, शक्कर, शहद आदि से पृथक-पृथक स्नान कराएं, पुनः पंचामृत स्नान करा कर गंगा जल से स्नान कराएं। अब शुद्ध कपड़े से साफ कर के, शुद्ध इत्र आदि अर्पण कर के, वस्त्र आचमन, यज्ञोपवीत, चंदन, पुष्प माला, दूर्वा, सिंदूर आदि प्रत्यक्ष अर्पण करें तथा नैवेद्यादि का भोग लगा कर आरती करें। आरती के पश्चात पुष्पांजलि आदि देकर क्षमा प्रार्थना करें। एक ताम्र पात्र में जल, चंदन, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दक्षिणा, गंगा जल, सुपारी आदि रख कर विशेषाघ्र्य अर्पण करें। तदनंतर लाल चंदन, या रुद्राक्ष की माला पर निम्न मंत्र की (108) एक माला जप करें और गणेश से प्रार्थना करें।
विनियोग: ¬ अस्य श्री शक्ति विनायक-मन्त्रस्य भार्गव ऋषिः विराट् छन्दः गणाधिपति देवता ह्रीं शक्तिः ग्रीं बीजं ममात्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः। इस विनियोग को बोल कर जल अर्पण करें। शक्ति विनायक मंत्र: ¬ ह्रीं ग्रीं ह्रीं।। इस मंत्र को, स्फटिक गणेश के सम्मुख, चार लाख की संख्या में, लाल चंदन की माला पर जप कर, दशांश हवन-तर्पण आदि करने से वांछित लाभ होता है। हनुमान उपासना से विद्या प्राप्तिः बुद्धि और विद्या के दाता श्री हनुमान की उपासना से अगणित लोगों को ज्ञान की प्राप्ति हुई है। जिन्हें अध्यात्म, कानून, शिक्षा, उपासना आदि में बार-बार असफलता का सामना होता है, वे इस उपासना से शीघ्र ही लाभान्वित हो सकते हैं। उपासना विधि: श्राद्ध मास को छोड़ कर किसी भी माह के शुक्ल पक्ष में, पंचमी से पूर्णिमा तक, यह साधना की जाती है। सर्वप्रथम साधक ब्रह्म मुहूर्त में (सूर्योदय से 3 घंटे पूर्व) उठ कर, स्नानादि कर के, यज्ञोपवीत और पीला वस्त्र धारण कर के, ऊन के आसन पर विराजित हों सामने गमले में तुलसी का पौधा रखें। तत्पश्चात हनुमान यंत्र को, शुद्ध मन से, सफेद चंदन, धूप, नैवेद्य, तुलसी, पीले लड्डू आदि से पूजन कर के, हनुमान आरती करें। आरती आदि से निवृत्त हो कर लाल अक्षरों से लिखित हनुमान चालीसा का 8 बार पाठ करें। पाठ करने के समय उत्तराभिमुख बैठें। पाठ समाप्त कर के तुलसी की माला पर निम्न मंत्र की एक माला जप करें। मंत्र: राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्र नाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने। इस प्रकार ग्यारह दिनों तक उपासना करने के पश्चात उपर्युक्त मंत्र से (एक माला) 108 बार हवन करें। यदि कार्य पूर्ण हो जाए, तो साधना के पश्चात यंत्र और माला को पवित्र नदी में विसर्जित करें और हनुमान मंदिर, या राम मंदिर जा कर पीले वस्त्र और लड्डू भगवान को अर्पण करें तथा आशीर्वाद ग्रहण करें। जब तक कार्य न पूर्ण हो, तब तक हनुमान साधना करते रहें। ऐसी हनुमान उपासना से शीघ्र ही वांछित लाभ होगा। विद्या प्राप्ति का विशेष उपाय गणेशाथर्वशीर्ष: जो व्यक्ति विद्या प्राप्ति में बार-बार असफल होता हो, विद्या अध्ययन में अनेक अड़चने आती हों, या विद्या प्राप्ति में मन न लगे, तो बड़ी प्रतियोगिता आदि से पूर्व इस अथर्व शीर्ष का पाठ करने से निश्चय ही लाभ होगा। (गणेशाथर्वशीर्ष कृपया पुस्तक से पढ़ें) उपासना विधि: किसी भी माह के शुक्ल पक्ष को, सुबह-संध्या, संकल्पादि कर के, पीले वस्त्र पर श्री गणेश यंत्र को स्थापित कर के, पंचोपचार पूजन कर के, दूर्वा युक्त खीर का भोग लगाना चाहिए। (ध्यान रहे गणेश के लिए तुलसी पत्र वर्जित हैं)। तत्पश्चात गणेश अथर्वशीर्ष का (भूखे पेट) पाठ करना चाहिए। पाठ की संख्या 108 होनी चाहिए। पाठ समाप्त होने पर ¬ ह्रीं ग्रीं ह्रीं मंत्र से 108 बार हवन करना चाहिए। इस प्रकार पूजन, हवनादि कर के गणेश आरती आदि करें। तत्पश्चात गणेश पूजा के पुष्पादि को पवित्र नदी में विसर्जन करने से विद्या प्राप्ति में सफलता आसान हो जाती है।
गायत्री उपासना से विद्या लाभ: गायत्री मां की शक्ति से ज्ञान, दिव्य ज्ञान, विद्या, शास्त्र ज्ञान की प्राप्ति होती है। गायत्री उपासना करने से अनेक कष्टों का निवारण एवं दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है। उपासना विधि: किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से शुरू कर के 24 दिनों तक की जाने वाली यह साधना अत्यंत लाभकारी है, जिसकी विधि इस प्रकार है: सर्वप्रथम साधक गायत्री यंत्र प्राप्त करें। साधना के दिन, सूर्योदय के समय, स्नानादि से निवृत्त हो कर, संध्या संकल्प कर के, स्वच्छ स्थल, या गोशाला, मंदिर, आदि में यंत्र को, पंचामृत एवं गंगा जल से स्नान करा कर, श्वेत वस्त्र पर स्थापित करें। यंत्र की श्वेत पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा करें। तत्पश्चात गायत्री शाप विमोचन का यह मंत्र बोलें। मंत्र: ¬ श्री गायत्री त्वं ब्रह्म शाप विमुक्ता भव, । ¬ श्री गायत्री त्वं वशिष्ठ शाप विमुक्ता भव, । ¬ श्री गायत्री त्वं विश्वामित्र शापविमुक्ता भव, । ¬ श्री गायत्री त्वं शुक्र शाप विमुक्ता भव, । अब ¬ गायत्री देव्यै नमः का चैबीस बार जप करें और कल्पना करें कि गायत्री के 24 मुद्रा प्रदर्शित किये। (यदि मुद्रा ज्ञात हो, तो प्रदर्शित करें) अब पंचमुखी रुद्राक्ष की माला पर गायत्री मंत्र का 108 बार जप करें। जप के पश्चात गायत्री को आठ बार नमन् करें (यदि मुद्रा ज्ञात हो, तो प्रदर्शित करें) अब गायत्री यंत्र की पुनः पूजा करें तथा गायत्री की आरती करें। इस प्रकार, 24 दिनों तक पूजन-आरती के पश्चात, घी से दशांश हवन करने से चमत्कारिक लाभ होता है। लेखनी सिद्धि: विद्यार्थी जीवन में लेखनी का महत्वपूर्ण स्थान होता है। शास्त्रों में लेखनी को सरस्वती का एक अंग माना जाता है। कई प्रदेशों में आज भी लेखनी पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है। लेखनी का दूसरा नाम कलम भी है।
लेखनी में सरस्वती का निवास होता है। अतः, इसे साक्षात सरस्वती समझ कर, समय-समय पर पूजा करनी होती है। मानव जीवन में सर्वप्रथम बालक, या बालिका को लेखनी से जब संबंध स्थापित कराया जाता है, तो लेखनी का पूजन होता है। इसके बाद जब छात्र परीक्षा के लिए जाते हैं, उससे कुछ दिन पूर्व लेखनी की पूजा की जाती है। इस विधि से लेखनी का पूजन आदि कर के परीक्षा में शामिल होने से अवश्य, ही सरस्वती मां की कृपा से, परीक्षार्थी सफल होता है और अच्छे अंक प्राप्त होते हैं। उपर्युक्त विधि से पूजन कर के लेखनी को परीक्षा के निमित्त सुरक्षित रख दिया जाता है। जब परीक्षा में जाया जाता है, तो सर्वप्रथम उस लेखनी से स्वस्तिक । का चिह्न बना कर परीक्षा आरंभ की जाती है। विधि: शुक्ल पक्ष में गुरुवार को, सुबह स्नानादि कर के, स्वच्छ स्थान का चयन करें। स्वच्छ स्थान पर उत्तराभिमुख बैठ कर, सामने लकड़ी के पाटले पर स्वेत वस्त्र बिछा कर, सफेद चावल से अष्टदल कमल बनाएं। तत्पश्चात उस पर (आवश्यकतानुसार संख्या में) लेखनी स्थापित कर के उस पर पुष्प, अक्षत, गंध आदि अर्पण करें और यह मंत्र बोलें तथा मन में कल्पना करें कि हमारे सम्मुख मां सरस्वती विराजमान है: शुक्लां ब्रह्म-विचार-सार-परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाडयान्धकारापहाम्। हस्ते स्फाटिक-मालिकां विदधतीं पùासने संस्थितां वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा-वरदण्ड-मण्डितकरा या श्वेतपùासना। या ब्रह्मा-ऽच्युत-शङ्कर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष-जाड्यापहा।। माता सरस्वती का स्मरण कर के कर्पूर से सूक्ष्म आरती करें और सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें तथा पाठ पूर्ण होने पर श्वेत मिष्ठान्न अपने परिजनों को श्रद्धापूर्वक वितरण करें और लेखनी को, परीक्षादि निमित्त, सुरक्षित स्थान पर रख दें। परीक्षा के दिन, सरस्वती का स्मरण कर के, लेखनी का उपयोग करें, तो परीक्षा में वांछित सफलता मिलेगी।