अमर सिंह का जन्म 27 जनवरी 1956 को प्रातः 06 बज कर 40 मिनट पर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक राजपूत परिवार में हुआ था। अच्छे परिवार में जन्म होने के बावजूद उनका बचपन विशेष अच्छा नहीं बीता, आर्थिक स्थिति कमजोर रही, फिर भी उन्होंने सामान्य शिक्षा 1972 तक प्राप्त की। फिर धनोपार्जन शुरू किया और साथ-साथ उच्च शिक्षा भी जारी रखी क्योंकि शनि की महादशा जन्म के समय से नवंबर 1972 तक ठीक रही। फिर बुध की महादशा में विद्या के साथ-साथ व्यापार में नवंबर 1989 तक उन्नति करते रहे। किंतु 1989 के बाद उन पर केतु की महादशा आरंभ हुई, जो नवंबर 1996 तक चली।
यह समय उनके लिए अत्यंत संघर्ष का समय रहा। इस बीच वह राजनीति में प्रवेश की कोशिश भी करते रहे और अंततः 1996 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। अभी उन पर शुक्र की महादशा चल रही है जो नवंबर 1996 में आरंभ हुई और नवंबर 2016 तक चलेगी। भाग्य का स्वामी बुध व्यापार का कारक भी है, इसलिए अमर सिंह बिरला घराने के साथ व्यापार में जुड़े रहे। परंतु इनकी कुंडली में बुध के अष्टमेश सूर्य के साथ होने के फलस्वरूप उन्हें राजयोग का लाभ नहीं मिल पाया। फिर जब पंचमेश एवं दशमेश शुक्र की महादशा आई, तब उन्हें राजयोग का लाभ मिला। किंतु कोई ग्रह कितना भी अच्छा क्यों न हो अष्टमेश के साथ होने पर राजयोग को भंग कर देता है।
उनकी कुंडली में प्राकृतिक पाप ग्रह मंगल, शनि एवं राहु लाभ स्थान में स्थित हैं, इसलिए शुक्र की महादशा में धनोपार्जन का पर्याप्त अवसर मिला। 1996 में जब शुक्र की महादशा शुरू हुई, तब उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और हलचल मचाते रहे। इस दौरान उन्हें राजयोग का लाभ मिलता रहा। किंतु जब शुक्र की महादशा में गुरु की अंतर्दशा आई, तब उनका स्वास्थ्य कुछ प्रतिकूल हुआ और वह शुगर की बीमारी से ग्रस्त हो गए और किडनी में तकलीफ होने लगी, क्योंकि उक्त दोनों ग्रह इस बीमारी के कारक हैं। चंद्र लग्न से शुक्र अष्टम भाव और लग्न से गुरु अष्टम भाव में पीड़ित है। इसलिए इन दोनों ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में किडनी को बदलना पड़ा और जब शुक्र की महादशा में शनि की अंतर्दशा आई, तो राजनीति पर उनकी पकड़ भी ढीली होने लगी।
कालिदास के ग्रंथ उत्तर कालामृत में साफ तौर से लिखा है कि कुंडली में यदि शुक्र एवं शनि बलवान हांे तो एक दूसरे की दशा एवं अंतर्दशा में राजा को भी गद्दी से उतार देते हैं। श्री सिंह के साथ ऐसा ही हुआ। इसी योग के फलस्वरूप मुलायम सिंह का दाहिना हाथ समझे जाने वाले श्री सिंह का उनसे मतभेद हुआ और इस नए वर्ष के माह जनवरी के प्रथम सप्ताह में उन्होंने अपनी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। जब बुरा समय आता है, तो पतन के बहाने निकल ही आते हैं। श्री सिंह के सिर से पार्टी का साया छिन गया और अंततः वह अपने पदों से इस्तीफा देने को विवश हो गए। आज तक उन्हें जो भी प्रतिष्ठा मिली थी, नाम मिला था और राज्य सभा में यश मिला था, वह सब कुछ पलक झपकते छिन गया।
अपने राजनीतिक जीवन में वह कांग्रेस पार्टी की मुसीबत के समय सहायता करते रहे। वह प्रधानमंत्री के अति निकट हो जाते थे, इसलिए शत्रु भी उनके सामने कुछ नहीं कर पाते थे। अक्सर देखने में आता है कि जिसका भी शुक्र और शनि बलवान हों, उसके साथ इसी तरह घटना घटती है। किंतु, शुक्र और शनि के बाद जब बुध और केतु की अंतर्दशा आएगी, तब श्री सिंह के दिन फिर से फिरेंगे और वह फिर अपनी पूर्व की उसी स्थिति में आ जाएंगे। किंतु, शुक्र की महादशा के बाद सूर्य की महादशा अष्टमेश की दशा है, इसलिए वह 2016 से 2022 तक शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं रहेंगे। उसके बाद चंद्र की महादशा आएगी जो उनके लिए शुभ रहेगी क्योंकि चंद्र पूर्ण चंद्र है, सूर्य के सामने है और उस पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि नहीं है।
राहु की दृष्टि इसलिए प्रभावी नहीं होगी क्योंकि राहु शनि एवं मंगल के साथ एकादश भाव में और गुरु से केंद्र में है। श्री सिंह की कुंडली में छाया ग्रह राहु मंगल एवं शनि की मदद कर रहा है। नवमांश में राहु शनि के घर और चंद्र के नक्षत्र में है। राहु जिसके साथ रहता है, उसी के जैसा हो जाता है और चंद्र लग्न से शनि, मंगल और राहु पंचम भाव अर्थात मंगल के घर में ही स्थित हैं। लग्न से पंचम भाव मंे पाप ग्रह केतु पर मंगल, शनि और राहु की दृष्टि है। इन सारे योगों के फलस्वरूप संतान का वांछित सुख नहीं मिला और उनके घर टेस्टट्यूब बेबी का जन्म हुआ। इस कुंडली में गुरु अष्टम भाव में वक्री होकर सिंह राशि में अष्टम सूर्य से अष्टम भाव में है।
इस योग के कारण श्री सिंह उदर रोग से ग्रस्त रहे और उन्हें किडनी भी बदलवानी पड़ी। लग्न से पंचम भाव में स्थित केतु भी इसका द्योतक है। किंतु लग्नेश शनि एकादश भाव में है और पंचमेश तथा दशमेश राजयोग कारक शुक्र धन स्थान में धन कारक ग्रह गुरु से दृष्ट है। इसलिए शुक्र की महादशा के दौरान उन्होंने अपार संपत्ति अर्जित की। जन्म के समय के धन का अभाव रहा किंतु आज अरबपति हैं। फिर भी उसी शुक्र की महादशा और शनि की अंतर्दशा में जनवरी 2010 में पद से इस्तीफा दिया। वक्त बुरा हो, तो राजा को भी नहीं छोड़ता।