विद्या प्राप्ति में बाधाओं से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय
विद्या प्राप्ति में बाधाओं से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय

विद्या प्राप्ति में बाधाओं से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय  

निर्मल कोठारी
व्यूस : 3982 | फ़रवरी 2010

हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके बच्चों का जीवन सुखमय हो। इसके लिए वे उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने का हरसंभव प्रयास करते हैं, किंतु अक्सर देखने में आता है कि सारे प्रयासों के बावजूद बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता या फिर कड़ी मेहनत के बावजूद वांछित फल प्राप्त नहीं होता। ये विद्याभ्यास में आने वाली बाधाएं हैं। इन बाधाओं से मुक्ति में ज्योतिष की अन्य विधाओं की भांति वास्तु भी सहायक होता है। यहां इन बाधाओं से मुक्ति हेतु वास्तु के कुछ प्रमुख उपायों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।

1 अध्ययन करते समय बच्चे का मुंह उत्तर-पूर्व अथवा उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पढ़ने से सूर्य की ऊर्जा प्राप्त होती है, जिससे ज्ञान एवं विचार शक्ति में उन्नति होती है। उत्तर की ओर मुंह करके पढ़ने से एकाग्रता बढ़ती है और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

2 अध्ययन कक्ष ईशान कोण में होना चाहिए। ऐसा संभव नहीं होने की स्थिति में पूर्व में भी बनाया जा सकता है।

3 पढ़ाई की मेज पर पिरामिड, मीनार, या उड़ने वाले पक्षी फीनिक्स का चित्र रखना चाहिए। इससे बच्चे की कल्पना शक्ति का विकास होता है। उसके मन में आगे बढ़ने की प्रेरणा उत्पन्न होती है। मेज पर स्फटिक ग्लोब भी रखा जा सकता है। ग्लोब को रोज घुमाना चाहिए।

4 विद्यार्थियों को दरवाजे की ओर पीठ करके अध्ययन नहीं करना चाहिए।

5 अध्ययन की जगह के ऊपर परछत्ती, बान या बीम नहीं होनी चाहिए। अध्ययन कक्ष कभी भी नैर्ऋत्य या दक्षिण-पूर्व में नहीं होना चाहिए।

6 अध्ययन कक्ष में टेलीफोन, बड़ा आईना, अक्वेरियम या ऐसी अन्य वस्तुएं, जिनमें क्रियाशीलता हो, नहीं होनी चाहिए। इन वस्तुओं के कारण एकाग्रता में कमी आती है।

7 यदि विद्यार्थी कंप्यूटर का प्रयोग करता है, तो वह दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए। आवश्यकता के अनुसार दक्षिण या पश्चिम मध्य में भी रखा जा सकता है।

8 अध्ययन कक्ष में दरवाजा एवं खिड़कियां पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए। इससे प्रातः काल सूर्य की उष्णता का भरपूर लाभ मिलता है, जिससे बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

9 बच्चे चाहें तो अध्ययन कक्ष में सो भी सकते हैं। अध्ययन कक्ष को अध्ययन एवं शयन कक्ष भी बनाया जा सकता है।

10 अध्ययन कक्ष में पलंग का सिरहाना हमेशा दक्षिण या पश्चिम की ओर होना चाहिए।

11 अध्ययन कक्ष में पानी हमेशा ईशान कोण में ही रखना चाहिए।

12 अध्ययन कक्ष की दीवारों का रंग हल्का नीला, बादामी या हल्का पीला होना चाहिए।

13 दीवारों पर प्रेरणादायक महापुरुषों जैसे विवेकानंद आदि के चित्र लगाने चाहिए। इनके अतिरिक्त सर्टिफिकेट भी लगा सकते हैं।

14 अध्ययन कक्ष में किताबों एवं कपड़ों की आलमारियां दक्षिण या पश्चिम मध्य में होनी चाहिए।

15 किताबंे खुली नहीं रखनी चाहिए। खुली किताबें नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। किताबें तरतीब से रखी होनी चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर आसानी से प्राप्त हो सकें।

16 अध्ययन कक्ष में अनावश्यक पुरानी किताबें एवं कपड़े अर्थात कबाड़ न रखें। कबाड़ से नकारात्मक ऊर्जा निकलती है, जो स्वास्थ्य एवं अध्ययन पर प्रभाव डालती है।

17 अध्ययन कक्ष में पर्दे का रंग आसमानी, हल्का नीला, हल्का हरा या हल्का बादामी उत्तम होता है। सफेद रंग का पर्दा होन पर बच्चे में सुस्ती पैदा होती है। अध्ययन कक्ष में यदि टाॅयलेट भी हो, तो उसका दरवाजा हमेशा बंद रहना चाहिए, क्योंकि टाॅयलेट से नकारात्मक ऊर्जा निकलती है। उतारे हुए कपड़े आदि टाॅयलेट में रखने चाहए।

18 टाॅयलेट को अधिक न सजाएं, किंतु उसकी सफाई का पूरा ध्यान रखें।

19 यदि एक कमरे में एक से ज्यादा बच्चे अध्ययन करते हों, तो दीवारों पर मित्रता आदि का सामूहिक फोटो लगाएं। ऐसा करने से बच्चों के बीच झगड़े नहीं होते हैं, बल्कि उनमें आपस में मित्रता एवं मिलजुल कर कार्य करने की भावना उत्पन्न होती है।

20 बच्चांे की अध्ययन टेबल पर स्फटिक की गेंद या लकड़ी का बड़ा पिरामिड लटकाना चाहिए। स्फटिक की गेंद नकारात्मक ऊर्जा को एकत्र नहीं होने देती है। पिरामिड सकारात्मक ऊर्जा का वाहक होता है। इसके फलस्वरूप बच्चों में एकाग्रता उत्पन्न होती है।

21 अध्ययन कक्ष में मेज के सामने या पास में आईना न रखें।

22 अध्ययन कक्ष में मां सरस्वती की तस्वीर लगाएं। इसके अतिरिक्त ईशान कोण में आराध्य देव का फोटो लगाएं।

23 सरस्वती बीसा यंत्र की उपासना एवं हनुमान कवच का पाठ नियमित रूप से करें।

24 पढ़ाई में कमजोर छात्रगण स्टडी टेबल पर एजुकेशन टावर लगाएं, पढ़ाई में मन लगेगा।

25 सात घंटियों वाली पवन घंटी कमरे के पश्चिम दिशा में लगाएं। इससे बच्चों में कार्यक्षमता का विकास होता है। इस प्रकार वास्तु के ऊपर वर्णित उपायों को अपना कर विद्याभ्यास में आने वाली बाधाओं से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।

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